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"एक मुकुट की तरह/ केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

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रचनाकार: [[केदारनाथ सिंह]]
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पृथ्वी के ललाट पर
 
पृथ्वी के ललाट पर
 
 
एक मुकुट की तरह
 
एक मुकुट की तरह
 
 
उड़े जा रहे थे पक्षी
 
उड़े जा रहे थे पक्षी
 
  
 
मैंने दूर से देखा
 
मैंने दूर से देखा
 
 
और मैं वहीं से चिल्लाया
 
और मैं वहीं से चिल्लाया
 
 
बधाई हो
 
बधाई हो
 
 
पृथ्वी, बधाई हो !
 
पृथ्वी, बधाई हो !
 
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('अकाल में सारस' नामक कविता-संग्रह से)
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12:06, 19 जनवरी 2009 का अवतरण

पृथ्वी के ललाट पर
एक मुकुट की तरह
उड़े जा रहे थे पक्षी

मैंने दूर से देखा
और मैं वहीं से चिल्लाया
बधाई हो
पृथ्वी, बधाई हो !