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"नवम्बर का चेहरा / चन्द्रकान्त देवताले" के अवतरणों में अंतर
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10:17, 18 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
अब मैं लौट आया हूँ
और पतझर पत्तियों को कुतर रहा है
तेज़ हवाओं के बीच
मेरी खामोश वापसी
फरवरी के दरवाजों पर
कितनी हलकी थपथपाहट है,
जनवरी की नदी में
बर्फ़ जमी हुई थी
और बर्फ़ पर मेरी परछाईं
नंगे पैर दौड़ रही थी,
मैं बहुत दूर था
बचता हुआ अनुपस्थित
फिर भी परछाईं से बंधा
घिसटता रहा बर्फ़ पर...
मैंने किसको बचाया
या
नष्ट किया
अब अफ़वाहों के बीच कहना असंभव है
पर मैं हूँ लौटा हुआ
नहीं जानता कौन जीता कौन हारा
वसंत के दर्पण में
नवम्बर का चेहरा कभी नहीं दिखता
मैं नवम्बर का चेहरा हूँ,फरवरी में
और फरवरी पत्तियों को कुतर रही है.