"एक नदी की कहानी / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
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उन दिनों | उन दिनों | ||
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किसनपुरा के करीब | किसनपुरा के करीब | ||
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एक निरंतर निनादित नदी रहती थी | एक निरंतर निनादित नदी रहती थी | ||
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मन की मौज में | मन की मौज में | ||
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कार्तिक की गुनगुनी धूप ओढ़कर | कार्तिक की गुनगुनी धूप ओढ़कर | ||
बाँस के जंगल | बाँस के जंगल | ||
− | + | संग-संग बहती थी | |
− | संग-संग बहती | + | |
पारदर्शी पानी में | पारदर्शी पानी में | ||
− | |||
दिप-दिप जगमाते | दिप-दिप जगमाते | ||
− | + | नीले.. हरे .. कत्थई पत्थर बिखेरते | |
− | नीले | + | सुनहरी धूप के सैंकड़ों दुखद रंग |
− | + | ||
− | सुनहरी धूप के सैंकड़ों दुखद रंग | + | |
किनारों पर | किनारों पर | ||
− | कभी-कभार | + | कभी-कभार |
− | + | घूमते दिख जाते मछुआरे | |
− | + | ||
डालते जाल | डालते जाल | ||
− | + | खींचते, तरल आँखों वाली | |
सुनहली मछलियाँ | सुनहली मछलियाँ | ||
धीरे-धीरे | धीरे-धीरे | ||
− | |||
बढ़ी भूख़ | बढ़ी भूख़ | ||
गहरे काले जल मे | गहरे काले जल मे | ||
बिछने लगा बारूद | बिछने लगा बारूद | ||
− | |||
और ... धमाकों के बाद | और ... धमाकों के बाद | ||
− | |||
तिकोने कटाव वाले “रोके” पर | तिकोने कटाव वाले “रोके” पर | ||
− | + | लूटी जाने लगीं | |
− | + | डब-डब आँखों वाली | |
− | + | ||
मरी जलपरियाँ | मरी जलपरियाँ | ||
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जिस दिन बारूद लगता | जिस दिन बारूद लगता | ||
− | |||
गाँव भर में | गाँव भर में | ||
उतसाह का माहौल रहता | उतसाह का माहौल रहता | ||
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पास के कस्बे में | पास के कस्बे में | ||
गिर जाते | गिर जाते | ||
− | |||
मच्छी के भाव | मच्छी के भाव | ||
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देखते-देखते | देखते-देखते | ||
− | + | नदी के उजले माथे पर | |
− | + | ||
मैला उतरने लगा | मैला उतरने लगा | ||
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− | |||
सिकुड़ने लगे | सिकुड़ने लगे | ||
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उसके पाट | उसके पाट | ||
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निर्जन हुए घाट | निर्जन हुए घाट | ||
नदी के पेट में | नदी के पेट में | ||
− | |||
भीतर-ही-भीतर | भीतर-ही-भीतर | ||
− | ढोल-सा लुड़कने लगा | + | ढोल-सा |
+ | लुड़कने लगा | ||
तैज़ाबी मलवा | तैज़ाबी मलवा | ||
गाँव अब भी वही है | गाँव अब भी वही है | ||
− | |||
वही है नदी | वही है नदी | ||
− | + | अंतर बस इतना है— | |
− | अंतर बस इतना | + | अब वह शोर नहीं मचाती |
− | + | ||
अब वह गीत नहीं गाती | अब वह गीत नहीं गाती | ||
− | |||
बुद-बुद बहती है | बुद-बुद बहती है | ||
− | |||
चुप-चाप रहती है | चुप-चाप रहती है | ||
− | + | किसनपुरा गाँव के पास | |
− | किसनपुरा के पास एक नदी | + | एक नदी |
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20:57, 18 जनवरी 2009 का अवतरण
उन दिनों
किसनपुरा के करीब
एक निरंतर निनादित नदी रहती थी
मन की मौज में
कार्तिक की गुनगुनी धूप ओढ़कर
बाँस के जंगल
संग-संग बहती थी
पारदर्शी पानी में
दिप-दिप जगमाते
नीले.. हरे .. कत्थई पत्थर बिखेरते
सुनहरी धूप के सैंकड़ों दुखद रंग
किनारों पर
कभी-कभार
घूमते दिख जाते मछुआरे
डालते जाल
खींचते, तरल आँखों वाली
सुनहली मछलियाँ
धीरे-धीरे
बढ़ी भूख़
गहरे काले जल मे
बिछने लगा बारूद
और ... धमाकों के बाद
तिकोने कटाव वाले “रोके” पर
लूटी जाने लगीं
डब-डब आँखों वाली
मरी जलपरियाँ
जिस दिन बारूद लगता
गाँव भर में
उतसाह का माहौल रहता
पास के कस्बे में
गिर जाते
मच्छी के भाव
देखते-देखते
नदी के उजले माथे पर
मैला उतरने लगा
सिकुड़ने लगे
उसके पाट
निर्जन हुए घाट
नदी के पेट में
भीतर-ही-भीतर
ढोल-सा
लुड़कने लगा
तैज़ाबी मलवा
गाँव अब भी वही है
वही है नदी
अंतर बस इतना है—
अब वह शोर नहीं मचाती
अब वह गीत नहीं गाती
बुद-बुद बहती है
चुप-चाप रहती है
किसनपुरा गाँव के पास
एक नदी