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"देख तो दिल कि जाँ से उठता है / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर

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इश्क इक 'मीर' भारी पत्थर है  
 
इश्क इक 'मीर' भारी पत्थर है  
  
बोझ कब नातावां से उठता है
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बोझ कब नातावां से उठता है .
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'''शब्दार्थ ''' - आशोब -चीत्कार, आर्तनाद ।

11:52, 16 जनवरी 2009 का अवतरण

देख तो दिल कि जाँ से उठता है

ये धुआं सा कहाँ से उठता है


गोर किस दिल-जले की है ये फलक

शोला इक सुबह याँ से उठता है


खाना-ऐ-दिल से ज़िन्हार न जा

कोई ऐसे मकान से उठता है


नाला सर खेंचता है जब मेरा

शोर एक आसमान से उठता है


लड़ती है उस की चश्म-ऐ-शोख जहाँ

इक आशोब वां से उठता है


सुध ले घर की भी शोला-ऐ-आवाज़

दूद कुछ आशियाँ से उठता है


बैठने कौन दे है फिर उस को

जो तेरे आस्तान से उठता है


यूं उठे आह उस गली से हम

जैसे कोई जहाँ से उठता है


इश्क इक 'मीर' भारी पत्थर है

बोझ कब नातावां से उठता है .


शब्दार्थ - आशोब -चीत्कार, आर्तनाद ।