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"वह / केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
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वह इस समय ठीक | वह इस समय ठीक | ||
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मेरे सामने है | मेरे सामने है | ||
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न कुछ कहना | न कुछ कहना | ||
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न सुनना | न सुनना | ||
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न पाना | न पाना | ||
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एक परिचित चेहरे का होना | एक परिचित चेहरे का होना | ||
होना- | होना- | ||
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इतना ही काफ़ी है | इतना ही काफ़ी है | ||
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बस इतने से | बस इतने से | ||
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हल हो जाते हैं | हल हो जाते हैं | ||
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बहुत-से सवाल | बहुत-से सवाल | ||
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बहुत-से शब्दों में | बहुत-से शब्दों में | ||
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बस इसी से भर आया है लबालब अर्थ | बस इसी से भर आया है लबालब अर्थ | ||
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वह है | वह है | ||
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और इस कठिन समय में भी | और इस कठिन समय में भी | ||
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वह बिल्कुल उसी तरह | वह बिल्कुल उसी तरह | ||
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इतना ही काफ़ी है | इतना ही काफ़ी है | ||
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11:38, 19 जनवरी 2009 का अवतरण
इतने दिनों के बाद
वह इस समय ठीक
मेरे सामने है
न कुछ कहना
न सुनना
न पाना
न खोना
सिर्फ़ आँखों के आगे
एक परिचित चेहरे का होना
होना-
इतना ही काफ़ी है
बस इतने से
हल हो जाते हैं
बहुत-से सवाल
बहुत-से शब्दों में
बस इसी से भर आया है लबालब अर्थ
कि वह है
वह है
है
और चकित हूँ मैं
कि इतने बरस बाद
और इस कठिन समय में भी
वह बिल्कुल उसी तरह
हँस रही है
और बस
इतना ही काफ़ी है