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04:23, 22 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

कौन गाड़ गया है
देवदार के तने में
कुल्हाड़ी
पसलियों में चुभ रहा है
एक पैना दाँत
कौन चलाता रहा है
अँधेरे में छिपकर
घर की नीवों कुदाली
हड्डियों में
घुल रहा है अब के
बरसात का पानी
रात गये
दरवाज़े तक आ-आकर
लौट जाती है एक सनसनाती हुई नदी
बालू तट की तरह
पसीजा रहता है तन
पसलियों में दाँत
फूट रहा ऐ बीज की तरह
टोहने लगा है
अपनी रेशा-रेशा जड़ों से त्वचा के रोम-रोम
मिट्टी हो रही है देह
अशुभ कहा जाता है
दीवारों में पीपल का उगना।