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"तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब / मोमिन" के अवतरणों में अंतर

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ग़ैर और तुम भले भला साहब  
 
ग़ैर और तुम भले भला साहब  
  
क्यों उलझते हो जुम्बिशेलब से
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ख़ैर है मैंने क्या कहा साहब  
 
ख़ैर है मैंने क्या कहा साहब  
  
क्यों लगे देने ख़त्ते आज़ादी
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कुछ गुनह भी ग़ुलाम का साहब  
 
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दमे आख़िर भी तुम नहीं आते
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दमे-आख़िर भी तुम नहीं आते
 
बन्दगी अब कि मैं चला साहब
 
बन्दगी अब कि मैं चला साहब
  
सितम, आज़ार, ज़ुल्म, जोरोजफ़ा
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सितम, आज़ार, ज़ुल्म, जोरो-जफ़ा
 
जो किया सो भला किया साहब  
 
जो किया सो भला किया साहब  
  
किससे बिगड़ेथे,किसपे ग़ुस्साथे
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किससे बिगड़े थे,किसपे ग़ुस्सा थे
 
रात तुम किसपे थे ख़फ़ा साहब  
 
रात तुम किसपे थे ख़फ़ा साहब  
  
 
किसको देते थे गालियाँ लाखों
 
किसको देते थे गालियाँ लाखों
किसका शब ज़िक्रेख़ैर था साहब  
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किसका शब ज़िक्रे-ख़ैर था साहब  
  
नामे इश्क़ेबुताँ न लो 'मोमिन'
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कीजिए बस ख़ुदा-ख़ुदा साहब  
 
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''''कठिन शब्दों के अर्थ:
 
''''कठिन शब्दों के अर्थ:
ख़फ़ा--नाराज़-कुपित, जुम्बिशे लब--होंटो का हिलना
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ख़फ़ा: नाराज़-कुपित, जुम्बिशे लब: होंटो का हिलना, ख़त्ते-आज़ादी: आज़ाद होने का पत्र- छुटकारा- तलाक़, दमे-आख़िर: अंतिम समय, ज़िक्रे-ख़ैर: बखान, नामे-इश्क़े-बुताँ: हसीनों के प्रेम का नाम
ख़त्तेआज़ादी--आज़ाद होने का पत्र- छुटकारा- तलाक़,
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दमेआख़िर-- अंतिम समय, ज़िक्रेख़ैर--बखान,
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नाम-ए-इश्क़-ए-बुताँ--मसीनों के प्रेम का नाम
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14:20, 22 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब
कहीं साया मेरा पड़ा साहब

है ये बन्दा ही बेवफ़ा साहब
ग़ैर और तुम भले भला साहब

क्यों उलझते हो जुम्बिशे-लब से
ख़ैर है मैंने क्या कहा साहब

क्यों लगे देने ख़त्ते-आज़ादी
कुछ गुनह भी ग़ुलाम का साहब

दमे-आख़िर भी तुम नहीं आते
बन्दगी अब कि मैं चला साहब

सितम, आज़ार, ज़ुल्म, जोरो-जफ़ा
जो किया सो भला किया साहब

किससे बिगड़े थे,किसपे ग़ुस्सा थे
रात तुम किसपे थे ख़फ़ा साहब

किसको देते थे गालियाँ लाखों
किसका शब ज़िक्रे-ख़ैर था साहब

नामे-इश्क़े-बुताँ न लो 'मोमिन'
कीजिए बस ख़ुदा-ख़ुदा साहब

'कठिन शब्दों के अर्थ:
ख़फ़ा: नाराज़-कुपित, जुम्बिशे लब: होंटो का हिलना, ख़त्ते-आज़ादी: आज़ाद होने का पत्र- छुटकारा- तलाक़, दमे-आख़िर: अंतिम समय, ज़िक्रे-ख़ैर: बखान, नामे-इश्क़े-बुताँ: हसीनों के प्रेम का नाम