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"आदमी हूँ / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर

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जाने कब से मुट्ठियों में  
 
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बांधना चाहता हूँ सुख
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बाँधना चाहता हूँ सुख
 
जो भिंचने से पहले ही  
 
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हाथ से नदारद हो जाता है  
 
हाथ से नदारद हो जाता है  
  
 
बहुत की है यात्रा मैंने
 
बहुत की है यात्रा मैंने
ठहरा हूं कई वर्ष एक जगह  
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ठहरा हूँ कई वर्ष एक जगह  
 
बहाए हैं कितने ही आँसू  
 
बहाए हैं कितने ही आँसू  
 
संजोए कितने अहसास
 
संजोए कितने अहसास
 
मन की अँधेरी गुफाओं तक से हो आया हूँ
 
मन की अँधेरी गुफाओं तक से हो आया हूँ
जलने या दफन होने का भय है
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जलने या दफ़न होने का भय है
 
घावों की वेदना  
 
घावों की वेदना  
 
फूलों के खिलने का सुख है  
 
फूलों के खिलने का सुख है  

07:39, 19 जनवरी 2009 का अवतरण

जाने कब से मुट्ठियों में
बाँधना चाहता हूँ सुख
जो भिंचने से पहले ही
हाथ से नदारद हो जाता है

बहुत की है यात्रा मैंने
ठहरा हूँ कई वर्ष एक जगह
बहाए हैं कितने ही आँसू
संजोए कितने अहसास
मन की अँधेरी गुफाओं तक से हो आया हूँ
जलने या दफ़न होने का भय है
घावों की वेदना
फूलों के खिलने का सुख है
आंधियों से पेड़ उखड़ने का दुख
आसमानी बौछार की ठंडक है
और जलती धरती से तलवों में जलन
रात के अंधेरे से उकताया हूँ
सूरज की चमक से भौंचक्का

मैं आदमी हूँ
थोड़े से प्रेम से विह्वल
उपेक्षा से दोगुना पीड़ित।