भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नए गीत / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का |संग्रह= }} <Poem> तीसरा प...)
 
 
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
हवाओं की आत्मा तक
 
हवाओं की आत्मा तक
 
एक गीत जो अन्त में अनन्त, दय के
 
एक गीत जो अन्त में अनन्त, दय के
आनन्द में विश्राम करता हो
+
आनन्द में विश्राम करता हो !
  
 
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे'''
 
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे'''

10:38, 19 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

तीसरा पहर कहता है-
मैं छाया के लिए प्यासा हूँ
चांद कहता है-
मुझे तारों की प्यास है
बिल्लौर की तरह साफ़ झरना होंठ मांगता है
और हवा चाहती है आहें

मैं प्यासा हूँ ख़ुशबू और हँसी का
मैं प्यासा हूँ चन्द्रमाओं, कुमुदनियों और झुर्रीदार मुहब्बतों से मुक्त
गीतों का

कल का एक ऎसा गीत
जो भविष्य के शान्त जलों में हलचल मचा दे
और उसकी लहरों और कीचड़ को
आशा से भर दे

एक दमकता, इस्पात जैसा ढला गीत
विचार से समृद्ध
पछतावे और पीड़ा से अम्लान
उड़ान भरे सपनों से बेदाग़
एक गीत जो चीज़ों की आत्मा तक
पहुँचता हो
हवाओं की आत्मा तक
एक गीत जो अन्त में अनन्त, दय के
आनन्द में विश्राम करता हो !

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे