"जी तक तो लेके दूँ कि तू हो कारगर कहीं / सौदा" के अवतरणों में अंतर
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− | जी तक तो लेके दूँ कि तू हो कारगर कहीं | + | <poem> |
− | ऐ आह! क्या करूँ, नहीं बिकता असर | + | जी तक तो लेके दूँ कि तू हो कारगर कहीं |
− | + | ऐ आह! क्या करूँ, नहीं बिकता असर कही | |
− | होती नहीं है सुब्ह’ न आती है मुझको नींद | + | |
− | जिसको पुकारता हूँ सो कहता है मर कहीं | + | होती नहीं है सुब्ह’ न आती है मुझको नींद |
− | + | जिसको पुकारता हूँ सो कहता है मर कहीं | |
− | साक़ी है इक तबस्सुमे-गुल१ फ़ुरसते-बहार२ | + | |
− | ज़ालिम, भरे है जाम तो जल्दी से भर कहीं | + | साक़ी है इक तबस्सुमे-गुल१ फ़ुरसते-बहार२ |
− | + | ज़ालिम, भरे है जाम तो जल्दी से भर कहीं | |
− | ख़ूँनाब३ यूँ कभी न मिरी चश्म से थमा | + | |
− | अटका न जब तक आन के लख़्ते-जिगर४ कहीं | + | ख़ूँनाब३ यूँ कभी न मिरी चश्म से थमा |
− | + | अटका न जब तक आन के लख़्ते-जिगर४ कहीं | |
− | सोहबत में तेरी आन के जूँ-शीशए-शराब५ | + | |
− | ख़ाली करूँ मैं दिल के तई बैठकर कहीं | + | सोहबत में तेरी आन के जूँ-शीशए-शराब५ |
− | + | ख़ाली करूँ मैं दिल के तई बैठकर कहीं | |
− | '''क़ता''' | + | |
− | + | '''क़ता''' | |
− | ऐ दिल, तू कह तो मुझसे कि मैं क्या करूँ निसार | + | |
− | आवें कभू तो हज़रते-’सौदा’ इधर कहीं | + | ऐ दिल, तू कह तो मुझसे कि मैं क्या करूँ निसार |
− | + | आवें कभू तो हज़रते-’सौदा’ इधर कहीं | |
− | अंगुश्तरी६ के घर की तरह ग़ैरे-संगो-ख़िश्त७ | + | |
− | घर में तो ख़ाक भी नहीं आती नज़र कहीं | + | अंगुश्तरी६ के घर की तरह ग़ैरे-संगो-ख़िश्त७ |
− | + | घर में तो ख़ाक भी नहीं आती नज़र कहीं | |
− | ''१. फूल की मुस्कान, २. बसंत का समय, ३. ख़ून का आँसू,'' | + | |
− | ''४. जिगर का टुकड़ा, ५. शराब के जाम की तरह, ६. अँगूठी,'' | + | ''१. फूल की मुस्कान, २. बसंत का समय, ३. ख़ून का आँसू,'' |
− | ''७. पत्थर और ईँट के आलावा'' | + | ''४. जिगर का टुकड़ा, ५. शराब के जाम की तरह, ६. अँगूठी,'' |
− | < | + | ''७. पत्थर और ईँट के आलावा'' |
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12:00, 16 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
जी तक तो लेके दूँ कि तू हो कारगर कहीं
ऐ आह! क्या करूँ, नहीं बिकता असर कही
होती नहीं है सुब्ह’ न आती है मुझको नींद
जिसको पुकारता हूँ सो कहता है मर कहीं
साक़ी है इक तबस्सुमे-गुल१ फ़ुरसते-बहार२
ज़ालिम, भरे है जाम तो जल्दी से भर कहीं
ख़ूँनाब३ यूँ कभी न मिरी चश्म से थमा
अटका न जब तक आन के लख़्ते-जिगर४ कहीं
सोहबत में तेरी आन के जूँ-शीशए-शराब५
ख़ाली करूँ मैं दिल के तई बैठकर कहीं
क़ता
ऐ दिल, तू कह तो मुझसे कि मैं क्या करूँ निसार
आवें कभू तो हज़रते-’सौदा’ इधर कहीं
अंगुश्तरी६ के घर की तरह ग़ैरे-संगो-ख़िश्त७
घर में तो ख़ाक भी नहीं आती नज़र कहीं
१. फूल की मुस्कान, २. बसंत का समय, ३. ख़ून का आँसू,
४. जिगर का टुकड़ा, ५. शराब के जाम की तरह, ६. अँगूठी,
७. पत्थर और ईँट के आलावा