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"देश-प्रेम / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर

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उनके षड्यंत्रों के बावजूद
नदी अपने उद्गम से निकली
और लहलहाती फसलों को सींचती चली गई

हल और मिट्टी ने छेड़े रखा
देस राग
कवि निरंतर लिखता रहा मीठा गीत

गुलाबी फूलों के सौंदर्य पर
किसान जमकर नाचा
पंछी आकाश में चहका उड़ा
और उड़ता चला गया
सब गर्वित थे अपने देश पर
सिवाय उनके जो
देश प्रेम का ढोंग रचाकर
इन सब की खुशियाँ छीन लेना चाहते थे।