भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी हूँ / मोहन साहिल

3 bytes added, 02:09, 19 जनवरी 2009
<poem>
जाने कब से मुट्ठियों में
बांधना बाँधना चाहता हूँ सुख
जो भिंचने से पहले ही
हाथ से नदारद हो जाता है
बहुत की है यात्रा मैंने
ठहरा हूं हूँ कई वर्ष एक जगह
बहाए हैं कितने ही आँसू
संजोए कितने अहसास
मन की अँधेरी गुफाओं तक से हो आया हूँ
जलने या दफन दफ़न होने का भय है
घावों की वेदना
फूलों के खिलने का सुख है
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,214
edits