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01:17, 20 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
न सामर्थ्य
न स्वीकृति
न मनाही को होना है न ओस
ही त्वचा में
गौरैय्या को आना है
पर्दों के बीच मूरख एक घोंसला शुरू हो जाना है
ठीक उसी पल
शिवपुत्र को गा नहीं पाना है
पपीते के पत्तों को बस हिलते हुए रहना है
धूप में ज़र्रों की दिशा टूट रही होनी है
तिनके उड़ रहे होने हैं पर्दों की ओर
ठीक उसी पल
गवैये को सोना है