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दिक्काल से परे / अनूप सेठी

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उड़ गए सारे मुर्गे
शहर भर की रसोइयों को खाली कर गए
पंख फड़फड़ाते हुए दो दो फुट की छलांगें छलाँगें लगाई होंगी
दहशत छोड़ गए शहरियों के वास्ते
उसी वक्त जब शहर में मुर्गा फरार कांड काँड हुआ
मैरीन ड्राइव के आखिरी पत्थर की नोक पर खड़े
पंजों के बल एक अधेड़ ने अरब की खाड़ी में छलांग छलाँग लगाई
लेटा रहा पीठ के बल खाड़ी की छाती पर
नॉर्थ ब्लॉक सकते में आ गया
गलाफाड़ भजनों के बीच
सबने पढ़ीं अखबारें
'''2.'''
नींद की गोलियाँ खाकर जब सो गया शहर
कसाईबाड़े की मरगिल्ली बकरियां बकरियाँ बूढ़ी गैय्यां
बीमार बैल घूरे के सूअर सब उठ खड़े हुए
मुंड्डियां मुड्धैस्ड्डियाँ धड़ से जुदा थीं
चीर कर उधेड़ कर खालें जूता कंपनियों का
मुनाफा कमाने ले जाई जा चुकी थीं
चल पड़ा माँस मज्जा हड्डियों का खड़खड़ाता जुलूस
ग्लोगल विलेज पर तांडव ताँडव करता
गलकटी कुकड़ियाँ कुदकने लगीं जुलूस के आगे
जल बिन फुदकती मछलियों ने बना दिए पुल
महाद्वीपों के ऊपर
जहां जहां जहाँ-जहाँ टपका लहू समुद्र बना जमा हुआ
धरती के कूबड़ में माँस के लोथड़े थे
हड्डियों से चिने गए पर्वत शिखर
मरी हुई साँस ठुंस ठुँस गई आकाश में
शहरियों ने जब इस तरह खाई सारी कायनात
उदर में शूल उठे, मरोड़ पड़े, अतिसार लगे
फिर बनाई गईं खाई गईं दवाएंदवाएँनींद की गोलियां गोलियाँ अनगिनत}
 
 
3.
 
अरब की खाड़ी में थूथन छिपाए
अंधेरे में लोग लोगों को एसिडिटी
कूबड़ के नीचे जर्द आंखें आँखें
आँखों में रेत रेत में ईश्वर के मरे हुए जर्रे
अरब की खाड़ी है पसरी हुई ठेकेदारनी
छपाके मार मार धोती है
जर्रों भरी मुंदी मुँदी हुई आंखें  (1994)आँखें।
(1994)
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