भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विवश / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन साहिल |संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:11, 19 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

रोया नहीं मैं इसलिए
घोर विपत्ति में भी
हँसते रहना जरूरी है
मैंने पलकें समेटकर
फैला दिए हर बार होंठ
और हँस पड़ा इस विवशता पर
मेरी बूढ़ी माँ बिना दाँतों के खिलखिलाई
बच्चों ने मारे प्रसन्नता के
कलाबाज़ियाँ खाईं
पत्नी ने मेरे गाल पर काला निशान लगाया
और मित्र गले मिलकर
ठहाके लगाने लगा
मैं बहुत दिनों से
एकान्त ढूँढ रहा हूं।