भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गजानन मुक्तिबोध / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
छो
 
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
कि बेहोशी हमारे होश का पैमाना हो जाए।
 
कि बेहोशी हमारे होश का पैमाना हो जाए।
  
किरन फूटी है ज़ख्मों के लहू से : यह नया दिन है :
+
किरन फूटी है ज़ख़्मों के लहू से : यह नया दिन है :
 
दिलों की रोशनी के फूल हैं – नज़राना हो जाए।
 
दिलों की रोशनी के फूल हैं – नज़राना हो जाए।
  
पंक्ति 21: पंक्ति 21:
 
रियाज़त ख़त्म होती है अगर अफ़साना हो जाए।
 
रियाज़त ख़त्म होती है अगर अफ़साना हो जाए।
  
चमन खिलता था वह खिलता, और वह खिलना कैसा था
+
चमन खिलता था वह खिलता था, और वह खिलना कैसा था
 
कि जैसे हर कली से दर्द का याराना हो जाए।
 
कि जैसे हर कली से दर्द का याराना हो जाए।
  
पंक्ति 32: पंक्ति 32:
 
x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x
 
x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x
  
वो समस्तों की महफ़िल में गजानन मुक्तिबोध आया
+
वो सरमस्तों की महफ़िल में गजानन मुक्तिबोध आया
 
सियासत ज़ाहिदों की ख़ंदए-दीवाना हो जाए
 
सियासत ज़ाहिदों की ख़ंदए-दीवाना हो जाए
  
 
(1964)
 
(1964)
 
</poem>
 
</poem>

16:58, 21 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

ज़माने भर का कोई इस क़दर अपना न हो जाए
कि अपनी ज़िंदगी ख़ुद आपको बेगाना हो जाए।

सहर होगी ये शब बीतेगी और ऐसी सहर होगी
कि बेहोशी हमारे होश का पैमाना हो जाए।

किरन फूटी है ज़ख़्मों के लहू से : यह नया दिन है :
दिलों की रोशनी के फूल हैं – नज़राना हो जाए।

ग़रीबुद्दहर थे हम; उठ गए दुनिया से अच्छा है
हमारे नाम से रोशन अगर वीराना हो जाए।

बहुत खींचे तेरे मस्तों ने फ़ाक़े फिर भी कम खींचे
रियाज़त ख़त्म होती है अगर अफ़साना हो जाए।

चमन खिलता था वह खिलता था, और वह खिलना कैसा था
कि जैसे हर कली से दर्द का याराना हो जाए।

वह गहरे आसमानी रंग की चादर में लिपटा है
कफ़न सौ ज़ख़्म फूलों में वही पर्दा न हो जाए।

इधर मैं हूँ, उधर मैं हूँ, अजल तू बीच में क्या है?
फ़कत एक नाम है, यह नाम भी धोका न हो जाए।

x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x x

वो सरमस्तों की महफ़िल में गजानन मुक्तिबोध आया
सियासत ज़ाहिदों की ख़ंदए-दीवाना हो जाए

(1964)