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11:41, 19 जनवरी 2009 का अवतरण
एक दिन
हँसी-हँसी में
उसने पृथ्वी पर खींच दी
एक गोल-सी लकीर
और कहा- 'यह तुम्हारा घर है'
मैंने कहा-
'ठीक, अब मैं यहीं रहूंगा'
वर्षा
शीत
और घाम से बचकर
कुछ दिन मैं रहा
उसी घर में
इस बात को बहुत दिन हुए
लेकिन तब से वह घर
मेरे साथ-साथ है
मैंने आनेवाली ठण्ड के विरुद्ध
उसे एक हल्के रंगीन स्वेटर की तरह
पहन रखा है