भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भाषा / तुलसी रमण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसी रमण |संग्रह=घर एक यात्रा / तुलसी रमण }} <poem> भ...)
(कोई अंतर नहीं)

11:04, 14 जनवरी 2009 का अवतरण

भाषा बोलती है
भांति- भांति के पक्षियों का
एक डाल पर बैठ
चोंच से चोंच मिलाना
घुलमिल फुदकना चहचहाना

हमारी समझ में उतर आता है
बोटी-बोटी पर कव्वों का लड़ना
घूमती चिड़िया पर
बाज और चील का झपटना
भाषा बखानती है
जल में विष का मिला होना
हमारी नजर में तैर आता है
एकदम साफ पानी

भाषा से झड़ने लगती है
जल सेवा की विभूति
हमारे सामने का बिदकता है फव्वारा
सत्ता के प्रति ललक का
हाथ जोड़, सिर झुका और
कुछ – कुछ आंखें मटका कर
भाषा बनना चाहती है सुन्दर और
कुछ अधिक मोहक
हमारी आंखों में लहराने लगता है
एक समुद्र स्वार्थ का
और पटल पर उभर आती है
एक जिन्दा वेश्या
हमारी भाषा सचमुच कविता की भाषा है
शब्द की तीसरी शक्ति से ओतप्रोत