भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सखी लौट फिर फागुन आया / श्याम सखा 'श्याम'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम सखा 'श्याम' }} <Poem> सखी लौट फिर फागुन आया संदल...) |
|||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
मस्त हुई हूँ मैं भी | मस्त हुई हूँ मैं भी | ||
साथ खड़े हैं मेरे दिलबर | साथ खड़े हैं मेरे दिलबर | ||
− | नयनो काजल बौराया | + | नयनो का काजल बौराया |
भर-भर बैरन पिचकारी | भर-भर बैरन पिचकारी | ||
अंग-अंग साजन ने मारी | अंग-अंग साजन ने मारी |
06:32, 18 जनवरी 2009 का अवतरण
सखी लौट फिर फागुन आया
संदली सपने आँगन लाया
उपवन की कलियां खिलकर
हँसतीं भौरों से मिलकर
मस्त हुई हूँ मैं भी
साथ खड़े हैं मेरे दिलबर
नयनो का काजल बौराया
भर-भर बैरन पिचकारी
अंग-अंग साजन ने मारी
नयनो से जब मिले नयन
मै अपना सब-कुछ हारी
उनका हर अन्दाज मुझे भाया
सखी लौट फिर सावन आया