भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इतवार / अनूप सेठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप सेठी }} <poem> आओ इतवार मनाएँ देर से उठें चाय पि...)
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
आओ इतवार मनाएँ  
 
आओ इतवार मनाएँ  
 
देर से उठें  
 
देर से उठें  
चाय पिएं
+
चाय पिएँ
 
और चाय पिएँ  
 
और चाय पिएँ  
 
अखबार को सिर्फ उलट पलट लें  
 
अखबार को सिर्फ उलट पलट लें  
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
किसी को न बुलाएँ
 
किसी को न बुलाएँ
 
नहाना भी छोड़ दें  
 
नहाना भी छोड़ दें  
खाना अकेले खाएं
+
खाना अकेले खाएँ
  
 
बाजार ख्रीदारी स्थगित कर दें अगले हफ्ते तक  
 
बाजार ख्रीदारी स्थगित कर दें अगले हफ्ते तक  
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
बिस्तर के इर्द गिर्द बिछा लें  
 
बिस्तर के इर्द गिर्द बिछा लें  
 
इतवार की शाम  
 
इतवार की शाम  
आंखों में आँखें डाल सो जाएँ
+
आँखों में आँखें डाल सो जाएँ
  
 
एक इतवार तो हो  
 
एक इतवार तो हो  

01:14, 21 जनवरी 2009 का अवतरण

आओ इतवार मनाएँ
देर से उठें
चाय पिएँ
और चाय पिएँ
अखबार को सिर्फ उलट पलट लें
हाथ न लगाएं
सिर्फ चाय का गिलास घुमाएँ

किसी को न बुलाएँ
नहाना भी छोड़ दें
खाना अकेले खाएँ

बाजार ख्रीदारी स्थगित कर दें अगले हफ्ते तक
केरोसिन ले लें दस रुपए ज्यादा देकर

एक पुरसुकून दोपहर हो
ढीलमढाल पसरे रहें

पुरानी एलबम निकालें
पहली सालगिरह याद करें
बातें करें
बचपन की, कालेज की, नाटक की कविताई की

सारे सपनों की धूल झाड़ें
बिस्तर के इर्द गिर्द बिछा लें
इतवार की शाम
आँखों में आँखें डाल सो जाएँ

एक इतवार तो हो
अपने से बाहर निकल
अपने में खो जाएँ।

                        (1985)