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'मोमिन' सू-ए-शर्क़ उस बुते-क़ाफ़िर का तो घर है
हम सिजदा किधर करते हैं और का'बा किधर है
हसरत अगर मैं देखूँ तो फ़लक़ क्योंकर न हो राम
उस नरगिसे-जादू को निगह पेशे-नज़र है
ख़त की मुझे क़ासिद को है ईनाम की ख़ाहिश
मैं दस्तनिगर1 ख़ुद हूँ, वह क्या दस्तनिगर है
अरमान निकलने दे बस ऐ बीमे-नज़ाकत2
हाँ हाथ तसव्वुर में मेरा ज़ेरे-कमर है
रिन्दों पे यह बेदाद ख़ुदा से नहीं डरता
ऐ मुहतसिब ऐसा तुझे क्या शाह का डर है
ऐसे दमे-आराम असर-ख़ुफ़्ता3 कब उठा
हमको अबस उम्मीद दुआहाए-सहर है
हम हाल कहे जायेंगे सुनिये कि न सुनिये
इतना ही तो याँ सुहबते-नासेह का असर है
वह ज़िबह करें और यहाँ जान फ़िदा हो
ऐसे से निभे यूँ यह हमारा ही जिगर है
अब नहीं जाती तेरे आ जाने की उम्मीद
गो फिर गयीं आँखें पर निगाह जानिबे-दर है
शब्दार्थ:
1. निर्धन, 2. नरमी का डर, 3. सुप्त प्रभाव