भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मत लौटाओ मुझे / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन साहिल |संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:30, 20 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

इस शिखर से मत धकेलो मुझे
देखो मैं
कितने बीहड़ लाँघ कर पहुँचा हूँ
मेरे गुज़रने के बाद
रास्तों के निशान मिटा गए
कितने ही ग्लेशियर

वहाँ नीचे बहुत आतंक है
कीड़ों की तरह कुलबुला रहे है आदमी
एक छोटी सी खाई में
फट चुकी है उनकी पोशाकें
उनके भीतर का दुख ठाह्कों मे बदल
एक भयानक शोर पैदा कर रहा है
मैं बर्फ़ के फाहों से ठण्डे करता आ रहा हूँ
अपने घाव

मैं भंग नहीं करूँगा तुम्हारी तपस्या
मुझे यहाँ खड़ा रहने दो तब तक
जब तक मेरा सारा रक्त
उंगलियों से बहकर
खाई की तरफ प्रवाहित नहीं हो जाता।