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01:03, 20 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
आख़िरकार
एक थके हुए शहर की ओर भागते हुए लोग
स्वस्थ लग रहे हैं
जामुन हर जगह उतने ही स्याह हैं
जितना सूखे बादल उन्हें कर सकते हैं
घास के कीड़े घास जितने ही हरे
हरा उतना जितना थकान में सम्भव है
भ्रम उतना जितना कि हो सकता है
भागते हुए उनकी थकान उतनी ही है जितनी देह की सामर्थ्य
बुढ़िया किसी अनजाने शब्द का सुमिरन कर रही है
कोई कहता है-
ला, अम्मा, यह चावल हमें दे दे
दो कोस दूर है थका हुआ शहर
तू पहुँच नहीं पाएगी