"अक्षर / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) |
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत | |रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत | ||
− | + | |संग्रह=घर एक यात्रा है / श्रीनिवास श्रीकांत | |
}} | }} | ||
+ | <Poem> | ||
अक्षर कभी नहीं मरते | अक्षर कभी नहीं मरते | ||
− | |||
तभी उनका नाम है अ-क्षर | तभी उनका नाम है अ-क्षर | ||
− | |||
उन्हें जीवित रखते हैं | उन्हें जीवित रखते हैं | ||
− | |||
स्वर और व्यंजन | स्वर और व्यंजन | ||
− | |||
वे बनाते हैं | वे बनाते हैं | ||
− | |||
समय के महानद पर सेतु | समय के महानद पर सेतु | ||
− | |||
जिस पर से गुजरता है इतिहास | जिस पर से गुजरता है इतिहास | ||
− | |||
जातियाँ | जातियाँ | ||
− | |||
एक के बाद एक | एक के बाद एक | ||
− | |||
बनती बिगड़ती संस्कृतियाँ | बनती बिगड़ती संस्कृतियाँ | ||
− | |||
समय की डूब | समय की डूब | ||
− | |||
समय की उठान | समय की उठान | ||
− | |||
अतीत से भविष्य की ओर | अतीत से भविष्य की ओर | ||
− | |||
सरकते आसमान | सरकते आसमान | ||
− | |||
भाषकार जब करता है पद विन्यास | भाषकार जब करता है पद विन्यास | ||
− | |||
अक्षर बनाते हैं शब्द | अक्षर बनाते हैं शब्द | ||
− | |||
शब्द देते हैं अर्थ | शब्द देते हैं अर्थ | ||
− | |||
शब्दों से बनती है भाषा | शब्दों से बनती है भाषा | ||
− | |||
भाषा सम्वाद है | भाषा सम्वाद है | ||
− | |||
पर अर्थ हैं मूक | पर अर्थ हैं मूक | ||
− | |||
धीरे धीरे जज़्ब होते | धीरे धीरे जज़्ब होते | ||
− | |||
स्मृतियों भरे जहन में | स्मृतियों भरे जहन में | ||
− | |||
जमीन के रोम-रोम में | जमीन के रोम-रोम में | ||
− | |||
होता है संचित जल | होता है संचित जल | ||
− | |||
बनाता उसे उर्वर | बनाता उसे उर्वर | ||
− | |||
शब्द कभी-कभी | शब्द कभी-कभी | ||
− | |||
अर्थों की छत्रियाँ लिये | अर्थों की छत्रियाँ लिये | ||
− | |||
उतरते हैं | उतरते हैं | ||
− | |||
कागज़ के पृष्ठ पर | कागज़ के पृष्ठ पर | ||
− | |||
बुनते हैं | बुनते हैं | ||
− | |||
रचना का मोज़ेइक | रचना का मोज़ेइक | ||
− | |||
भाव उसमें होते हैं | भाव उसमें होते हैं | ||
− | |||
सन्निहित | सन्निहित | ||
− | |||
अन्दर की आँख | अन्दर की आँख | ||
− | |||
करती है दोनों को पुनजीर्वित | करती है दोनों को पुनजीर्वित | ||
− | |||
वह पहचानती है विचारों को | वह पहचानती है विचारों को | ||
− | |||
तय करती है उनकी अस्मिता | तय करती है उनकी अस्मिता | ||
− | |||
विचार नापते हैं काग़ज पर | विचार नापते हैं काग़ज पर | ||
− | |||
समय | समय | ||
− | |||
शब्दों के पाँवों चलते | शब्दों के पाँवों चलते | ||
− | |||
जिनमें ध्वनि है कर्ता | जिनमें ध्वनि है कर्ता | ||
− | |||
वही है | वही है | ||
− | |||
इन्द्रियस्थ पदचाप। | इन्द्रियस्थ पदचाप। | ||
+ | </poem> |
23:52, 17 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
अक्षर कभी नहीं मरते
तभी उनका नाम है अ-क्षर
उन्हें जीवित रखते हैं
स्वर और व्यंजन
वे बनाते हैं
समय के महानद पर सेतु
जिस पर से गुजरता है इतिहास
जातियाँ
एक के बाद एक
बनती बिगड़ती संस्कृतियाँ
समय की डूब
समय की उठान
अतीत से भविष्य की ओर
सरकते आसमान
भाषकार जब करता है पद विन्यास
अक्षर बनाते हैं शब्द
शब्द देते हैं अर्थ
शब्दों से बनती है भाषा
भाषा सम्वाद है
पर अर्थ हैं मूक
धीरे धीरे जज़्ब होते
स्मृतियों भरे जहन में
जमीन के रोम-रोम में
होता है संचित जल
बनाता उसे उर्वर
शब्द कभी-कभी
अर्थों की छत्रियाँ लिये
उतरते हैं
कागज़ के पृष्ठ पर
बुनते हैं
रचना का मोज़ेइक
भाव उसमें होते हैं
सन्निहित
अन्दर की आँख
करती है दोनों को पुनजीर्वित
वह पहचानती है विचारों को
तय करती है उनकी अस्मिता
विचार नापते हैं काग़ज पर
समय
शब्दों के पाँवों चलते
जिनमें ध्वनि है कर्ता
वही है
इन्द्रियस्थ पदचाप।