भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रास्ता / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन साहिल |संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:16, 19 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

नंगे पांव बहती नाक इसी रास्ते
जाता था स्कूल बचपन में
वे पत्थर-झाड़ सब वहीं हैं
अलबत्ता अब अधिक उपेक्षित और उदास
कोई नहीं उठाता अब पत्थर
न मारता है निशाना टेलीफोन के खंबों पर
झाड़ियों में घंटों घुसकर
कोई नहीं खाता कलेंछें और भस्मधूड़ी
काँटे बीच रास्ते तक लपक आए हैं
पर अब किसी का पाजामा उनकी गिरफ्त में नहीं आता
टेलीफोन का खंबा बिन तारों के उदास खड़ा है
उसने बरसों से नहीं देखा
किसी को ठोकर खाते
और पत्थरों से कूटकर घावों पर छाँबर बूटी लगाते
उसने नहीं देखा
स्कूल न जाकर वहीं कहीं छिपे बच्चों को
जो सारा दिन चिनते रहते थे घर
और शाम को गिरा जाते थे
बरसों बाद बढ़िया पोशाक पहने
पॉलिश किए जूतों से गुजर रहा हूँ इस रास्ते से।