"बाल काण्ड / भाग ३ / रामचरितमानस / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
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− | <br>चौ०-सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा। नील पीत जलजाभ | + | <br>चौ०-सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा। नील पीत जलजाभ सरीरा॥ |
− | <br>मोरपंख सिर सोहत नीके। गुच्छ बीच बिच कुसुम कली | + | <br>मोरपंख सिर सोहत नीके। गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के॥ |
− | <br>भाल तिलक श्रमबिंदु सुहाए। श्रवन सुभग भूषन छबि | + | <br>भाल तिलक श्रमबिंदु सुहाए। श्रवन सुभग भूषन छबि छाए॥ |
− | <br>बिकट भृकुटि कच घूघरवारे। नव सरोज लोचन | + | <br>बिकट भृकुटि कच घूघरवारे। नव सरोज लोचन रतनारे॥ |
− | <br>चारु चिबुक नासिका कपोला। हास बिलास लेत मनु | + | <br>चारु चिबुक नासिका कपोला। हास बिलास लेत मनु मोला॥ |
− | <br>मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं। जो बिलोकि बहु काम | + | <br>मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं। जो बिलोकि बहु काम लजाहीं॥ |
− | <br>उर मनि माल कंबु कल गीवा। काम कलभ कर भुज | + | <br>उर मनि माल कंबु कल गीवा। काम कलभ कर भुज बलसींवा॥ |
− | <br>सुमन समेत बाम कर दोना। सावँर कुअँर सखी सुठि | + | <br>सुमन समेत बाम कर दोना। सावँर कुअँर सखी सुठि लोना॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-केहरि कटि पट पीत धर सुषमा सील निधान। |
− | <br>देखि भानुकुलभूषनहि बिसरा सखिन्ह | + | <br>देखि भानुकुलभूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान॥२३३॥ |
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− | <br>चौ०-धरि धीरजु एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि | + | <br>चौ०-धरि धीरजु एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी॥ |
− | <br>बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूपकिसोर देखि किन | + | <br>बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूपकिसोर देखि किन लेहू॥ |
− | <br>सकुचि सीयँ तब नयन उघारे। सनमुख दोउ रघुसिंघ | + | <br>सकुचि सीयँ तब नयन उघारे। सनमुख दोउ रघुसिंघ निहारे॥ |
− | <br>नख सिख देखि राम कै सोभा। सुमिरि पिता पनु मनु अति | + | <br>नख सिख देखि राम कै सोभा। सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा॥ |
− | <br>परबस सखिन्ह लखी जब सीता। भयउ गहरु सब कहहि | + | <br>परबस सखिन्ह लखी जब सीता। भयउ गहरु सब कहहि सभीता॥ |
− | <br>पुनि आउब एहि बेरिआँ काली। अस कहि मन बिहसी एक | + | <br>पुनि आउब एहि बेरिआँ काली। अस कहि मन बिहसी एक आली॥ |
− | <br>गूढ़ गिरा सुनि सिय सकुचानी। भयउ बिलंबु मातु भय | + | <br>गूढ़ गिरा सुनि सिय सकुचानी। भयउ बिलंबु मातु भय मानी॥ |
− | <br>धरि बड़ि धीर रामु उर आने। फिरि अपनपउ पितुबस | + | <br>धरि बड़ि धीर रामु उर आने। फिरि अपनपउ पितुबस जाने॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि। |
− | <br>निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न | + | <br>निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि॥२३४॥ |
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− | <br>चौ०-जानि कठिन सिवचाप बिसूरति। चली राखि उर स्यामल | + | <br>चौ०-जानि कठिन सिवचाप बिसूरति। चली राखि उर स्यामल मूरति॥ |
− | <br>प्रभु जब जात जानकी जानी। सुख सनेह सोभा गुन | + | <br>प्रभु जब जात जानकी जानी। सुख सनेह सोभा गुन खानी॥ |
− | <br>परम प्रेममय मृदु मसि कीन्ही। चारु चित भीतीं लिख | + | <br>परम प्रेममय मृदु मसि कीन्ही। चारु चित भीतीं लिख लीन्ही॥ |
− | <br>गई भवानी भवन बहोरी। बंदि चरन बोली कर | + | <br>गई भवानी भवन बहोरी। बंदि चरन बोली कर जोरी॥ |
− | <br>जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद | + | <br>जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥ |
− | <br>जय गज बदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति | + | <br>जय गज बदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥ |
− | <br>नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं | + | <br>नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना॥ |
− | <br>भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस | + | <br>भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख। |
− | <br>महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा | + | <br>महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष॥२३५॥ |
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− | <br>चौ०-सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि | + | <br>चौ०-सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि पिआरी॥ |
− | <br>देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं | + | <br>देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥ |
− | <br>मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही | + | <br>मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें॥ |
− | <br>कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे | + | <br>कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं॥ |
− | <br>बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति | + | <br>बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी॥ |
− | <br>सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ | + | <br>सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ॥ |
− | <br>सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना | + | <br>सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥ |
− | <br>नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु | + | <br>नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो। |
− | <br>करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत | + | <br>करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥ |
<br>एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली। | <br>एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली। | ||
− | <br>तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर | + | <br>तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥ |
− | <br> | + | <br>सो०-जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि। |
− | <br>मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन | + | <br>मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे॥२३६॥ |
− | <br>हृदयँ सराहत सीय लोनाई। गुर समीप गवने दोउ | + | <br>हृदयँ सराहत सीय लोनाई। गुर समीप गवने दोउ भाई॥ |
− | <br>राम कहा सबु कौसिक पाहीं। सरल सुभाउ छुअत छल | + | <br>राम कहा सबु कौसिक पाहीं। सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं॥ |
− | <br>सुमन पाइ मुनि पूजा कीन्ही। पुनि असीस दुहु भाइन्ह | + | <br>सुमन पाइ मुनि पूजा कीन्ही। पुनि असीस दुहु भाइन्ह दीन्ही॥ |
− | <br>सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे। रामु लखनु सुनि भए | + | <br>सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे। रामु लखनु सुनि भए सुखारे॥ |
− | <br>करि भोजनु मुनिबर बिग्यानी। लगे कहन कछु कथा | + | <br>करि भोजनु मुनिबर बिग्यानी। लगे कहन कछु कथा पुरानी॥ |
− | <br>बिगत दिवसु गुरु आयसु पाई। संध्या करन चले दोउ | + | <br>बिगत दिवसु गुरु आयसु पाई। संध्या करन चले दोउ भाई॥ |
− | <br>प्राची दिसि ससि उयउ सुहावा। सिय मुख सरिस देखि सुखु | + | <br>प्राची दिसि ससि उयउ सुहावा। सिय मुख सरिस देखि सुखु पावा॥ |
− | <br>बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं। सीय बदन सम हिमकर | + | <br>बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं। सीय बदन सम हिमकर नाहीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-जनमु सिंधु पुनि बंधु बिषु दिन मलीन सकलंक। |
− | <br>सिय मुख समता पाव किमि चंदु बापुरो | + | <br>सिय मुख समता पाव किमि चंदु बापुरो रंक॥२३७॥ |
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− | <br>घटइ बढ़इ बिरहनि दुखदाई। ग्रसइ राहु निज संधिहिं | + | <br>चौ०-घटइ बढ़इ बिरहनि दुखदाई। ग्रसइ राहु निज संधिहिं पाई॥ |
− | <br>कोक सिकप्रद पंकज द्रोही। अवगुन बहुत चंद्रमा | + | <br>कोक सिकप्रद पंकज द्रोही। अवगुन बहुत चंद्रमा तोही॥ |
− | <br>बैदेही मुख पटतर दीन्हे। होइ दोष बड़ अनुचित | + | <br>बैदेही मुख पटतर दीन्हे। होइ दोष बड़ अनुचित कीन्हे॥ |
− | <br>सिय मुख छबि बिधु ब्याज बखानी। गुरु पहिं चले निसा बड़ि | + | <br>सिय मुख छबि बिधु ब्याज बखानी। गुरु पहिं चले निसा बड़ि जानी॥ |
− | <br>करि मुनि चरन सरोज प्रनामा। आयसु पाइ कीन्ह | + | <br>करि मुनि चरन सरोज प्रनामा। आयसु पाइ कीन्ह बिश्रामा॥ |
− | <br>बिगत निसा रघुनायक जागे। बंधु बिलोकि कहन अस | + | <br>बिगत निसा रघुनायक जागे। बंधु बिलोकि कहन अस लागे॥ |
− | <br>उदउ अरुन अवलोकहु ताता। पंकज कोक लोक | + | <br>उदउ अरुन अवलोकहु ताता। पंकज कोक लोक सुखदाता॥ |
− | <br>बोले लखनु जोरि जुग पानी। प्रभु प्रभाउ सूचक मृदु | + | <br>बोले लखनु जोरि जुग पानी। प्रभु प्रभाउ सूचक मृदु बानी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-अरुनोदयँ सकुचे कुमुद उडगन जोति मलीन। |
− | <br>जिमि तुम्हार आगमन सुनि भए नृपति | + | <br>जिमि तुम्हार आगमन सुनि भए नृपति बलहीन॥२३८॥ |
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− | <br>नृप सब नखत करहिं उजिआरी। टारि न सकहिं चाप तम | + | <br>चौ०-नृप सब नखत करहिं उजिआरी। टारि न सकहिं चाप तम भारी॥ |
− | <br>कमल कोक मधुकर खग नाना। हरषे सकल निसा | + | <br>कमल कोक मधुकर खग नाना। हरषे सकल निसा अवसाना॥ |
− | <br>ऐसेहिं प्रभु सब भगत तुम्हारे। होइहहिं टूटें धनुष | + | <br>ऐसेहिं प्रभु सब भगत तुम्हारे। होइहहिं टूटें धनुष सुखारे॥ |
− | <br>उयउ भानु बिनु श्रम तम नासा। दुरे नखत जग तेजु | + | <br>उयउ भानु बिनु श्रम तम नासा। दुरे नखत जग तेजु प्रकासा॥ |
− | <br>रबि निज उदय ब्याज रघुराया। प्रभु प्रतापु सब नृपन्ह | + | <br>रबि निज उदय ब्याज रघुराया। प्रभु प्रतापु सब नृपन्ह दिखाया॥ |
− | <br>तव भुज बल महिमा उदघाटी। प्रगटी धनु बिघटन | + | <br>तव भुज बल महिमा उदघाटी। प्रगटी धनु बिघटन परिपाटी॥ |
− | <br>बंधु बचन सुनि प्रभु मुसुकाने। होइ सुचि सहज पुनीत | + | <br>बंधु बचन सुनि प्रभु मुसुकाने। होइ सुचि सहज पुनीत नहाने॥ |
− | <br>नित्यक्रिया करि गुरु पहिं आए। चरन सरोज सुभग सिर | + | <br>नित्यक्रिया करि गुरु पहिं आए। चरन सरोज सुभग सिर नाए॥ |
− | <br>सतानंदु तब जनक बोलाए। कौसिक मुनि पहिं तुरत | + | <br>सतानंदु तब जनक बोलाए। कौसिक मुनि पहिं तुरत पठाए॥ |
− | <br>जनक बिनय तिन्ह आइ सुनाई। हरषे बोलि लिए दोउ | + | <br>जनक बिनय तिन्ह आइ सुनाई। हरषे बोलि लिए दोउ भाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सतानंद पद बंदि प्रभु बैठे गुर पहिं जाइ। |
− | <br>चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक | + | <br>चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ॥२३९॥ |
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+ | <br>मासपारायण, आठवाँ विश्राम | ||
+ | <br>नवान्हपारायण, दूसरा विश्राम | ||
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− | <br>सीय स्वयंबरु देखिअ जाई। ईसु काहि धौं देइ | + | |
− | <br>लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर | + | <br>सीय स्वयंबरु देखिअ जाई। ईसु काहि धौं देइ बड़ाई॥ |
− | <br>हरषे मुनि सब सुनि बर बानी। दीन्हि असीस सबहिं सुखु | + | <br>लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई॥ |
− | <br>पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला। देखन चले धनुषमख | + | <br>हरषे मुनि सब सुनि बर बानी। दीन्हि असीस सबहिं सुखु मानी॥ |
− | <br>रंगभूमि आए दोउ भाई। असि सुधि सब पुरबासिन्ह | + | <br>पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला। देखन चले धनुषमख साला॥ |
− | <br>चले सकल गृह काज बिसारी। बाल जुबान जरठ नर | + | <br>रंगभूमि आए दोउ भाई। असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई॥ |
− | <br>देखी जनक भीर भै भारी। सुचि सेवक सब लिए | + | <br>चले सकल गृह काज बिसारी। बाल जुबान जरठ नर नारी॥ |
− | <br>तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू। आसन उचित देहू सब | + | <br>देखी जनक भीर भै भारी। सुचि सेवक सब लिए हँकारी॥ |
− | <br> | + | <br>तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू। आसन उचित देहू सब काहू॥ |
− | <br>उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल | + | <br>दो०-कहि मृदु बचन बिनीत तिन्ह बैठारे नर नारि। |
+ | <br>उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि॥२४०॥ | ||
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− | <br>राजकुअँर तेहि अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन | + | <br>राजकुअँर तेहि अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए॥ |
− | <br>गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर | + | <br>गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर सरीरा॥ |
− | <br>राज समाज बिराजत रूरे। उडगन महुँ जनु जुग बिधु | + | <br>राज समाज बिराजत रूरे। उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे॥ |
− | <br>जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी | + | <br>जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी॥ |
− | <br>देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें | + | <br>देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा॥ |
− | <br>डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी। मनहुँ भयानक मूरति | + | <br>डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी॥ |
− | <br>रहे असुर छल छोनिप बेषा। तिन्ह प्रभु प्रगट कालसम | + | <br>रहे असुर छल छोनिप बेषा। तिन्ह प्रभु प्रगट कालसम देखा॥ |
− | <br>पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई। नरभूषन लोचन | + | <br>पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई। नरभूषन लोचन सुखदाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-नारि बिलोकहिं हरषि हियँ निज निज रुचि अनुरूप। |
− | <br>जनु सोहत सिंगार धरि मूरति परम | + | <br>जनु सोहत सिंगार धरि मूरति परम अनूप॥२४१॥ |
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− | <br>बिदुषन्ह प्रभु बिराटमय दीसा। बहु मुख कर पग लोचन | + | <br>बिदुषन्ह प्रभु बिराटमय दीसा। बहु मुख कर पग लोचन सीसा॥ |
− | <br>जनक जाति अवलोकहिं कैसैं। सजन सगे प्रिय लागहिं | + | <br>जनक जाति अवलोकहिं कैसैं। सजन सगे प्रिय लागहिं जैसें॥ |
− | <br>सहित बिदेह बिलोकहिं रानी। सिसु सम प्रीति न जाति | + | <br>सहित बिदेह बिलोकहिं रानी। सिसु सम प्रीति न जाति बखानी॥ |
− | <br>जोगिन्ह परम तत्वमय भासा। सांत सुद्ध सम सहज | + | <br>जोगिन्ह परम तत्वमय भासा। सांत सुद्ध सम सहज प्रकासा॥ |
− | <br>हरिभगतन्ह देखे दोउ भ्राता। इष्टदेव इव सब सुख | + | <br>हरिभगतन्ह देखे दोउ भ्राता। इष्टदेव इव सब सुख दाता॥ |
− | <br>रामहि चितव भायँ जेहि सीया। सो सनेहु सुखु नहिं | + | <br>रामहि चितव भायँ जेहि सीया। सो सनेहु सुखु नहिं कथनीया॥ |
− | <br>उर अनुभवति न कहि सक सोऊ। कवन प्रकार कहै कबि | + | <br>उर अनुभवति न कहि सक सोऊ। कवन प्रकार कहै कबि कोऊ॥ |
− | <br>एहि बिधि रहा जाहि जस भाऊ। तेहिं तस देखेउ | + | <br>एहि बिधि रहा जाहि जस भाऊ। तेहिं तस देखेउ कोसलराऊ॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-राजत राज समाज महुँ कोसलराज किसोर। |
− | <br>सुंदर स्यामल गौर तन बिस्व बिलोचन | + | <br>सुंदर स्यामल गौर तन बिस्व बिलोचन चोर॥२४२॥ |
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− | <br>सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु | + | <br>सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ॥ |
− | <br>सरद चंद निंदक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी | + | <br>सरद चंद निंदक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी के॥ |
− | <br>चितवत चारु मार मनु हरनी। भावति हृदय जाति नहीं | + | <br>चितवत चारु मार मनु हरनी। भावति हृदय जाति नहीं बरनी॥ |
− | <br>कल कपोल श्रुति कुंडल लोला। चिबुक अधर सुंदर मृदु | + | <br>कल कपोल श्रुति कुंडल लोला। चिबुक अधर सुंदर मृदु बोला॥ |
− | <br>कुमुदबंधु कर निंदक हाँसा। भृकुटी बिकट मनोहर | + | <br>कुमुदबंधु कर निंदक हाँसा। भृकुटी बिकट मनोहर नासा॥ |
− | <br>भाल बिसाल तिलक झलकाहीं। कच बिलोकि अलि अवलि | + | <br>भाल बिसाल तिलक झलकाहीं। कच बिलोकि अलि अवलि लजाहीं॥ |
− | <br>पीत चौतनीं सिरन्हि सुहाई। कुसुम कलीं बिच बीच | + | <br>पीत चौतनीं सिरन्हि सुहाई। कुसुम कलीं बिच बीच बनाईं॥ |
− | <br>रेखें रुचिर कंबु कल गीवाँ। जनु त्रिभुवन सुषमा की | + | <br>रेखें रुचिर कंबु कल गीवाँ। जनु त्रिभुवन सुषमा की सीवाँ॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-कुंजर मनि कंठा कलित उरन्हि तुलसिका माल। |
− | <br>बृषभ कंध केहरि ठवनि बल निधि बाहु | + | <br>बृषभ कंध केहरि ठवनि बल निधि बाहु बिसाल॥२४३॥ |
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− | <br>कटि तूनीर पीत पट बाँधे। कर सर धनुष बाम बर | + | <br>कटि तूनीर पीत पट बाँधे। कर सर धनुष बाम बर काँधे॥ |
− | <br>पीत जग्य उपबीत सुहाए। नख सिख मंजु महाछबि | + | <br>पीत जग्य उपबीत सुहाए। नख सिख मंजु महाछबि छाए॥ |
− | <br>देखि लोग सब भए सुखारे। एकटक लोचन चलत न | + | <br>देखि लोग सब भए सुखारे। एकटक लोचन चलत न तारे॥ |
− | <br>हरषे जनकु देखि दोउ भाई। मुनि पद कमल गहे तब | + | <br>हरषे जनकु देखि दोउ भाई। मुनि पद कमल गहे तब जाई॥ |
− | <br>करि बिनती निज कथा सुनाई। रंग अवनि सब मुनिहि | + | <br>करि बिनती निज कथा सुनाई। रंग अवनि सब मुनिहि देखाई॥ |
− | <br>जहँ जहँ जाहि कुअँर बर दोऊ। तहँ तहँ चकित चितव सबु | + | <br>जहँ जहँ जाहि कुअँर बर दोऊ। तहँ तहँ चकित चितव सबु कोऊ॥ |
− | <br>निज निज रुख रामहि सबु देखा। कोउ न जान कछु मरमु | + | <br>निज निज रुख रामहि सबु देखा। कोउ न जान कछु मरमु बिसेषा॥ |
− | <br>भलि रचना मुनि नृप सन कहेऊ। राजाँ मुदित महासुख | + | <br>भलि रचना मुनि नृप सन कहेऊ। राजाँ मुदित महासुख लहेऊ॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सब मंचन्ह ते मंचु एक सुंदर बिसद बिसाल। |
− | <br>मुनि समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे | + | <br>मुनि समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे महिपाल॥२४४॥ |
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− | <br>प्रभुहि देखि सब नृप हिँयँ हारे। जनु राकेस उदय भएँ | + | <br>प्रभुहि देखि सब नृप हिँयँ हारे। जनु राकेस उदय भएँ तारे॥ |
− | <br>असि प्रतीति सब के मन माहीं। राम चाप तोरब सक | + | <br>असि प्रतीति सब के मन माहीं। राम चाप तोरब सक नाहीं॥ |
− | <br>बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला। मेलिहि सीय राम उर | + | <br>बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला। मेलिहि सीय राम उर माला॥ |
− | <br>अस बिचारि गवनहु घर भाई। जसु प्रतापु बलु तेजु | + | <br>अस बिचारि गवनहु घर भाई। जसु प्रतापु बलु तेजु गवाँई॥ |
− | <br>बिहसे अपर भूप सुनि बानी। जे अबिबेक अंध | + | <br>बिहसे अपर भूप सुनि बानी। जे अबिबेक अंध अभिमानी॥ |
− | <br>तोरेहुँ धनुषु ब्याहु अवगाहा। बिनु तोरें को कुअँरि | + | <br>तोरेहुँ धनुषु ब्याहु अवगाहा। बिनु तोरें को कुअँरि बिआहा॥ |
− | <br>एक बार कालउ किन होऊ। सिय हित समर जितब हम | + | <br>एक बार कालउ किन होऊ। सिय हित समर जितब हम सोऊ॥ |
− | <br>यह सुनि अवर महिप मुसकाने। धरमसील हरिभगत | + | <br>यह सुनि अवर महिप मुसकाने। धरमसील हरिभगत सयाने॥ |
− | <br> | + | <br>सो०-सीय बिआहबि राम गरब दूरि करि नृपन्ह के॥ |
− | <br>जीति को सक संग्राम दसरथ के रन | + | <br>जीति को सक संग्राम दसरथ के रन बाँकुरे॥२४५॥ |
− | <br>ब्यर्थ मरहु जनि गाल बजाई। मन मोदकन्हि कि भूख | + | <br>ब्यर्थ मरहु जनि गाल बजाई। मन मोदकन्हि कि भूख बुताई॥ |
− | <br>सिख हमारि सुनि परम पुनीता। जगदंबा जानहु जियँ | + | <br>सिख हमारि सुनि परम पुनीता। जगदंबा जानहु जियँ सीता॥ |
− | <br>जगत पिता रघुपतिहि बिचारी। भरि लोचन छबि लेहु | + | <br>जगत पिता रघुपतिहि बिचारी। भरि लोचन छबि लेहु निहारी॥ |
− | <br>सुंदर सुखद सकल गुन रासी। ए दोउ बंधु संभु उर | + | <br>सुंदर सुखद सकल गुन रासी। ए दोउ बंधु संभु उर बासी॥ |
− | <br>सुधा समुद्र समीप बिहाई। मृगजलु निरखि मरहु कत | + | <br>सुधा समुद्र समीप बिहाई। मृगजलु निरखि मरहु कत धाई॥ |
− | <br>करहु जाइ जा कहुँ जोई भावा। हम तौ आजु जनम फलु | + | <br>करहु जाइ जा कहुँ जोई भावा। हम तौ आजु जनम फलु पावा॥ |
− | <br>अस कहि भले भूप अनुरागे। रूप अनूप बिलोकन | + | <br>अस कहि भले भूप अनुरागे। रूप अनूप बिलोकन लागे॥ |
− | <br>देखहिं सुर नभ चढ़े बिमाना। बरषहिं सुमन करहिं कल | + | <br>देखहिं सुर नभ चढ़े बिमाना। बरषहिं सुमन करहिं कल गाना॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-जानि सुअवसरु सीय तब पठई जनक बोलाई। |
− | <br>चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं | + | <br>चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं लवाईं॥२४६॥ |
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− | <br>सिय सोभा नहिं जाइ बखानी। जगदंबिका रूप गुन | + | <br>सिय सोभा नहिं जाइ बखानी। जगदंबिका रूप गुन खानी॥ |
− | <br>उपमा सकल मोहि लघु लागीं। प्राकृत नारि अंग | + | <br>उपमा सकल मोहि लघु लागीं। प्राकृत नारि अंग अनुरागीं॥ |
− | <br>सिय बरनिअ तेइ उपमा देई। कुकबि कहाइ अजसु को | + | <br>सिय बरनिअ तेइ उपमा देई। कुकबि कहाइ अजसु को लेई॥ |
− | <br>जौ पटतरिअ तीय सम सीया। जग असि जुबति कहाँ | + | <br>जौ पटतरिअ तीय सम सीया। जग असि जुबति कहाँ कमनीया॥ |
− | <br>गिरा मुखर तन अरध भवानी। रति अति दुखित अतनु पति | + | <br>गिरा मुखर तन अरध भवानी। रति अति दुखित अतनु पति जानी॥ |
− | <br>बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही। कहिअ रमासम किमि | + | <br>बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही। कहिअ रमासम किमि बैदेही॥ |
− | <br>जौ छबि सुधा पयोनिधि होई। परम रूपमय कच्छप | + | <br>जौ छबि सुधा पयोनिधि होई। परम रूपमय कच्छप सोई॥ |
− | <br>सोभा रजु मंदरु सिंगारू। मथै पानि पंकज निज | + | <br>सोभा रजु मंदरु सिंगारू। मथै पानि पंकज निज मारू॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुख मूल। |
− | <br>तदपि सकोच समेत कबि कहहिं सीय | + | <br>तदपि सकोच समेत कबि कहहिं सीय समतूल॥२४७॥ |
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− | <br>चलिं संग लै सखीं सयानी। गावत गीत मनोहर | + | <br>चलिं संग लै सखीं सयानी। गावत गीत मनोहर बानी॥ |
− | <br>सोह नवल तनु सुंदर सारी। जगत जननि अतुलित छबि | + | <br>सोह नवल तनु सुंदर सारी। जगत जननि अतुलित छबि भारी॥ |
− | <br>भूषन सकल सुदेस सुहाए। अंग अंग रचि सखिन्ह | + | <br>भूषन सकल सुदेस सुहाए। अंग अंग रचि सखिन्ह बनाए॥ |
− | <br>रंगभूमि जब सिय पगु धारी। देखि रूप मोहे नर | + | <br>रंगभूमि जब सिय पगु धारी। देखि रूप मोहे नर नारी॥ |
− | <br>हरषि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई। बरषि प्रसून अपछरा | + | <br>हरषि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई। बरषि प्रसून अपछरा गाई॥ |
− | <br>पानि सरोज सोह जयमाला। अवचट चितए सकल | + | <br>पानि सरोज सोह जयमाला। अवचट चितए सकल भुआला॥ |
− | <br>सीय चकित चित रामहि चाहा। भए मोहबस सब | + | <br>सीय चकित चित रामहि चाहा। भए मोहबस सब नरनाहा॥ |
− | <br>मुनि समीप देखे दोउ भाई। लगे ललकि लोचन निधि | + | <br>मुनि समीप देखे दोउ भाई। लगे ललकि लोचन निधि पाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-गुरजन लाज समाजु बड़ देखि सीय सकुचानि॥ |
− | <br>लागि बिलोकन सखिन्ह तन रघुबीरहि उर | + | <br>लागि बिलोकन सखिन्ह तन रघुबीरहि उर आनि॥२४८॥ |
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− | <br>राम रूपु अरु सिय छबि देखें। नर नारिन्ह परिहरीं | + | <br>राम रूपु अरु सिय छबि देखें। नर नारिन्ह परिहरीं निमेषें॥ |
− | <br>सोचहिं सकल कहत सकुचाहीं। बिधि सन बिनय करहिं मन | + | <br>सोचहिं सकल कहत सकुचाहीं। बिधि सन बिनय करहिं मन माहीं॥ |
− | <br>हरु बिधि बेगि जनक जड़ताई। मति हमारि असि देहि | + | <br>हरु बिधि बेगि जनक जड़ताई। मति हमारि असि देहि सुहाई॥ |
− | <br>बिनु बिचार पनु तजि नरनाहु। सीय राम कर करै | + | <br>बिनु बिचार पनु तजि नरनाहु। सीय राम कर करै बिबाहू॥ |
− | <br>जग भल कहहि भाव सब काहू। हठ कीन्हे अंतहुँ उर | + | <br>जग भल कहहि भाव सब काहू। हठ कीन्हे अंतहुँ उर दाहू॥ |
− | <br>एहिं लालसाँ मगन सब लोगू। बरु साँवरो जानकी | + | <br>एहिं लालसाँ मगन सब लोगू। बरु साँवरो जानकी जोगू॥ |
− | <br>तब बंदीजन जनक बौलाए। बिरिदावली कहत चलि | + | <br>तब बंदीजन जनक बौलाए। बिरिदावली कहत चलि आए॥ |
− | <br>कह नृप जाइ कहहु पन मोरा। चले भाट हियँ हरषु न | + | <br>कह नृप जाइ कहहु पन मोरा। चले भाट हियँ हरषु न थोरा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बोले बंदी बचन बर सुनहु सकल महिपाल। |
− | <br>पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ | + | <br>पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल॥२४९॥ |
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− | <br>नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू। गरुअ कठोर बिदित सब | + | <br>नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू। गरुअ कठोर बिदित सब काहू॥ |
− | <br>रावनु बानु महाभट भारे। देखि सरासन गवँहिं | + | <br>रावनु बानु महाभट भारे। देखि सरासन गवँहिं सिधारे॥ |
− | <br>सोइ पुरारि कोदंडु कठोरा। राज समाज आजु जोइ | + | <br>सोइ पुरारि कोदंडु कठोरा। राज समाज आजु जोइ तोरा॥ |
− | <br>त्रिभुवन जय समेत | + | <br>त्रिभुवन जय समेत बैदेही॥बिनहिं बिचार बरइ हठि तेही॥ |
− | <br>सुनि पन सकल भूप अभिलाषे। भटमानी अतिसय मन | + | <br>सुनि पन सकल भूप अभिलाषे। भटमानी अतिसय मन माखे॥ |
− | <br>परिकर बाँधि उठे अकुलाई। चले इष्टदेवन्ह सिर | + | <br>परिकर बाँधि उठे अकुलाई। चले इष्टदेवन्ह सिर नाई॥ |
− | <br>तमकि ताकि तकि सिवधनु धरहीं। उठइ न कोटि भाँति बलु | + | <br>तमकि ताकि तकि सिवधनु धरहीं। उठइ न कोटि भाँति बलु करहीं॥ |
− | <br>जिन्ह के कछु बिचारु मन माहीं। चाप समीप महीप न | + | <br>जिन्ह के कछु बिचारु मन माहीं। चाप समीप महीप न जाहीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-तमकि धरहिं धनु मूढ़ नृप उठइ न चलहिं लजाइ। |
− | <br>मनहुँ पाइ भट बाहुबलु अधिकु अधिकु | + | <br>मनहुँ पाइ भट बाहुबलु अधिकु अधिकु गरुआइ॥२५०॥ |
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− | <br>भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरइ न | + | <br>भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरइ न टारा॥ |
− | <br>डगइ न संभु सरासन कैसें। कामी बचन सती मनु | + | <br>डगइ न संभु सरासन कैसें। कामी बचन सती मनु जैसें॥ |
− | <br>सब नृप भए जोगु उपहासी। जैसें बिनु बिराग | + | <br>सब नृप भए जोगु उपहासी। जैसें बिनु बिराग संन्यासी॥ |
− | <br>कीरति बिजय बीरता भारी। चले चाप कर बरबस | + | <br>कीरति बिजय बीरता भारी। चले चाप कर बरबस हारी॥ |
− | <br>श्रीहत भए हारि हियँ राजा। बैठे निज निज जाइ | + | <br>श्रीहत भए हारि हियँ राजा। बैठे निज निज जाइ समाजा॥ |
− | <br>नृपन्ह बिलोकि जनकु अकुलाने। बोले बचन रोष जनु | + | <br>नृपन्ह बिलोकि जनकु अकुलाने। बोले बचन रोष जनु साने॥ |
− | <br>दीप दीप के भूपति नाना। आए सुनि हम जो पनु | + | <br>दीप दीप के भूपति नाना। आए सुनि हम जो पनु ठाना॥ |
− | <br>देव दनुज धरि मनुज सरीरा। बिपुल बीर आए | + | <br>देव दनुज धरि मनुज सरीरा। बिपुल बीर आए रनधीरा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-कुअँरि मनोहर बिजय बड़ि कीरति अति कमनीय। |
− | <br>पावनिहार बिरंचि जनु रचेउ न धनु | + | <br>पावनिहार बिरंचि जनु रचेउ न धनु दमनीय॥२५१॥ |
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− | <br>कहहु काहि यहु लाभु न भावा। काहुँ न संकर चाप | + | <br>कहहु काहि यहु लाभु न भावा। काहुँ न संकर चाप चढ़ावा॥ |
− | <br>रहउ चढ़ाउब तोरब भाई। तिलु भरि भूमि न सके | + | <br>रहउ चढ़ाउब तोरब भाई। तिलु भरि भूमि न सके छड़ाई॥ |
− | <br>अब जनि कोउ माखै भट मानी। बीर बिहीन मही मैं | + | <br>अब जनि कोउ माखै भट मानी। बीर बिहीन मही मैं जानी॥ |
− | <br>तजहु आस निज निज गृह जाहू। लिखा न बिधि बैदेहि | + | <br>तजहु आस निज निज गृह जाहू। लिखा न बिधि बैदेहि बिबाहू॥ |
− | <br>सुकृत जाइ जौं पनु परिहरऊँ। कुअँरि कुआरि रहउ का | + | <br>सुकृत जाइ जौं पनु परिहरऊँ। कुअँरि कुआरि रहउ का करऊँ॥ |
− | <br>जो जनतेउँ बिनु भट भुबि भाई। तौ पनु करि होतेउँ न | + | <br>जो जनतेउँ बिनु भट भुबि भाई। तौ पनु करि होतेउँ न हँसाई॥ |
− | <br>जनक बचन सुनि सब नर नारी। देखि जानकिहि भए | + | <br>जनक बचन सुनि सब नर नारी। देखि जानकिहि भए दुखारी॥ |
− | <br>माखे लखनु कुटिल भइँ भौंहें। रदपट फरकत नयन | + | <br>माखे लखनु कुटिल भइँ भौंहें। रदपट फरकत नयन रिसौंहें॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-कहि न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान। |
− | <br>नाइ राम पद कमल सिरु बोले गिरा | + | <br>नाइ राम पद कमल सिरु बोले गिरा प्रमान॥२५२॥ |
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− | <br>रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहिं समाज अस कहइ न | + | <br>रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहिं समाज अस कहइ न कोई॥ |
− | <br>कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुल मनि | + | <br>कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुल मनि जानी॥ |
− | <br>सुनहु भानुकुल पंकज भानू। कहउँ सुभाउ न कछु | + | <br>सुनहु भानुकुल पंकज भानू। कहउँ सुभाउ न कछु अभिमानू॥ |
− | <br>जौ तुम्हारि अनुसासन पावौं। कंदुक इव ब्रह्मांड | + | <br>जौ तुम्हारि अनुसासन पावौं। कंदुक इव ब्रह्मांड उठावौं॥ |
− | <br>काचे घट जिमि डारौं फोरी। सकउँ मेरु मूलक जिमि | + | <br>काचे घट जिमि डारौं फोरी। सकउँ मेरु मूलक जिमि तोरी॥ |
− | <br>तव प्रताप महिमा भगवाना। को बापुरो पिनाक | + | <br>तव प्रताप महिमा भगवाना। को बापुरो पिनाक पुराना॥ |
− | <br>नाथ जानि अस आयसु होऊ। कौतुकु करौं बिलोकिअ | + | <br>नाथ जानि अस आयसु होऊ। कौतुकु करौं बिलोकिअ सोऊ॥ |
− | <br>कमल नाल जिमि चाफ चढ़ावौं। जोजन सत प्रमान लै | + | <br>कमल नाल जिमि चाफ चढ़ावौं। जोजन सत प्रमान लै धावौं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-तोरौं छत्रक दंड जिमि तव प्रताप बल नाथ। |
− | <br>जौं न करौं प्रभु पद सपथ कर न धरौं धनु | + | <br>जौं न करौं प्रभु पद सपथ कर न धरौं धनु भाथ॥२५३॥ |
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− | <br>लखन सकोप बचन जे बोले। डगमगानि महि दिग्गज | + | <br>लखन सकोप बचन जे बोले। डगमगानि महि दिग्गज डोले॥ |
− | <br>सकल लोक सब भूप डेराने। सिय हियँ हरषु जनकु | + | <br>सकल लोक सब भूप डेराने। सिय हियँ हरषु जनकु सकुचाने॥ |
− | <br>गुर रघुपति सब मुनि मन माहीं। मुदित भए पुनि पुनि | + | <br>गुर रघुपति सब मुनि मन माहीं। मुदित भए पुनि पुनि पुलकाहीं॥ |
− | <br>सयनहिं रघुपति लखनु नेवारे। प्रेम समेत निकट | + | <br>सयनहिं रघुपति लखनु नेवारे। प्रेम समेत निकट बैठारे॥ |
− | <br>बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय | + | <br>बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी॥ |
− | <br>उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक | + | <br>उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा॥ |
− | <br>सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा। हरषु बिषादु न कछु उर | + | <br>सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा। हरषु बिषादु न कछु उर आवा॥ |
− | <br>ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएँ। ठवनि जुबा मृगराजु | + | <br>ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएँ। ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-उदित उदयगिरि मंच पर रघुबर बालपतंग। |
− | <br>बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन | + | <br>बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग॥२५४॥ |
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− | <br>नृपन्ह केरि आसा निसि नासी। बचन नखत अवली न | + | <br>नृपन्ह केरि आसा निसि नासी। बचन नखत अवली न प्रकासी॥ |
− | <br>मानी महिप कुमुद सकुचाने। कपटी भूप उलूक | + | <br>मानी महिप कुमुद सकुचाने। कपटी भूप उलूक लुकाने॥ |
− | <br>भए बिसोक कोक मुनि देवा। बरिसहिं सुमन जनावहिं | + | <br>भए बिसोक कोक मुनि देवा। बरिसहिं सुमन जनावहिं सेवा॥ |
− | <br>गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्ह सन आयसु | + | <br>गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्ह सन आयसु मागा॥ |
− | <br>सहजहिं चले सकल जग स्वामी। मत्त मंजु बर कुंजर | + | <br>सहजहिं चले सकल जग स्वामी। मत्त मंजु बर कुंजर गामी॥ |
− | <br>चलत राम सब पुर नर नारी। पुलक पूरि तन भए | + | <br>चलत राम सब पुर नर नारी। पुलक पूरि तन भए सुखारी॥ |
− | <br>बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे। जौं कछु पुन्य प्रभाउ | + | <br>बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे। जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे॥ |
− | <br>तौ सिवधनु मृनाल की नाईं। तोरहुँ राम गनेस | + | <br>तौ सिवधनु मृनाल की नाईं। तोरहुँ राम गनेस गोसाईं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-रामहि प्रेम समेत लखि सखिन्ह समीप बोलाइ। |
− | <br>सीता मातु सनेह बस बचन कहइ | + | <br>सीता मातु सनेह बस बचन कहइ बिलखाइ॥२५५॥ |
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− | <br>सखि सब कौतुक देखनिहारे। जेठ कहावत हितू | + | <br>सखि सब कौतुक देखनिहारे। जेठ कहावत हितू हमारे॥ |
− | <br>कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं। ए बालक असि हठ भलि | + | <br>कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं। ए बालक असि हठ भलि नाहीं॥ |
− | <br>रावन बान छुआ नहिं चापा। हारे सकल भूप करि | + | <br>रावन बान छुआ नहिं चापा। हारे सकल भूप करि दापा॥ |
− | <br>सो धनु राजकुअँर कर देहीं। बाल मराल कि मंदर | + | <br>सो धनु राजकुअँर कर देहीं। बाल मराल कि मंदर लेहीं॥ |
− | <br>भूप सयानप सकल सिरानी। सखि बिधि गति कछु जाति न | + | <br>भूप सयानप सकल सिरानी। सखि बिधि गति कछु जाति न जानी॥ |
− | <br>बोली चतुर सखी मृदु बानी। तेजवंत लघु गनिअ न | + | <br>बोली चतुर सखी मृदु बानी। तेजवंत लघु गनिअ न रानी॥ |
− | <br>कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा। सोषेउ सुजसु सकल | + | <br>कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा। सोषेउ सुजसु सकल संसारा॥ |
− | <br>रबि मंडल देखत लघु लागा। उदयँ तासु तिभुवन तम | + | <br>रबि मंडल देखत लघु लागा। उदयँ तासु तिभुवन तम भागा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-मंत्र परम लघु जासु बस बिधि हरि हर सुर सर्ब। |
− | <br>महामत्त गजराज कहुँ बस कर अंकुस | + | <br>महामत्त गजराज कहुँ बस कर अंकुस खर्ब॥२५६॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>काम कुसुम धनु सायक लीन्हे। सकल भुवन अपने बस | + | <br>काम कुसुम धनु सायक लीन्हे। सकल भुवन अपने बस कीन्हे॥ |
− | <br>देबि तजिअ संसउ अस जानी। भंजब धनुष रामु सुनु | + | <br>देबि तजिअ संसउ अस जानी। भंजब धनुष रामु सुनु रानी॥ |
− | <br>सखी बचन सुनि भै परतीती। मिटा बिषादु बढ़ी अति | + | <br>सखी बचन सुनि भै परतीती। मिटा बिषादु बढ़ी अति प्रीती॥ |
− | <br>तब रामहि बिलोकि बैदेही। सभय हृदयँ बिनवति जेहि | + | <br>तब रामहि बिलोकि बैदेही। सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही॥ |
− | <br>मनहीं मन मनाव अकुलानी। होहु प्रसन्न महेस | + | <br>मनहीं मन मनाव अकुलानी। होहु प्रसन्न महेस भवानी॥ |
− | <br>करहु सफल आपनि सेवकाई। करि हितु हरहु चाप | + | <br>करहु सफल आपनि सेवकाई। करि हितु हरहु चाप गरुआई॥ |
− | <br>गननायक बरदायक देवा। आजु लगें कीन्हिउँ तुअ | + | <br>गननायक बरदायक देवा। आजु लगें कीन्हिउँ तुअ सेवा॥ |
− | <br>बार बार बिनती सुनि मोरी। करहु चाप गुरुता अति | + | <br>बार बार बिनती सुनि मोरी। करहु चाप गुरुता अति थोरी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-देखि देखि रघुबीर तन सुर मनाव धरि धीर॥ |
− | <br>भरे बिलोचन प्रेम जल पुलकावली | + | <br>भरे बिलोचन प्रेम जल पुलकावली सरीर॥२५७॥ |
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− | <br>नीकें निरखि नयन भरि सोभा। पितु पनु सुमिरि बहुरि मनु | + | <br>नीकें निरखि नयन भरि सोभा। पितु पनु सुमिरि बहुरि मनु छोभा॥ |
− | <br>अहह तात दारुनि हठ ठानी। समुझत नहिं कछु लाभु न | + | <br>अहह तात दारुनि हठ ठानी। समुझत नहिं कछु लाभु न हानी॥ |
− | <br>सचिव सभय सिख देइ न कोई। बुध समाज बड़ अनुचित | + | <br>सचिव सभय सिख देइ न कोई। बुध समाज बड़ अनुचित होई॥ |
− | <br>कहँ धनु कुलिसहु चाहि कठोरा। कहँ स्यामल मृदुगात | + | <br>कहँ धनु कुलिसहु चाहि कठोरा। कहँ स्यामल मृदुगात किसोरा॥ |
− | <br>बिधि केहि भाँति धरौं उर धीरा। सिरस सुमन कन बेधिअ | + | <br>बिधि केहि भाँति धरौं उर धीरा। सिरस सुमन कन बेधिअ हीरा॥ |
− | <br>सकल सभा कै मति भै भोरी। अब मोहि संभुचाप गति | + | <br>सकल सभा कै मति भै भोरी। अब मोहि संभुचाप गति तोरी॥ |
− | <br>निज जड़ता लोगन्ह पर डारी। होहि हरुअ रघुपतिहि | + | <br>निज जड़ता लोगन्ह पर डारी। होहि हरुअ रघुपतिहि निहारी॥ |
− | <br>अति परिताप सीय मन माही। लव निमेष जुग सब सय | + | <br>अति परिताप सीय मन माही। लव निमेष जुग सब सय जाहीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-प्रभुहि चितइ पुनि चितव महि राजत लोचन लोल। |
− | <br>खेलत मनसिज मीन जुग जनु बिधु मंडल | + | <br>खेलत मनसिज मीन जुग जनु बिधु मंडल डोल॥२५८॥ |
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− | <br>गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी। प्रगट न लाज निसा | + | <br>गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी। प्रगट न लाज निसा अवलोकी॥ |
− | <br>लोचन जलु रह लोचन कोना। जैसे परम कृपन कर | + | <br>लोचन जलु रह लोचन कोना। जैसे परम कृपन कर सोना॥ |
− | <br>सकुची ब्याकुलता बड़ि जानी। धरि धीरजु प्रतीति उर | + | <br>सकुची ब्याकुलता बड़ि जानी। धरि धीरजु प्रतीति उर आनी॥ |
− | <br>तन मन बचन मोर पनु साचा। रघुपति पद सरोज चितु | + | <br>तन मन बचन मोर पनु साचा। रघुपति पद सरोज चितु राचा॥ |
− | <br>तौ भगवानु सकल उर बासी। करिहिं मोहि रघुबर कै | + | <br>तौ भगवानु सकल उर बासी। करिहिं मोहि रघुबर कै दासी॥ |
− | <br>जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु | + | <br>जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संहेहू॥ |
− | <br>प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना। कृपानिधान राम सबु | + | <br>प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना। कृपानिधान राम सबु जाना॥ |
− | <br>सियहि बिलोकि तकेउ धनु कैसे। चितव गरुरु लघु ब्यालहि | + | <br>सियहि बिलोकि तकेउ धनु कैसे। चितव गरुरु लघु ब्यालहि जैसे॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-लखन लखेउ रघुबंसमनि ताकेउ हर कोदंडु। |
− | <br>पुलकि गात बोले बचन चरन चापि | + | <br>पुलकि गात बोले बचन चरन चापि ब्रह्मांडु॥२५९॥ |
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− | <br>दिसकुंजरहु कमठ अहि कोला। धरहु धरनि धरि धीर न | + | <br>दिसकुंजरहु कमठ अहि कोला। धरहु धरनि धरि धीर न डोला॥ |
− | <br>रामु चहहिं संकर धनु तोरा। होहु सजग सुनि आयसु | + | <br>रामु चहहिं संकर धनु तोरा। होहु सजग सुनि आयसु मोरा॥ |
− | <br>चाप सपीप रामु जब आए। नर नारिन्ह सुर सुकृत | + | <br>चाप सपीप रामु जब आए। नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए॥ |
− | <br>सब कर संसउ अरु अग्यानू। मंद महीपन्ह कर | + | <br>सब कर संसउ अरु अग्यानू। मंद महीपन्ह कर अभिमानू॥ |
− | <br>भृगुपति केरि गरब गरुआई। सुर मुनिबरन्ह केरि | + | <br>भृगुपति केरि गरब गरुआई। सुर मुनिबरन्ह केरि कदराई॥ |
− | <br>सिय कर सोचु जनक पछितावा। रानिन्ह कर दारुन दुख | + | <br>सिय कर सोचु जनक पछितावा। रानिन्ह कर दारुन दुख दावा॥ |
− | <br>संभुचाप बड बोहितु पाई। चढे जाइ सब संगु | + | <br>संभुचाप बड बोहितु पाई। चढे जाइ सब संगु बनाई॥ |
− | <br>राम बाहुबल सिंधु अपारू। चहत पारु नहि कोउ | + | <br>राम बाहुबल सिंधु अपारू। चहत पारु नहि कोउ कड़हारू॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि। |
− | <br>चितई सीय कृपायतन जानी बिकल | + | <br>चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि॥२६०॥ |
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− | <br>देखी बिपुल बिकल बैदेही। निमिष बिहात कलप सम | + | <br>देखी बिपुल बिकल बैदेही। निमिष बिहात कलप सम तेही॥ |
− | <br>तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा। मुएँ करइ का सुधा | + | <br>तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा। मुएँ करइ का सुधा तड़ागा॥ |
− | <br>का बरषा सब कृषी सुखानें। समय चुकें पुनि का | + | <br>का बरषा सब कृषी सुखानें। समय चुकें पुनि का पछितानें॥ |
− | <br>अस जियँ जानि जानकी देखी। प्रभु पुलके लखि प्रीति | + | <br>अस जियँ जानि जानकी देखी। प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी॥ |
− | <br>गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा। अति लाघवँ उठाइ धनु | + | <br>गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा। अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा॥ |
− | <br>दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मंडल सम | + | <br>दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ॥ |
− | <br>लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु | + | <br>लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥ |
− | <br>तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर | + | <br>तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले। |
− | <br>चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम | + | <br>चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले॥ |
<br>सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं। | <br>सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं। | ||
− | <br>कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन | + | <br>कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारही॥ |
− | <br> | + | <br>सो०-संकर चापु जहाजु सागरु रघुबर बाहुबलु। |
− | <br>बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो प्रथमहिं मोह | + | <br>बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो प्रथमहिं मोह बस॥२६१॥ |
− | <br>प्रभु दोउ चापखंड महि डारे। देखि लोग सब भए | + | <br>प्रभु दोउ चापखंड महि डारे। देखि लोग सब भए सुखारे॥ |
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− | <br>कोसिकरुप पयोनिधि पावन। प्रेम बारि अवगाहु | + | <br>कोसिकरुप पयोनिधि पावन। प्रेम बारि अवगाहु सुहावन॥ |
− | <br>रामरूप राकेसु निहारी। बढ़त बीचि पुलकावलि | + | <br>रामरूप राकेसु निहारी। बढ़त बीचि पुलकावलि भारी॥ |
− | <br>बाजे नभ गहगहे निसाना। देवबधू नाचहिं करि | + | <br>बाजे नभ गहगहे निसाना। देवबधू नाचहिं करि गाना॥ |
− | <br>ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा। प्रभुहि प्रसंसहि देहिं | + | <br>ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा। प्रभुहि प्रसंसहि देहिं असीसा॥ |
− | <br>बरिसहिं सुमन रंग बहु माला। गावहिं किंनर गीत | + | <br>बरिसहिं सुमन रंग बहु माला। गावहिं किंनर गीत रसाला॥ |
− | <br>रही भुवन भरि जय जय बानी। धनुषभंग धुनि जात न | + | <br>रही भुवन भरि जय जय बानी। धनुषभंग धुनि जात न जानी॥ |
− | <br>मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी। भंजेउ राम संभुधनु | + | <br>मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी। भंजेउ राम संभुधनु भारी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बंदी मागध सूतगन बिरुद बदहिं मतिधीर। |
− | <br>करहिं निछावरि लोग सब हय गय धन मनि | + | <br>करहिं निछावरि लोग सब हय गय धन मनि चीर॥२६२॥ |
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− | <br>झाँझि मृदंग संख सहनाई। भेरि ढोल दुंदुभी | + | <br>झाँझि मृदंग संख सहनाई। भेरि ढोल दुंदुभी सुहाई॥ |
− | <br>बाजहिं बहु बाजने सुहाए। जहँ तहँ जुबतिन्ह मंगल | + | <br>बाजहिं बहु बाजने सुहाए। जहँ तहँ जुबतिन्ह मंगल गाए॥ |
− | <br>सखिन्ह सहित हरषी अति रानी। सूखत धान परा जनु | + | <br>सखिन्ह सहित हरषी अति रानी। सूखत धान परा जनु पानी॥ |
− | <br>जनक लहेउ सुखु सोचु बिहाई। पैरत थकें थाह जनु | + | <br>जनक लहेउ सुखु सोचु बिहाई। पैरत थकें थाह जनु पाई॥ |
− | <br>श्रीहत भए भूप धनु टूटे। जैसें दिवस दीप छबि | + | <br>श्रीहत भए भूप धनु टूटे। जैसें दिवस दीप छबि छूटे॥ |
− | <br>सीय सुखहि बरनिअ केहि भाँती। जनु चातकी पाइ जलु | + | <br>सीय सुखहि बरनिअ केहि भाँती। जनु चातकी पाइ जलु स्वाती॥ |
− | <br>रामहि लखनु बिलोकत कैसें। ससिहि चकोर किसोरकु | + | <br>रामहि लखनु बिलोकत कैसें। ससिहि चकोर किसोरकु जैसें॥ |
− | <br>सतानंद तब आयसु दीन्हा। सीताँ गमनु राम पहिं | + | <br>सतानंद तब आयसु दीन्हा। सीताँ गमनु राम पहिं कीन्हा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-संग सखीं सुदंर चतुर गावहिं मंगलचार। |
− | <br>गवनी बाल मराल गति सुषमा अंग | + | <br>गवनी बाल मराल गति सुषमा अंग अपार॥२६३॥ |
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− | <br>सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे। छबिगन मध्य महाछबि | + | <br>सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे। छबिगन मध्य महाछबि जैसें॥ |
− | <br>कर सरोज जयमाल सुहाई। बिस्व बिजय सोभा जेहिं | + | <br>कर सरोज जयमाल सुहाई। बिस्व बिजय सोभा जेहिं छाई॥ |
− | <br>तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ प्रेमु लखि परइ न | + | <br>तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू॥ |
− | <br>जाइ समीप राम छबि देखी। रहि जनु कुँअरि चित्र | + | <br>जाइ समीप राम छबि देखी। रहि जनु कुँअरि चित्र अवरेखी॥ |
− | <br>चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल | + | <br>चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई॥ |
− | <br>सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न | + | <br>सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न जाई॥ |
− | <br>सोहत जनु जुग जलज सनाला। ससिहि सभीत देत | + | <br>सोहत जनु जुग जलज सनाला। ससिहि सभीत देत जयमाला॥ |
− | <br>गावहिं छबि अवलोकि सहेली। सियँ जयमाल राम उर | + | <br>गावहिं छबि अवलोकि सहेली। सियँ जयमाल राम उर मेली॥ |
− | <br> | + | <br>सो०-रघुबर उर जयमाल देखि देव बरिसहिं सुमन। |
− | <br>सकुचे सकल भुआल जनु बिलोकि रबि | + | <br>सकुचे सकल भुआल जनु बिलोकि रबि कुमुदगन॥२६४॥ |
− | <br>पुर अरु ब्योम बाजने बाजे। खल भए मलिन साधु सब | + | <br>पुर अरु ब्योम बाजने बाजे। खल भए मलिन साधु सब राजे॥ |
− | <br>सुर किंनर नर नाग मुनीसा। जय जय जय कहि देहिं | + | <br>सुर किंनर नर नाग मुनीसा। जय जय जय कहि देहिं असीसा॥ |
− | <br>नाचहिं गावहिं बिबुध बधूटीं। बार बार कुसुमांजलि | + | <br>नाचहिं गावहिं बिबुध बधूटीं। बार बार कुसुमांजलि छूटीं॥ |
− | <br>जहँ तहँ बिप्र बेदधुनि करहीं। बंदी बिरदावलि | + | <br>जहँ तहँ बिप्र बेदधुनि करहीं। बंदी बिरदावलि उच्चरहीं॥ |
− | <br>महि पाताल नाक जसु ब्यापा। राम बरी सिय भंजेउ | + | <br>महि पाताल नाक जसु ब्यापा। राम बरी सिय भंजेउ चापा॥ |
− | <br>करहिं आरती पुर नर नारी। देहिं निछावरि बित्त | + | <br>करहिं आरती पुर नर नारी। देहिं निछावरि बित्त बिसारी॥ |
− | <br>सोहति सीय राम कै जौरी। छबि सिंगारु मनहुँ एक | + | <br>सोहति सीय राम कै जौरी। छबि सिंगारु मनहुँ एक ठोरी॥ |
− | <br>सखीं कहहिं प्रभुपद गहु सीता। करति न चरन परस अति | + | <br>सखीं कहहिं प्रभुपद गहु सीता। करति न चरन परस अति भीता॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-गौतम तिय गति सुरति करि नहिं परसति पग पानि। |
− | <br>मन बिहसे रघुबंसमनि प्रीति अलौकिक | + | <br>मन बिहसे रघुबंसमनि प्रीति अलौकिक जानि॥२६५॥ |
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− | <br>तब सिय देखि भूप अभिलाषे। कूर कपूत मूढ़ मन | + | <br>तब सिय देखि भूप अभिलाषे। कूर कपूत मूढ़ मन माखे॥ |
− | <br>उठि उठि पहिरि सनाह अभागे। जहँ तहँ गाल बजावन | + | <br>उठि उठि पहिरि सनाह अभागे। जहँ तहँ गाल बजावन लागे॥ |
− | <br>लेहु छड़ाइ सीय कह कोऊ। धरि बाँधहु नृप बालक | + | <br>लेहु छड़ाइ सीय कह कोऊ। धरि बाँधहु नृप बालक दोऊ॥ |
− | <br>तोरें धनुषु चाड़ नहिं सरई। जीवत हमहि कुअँरि को | + | <br>तोरें धनुषु चाड़ नहिं सरई। जीवत हमहि कुअँरि को बरई॥ |
− | <br>जौं बिदेहु कछु करै सहाई। जीतहु समर सहित दोउ | + | <br>जौं बिदेहु कछु करै सहाई। जीतहु समर सहित दोउ भाई॥ |
− | <br>साधु भूप बोले सुनि बानी। राजसमाजहि लाज | + | <br>साधु भूप बोले सुनि बानी। राजसमाजहि लाज लजानी॥ |
− | <br>बलु प्रतापु बीरता बड़ाई। नाक पिनाकहि संग | + | <br>बलु प्रतापु बीरता बड़ाई। नाक पिनाकहि संग सिधाई॥ |
− | <br>सोइ सूरता कि अब कहुँ पाई। असि बुधि तौ बिधि मुहँ मसि | + | <br>सोइ सूरता कि अब कहुँ पाई। असि बुधि तौ बिधि मुहँ मसि लाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-देखहु रामहि नयन भरि तजि इरिषा मदु कोहु। |
− | <br>लखन रोषु पावकु प्रबल जानि सलभ जनि | + | <br>लखन रोषु पावकु प्रबल जानि सलभ जनि होहु॥२६६॥ |
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− | <br>बैनतेय बलि जिमि चह कागू। जिमि ससु चहै नाग अरि | + | <br>बैनतेय बलि जिमि चह कागू। जिमि ससु चहै नाग अरि भागू॥ |
− | <br>जिमि चह कुसल अकारन कोही। सब संपदा चहै | + | <br>जिमि चह कुसल अकारन कोही। सब संपदा चहै सिवद्रोही॥ |
− | <br>लोभी लोलुप कल कीरति चहई। अकलंकता कि कामी | + | <br>लोभी लोलुप कल कीरति चहई। अकलंकता कि कामी लहई॥ |
− | <br>हरि पद बिमुख परम गति चाहा। तस तुम्हार लालचु | + | <br>हरि पद बिमुख परम गति चाहा। तस तुम्हार लालचु नरनाहा॥ |
− | <br>कोलाहलु सुनि सीय सकानी। सखीं लवाइ गईं जहँ | + | <br>कोलाहलु सुनि सीय सकानी। सखीं लवाइ गईं जहँ रानी॥ |
− | <br>रामु सुभायँ चले गुरु पाहीं। सिय सनेहु बरनत मन | + | <br>रामु सुभायँ चले गुरु पाहीं। सिय सनेहु बरनत मन माहीं॥ |
− | <br>रानिन्ह सहित सोचबस सीया। अब धौं बिधिहि काह | + | <br>रानिन्ह सहित सोचबस सीया। अब धौं बिधिहि काह करनीया॥ |
− | <br>भूप बचन सुनि इत उत तकहीं। लखनु राम डर बोलि न | + | <br>भूप बचन सुनि इत उत तकहीं। लखनु राम डर बोलि न सकहीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-अरुन नयन भृकुटी कुटिल चितवत नृपन्ह सकोप। |
− | <br>मनहुँ मत्त गजगन निरखि सिंघकिसोरहि | + | <br>मनहुँ मत्त गजगन निरखि सिंघकिसोरहि चोप॥२६७॥ |
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− | <br>खरभरु देखि बिकल पुर नारीं। सब मिलि देहिं महीपन्ह | + | <br>खरभरु देखि बिकल पुर नारीं। सब मिलि देहिं महीपन्ह गारीं॥ |
− | <br>तेहिं अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयसु भृगुकुल कमल | + | <br>तेहिं अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयसु भृगुकुल कमल पतंगा॥ |
− | <br>देखि महीप सकल सकुचाने। बाज झपट जनु लवा | + | <br>देखि महीप सकल सकुचाने। बाज झपट जनु लवा लुकाने॥ |
− | <br>गौरि सरीर भूति भल भ्राजा। भाल बिसाल त्रिपुंड | + | <br>गौरि सरीर भूति भल भ्राजा। भाल बिसाल त्रिपुंड बिराजा॥ |
− | <br>सीस जटा ससिबदनु सुहावा। रिसबस कछुक अरुन होइ | + | <br>सीस जटा ससिबदनु सुहावा। रिसबस कछुक अरुन होइ आवा॥ |
− | <br>भृकुटी कुटिल नयन रिस राते। सहजहुँ चितवत मनहुँ | + | <br>भृकुटी कुटिल नयन रिस राते। सहजहुँ चितवत मनहुँ रिसाते॥ |
− | <br>बृषभ कंध उर बाहु बिसाला। चारु जनेउ माल | + | <br>बृषभ कंध उर बाहु बिसाला। चारु जनेउ माल मृगछाला॥ |
− | <br>कटि मुनि बसन तून दुइ बाँधें। धनु सर कर कुठारु कल | + | <br>कटि मुनि बसन तून दुइ बाँधें। धनु सर कर कुठारु कल काँधें॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सांत बेषु करनी कठिन बरनि न जाइ सरुप। |
− | <br>धरि मुनितनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब | + | <br>धरि मुनितनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप॥२६८॥ |
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− | <br>देखत भृगुपति बेषु कराला। उठे सकल भय बिकल | + | <br>देखत भृगुपति बेषु कराला। उठे सकल भय बिकल भुआला॥ |
− | <br>पितु समेत कहि कहि निज नामा। लगे करन सब दंड | + | <br>पितु समेत कहि कहि निज नामा। लगे करन सब दंड प्रनामा॥ |
− | <br>जेहि सुभायँ चितवहिं हितु जानी। सो जानइ जनु आइ | + | <br>जेहि सुभायँ चितवहिं हितु जानी। सो जानइ जनु आइ खुटानी॥ |
− | <br>जनक बहोरि आइ सिरु नावा। सीय बोलाइ प्रनामु | + | <br>जनक बहोरि आइ सिरु नावा। सीय बोलाइ प्रनामु करावा॥ |
− | <br>आसिष दीन्हि सखीं हरषानीं। निज समाज लै गई | + | <br>आसिष दीन्हि सखीं हरषानीं। निज समाज लै गई सयानीं॥ |
− | <br>बिस्वामित्रु मिले पुनि आई। पद सरोज मेले दोउ | + | <br>बिस्वामित्रु मिले पुनि आई। पद सरोज मेले दोउ भाई॥ |
− | <br>रामु लखनु दसरथ के ढोटा। दीन्हि असीस देखि भल | + | <br>रामु लखनु दसरथ के ढोटा। दीन्हि असीस देखि भल जोटा॥ |
− | <br>रामहि चितइ रहे थकि लोचन। रूप अपार मार मद | + | <br>रामहि चितइ रहे थकि लोचन। रूप अपार मार मद मोचन॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बहुरि बिलोकि बिदेह सन कहहु काह अति भीर॥ |
− | <br>पूछत जानि अजान जिमि ब्यापेउ कोपु | + | <br>पूछत जानि अजान जिमि ब्यापेउ कोपु सरीर॥२६९॥ |
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− | <br>समाचार कहि जनक सुनाए। जेहि कारन महीप सब | + | <br>समाचार कहि जनक सुनाए। जेहि कारन महीप सब आए॥ |
− | <br>सुनत बचन फिरि अनत निहारे। देखे चापखंड महि | + | <br>सुनत बचन फिरि अनत निहारे। देखे चापखंड महि डारे॥ |
− | <br>अति रिस बोले बचन कठोरा। कहु जड़ जनक धनुष कै | + | <br>अति रिस बोले बचन कठोरा। कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा॥ |
− | <br>बेगि देखाउ मूढ़ न त आजू। उलटउँ महि जहँ लहि तव | + | <br>बेगि देखाउ मूढ़ न त आजू। उलटउँ महि जहँ लहि तव राजू॥ |
− | <br>अति डरु उतरु देत नृपु नाहीं। कुटिल भूप हरषे मन | + | <br>अति डरु उतरु देत नृपु नाहीं। कुटिल भूप हरषे मन माहीं॥ |
− | <br>सुर मुनि नाग नगर नर | + | <br>सुर मुनि नाग नगर नर नारी॥सोचहिं सकल त्रास उर भारी॥ |
− | <br>मन पछिताति सीय महतारी। बिधि अब सँवरी बात | + | <br>मन पछिताति सीय महतारी। बिधि अब सँवरी बात बिगारी॥ |
− | <br>भृगुपति कर सुभाउ सुनि सीता। अरध निमेष कलप सम | + | <br>भृगुपति कर सुभाउ सुनि सीता। अरध निमेष कलप सम बीता॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सभय बिलोके लोग सब जानि जानकी भीरु। |
− | <br>हृदयँ न हरषु बिषादु कछु बोले | + | <br>हृदयँ न हरषु बिषादु कछु बोले श्रीरघुबीरु॥२७०॥ |
<br>मासपारायण, नवाँ विश्राम | <br>मासपारायण, नवाँ विश्राम | ||
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− | <br>नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास | + | <br>नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥ |
− | <br>आयसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि | + | <br>आयसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥ |
− | <br>सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरि करनी करि करिअ | + | <br>सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई॥ |
− | <br>सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु | + | <br>सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥ |
− | <br>सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब | + | <br>सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा॥ |
− | <br>सुनि मुनि बचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि | + | <br>सुनि मुनि बचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अपमाने॥ |
− | <br>बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि | + | <br>बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं॥ |
− | <br>एहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह | + | <br>एहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-रे नृप बालक कालबस बोलत तोहि न सँमार॥ |
− | <br>धनुही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल | + | <br>धनुही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार॥२७१॥ |
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− | <br>लखन कहा हँसि हमरें जाना। सुनहु देव सब धनुष | + | <br>लखन कहा हँसि हमरें जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥ |
− | <br>का छति लाभु जून धनु तौरें। देखा राम नयन के | + | <br>का छति लाभु जून धनु तौरें। देखा राम नयन के भोरें॥ |
<br>छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू । | <br>छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू । | ||
− | <br>बोले चितइ परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न | + | <br>बोले चितइ परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥ |
− | <br>बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही। केवल मुनि जड़ जानहि | + | <br>बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही॥ |
− | <br>बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्व बिदित छत्रियकुल | + | <br>बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्व बिदित छत्रियकुल द्रोही॥ |
− | <br>भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह | + | <br>भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥ |
− | <br>सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु | + | <br>सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। |
− | <br>गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति | + | <br>गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥२७२॥ |
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− | <br>बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महा | + | <br>बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महा भटमानी॥ |
− | <br>पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि | + | <br>पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥ |
− | <br>इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि | + | <br>इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥ |
− | <br>देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित | + | <br>देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥ |
− | <br>भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहउँ रिस | + | <br>भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी॥ |
− | <br>सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरें कुल इन्ह पर न | + | <br>सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरें कुल इन्ह पर न सुराई॥ |
− | <br>बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहूँ पा परिअ | + | <br>बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहूँ पा परिअ तुम्हारें॥ |
− | <br>कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान | + | <br>कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। |
− | <br>सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा | + | <br>सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गभीर॥२७३॥ |
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− | <br>कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु। कुटिल कालबस निज कुल | + | <br>कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु। कुटिल कालबस निज कुल घालकु॥ |
− | <br>भानु बंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुस अबुध | + | <br>भानु बंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू॥ |
− | <br>काल कवलु होइहि छन माहीं। कहउँ पुकारि खोरि मोहि | + | <br>काल कवलु होइहि छन माहीं। कहउँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥ |
− | <br>तुम्ह हटकउ जौं चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु | + | <br>तुम्ह हटकउ जौं चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥ |
− | <br>लखन कहेउ मुनि सुजस तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै | + | <br>लखन कहेउ मुनि सुजस तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥ |
− | <br>अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु | + | <br>अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥ |
− | <br>नहिं संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख | + | <br>नहिं संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥ |
− | <br>बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु | + | <br>बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु। |
− | <br>बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं | + | <br>बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु॥२७४॥ |
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− | <br>तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि | + | <br>तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥ |
− | <br>सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर | + | <br>सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा॥ |
− | <br>अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु | + | <br>अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू॥ |
− | <br>बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब यहु मरनिहार भा | + | <br>बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब यहु मरनिहार भा साँचा॥ |
− | <br>कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न | + | <br>कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू॥ |
− | <br>खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगें अपराधी | + | <br>खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगें अपराधी गुरुद्रोही॥ |
− | <br>उतर देत छोड़उँ बिनु मारें। केवल कौसिक सील | + | <br>उतर देत छोड़उँ बिनु मारें। केवल कौसिक सील तुम्हारें॥ |
− | <br>न त एहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम | + | <br>न त एहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि मुनिहि हरिअरइ सूझ। |
− | <br>अयमय खाँड न ऊखमय अजहुँ न बूझ | + | <br>अयमय खाँड न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ॥२७५॥ |
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− | <br>कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित | + | <br>कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥ |
− | <br>माता पितहि उरिन भए नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ | + | <br>माता पितहि उरिन भए नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जीकें॥ |
− | <br>सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गए ब्याज बड़ | + | <br>सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गए ब्याज बड़ बाढ़ा॥ |
− | <br>अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली | + | <br>अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली॥ |
− | <br>सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा | + | <br>सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥ |
− | <br>भृगुबर परसु देखावहु मोही। बिप्र बिचारि बचउँ | + | <br>भृगुबर परसु देखावहु मोही। बिप्र बिचारि बचउँ नृपद्रोही॥ |
− | <br>मिले न कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के | + | <br>मिले न कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के बाढ़े॥ |
− | <br>अनुचित कहि सब लोग पुकारे। रघुपति सयनहिं लखनु | + | <br>अनुचित कहि सब लोग पुकारे। रघुपति सयनहिं लखनु नेवारे॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-लखन उतर आहुति सरिस भृगुबर कोपु कृसानु। |
− | <br>बढ़त देखि जल सम बचन बोले | + | <br>बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥२७६॥ |
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− | <br>नाथ करहु बालक पर छोहू। सूध दूधमुख करिअ न | + | <br>नाथ करहु बालक पर छोहू। सूध दूधमुख करिअ न कोहू॥ |
− | <br>जौं पै प्रभु प्रभाउ कछु जाना। तौ कि बराबरि करत | + | <br>जौं पै प्रभु प्रभाउ कछु जाना। तौ कि बराबरि करत अयाना॥ |
− | <br>जौं लरिका कछु अचगरि करहीं। गुर पितु मातु मोद मन | + | <br>जौं लरिका कछु अचगरि करहीं। गुर पितु मातु मोद मन भरहीं॥ |
− | <br>करिअ कृपा सिसु सेवक जानी। तुम्ह सम सील धीर मुनि | + | <br>करिअ कृपा सिसु सेवक जानी। तुम्ह सम सील धीर मुनि ग्यानी॥ |
− | <br>राम बचन सुनि कछुक जुड़ाने। कहि कछु लखनु बहुरि | + | <br>राम बचन सुनि कछुक जुड़ाने। कहि कछु लखनु बहुरि मुसकाने॥ |
− | <br>हँसत देखि नख सिख रिस ब्यापी। राम तोर भ्राता बड़ | + | <br>हँसत देखि नख सिख रिस ब्यापी। राम तोर भ्राता बड़ पापी॥ |
− | <br>गौर सरीर स्याम मन माहीं। कालकूटमुख पयमुख | + | <br>गौर सरीर स्याम मन माहीं। कालकूटमुख पयमुख नाहीं॥ |
− | <br>सहज टेढ़ अनुहरइ न तोही। नीचु मीचु सम देख न | + | <br>सहज टेढ़ अनुहरइ न तोही। नीचु मीचु सम देख न मौहीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-लखन कहेउ हँसि सुनहु मुनि क्रोधु पाप कर मूल। |
− | <br>जेहि बस जन अनुचित करहिं चरहिं बिस्व | + | <br>जेहि बस जन अनुचित करहिं चरहिं बिस्व प्रतिकूल॥२७७॥ |
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− | <br>मैं तुम्हार अनुचर मुनिराया। परिहरि कोपु करिअ अब | + | <br>मैं तुम्हार अनुचर मुनिराया। परिहरि कोपु करिअ अब दाया॥ |
− | <br>टूट चाप नहिं जुरहि रिसाने। बैठिअ होइहिं पाय | + | <br>टूट चाप नहिं जुरहि रिसाने। बैठिअ होइहिं पाय पिराने॥ |
− | <br>जौ अति प्रिय तौ करिअ उपाई। जोरिअ कोउ बड़ गुनी | + | <br>जौ अति प्रिय तौ करिअ उपाई। जोरिअ कोउ बड़ गुनी बोलाई॥ |
− | <br>बोलत लखनहिं जनकु डेराहीं। मष्ट करहु अनुचित भल | + | <br>बोलत लखनहिं जनकु डेराहीं। मष्ट करहु अनुचित भल नाहीं॥ |
− | <br>थर थर कापहिं पुर नर नारी। छोट कुमार खोट बड़ | + | <br>थर थर कापहिं पुर नर नारी। छोट कुमार खोट बड़ भारी॥ |
− | <br>भृगुपति सुनि सुनि निरभय बानी। रिस तन जरइ होइ बल | + | <br>भृगुपति सुनि सुनि निरभय बानी। रिस तन जरइ होइ बल हानी॥ |
− | <br>बोले रामहि देइ निहोरा। बचउँ बिचारि बंधु लघु | + | <br>बोले रामहि देइ निहोरा। बचउँ बिचारि बंधु लघु तोरा॥ |
− | <br>मनु मलीन तनु सुंदर कैसें। बिष रस भरा कनक घटु | + | <br>मनु मलीन तनु सुंदर कैसें। बिष रस भरा कनक घटु जैसैं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०- सुनि लछिमन बिहसे बहुरि नयन तरेरे राम। |
− | <br>गुर समीप गवने सकुचि परिहरि बानी | + | <br>गुर समीप गवने सकुचि परिहरि बानी बाम॥२७८॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>अति बिनीत मृदु सीतल बानी। बोले रामु जोरि जुग | + | <br>अति बिनीत मृदु सीतल बानी। बोले रामु जोरि जुग पानी॥ |
− | <br>सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना। बालक बचनु करिअ नहिं | + | <br>सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना। बालक बचनु करिअ नहिं काना॥ |
− | <br>बररै बालक एकु सुभाऊ। इन्हहि न संत बिदूषहिं | + | <br>बररै बालक एकु सुभाऊ। इन्हहि न संत बिदूषहिं काऊ॥ |
− | <br>तेहिं नाहीं कछु काज बिगारा। अपराधी में नाथ | + | <br>तेहिं नाहीं कछु काज बिगारा। अपराधी में नाथ तुम्हारा॥ |
− | <br>कृपा कोपु बधु बँधब गोसाईं। मो पर करिअ दास की | + | <br>कृपा कोपु बधु बँधब गोसाईं। मो पर करिअ दास की नाई॥ |
− | <br>कहिअ बेगि जेहि बिधि रिस जाई। मुनिनायक सोइ करौं | + | <br>कहिअ बेगि जेहि बिधि रिस जाई। मुनिनायक सोइ करौं उपाई॥ |
− | <br>कह मुनि राम जाइ रिस कैसें। अजहुँ अनुज तव चितव | + | <br>कह मुनि राम जाइ रिस कैसें। अजहुँ अनुज तव चितव अनैसें॥ |
− | <br>एहि के कंठ कुठारु न दीन्हा। तौ मैं काह कोपु करि | + | <br>एहि के कंठ कुठारु न दीन्हा। तौ मैं काह कोपु करि कीन्हा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-गर्भ स्त्रवहिं अवनिप रवनि सुनि कुठार गति घोर। |
− | <br>परसु अछत देखउँ जिअत बैरी | + | <br>परसु अछत देखउँ जिअत बैरी भूपकिसोर॥२७९॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>बहइ न हाथु दहइ रिस छाती। भा कुठारु कुंठित | + | <br>बहइ न हाथु दहइ रिस छाती। भा कुठारु कुंठित नृपघाती॥ |
− | <br>भयउ बाम बिधि फिरेउ सुभाऊ। मोरे हृदयँ कृपा कसि | + | <br>भयउ बाम बिधि फिरेउ सुभाऊ। मोरे हृदयँ कृपा कसि काऊ॥ |
− | <br>आजु दया दुखु दुसह सहावा। सुनि सौमित्र बिहसि सिरु | + | <br>आजु दया दुखु दुसह सहावा। सुनि सौमित्र बिहसि सिरु नावा॥ |
− | <br>बाउ कृपा मूरति अनुकूला। बोलत बचन झरत जनु | + | <br>बाउ कृपा मूरति अनुकूला। बोलत बचन झरत जनु फूला॥ |
− | <br>जौं पै कृपाँ जरिहिं मुनि गाता। क्रोध भएँ तनु राख | + | <br>जौं पै कृपाँ जरिहिं मुनि गाता। क्रोध भएँ तनु राख बिधाता॥ |
− | <br>देखु जनक हठि बालक एहू। कीन्ह चहत जड़ जमपुर | + | <br>देखु जनक हठि बालक एहू। कीन्ह चहत जड़ जमपुर गेहू॥ |
− | <br>बेगि करहु किन आँखिन्ह ओटा। देखत छोट खोट नृप | + | <br>बेगि करहु किन आँखिन्ह ओटा। देखत छोट खोट नृप ढोटा॥ |
− | <br>बिहसे लखनु कहा मन माहीं। मूदें आँखि कतहुँ कोउ | + | <br>बिहसे लखनु कहा मन माहीं। मूदें आँखि कतहुँ कोउ नाहीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-परसुरामु तब राम प्रति बोले उर अति क्रोधु। |
− | <br>संभु सरासनु तोरि सठ करसि हमार | + | <br>संभु सरासनु तोरि सठ करसि हमार प्रबोधु॥२८०॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>बंधु कहइ कटु संमत तोरें। तू छल बिनय करसि कर | + | <br>बंधु कहइ कटु संमत तोरें। तू छल बिनय करसि कर जोरें॥ |
− | <br>करु परितोषु मोर संग्रामा। नाहिं त छाड़ कहाउब | + | <br>करु परितोषु मोर संग्रामा। नाहिं त छाड़ कहाउब रामा॥ |
− | <br>छलु तजि करहि समरु सिवद्रोही। बंधु सहित न त मारउँ | + | <br>छलु तजि करहि समरु सिवद्रोही। बंधु सहित न त मारउँ तोही॥ |
− | <br>भृगुपति बकहिं कुठार उठाएँ। मन मुसकाहिं रामु सिर | + | <br>भृगुपति बकहिं कुठार उठाएँ। मन मुसकाहिं रामु सिर नाएँ॥ |
− | <br>गुनह लखन कर हम पर रोषू। कतहुँ सुधाइहु ते बड़ | + | <br>गुनह लखन कर हम पर रोषू। कतहुँ सुधाइहु ते बड़ दोषू॥ |
− | <br>टेढ़ जानि सब बंदइ काहू। बक्र चंद्रमहि ग्रसइ न | + | <br>टेढ़ जानि सब बंदइ काहू। बक्र चंद्रमहि ग्रसइ न राहू॥ |
− | <br>राम कहेउ रिस तजिअ मुनीसा। कर कुठारु आगें यह | + | <br>राम कहेउ रिस तजिअ मुनीसा। कर कुठारु आगें यह सीसा॥ |
− | <br>जेंहिं रिस जाइ करिअ सोइ स्वामी। मोहि जानि आपन | + | <br>जेंहिं रिस जाइ करिअ सोइ स्वामी। मोहि जानि आपन अनुगामी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-प्रभुहि सेवकहि समरु कस तजहु बिप्रबर रोसु। |
− | <br>बेषु बिलोकें कहेसि कछु बालकहू नहिं | + | <br>बेषु बिलोकें कहेसि कछु बालकहू नहिं दोसु॥२८१॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>देखि कुठार बान धनु धारी। भै लरिकहि रिस बीरु | + | <br>देखि कुठार बान धनु धारी। भै लरिकहि रिस बीरु बिचारी॥ |
− | <br>नामु जान पै तुम्हहि न चीन्हा। बंस सुभायँ उतरु तेंहिं | + | <br>नामु जान पै तुम्हहि न चीन्हा। बंस सुभायँ उतरु तेंहिं दीन्हा॥ |
− | <br>जौं तुम्ह औतेहु मुनि की नाईं। पद रज सिर सिसु धरत | + | <br>जौं तुम्ह औतेहु मुनि की नाईं। पद रज सिर सिसु धरत गोसाईं॥ |
− | <br>छमहु चूक अनजानत केरी। चहिअ बिप्र उर कृपा | + | <br>छमहु चूक अनजानत केरी। चहिअ बिप्र उर कृपा घनेरी॥ |
− | <br>हमहि तुम्हहि सरिबरि कसि | + | <br>हमहि तुम्हहि सरिबरि कसि नाथा॥कहहु न कहाँ चरन कहँ माथा॥ |
− | <br>राम मात्र लघु नाम हमारा। परसु सहित बड़ नाम | + | <br>राम मात्र लघु नाम हमारा। परसु सहित बड़ नाम तोहारा॥ |
− | <br>देव एकु गुनु धनुष हमारें। नव गुन परम पुनीत | + | <br>देव एकु गुनु धनुष हमारें। नव गुन परम पुनीत तुम्हारें॥ |
− | <br>सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे। छमहु बिप्र अपराध | + | <br>सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे। छमहु बिप्र अपराध हमारे॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बार बार मुनि बिप्रबर कहा राम सन राम। |
− | <br>बोले भृगुपति सरुष हसि तहूँ बंधु सम | + | <br>बोले भृगुपति सरुष हसि तहूँ बंधु सम बाम॥२८२॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>निपटहिं द्विज करि जानहि मोही। मैं जस बिप्र सुनावउँ | + | <br>निपटहिं द्विज करि जानहि मोही। मैं जस बिप्र सुनावउँ तोही॥ |
− | <br>चाप स्त्रुवा सर आहुति जानू। कोप मोर अति घोर | + | <br>चाप स्त्रुवा सर आहुति जानू। कोप मोर अति घोर कृसानु॥ |
− | <br>समिधि सेन चतुरंग सुहाई। महा महीप भए पसु | + | <br>समिधि सेन चतुरंग सुहाई। महा महीप भए पसु आई॥ |
− | <br>मै एहि परसु काटि बलि दीन्हे। समर जग्य जप कोटिन्ह | + | <br>मै एहि परसु काटि बलि दीन्हे। समर जग्य जप कोटिन्ह कीन्हे॥ |
− | <br>मोर प्रभाउ बिदित नहिं तोरें। बोलसि निदरि बिप्र के | + | <br>मोर प्रभाउ बिदित नहिं तोरें। बोलसि निदरि बिप्र के भोरें॥ |
− | <br>भंजेउ चापु दापु बड़ बाढ़ा। अहमिति मनहुँ जीति जगु | + | <br>भंजेउ चापु दापु बड़ बाढ़ा। अहमिति मनहुँ जीति जगु ठाढ़ा॥ |
− | <br>राम कहा मुनि कहहु बिचारी। रिस अति बड़ि लघु चूक | + | <br>राम कहा मुनि कहहु बिचारी। रिस अति बड़ि लघु चूक हमारी॥ |
− | <br>छुअतहिं टूट पिनाक पुराना। मैं कहि हेतु करौं | + | <br>छुअतहिं टूट पिनाक पुराना। मैं कहि हेतु करौं अभिमाना॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-जौं हम निदरहिं बिप्र बदि सत्य सुनहु भृगुनाथ। |
− | <br>तौ अस को जग सुभटु जेहि भय बस नावहिं | + | <br>तौ अस को जग सुभटु जेहि भय बस नावहिं माथ॥२८३॥ |
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− | <br>देव दनुज भूपति भट नाना। समबल अधिक होउ | + | <br>देव दनुज भूपति भट नाना। समबल अधिक होउ बलवाना॥ |
− | <br>जौं रन हमहि पचारै कोऊ। लरहिं सुखेन कालु किन | + | <br>जौं रन हमहि पचारै कोऊ। लरहिं सुखेन कालु किन होऊ॥ |
− | <br>छत्रिय तनु धरि समर सकाना। कुल कलंकु तेहिं पावँर | + | <br>छत्रिय तनु धरि समर सकाना। कुल कलंकु तेहिं पावँर आना॥ |
− | <br>कहउँ सुभाउ न कुलहि प्रसंसी। कालहु डरहिं न रन | + | <br>कहउँ सुभाउ न कुलहि प्रसंसी। कालहु डरहिं न रन रघुबंसी॥ |
− | <br>बिप्रबंस कै असि प्रभुताई। अभय होइ जो तुम्हहि | + | <br>बिप्रबंस कै असि प्रभुताई। अभय होइ जो तुम्हहि डेराई॥ |
− | <br>सुनु मृदु गूढ़ बचन रघुपति के। उघरे पटल परसुधर मति | + | <br>सुनु मृदु गूढ़ बचन रघुपति के। उघरे पटल परसुधर मति के॥ |
− | <br>राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु मिटै मोर | + | <br>राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु मिटै मोर संदेहू॥ |
− | <br>देत चापु आपुहिं चलि गयऊ। परसुराम मन बिसमय | + | <br>देत चापु आपुहिं चलि गयऊ। परसुराम मन बिसमय भयऊ॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-जाना राम प्रभाउ तब पुलक प्रफुल्लित गात। |
− | <br>जोरि पानि बोले बचन ह्दयँ न प्रेमु | + | <br>जोरि पानि बोले बचन ह्दयँ न प्रेमु अमात॥२८४॥ |
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− | <br>जय रघुबंस बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन | + | <br>जय रघुबंस बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृसानु॥ |
− | <br>जय सुर बिप्र धेनु हितकारी। जय मद मोह कोह भ्रम | + | <br>जय सुर बिप्र धेनु हितकारी। जय मद मोह कोह भ्रम हारी॥ |
− | <br>बिनय सील करुना गुन सागर। जयति बचन रचना अति | + | <br>बिनय सील करुना गुन सागर। जयति बचन रचना अति नागर॥ |
− | <br>सेवक सुखद सुभग सब अंगा। जय सरीर छबि कोटि | + | <br>सेवक सुखद सुभग सब अंगा। जय सरीर छबि कोटि अनंगा॥ |
− | <br>करौं काह मुख एक प्रसंसा। जय महेस मन मानस | + | <br>करौं काह मुख एक प्रसंसा। जय महेस मन मानस हंसा॥ |
− | <br>अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमामंदिर दोउ | + | <br>अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमामंदिर दोउ भ्राता॥ |
− | <br>कहि जय जय जय रघुकुलकेतू। भृगुपति गए बनहि तप | + | <br>कहि जय जय जय रघुकुलकेतू। भृगुपति गए बनहि तप हेतू॥ |
− | <br>अपभयँ कुटिल महीप डेराने। जहँ तहँ कायर गवँहिं | + | <br>अपभयँ कुटिल महीप डेराने। जहँ तहँ कायर गवँहिं पराने॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-देवन्ह दीन्हीं दुंदुभीं प्रभु पर बरषहिं फूल। |
− | <br>हरषे पुर नर नारि सब मिटी मोहमय | + | <br>हरषे पुर नर नारि सब मिटी मोहमय सूल॥२८५॥ |
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− | <br>अति गहगहे बाजने बाजे। सबहिं मनोहर मंगल | + | <br>अति गहगहे बाजने बाजे। सबहिं मनोहर मंगल साजे॥ |
− | <br>जूथ जूथ मिलि सुमुख सुनयनीं। करहिं गान कल | + | <br>जूथ जूथ मिलि सुमुख सुनयनीं। करहिं गान कल कोकिलबयनी॥ |
− | <br>सुखु बिदेह कर बरनि न जाई। जन्मदरिद्र मनहुँ निधि | + | <br>सुखु बिदेह कर बरनि न जाई। जन्मदरिद्र मनहुँ निधि पाई॥ |
− | <br>गत त्रास भइ सीय सुखारी। जनु बिधु उदयँ | + | <br>गत त्रास भइ सीय सुखारी। जनु बिधु उदयँ चकोरकुमारी॥ |
− | <br>जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा। प्रभु प्रसाद धनु भंजेउ | + | <br>जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा। प्रभु प्रसाद धनु भंजेउ रामा॥ |
− | <br>मोहि कृतकृत्य कीन्ह दुहुँ भाईं। अब जो उचित सो कहिअ | + | <br>मोहि कृतकृत्य कीन्ह दुहुँ भाईं। अब जो उचित सो कहिअ गोसाई॥ |
− | <br>कह मुनि सुनु नरनाथ प्रबीना। रहा बिबाहु चाप | + | <br>कह मुनि सुनु नरनाथ प्रबीना। रहा बिबाहु चाप आधीना॥ |
− | <br>टूटतहीं धनु भयउ बिबाहू। सुर नर नाग बिदित सब | + | <br>टूटतहीं धनु भयउ बिबाहू। सुर नर नाग बिदित सब काहु॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-तदपि जाइ तुम्ह करहु अब जथा बंस ब्यवहारु। |
− | <br>बूझि बिप्र कुलबृद्ध गुर बेद बिदित | + | <br>बूझि बिप्र कुलबृद्ध गुर बेद बिदित आचारु॥२८६॥ |
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− | <br>दूत अवधपुर पठवहु जाई। आनहिं नृप दसरथहि | + | <br>दूत अवधपुर पठवहु जाई। आनहिं नृप दसरथहि बोलाई॥ |
− | <br>मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला। पठए दूत बोलि तेहि | + | <br>मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला। पठए दूत बोलि तेहि काला॥ |
− | <br>बहुरि महाजन सकल बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिर | + | <br>बहुरि महाजन सकल बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिर नाए॥ |
− | <br>हाट बाट मंदिर सुरबासा। नगरु सँवारहु चारिहुँ | + | <br>हाट बाट मंदिर सुरबासा। नगरु सँवारहु चारिहुँ पासा॥ |
− | <br>हरषि चले निज निज गृह आए। पुनि परिचारक बोलि | + | <br>हरषि चले निज निज गृह आए। पुनि परिचारक बोलि पठाए॥ |
− | <br>रचहु बिचित्र बितान बनाई। सिर धरि बचन चले सचु | + | <br>रचहु बिचित्र बितान बनाई। सिर धरि बचन चले सचु पाई॥ |
− | <br>पठए बोलि गुनी तिन्ह नाना। जे बितान बिधि कुसल | + | <br>पठए बोलि गुनी तिन्ह नाना। जे बितान बिधि कुसल सुजाना॥ |
− | <br>बिधिहि बंदि तिन्ह कीन्ह अरंभा। बिरचे कनक कदलि के | + | <br>बिधिहि बंदि तिन्ह कीन्ह अरंभा। बिरचे कनक कदलि के खंभा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल। |
− | <br>रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरंचि कर | + | <br>रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरंचि कर भूल॥२८७॥ |
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− | <br>बेनि हरित मनिमय सब कीन्हे। सरल सपरब परहिं नहिं | + | <br>बेनि हरित मनिमय सब कीन्हे। सरल सपरब परहिं नहिं चीन्हे॥ |
− | <br>कनक कलित अहिबेल बनाई। लखि नहि परइ सपरन | + | <br>कनक कलित अहिबेल बनाई। लखि नहि परइ सपरन सुहाई॥ |
− | <br>तेहि के रचि पचि बंध बनाए। बिच बिच मुकता दाम | + | <br>तेहि के रचि पचि बंध बनाए। बिच बिच मुकता दाम सुहाए॥ |
− | <br>मानिक मरकत कुलिस पिरोजा। चीरि कोरि पचि रचे | + | <br>मानिक मरकत कुलिस पिरोजा। चीरि कोरि पचि रचे सरोजा॥ |
− | <br>किए भृंग बहुरंग बिहंगा। गुंजहिं कूजहिं पवन | + | <br>किए भृंग बहुरंग बिहंगा। गुंजहिं कूजहिं पवन प्रसंगा॥ |
− | <br>सुर प्रतिमा खंभन गढ़ी काढ़ी। मंगल द्रब्य लिएँ सब | + | <br>सुर प्रतिमा खंभन गढ़ी काढ़ी। मंगल द्रब्य लिएँ सब ठाढ़ी॥ |
− | <br>चौंकें भाँति अनेक पुराईं। सिंधुर मनिमय सहज | + | <br>चौंकें भाँति अनेक पुराईं। सिंधुर मनिमय सहज सुहाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सौरभ पल्लव सुभग सुठि किए नीलमनि कोरि॥ |
− | <br>हेम बौर मरकत घवरि लसत पाटमय | + | <br>हेम बौर मरकत घवरि लसत पाटमय डोरि॥२८८॥ |
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− | <br>रचे रुचिर बर बंदनिबारे। मनहुँ मनोभवँ फंद | + | <br>रचे रुचिर बर बंदनिबारे। मनहुँ मनोभवँ फंद सँवारे॥ |
− | <br>मंगल कलस अनेक बनाए। ध्वज पताक पट चमर | + | <br>मंगल कलस अनेक बनाए। ध्वज पताक पट चमर सुहाए॥ |
− | <br>दीप मनोहर मनिमय नाना। जाइ न बरनि बिचित्र | + | <br>दीप मनोहर मनिमय नाना। जाइ न बरनि बिचित्र बिताना॥ |
− | <br>जेहिं मंडप दुलहिनि बैदेही। सो बरनै असि मति कबि | + | <br>जेहिं मंडप दुलहिनि बैदेही। सो बरनै असि मति कबि केही॥ |
− | <br>दूलहु रामु रूप गुन सागर। सो बितानु तिहुँ लोक | + | <br>दूलहु रामु रूप गुन सागर। सो बितानु तिहुँ लोक उजागर॥ |
− | <br>जनक भवन कै सौभा जैसी। गृह गृह प्रति पुर देखिअ | + | <br>जनक भवन कै सौभा जैसी। गृह गृह प्रति पुर देखिअ तैसी॥ |
− | <br>जेहिं तेरहुति तेहि समय निहारी। तेहि लघु लगहिं भुवन दस | + | <br>जेहिं तेरहुति तेहि समय निहारी। तेहि लघु लगहिं भुवन दस चारी॥ |
− | <br>जो संपदा नीच गृह सोहा। सो बिलोकि सुरनायक | + | <br>जो संपदा नीच गृह सोहा। सो बिलोकि सुरनायक मोहा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बसइ नगर जेहि लच्छ करि कपट नारि बर बेषु॥ |
− | <br>तेहि पुर कै सोभा कहत सकुचहिं सारद | + | <br>तेहि पुर कै सोभा कहत सकुचहिं सारद सेषु॥२८९॥ |
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− | <br>पहुँचे दूत राम पुर पावन। हरषे नगर बिलोकि | + | <br>पहुँचे दूत राम पुर पावन। हरषे नगर बिलोकि सुहावन॥ |
− | <br>भूप द्वार तिन्ह खबरि जनाई। दसरथ नृप सुनि लिए | + | <br>भूप द्वार तिन्ह खबरि जनाई। दसरथ नृप सुनि लिए बोलाई॥ |
− | <br>करि प्रनामु तिन्ह पाती दीन्ही। मुदित महीप आपु उठि | + | <br>करि प्रनामु तिन्ह पाती दीन्ही। मुदित महीप आपु उठि लीन्ही॥ |
− | <br>बारि बिलोचन बाचत पाँती। पुलक गात आई भरि | + | <br>बारि बिलोचन बाचत पाँती। पुलक गात आई भरि छाती॥ |
− | <br>रामु लखनु उर कर बर चीठी। रहि गए कहत न खाटी | + | <br>रामु लखनु उर कर बर चीठी। रहि गए कहत न खाटी मीठी॥ |
− | <br>पुनि धरि धीर पत्रिका बाँची। हरषी सभा बात सुनि | + | <br>पुनि धरि धीर पत्रिका बाँची। हरषी सभा बात सुनि साँची॥ |
− | <br>खेलत रहे तहाँ सुधि पाई। आए भरतु सहित हित | + | <br>खेलत रहे तहाँ सुधि पाई। आए भरतु सहित हित भाई॥ |
− | <br>पूछत अति सनेहँ सकुचाई। तात कहाँ तें पाती | + | <br>पूछत अति सनेहँ सकुचाई। तात कहाँ तें पाती आई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-कुसल प्रानप्रिय बंधु दोउ अहहिं कहहु केहिं देस। |
− | <br>सुनि सनेह साने बचन बाची बहुरि | + | <br>सुनि सनेह साने बचन बाची बहुरि नरेस॥२९०॥ |
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− | <br>सुनि पाती पुलके दोउ भ्राता। अधिक सनेहु समात न | + | <br>सुनि पाती पुलके दोउ भ्राता। अधिक सनेहु समात न गाता॥ |
− | <br>प्रीति पुनीत भरत कै देखी। सकल सभाँ सुखु लहेउ | + | <br>प्रीति पुनीत भरत कै देखी। सकल सभाँ सुखु लहेउ बिसेषी॥ |
− | <br>तब नृप दूत निकट बैठारे। मधुर मनोहर बचन | + | <br>तब नृप दूत निकट बैठारे। मधुर मनोहर बचन उचारे॥ |
− | <br>भैया कहहु कुसल दोउ बारे। तुम्ह नीकें निज नयन | + | <br>भैया कहहु कुसल दोउ बारे। तुम्ह नीकें निज नयन निहारे॥ |
− | <br>स्यामल गौर धरें धनु भाथा। बय किसोर कौसिक मुनि | + | <br>स्यामल गौर धरें धनु भाथा। बय किसोर कौसिक मुनि साथा॥ |
− | <br>पहिचानहु तुम्ह कहहु सुभाऊ। प्रेम बिबस पुनि पुनि कह | + | <br>पहिचानहु तुम्ह कहहु सुभाऊ। प्रेम बिबस पुनि पुनि कह राऊ॥ |
− | <br>जा दिन तें मुनि गए लवाई। तब तें आजु साँचि सुधि | + | <br>जा दिन तें मुनि गए लवाई। तब तें आजु साँचि सुधि पाई॥ |
− | <br>कहहु बिदेह कवन बिधि जाने। सुनि प्रिय बचन दूत | + | <br>कहहु बिदेह कवन बिधि जाने। सुनि प्रिय बचन दूत मुसकाने॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सुनहु महीपति मुकुट मनि तुम्ह सम धन्य न कोउ। |
− | <br>रामु लखनु जिन्ह के तनय बिस्व बिभूषन | + | <br>रामु लखनु जिन्ह के तनय बिस्व बिभूषन दोउ॥२९१॥ |
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− | <br>पूछन जोगु न तनय तुम्हारे। पुरुषसिंघ तिहु पुर | + | <br>पूछन जोगु न तनय तुम्हारे। पुरुषसिंघ तिहु पुर उजिआरे॥ |
− | <br>जिन्ह के जस प्रताप कें आगे। ससि मलीन रबि सीतल | + | <br>जिन्ह के जस प्रताप कें आगे। ससि मलीन रबि सीतल लागे॥ |
− | <br>तिन्ह कहँ कहिअ नाथ किमि चीन्हे। देखिअ रबि कि दीप कर | + | <br>तिन्ह कहँ कहिअ नाथ किमि चीन्हे। देखिअ रबि कि दीप कर लीन्हे॥ |
− | <br>सीय स्वयंबर भूप अनेका। समिटे सुभट एक तें | + | <br>सीय स्वयंबर भूप अनेका। समिटे सुभट एक तें एका॥ |
− | <br>संभु सरासनु काहुँ न टारा। हारे सकल बीर | + | <br>संभु सरासनु काहुँ न टारा। हारे सकल बीर बरिआरा॥ |
− | <br>तीनि लोक महँ जे भटमानी। सभ कै सकति संभु धनु | + | <br>तीनि लोक महँ जे भटमानी। सभ कै सकति संभु धनु भानी॥ |
− | <br>सकइ उठाइ सरासुर मेरू। सोउ हियँ हारि गयउ करि | + | <br>सकइ उठाइ सरासुर मेरू। सोउ हियँ हारि गयउ करि फेरू॥ |
− | <br>जेहि कौतुक सिवसैलु उठावा। सोउ तेहि सभाँ पराभउ | + | <br>जेहि कौतुक सिवसैलु उठावा। सोउ तेहि सभाँ पराभउ पावा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-तहाँ राम रघुबंस मनि सुनिअ महा महिपाल। |
− | <br>भंजेउ चाप प्रयास बिनु जिमि गज पंकज | + | <br>भंजेउ चाप प्रयास बिनु जिमि गज पंकज नाल॥२९२॥ |
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− | <br>सुनि सरोष भृगुनायकु आए। बहुत भाँति तिन्ह आँखि | + | <br>सुनि सरोष भृगुनायकु आए। बहुत भाँति तिन्ह आँखि देखाए॥ |
− | <br>देखि राम बलु निज धनु दीन्हा। करि बहु बिनय गवनु बन | + | <br>देखि राम बलु निज धनु दीन्हा। करि बहु बिनय गवनु बन कीन्हा॥ |
− | <br>राजन रामु अतुलबल जैसें। तेज निधान लखनु पुनि | + | <br>राजन रामु अतुलबल जैसें। तेज निधान लखनु पुनि तैसें॥ |
− | <br>कंपहि भूप बिलोकत जाकें। जिमि गज हरि किसोर के | + | <br>कंपहि भूप बिलोकत जाकें। जिमि गज हरि किसोर के ताकें॥ |
− | <br>देव देखि तव बालक दोऊ। अब न आँखि तर आवत | + | <br>देव देखि तव बालक दोऊ। अब न आँखि तर आवत कोऊ॥ |
− | <br>दूत बचन रचना प्रिय लागी। प्रेम प्रताप बीर रस | + | <br>दूत बचन रचना प्रिय लागी। प्रेम प्रताप बीर रस पागी॥ |
− | <br>सभा समेत राउ अनुरागे। दूतन्ह देन निछावरि | + | <br>सभा समेत राउ अनुरागे। दूतन्ह देन निछावरि लागे॥ |
− | <br>कहि अनीति ते मूदहिं काना। धरमु बिचारि सबहिं सुख | + | <br>कहि अनीति ते मूदहिं काना। धरमु बिचारि सबहिं सुख माना॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-तब उठि भूप बसिष्ठ कहुँ दीन्हि पत्रिका जाइ। |
− | <br>कथा सुनाई गुरहि सब सादर दूत | + | <br>कथा सुनाई गुरहि सब सादर दूत बोलाइ॥२९३॥ |
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− | <br>सुनि बोले गुर अति सुखु पाई। पुन्य पुरुष कहुँ महि सुख | + | <br>सुनि बोले गुर अति सुखु पाई। पुन्य पुरुष कहुँ महि सुख छाई॥ |
− | <br>जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं। जद्यपि ताहि कामना | + | <br>जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नाहीं॥ |
− | <br>तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं | + | <br>तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ॥ |
− | <br>तुम्ह गुर बिप्र धेनु सुर सेबी। तसि पुनीत कौसल्या | + | <br>तुम्ह गुर बिप्र धेनु सुर सेबी। तसि पुनीत कौसल्या देबी॥ |
− | <br>सुकृती तुम्ह समान जग माहीं। भयउ न है कोउ होनेउ | + | <br>सुकृती तुम्ह समान जग माहीं। भयउ न है कोउ होनेउ नाहीं॥ |
− | <br>तुम्ह ते अधिक पुन्य बड़ काकें। राजन राम सरिस सुत | + | <br>तुम्ह ते अधिक पुन्य बड़ काकें। राजन राम सरिस सुत जाकें॥ |
− | <br>बीर बिनीत धरम ब्रत धारी। गुन सागर बर बालक | + | <br>बीर बिनीत धरम ब्रत धारी। गुन सागर बर बालक चारी॥ |
− | <br>तुम्ह कहुँ सर्ब काल कल्याना। सजहु बरात बजाइ | + | <br>तुम्ह कहुँ सर्ब काल कल्याना। सजहु बरात बजाइ निसाना॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-चलहु बेगि सुनि गुर बचन भलेहिं नाथ सिरु नाइ। |
− | <br>भूपति गवने भवन तब दूतन्ह बासु | + | <br>भूपति गवने भवन तब दूतन्ह बासु देवाइ॥२९४॥ |
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− | <br>राजा सबु रनिवास बोलाई। जनक पत्रिका बाचि | + | <br>राजा सबु रनिवास बोलाई। जनक पत्रिका बाचि सुनाई॥ |
− | <br>सुनि संदेसु सकल हरषानीं। अपर कथा सब भूप | + | <br>सुनि संदेसु सकल हरषानीं। अपर कथा सब भूप बखानीं॥ |
− | <br>प्रेम प्रफुल्लित राजहिं रानी। मनहुँ सिखिनि सुनि बारिद | + | <br>प्रेम प्रफुल्लित राजहिं रानी। मनहुँ सिखिनि सुनि बारिद बनी॥ |
− | <br>मुदित असीस देहिं गुरु नारीं। अति आनंद मगन | + | <br>मुदित असीस देहिं गुरु नारीं। अति आनंद मगन महतारीं॥ |
− | <br>लेहिं परस्पर अति प्रिय पाती। हृदयँ लगाइ जुड़ावहिं | + | <br>लेहिं परस्पर अति प्रिय पाती। हृदयँ लगाइ जुड़ावहिं छाती॥ |
− | <br>राम लखन कै कीरति करनी। बारहिं बार भूपबर | + | <br>राम लखन कै कीरति करनी। बारहिं बार भूपबर बरनी॥ |
− | <br>मुनि प्रसादु कहि द्वार सिधाए। रानिन्ह तब महिदेव | + | <br>मुनि प्रसादु कहि द्वार सिधाए। रानिन्ह तब महिदेव बोलाए॥ |
− | <br>दिए दान आनंद समेता। चले बिप्रबर आसिष | + | <br>दिए दान आनंद समेता। चले बिप्रबर आसिष देता॥ |
− | <br> | + | <br>सो०-जाचक लिए हँकारि दीन्हि निछावरि कोटि बिधि। |
− | <br>चिरु जीवहुँ सुत चारि चक्रबर्ति दसरत्थ | + | <br>चिरु जीवहुँ सुत चारि चक्रबर्ति दसरत्थ के॥२९५॥ |
− | <br>कहत चले पहिरें पट नाना। हरषि हने गहगहे | + | <br>कहत चले पहिरें पट नाना। हरषि हने गहगहे निसाना॥ |
− | <br>समाचार सब लोगन्ह पाए। लागे घर घर होने | + | <br>समाचार सब लोगन्ह पाए। लागे घर घर होने बधाए॥ |
− | <br>भुवन चारि दस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर | + | <br>भुवन चारि दस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू॥ |
− | <br>सुनि सुभ कथा लोग अनुरागे। मग गृह गलीं सँवारन | + | <br>सुनि सुभ कथा लोग अनुरागे। मग गृह गलीं सँवारन लागे॥ |
− | <br>जद्यपि अवध सदैव सुहावनि। राम पुरी मंगलमय | + | <br>जद्यपि अवध सदैव सुहावनि। राम पुरी मंगलमय पावनि॥ |
− | <br>तदपि प्रीति कै प्रीति सुहाई। मंगल रचना रची | + | <br>तदपि प्रीति कै प्रीति सुहाई। मंगल रचना रची बनाई॥ |
− | <br>ध्वज पताक पट चामर चारु। छावा परम बिचित्र | + | <br>ध्वज पताक पट चामर चारु। छावा परम बिचित्र बजारू॥ |
− | <br>कनक कलस तोरन मनि जाला। हरद दूब दधि अच्छत | + | <br>कनक कलस तोरन मनि जाला। हरद दूब दधि अच्छत माला॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-मंगलमय निज निज भवन लोगन्ह रचे बनाइ। |
− | <br>बीथीं सीचीं चतुरसम चौकें चारु | + | <br>बीथीं सीचीं चतुरसम चौकें चारु पुराइ॥२९६॥ |
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− | <br>जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि। सजि नव सप्त सकल दुति | + | <br>जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि। सजि नव सप्त सकल दुति दामिनि॥ |
− | <br>बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि। निज सरुप रति मानु | + | <br>बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि। निज सरुप रति मानु बिमोचनि॥ |
− | <br>गावहिं मंगल मंजुल बानीं। सुनिकल रव कलकंठि | + | <br>गावहिं मंगल मंजुल बानीं। सुनिकल रव कलकंठि लजानीं॥ |
− | <br>भूप भवन किमि जाइ बखाना। बिस्व बिमोहन रचेउ | + | <br>भूप भवन किमि जाइ बखाना। बिस्व बिमोहन रचेउ बिताना॥ |
− | <br>मंगल द्रब्य मनोहर नाना। राजत बाजत बिपुल | + | <br>मंगल द्रब्य मनोहर नाना। राजत बाजत बिपुल निसाना॥ |
− | <br>कतहुँ बिरिद बंदी उच्चरहीं। कतहुँ बेद धुनि भूसुर | + | <br>कतहुँ बिरिद बंदी उच्चरहीं। कतहुँ बेद धुनि भूसुर करहीं॥ |
− | <br>गावहिं सुंदरि मंगल गीता। लै लै नामु रामु अरु | + | <br>गावहिं सुंदरि मंगल गीता। लै लै नामु रामु अरु सीता॥ |
− | <br>बहुत उछाहु भवनु अति थोरा। मानहुँ उमगि चला चहु | + | <br>बहुत उछाहु भवनु अति थोरा। मानहुँ उमगि चला चहु ओरा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सोभा दसरथ भवन कइ को कबि बरनै पार। |
− | <br>जहाँ सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह | + | <br>जहाँ सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह अवतार॥२९७॥ |
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− | <br>भूप भरत पुनि लिए बोलाई। हय गय स्यंदन साजहु | + | <br>भूप भरत पुनि लिए बोलाई। हय गय स्यंदन साजहु जाई॥ |
− | <br>चलहु बेगि रघुबीर बराता। सुनत पुलक पूरे दोउ | + | <br>चलहु बेगि रघुबीर बराता। सुनत पुलक पूरे दोउ भ्राता॥ |
− | <br>भरत सकल साहनी बोलाए। आयसु दीन्ह मुदित उठि | + | <br>भरत सकल साहनी बोलाए। आयसु दीन्ह मुदित उठि धाए॥ |
− | <br>रचि रुचि जीन तुरग तिन्ह साजे। बरन बरन बर बाजि | + | <br>रचि रुचि जीन तुरग तिन्ह साजे। बरन बरन बर बाजि बिराजे॥ |
− | <br>सुभग सकल सुठि चंचल करनी। अय इव जरत धरत पग | + | <br>सुभग सकल सुठि चंचल करनी। अय इव जरत धरत पग धरनी॥ |
− | <br>नाना जाति न जाहिं बखाने। निदरि पवनु जनु चहत | + | <br>नाना जाति न जाहिं बखाने। निदरि पवनु जनु चहत उड़ाने॥ |
− | <br>तिन्ह सब छयल भए असवारा। भरत सरिस बय | + | <br>तिन्ह सब छयल भए असवारा। भरत सरिस बय राजकुमारा॥ |
− | <br>सब सुंदर सब भूषनधारी। कर सर चाप तून कटि | + | <br>सब सुंदर सब भूषनधारी। कर सर चाप तून कटि भारी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०- छरे छबीले छयल सब सूर सुजान नबीन। |
− | <br>जुग पदचर असवार प्रति जे असिकला | + | <br>जुग पदचर असवार प्रति जे असिकला प्रबीन॥२९८॥ |
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− | <br>बाँधे बिरद बीर रन गाढ़े। निकसि भए पुर बाहेर | + | <br>बाँधे बिरद बीर रन गाढ़े। निकसि भए पुर बाहेर ठाढ़े॥ |
− | <br>फेरहिं चतुर तुरग गति नाना। हरषहिं सुनि सुनि पवन | + | <br>फेरहिं चतुर तुरग गति नाना। हरषहिं सुनि सुनि पवन निसाना॥ |
− | <br>रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाए। ध्वज पताक मनि भूषन | + | <br>रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाए। ध्वज पताक मनि भूषन लाए॥ |
− | <br>चवँर चारु किंकिन धुनि करही। भानु जान सोभा | + | <br>चवँर चारु किंकिन धुनि करही। भानु जान सोभा अपहरहीं॥ |
− | <br>सावँकरन अगनित हय होते। ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह | + | <br>सावँकरन अगनित हय होते। ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते॥ |
− | <br>सुंदर सकल अलंकृत सोहे। जिन्हहि बिलोकत मुनि मन | + | <br>सुंदर सकल अलंकृत सोहे। जिन्हहि बिलोकत मुनि मन मोहे॥ |
− | <br>जे जल चलहिं थलहि की नाई। टाप न बूड़ बेग | + | <br>जे जल चलहिं थलहि की नाई। टाप न बूड़ बेग अधिकाई॥ |
− | <br>अस्त्र सस्त्र सबु साजु बनाई। रथी सारथिन्ह लिए | + | <br>अस्त्र सस्त्र सबु साजु बनाई। रथी सारथिन्ह लिए बोलाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-चढ़ि चढ़ि रथ बाहेर नगर लागी जुरन बरात। |
− | <br>होत सगुन सुन्दर सबहि जो जेहि कारज | + | <br>होत सगुन सुन्दर सबहि जो जेहि कारज जात॥२९९॥ |
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− | <br>कलित करिबरन्हि परीं अँबारीं। कहि न जाहिं जेहि भाँति | + | <br>कलित करिबरन्हि परीं अँबारीं। कहि न जाहिं जेहि भाँति सँवारीं॥ |
− | <br>चले मत्तगज घंट बिराजी। मनहुँ सुभग सावन घन | + | <br>चले मत्तगज घंट बिराजी। मनहुँ सुभग सावन घन राजी॥ |
− | <br>बाहन अपर अनेक बिधाना। सिबिका सुभग सुखासन | + | <br>बाहन अपर अनेक बिधाना। सिबिका सुभग सुखासन जाना॥ |
− | <br>तिन्ह चढ़ि चले बिप्रबर बृन्दा। जनु तनु धरें सकल श्रुति | + | <br>तिन्ह चढ़ि चले बिप्रबर बृन्दा। जनु तनु धरें सकल श्रुति छंदा॥ |
− | <br>मागध सूत बंदि गुनगायक। चले जान चढ़ि जो जेहि | + | <br>मागध सूत बंदि गुनगायक। चले जान चढ़ि जो जेहि लायक॥ |
− | <br>बेसर ऊँट बृषभ बहु जाती। चले बस्तु भरि अगनित | + | <br>बेसर ऊँट बृषभ बहु जाती। चले बस्तु भरि अगनित भाँती॥ |
− | <br>कोटिन्ह काँवरि चले कहारा। बिबिध बस्तु को बरनै | + | <br>कोटिन्ह काँवरि चले कहारा। बिबिध बस्तु को बरनै पारा॥ |
− | <br>चले सकल सेवक समुदाई। निज निज साजु समाजु | + | <br>चले सकल सेवक समुदाई। निज निज साजु समाजु बनाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सब कें उर निर्भर हरषु पूरित पुलक सरीर। |
− | <br>कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनू दोउ | + | <br>कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनू दोउ बीर॥३००॥ |
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− | <br>गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु | + | <br>गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा॥ |
− | <br>निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न | + | <br>निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना॥ |
− | <br>महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान | + | <br>महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान पबारें॥ |
− | <br>चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिँएँ आरती मंगल | + | <br>चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिँएँ आरती मंगल थारी॥ |
− | <br>गावहिं गीत मनोहर नाना। अति आनंदु न जाइ | + | <br>गावहिं गीत मनोहर नाना। अति आनंदु न जाइ बखाना॥ |
− | <br>तब सुमंत्र दुइ स्पंदन साजी। जोते रबि हय निंदक | + | <br>तब सुमंत्र दुइ स्पंदन साजी। जोते रबि हय निंदक बाजी॥ |
− | <br>दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने। नहिं सारद पहिं जाहिं | + | <br>दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने। नहिं सारद पहिं जाहिं बखाने॥ |
− | <br>राज समाजु एक रथ साजा। दूसर तेज पुंज अति | + | <br>राज समाजु एक रथ साजा। दूसर तेज पुंज अति भ्राजा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-तेहिं रथ रुचिर बसिष्ठ कहुँ हरषि चढ़ाइ नरेसु। |
− | <br>आपु चढ़ेउ स्पंदन सुमिरि हर गुर गौरि | + | <br>आपु चढ़ेउ स्पंदन सुमिरि हर गुर गौरि गनेसु॥३०१॥ |
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− | <br>सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें। सुर गुर संग पुरंदर | + | <br>सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें। सुर गुर संग पुरंदर जैसें॥ |
− | <br>करि कुल रीति बेद बिधि राऊ। देखि सबहि सब भाँति | + | <br>करि कुल रीति बेद बिधि राऊ। देखि सबहि सब भाँति बनाऊ॥ |
− | <br>सुमिरि रामु गुर आयसु पाई। चले महीपति संख | + | <br>सुमिरि रामु गुर आयसु पाई। चले महीपति संख बजाई॥ |
− | <br>हरषे बिबुध बिलोकि बराता। बरषहिं सुमन सुमंगल | + | <br>हरषे बिबुध बिलोकि बराता। बरषहिं सुमन सुमंगल दाता॥ |
− | <br>भयउ कोलाहल हय गय गाजे। ब्योम बरात बाजने | + | <br>भयउ कोलाहल हय गय गाजे। ब्योम बरात बाजने बाजे॥ |
− | <br>सुर नर नारि सुमंगल गाई। सरस राग बाजहिं | + | <br>सुर नर नारि सुमंगल गाई। सरस राग बाजहिं सहनाई॥ |
− | <br>घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं। सरव करहिं पाइक | + | <br>घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं। सरव करहिं पाइक फहराहीं॥ |
<br>करहिं बिदूषक कौतुक नाना। हास कुसल कल गान सुजाना । | <br>करहिं बिदूषक कौतुक नाना। हास कुसल कल गान सुजाना । | ||
− | <br> | + | <br>दो०-तुरग नचावहिं कुँअर बर अकनि मृदंग निसान॥ |
− | <br>नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल | + | <br>नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान॥३०२॥ |
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− | <br>बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुंदर | + | <br>बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुंदर सुभदाता॥ |
− | <br>चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मंगल कहि | + | <br>चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मंगल कहि देई॥ |
− | <br>दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूँ | + | <br>दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूँ पावा॥ |
− | <br>सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सवाल आव बर | + | <br>सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सवाल आव बर नारी॥ |
− | <br>लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा। सुरभी सनमुख सिसुहि | + | <br>लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा। सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा॥ |
− | <br>मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मंगल गन जनु दीन्हि | + | <br>मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मंगल गन जनु दीन्हि देखाई॥ |
− | <br>छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर | + | <br>छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी॥ |
− | <br>सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र | + | <br>सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-मंगलमय कल्यानमय अभिमत फल दातार। |
− | <br>जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक | + | <br>जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक बार॥३०३॥ |
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− | <br>मंगल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुंदर सुत | + | <br>मंगल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें॥ |
− | <br>राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु | + | <br>राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता॥ |
− | <br>सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरंचि हम | + | <br>सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे॥ |
− | <br>एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने | + | <br>एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने निसाना॥ |
− | <br>आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए | + | <br>आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए सेतू॥ |
− | <br>बीच बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस संपदा | + | <br>बीच बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस संपदा छाए॥ |
− | <br>असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन | + | <br>असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन भाए॥ |
− | <br>नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मंदिर | + | <br>नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मंदिर भूले॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान। |
− | <br>सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले | + | <br>सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान॥३०४॥ |
<br>मासपारायण,दसवाँ विश्राम | <br>मासपारायण,दसवाँ विश्राम | ||
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− | <br>कनक कलस भरि कोपर थारा। भाजन ललित अनेक | + | <br>कनक कलस भरि कोपर थारा। भाजन ललित अनेक प्रकारा॥ |
− | <br>भरे सुधासम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं | + | <br>भरे सुधासम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं बखाने॥ |
− | <br>फल अनेक बर बस्तु सुहाईं। हरषि भेंट हित भूप | + | <br>फल अनेक बर बस्तु सुहाईं। हरषि भेंट हित भूप पठाईं॥ |
− | <br>भूषन बसन महामनि नाना। खग मृग हय गय बहुबिधि | + | <br>भूषन बसन महामनि नाना। खग मृग हय गय बहुबिधि जाना॥ |
− | <br>मंगल सगुन सुगंध सुहाए। बहुत भाँति महिपाल | + | <br>मंगल सगुन सुगंध सुहाए। बहुत भाँति महिपाल पठाए॥ |
− | <br>दधि चिउरा उपहार अपारा। भरि भरि काँवरि चले | + | <br>दधि चिउरा उपहार अपारा। भरि भरि काँवरि चले कहारा॥ |
− | <br>अगवानन्ह जब दीखि बराता।उर आनंदु पुलक भर | + | <br>अगवानन्ह जब दीखि बराता।उर आनंदु पुलक भर गाता॥ |
− | <br>देखि बनाव सहित अगवाना। मुदित बरातिन्ह हने | + | <br>देखि बनाव सहित अगवाना। मुदित बरातिन्ह हने निसाना॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-हरषि परसपर मिलन हित कछुक चले बगमेल। |
− | <br>जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत बिहाइ | + | <br>जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल॥३०५॥ |
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− | <br>बरषि सुमन सुर सुंदरि गावहिं। मुदित देव दुंदुभीं | + | <br>बरषि सुमन सुर सुंदरि गावहिं। मुदित देव दुंदुभीं बजावहिं॥ |
− | <br>बस्तु सकल राखीं नृप आगें। बिनय कीन्ह तिन्ह अति | + | <br>बस्तु सकल राखीं नृप आगें। बिनय कीन्ह तिन्ह अति अनुरागें॥ |
− | <br>प्रेम समेत रायँ सबु लीन्हा। भै बकसीस जाचकन्हि | + | <br>प्रेम समेत रायँ सबु लीन्हा। भै बकसीस जाचकन्हि दीन्हा॥ |
− | <br>करि पूजा मान्यता बड़ाई। जनवासे कहुँ चले | + | <br>करि पूजा मान्यता बड़ाई। जनवासे कहुँ चले लवाई॥ |
− | <br>बसन बिचित्र पाँवड़े परहीं। देखि धनहु धन मदु | + | <br>बसन बिचित्र पाँवड़े परहीं। देखि धनहु धन मदु परिहरहीं॥ |
− | <br>अति सुंदर दीन्हेउ जनवासा। जहँ सब कहुँ सब भाँति | + | <br>अति सुंदर दीन्हेउ जनवासा। जहँ सब कहुँ सब भाँति सुपासा॥ |
− | <br>जानी सियँ बरात पुर आई। कछु निज महिमा प्रगटि | + | <br>जानी सियँ बरात पुर आई। कछु निज महिमा प्रगटि जनाई॥ |
− | <br>हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाई। भूप पहुनई करन | + | <br>हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाई। भूप पहुनई करन पठाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सिधि सब सिय आयसु अकनि गईं जहाँ जनवास। |
− | <br>लिएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग | + | <br>लिएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग बिलास॥३०६॥ |
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− | <br>निज निज बास बिलोकि बराती। सुर सुख सकल सुलभ सब | + | <br>निज निज बास बिलोकि बराती। सुर सुख सकल सुलभ सब भाँती॥ |
− | <br>बिभव भेद कछु कोउ न जाना। सकल जनक कर करहिं | + | <br>बिभव भेद कछु कोउ न जाना। सकल जनक कर करहिं बखाना॥ |
− | <br>सिय महिमा रघुनायक जानी। हरषे हृदयँ हेतु | + | <br>सिय महिमा रघुनायक जानी। हरषे हृदयँ हेतु पहिचानी॥ |
− | <br>पितु आगमनु सुनत दोउ भाई। हृदयँ न अति आनंदु | + | <br>पितु आगमनु सुनत दोउ भाई। हृदयँ न अति आनंदु अमाई॥ |
− | <br>सकुचन्ह कहि न सकत गुरु पाहीं। पितु दरसन लालचु मन | + | <br>सकुचन्ह कहि न सकत गुरु पाहीं। पितु दरसन लालचु मन माहीं॥ |
− | <br>बिस्वामित्र बिनय बड़ि देखी। उपजा उर संतोषु | + | <br>बिस्वामित्र बिनय बड़ि देखी। उपजा उर संतोषु बिसेषी॥ |
− | <br>हरषि बंधु दोउ हृदयँ लगाए। पुलक अंग अंबक जल | + | <br>हरषि बंधु दोउ हृदयँ लगाए। पुलक अंग अंबक जल छाए॥ |
− | <br>चले जहाँ दसरथु जनवासे। मनहुँ सरोबर तकेउ | + | <br>चले जहाँ दसरथु जनवासे। मनहुँ सरोबर तकेउ पिआसे॥ |
− | <br> | + | <br>दो०- भूप बिलोके जबहिं मुनि आवत सुतन्ह समेत। |
− | <br>उठे हरषि सुखसिंधु महुँ चले थाह सी | + | <br>उठे हरषि सुखसिंधु महुँ चले थाह सी लेत॥३०७॥ |
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− | <br>मुनिहि दंडवत कीन्ह महीसा। बार बार पद रज धरि | + | <br>मुनिहि दंडवत कीन्ह महीसा। बार बार पद रज धरि सीसा॥ |
− | <br>कौसिक राउ लिये उर लाई। कहि असीस पूछी | + | <br>कौसिक राउ लिये उर लाई। कहि असीस पूछी कुसलाई॥ |
− | <br>पुनि दंडवत करत दोउ भाई। देखि नृपति उर सुखु न | + | <br>पुनि दंडवत करत दोउ भाई। देखि नृपति उर सुखु न समाई॥ |
− | <br>सुत हियँ लाइ दुसह दुख मेटे। मृतक सरीर प्रान जनु | + | <br>सुत हियँ लाइ दुसह दुख मेटे। मृतक सरीर प्रान जनु भेंटे॥ |
− | <br>पुनि बसिष्ठ पद सिर तिन्ह नाए। प्रेम मुदित मुनिबर उर | + | <br>पुनि बसिष्ठ पद सिर तिन्ह नाए। प्रेम मुदित मुनिबर उर लाए॥ |
− | <br>बिप्र बृंद बंदे दुहुँ भाईं। मन भावती असीसें | + | <br>बिप्र बृंद बंदे दुहुँ भाईं। मन भावती असीसें पाईं॥ |
− | <br>भरत सहानुज कीन्ह प्रनामा। लिए उठाइ लाइ उर | + | <br>भरत सहानुज कीन्ह प्रनामा। लिए उठाइ लाइ उर रामा॥ |
− | <br>हरषे लखन देखि दोउ भ्राता। मिले प्रेम परिपूरित | + | <br>हरषे लखन देखि दोउ भ्राता। मिले प्रेम परिपूरित गाता॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-पुरजन परिजन जातिजन जाचक मंत्री मीत। |
− | <br>मिले जथाबिधि सबहि प्रभु परम कृपाल | + | <br>मिले जथाबिधि सबहि प्रभु परम कृपाल बिनीत॥३०८॥ |
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− | <br>रामहि देखि बरात जुड़ानी। प्रीति कि रीति न जाति | + | <br>रामहि देखि बरात जुड़ानी। प्रीति कि रीति न जाति बखानी॥ |
− | <br>नृप समीप सोहहिं सुत चारी। जनु धन धरमादिक | + | <br>नृप समीप सोहहिं सुत चारी। जनु धन धरमादिक तनुधारी॥ |
− | <br>सुतन्ह समेत दसरथहि देखी। मुदित नगर नर नारि | + | <br>सुतन्ह समेत दसरथहि देखी। मुदित नगर नर नारि बिसेषी॥ |
− | <br>सुमन बरिसि सुर हनहिं निसाना। नाकनटीं नाचहिं करि | + | <br>सुमन बरिसि सुर हनहिं निसाना। नाकनटीं नाचहिं करि गाना॥ |
− | <br>सतानंद अरु बिप्र सचिव गन। मागध सूत बिदुष | + | <br>सतानंद अरु बिप्र सचिव गन। मागध सूत बिदुष बंदीजन॥ |
− | <br>सहित बरात राउ सनमाना। आयसु मागि फिरे | + | <br>सहित बरात राउ सनमाना। आयसु मागि फिरे अगवाना॥ |
− | <br>प्रथम बरात लगन तें आई। तातें पुर प्रमोदु | + | <br>प्रथम बरात लगन तें आई। तातें पुर प्रमोदु अधिकाई॥ |
− | <br>ब्रह्मानंदु लोग सब लहहीं। बढ़हुँ दिवस निसि बिधि सन | + | <br>ब्रह्मानंदु लोग सब लहहीं। बढ़हुँ दिवस निसि बिधि सन कहहीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-रामु सीय सोभा अवधि सुकृत अवधि दोउ राज। |
− | <br>जहँ जहँ पुरजन कहहिं अस मिलि नर नारि | + | <br>जहँ जहँ पुरजन कहहिं अस मिलि नर नारि समाज॥।३०९॥ |
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− | <br>जनक सुकृत मूरति बैदेही। दसरथ सुकृत रामु धरें | + | <br>जनक सुकृत मूरति बैदेही। दसरथ सुकृत रामु धरें देही॥ |
− | <br>इन्ह सम काँहु न सिव अवराधे। काहिँ न इन्ह समान फल | + | <br>इन्ह सम काँहु न सिव अवराधे। काहिँ न इन्ह समान फल लाधे॥ |
− | <br>इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं। है नहिं कतहूँ होनेउ | + | <br>इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं। है नहिं कतहूँ होनेउ नाहीं॥ |
− | <br>हम सब सकल सुकृत कै रासी। भए जग जनमि जनकपुर | + | <br>हम सब सकल सुकृत कै रासी। भए जग जनमि जनकपुर बासी॥ |
− | <br>जिन्ह जानकी राम छबि देखी। को सुकृती हम सरिस | + | <br>जिन्ह जानकी राम छबि देखी। को सुकृती हम सरिस बिसेषी॥ |
− | <br>पुनि देखब रघुबीर बिआहू। लेब भली बिधि लोचन | + | <br>पुनि देखब रघुबीर बिआहू। लेब भली बिधि लोचन लाहू॥ |
− | <br>कहहिं परसपर कोकिलबयनीं। एहि बिआहँ बड़ लाभु | + | <br>कहहिं परसपर कोकिलबयनीं। एहि बिआहँ बड़ लाभु सुनयनीं॥ |
− | <br>बड़ें भाग बिधि बात बनाई। नयन अतिथि होइहहिं दोउ | + | <br>बड़ें भाग बिधि बात बनाई। नयन अतिथि होइहहिं दोउ भाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बारहिं बार सनेह बस जनक बोलाउब सीय। |
− | <br>लेन आइहहिं बंधु दोउ कोटि काम | + | <br>लेन आइहहिं बंधु दोउ कोटि काम कमनीय॥३१०॥ |
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− | <br>बिबिध भाँति होइहि पहुनाई। प्रिय न काहि अस सासुर | + | <br>बिबिध भाँति होइहि पहुनाई। प्रिय न काहि अस सासुर माई॥ |
− | <br>तब तब राम लखनहि निहारी। होइहहिं सब पुर लोग | + | <br>तब तब राम लखनहि निहारी। होइहहिं सब पुर लोग सुखारी॥ |
− | <br>सखि जस राम लखनकर जोटा। तैसेइ भूप संग दुइ | + | <br>सखि जस राम लखनकर जोटा। तैसेइ भूप संग दुइ ढोटा॥ |
− | <br>स्याम गौर सब अंग सुहाए। ते सब कहहिं देखि जे | + | <br>स्याम गौर सब अंग सुहाए। ते सब कहहिं देखि जे आए॥ |
− | <br>कहा एक मैं आजु निहारे। जनु बिरंचि निज हाथ | + | <br>कहा एक मैं आजु निहारे। जनु बिरंचि निज हाथ सँवारे॥ |
− | <br>भरतु रामही की अनुहारी। सहसा लखि न सकहिं नर | + | <br>भरतु रामही की अनुहारी। सहसा लखि न सकहिं नर नारी॥ |
− | <br>लखनु सत्रुसूदनु एकरूपा। नख सिख ते सब अंग | + | <br>लखनु सत्रुसूदनु एकरूपा। नख सिख ते सब अंग अनूपा॥ |
− | <br>मन भावहिं मुख बरनि न जाहीं। उपमा कहुँ त्रिभुवन कोउ | + | <br>मन भावहिं मुख बरनि न जाहीं। उपमा कहुँ त्रिभुवन कोउ नाहीं॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-उपमा न कोउ कह दास तुलसी कतहुँ कबि कोबिद कहैं। |
− | <br>बल बिनय बिद्या सील सोभा सिंधु इन्ह से एइ | + | <br>बल बिनय बिद्या सील सोभा सिंधु इन्ह से एइ अहैं॥ |
− | <br>पुर नारि सकल पसारि अंचल बिधिहि बचन | + | <br>पुर नारि सकल पसारि अंचल बिधिहि बचन सुनावहीं॥ |
− | <br>ब्याहिअहुँ चारिउ भाइ एहिं पुर हम सुमंगल | + | <br>ब्याहिअहुँ चारिउ भाइ एहिं पुर हम सुमंगल गावहीं॥ |
− | <br> | + | <br>सो०-कहहिं परस्पर नारि बारि बिलोचन पुलक तन। |
− | <br>सखि सबु करब पुरारि पुन्य पयोनिधि भूप | + | <br>सखि सबु करब पुरारि पुन्य पयोनिधि भूप दोउ॥३११॥ |
− | <br>एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं। आनँद उमगि उमगि उर | + | <br>एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं। आनँद उमगि उमगि उर भरहीं॥ |
− | <br>जे नृप सीय स्वयंबर आए। देखि बंधु सब तिन्ह सुख | + | <br>जे नृप सीय स्वयंबर आए। देखि बंधु सब तिन्ह सुख पाए॥ |
− | <br>कहत राम जसु बिसद बिसाला। निज निज भवन गए | + | <br>कहत राम जसु बिसद बिसाला। निज निज भवन गए महिपाला॥ |
− | <br>गए बीति कुछ दिन एहि भाँती। प्रमुदित पुरजन सकल | + | <br>गए बीति कुछ दिन एहि भाँती। प्रमुदित पुरजन सकल बराती॥ |
− | <br>मंगल मूल लगन दिनु आवा। हिम रितु अगहनु मासु | + | <br>मंगल मूल लगन दिनु आवा। हिम रितु अगहनु मासु सुहावा॥ |
− | <br>ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू। लगन सोधि बिधि कीन्ह | + | <br>ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू। लगन सोधि बिधि कीन्ह बिचारू॥ |
− | <br>पठै दीन्हि नारद सन सोई। गनी जनक के गनकन्ह | + | <br>पठै दीन्हि नारद सन सोई। गनी जनक के गनकन्ह जोई॥ |
− | <br>सुनी सकल लोगन्ह यह बाता। कहहिं जोतिषी आहिं | + | <br>सुनी सकल लोगन्ह यह बाता। कहहिं जोतिषी आहिं बिधाता॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-धेनुधूरि बेला बिमल सकल सुमंगल मूल। |
− | <br>बिप्रन्ह कहेउ बिदेह सन जानि सगुन | + | <br>बिप्रन्ह कहेउ बिदेह सन जानि सगुन अनुकुल॥३१२॥ |
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− | <br>उपरोहितहि कहेउ नरनाहा। अब बिलंब कर कारनु | + | <br>उपरोहितहि कहेउ नरनाहा। अब बिलंब कर कारनु काहा॥ |
− | <br>सतानंद तब सचिव बोलाए। मंगल सकल साजि सब | + | <br>सतानंद तब सचिव बोलाए। मंगल सकल साजि सब ल्याए॥ |
− | <br>संख निसान पनव बहु बाजे। मंगल कलस सगुन सुभ | + | <br>संख निसान पनव बहु बाजे। मंगल कलस सगुन सुभ साजे॥ |
− | <br>सुभग सुआसिनि गावहिं गीता। करहिं बेद धुनि बिप्र | + | <br>सुभग सुआसिनि गावहिं गीता। करहिं बेद धुनि बिप्र पुनीता॥ |
− | <br>लेन चले सादर एहि भाँती। गए जहाँ जनवास | + | <br>लेन चले सादर एहि भाँती। गए जहाँ जनवास बराती॥ |
− | <br>कोसलपति कर देखि समाजू। अति लघु लाग तिन्हहि | + | <br>कोसलपति कर देखि समाजू। अति लघु लाग तिन्हहि सुरराजू॥ |
− | <br>भयउ समउ अब धारिअ पाऊ। यह सुनि परा निसानहिं | + | <br>भयउ समउ अब धारिअ पाऊ। यह सुनि परा निसानहिं घाऊ॥ |
− | <br>गुरहि पूछि करि कुल बिधि राजा। चले संग मुनि साधु | + | <br>गुरहि पूछि करि कुल बिधि राजा। चले संग मुनि साधु समाजा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-भाग्य बिभव अवधेस कर देखि देव ब्रह्मादि। |
− | <br>लगे सराहन सहस मुख जानि जनम निज | + | <br>लगे सराहन सहस मुख जानि जनम निज बादि॥३१३॥ |
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− | <br>सुरन्ह सुमंगल अवसरु जाना। बरषहिं सुमन बजाइ | + | <br>सुरन्ह सुमंगल अवसरु जाना। बरषहिं सुमन बजाइ निसाना॥ |
− | <br>सिव ब्रह्मादिक बिबुध बरूथा। चढ़े बिमानन्हि नाना | + | <br>सिव ब्रह्मादिक बिबुध बरूथा। चढ़े बिमानन्हि नाना जूथा॥ |
− | <br>प्रेम पुलक तन हृदयँ उछाहू। चले बिलोकन राम | + | <br>प्रेम पुलक तन हृदयँ उछाहू। चले बिलोकन राम बिआहू॥ |
− | <br>देखि जनकपुरु सुर अनुरागे। निज निज लोक सबहिं लघु | + | <br>देखि जनकपुरु सुर अनुरागे। निज निज लोक सबहिं लघु लागे॥ |
− | <br>चितवहिं चकित बिचित्र बिताना। रचना सकल अलौकिक | + | <br>चितवहिं चकित बिचित्र बिताना। रचना सकल अलौकिक नाना॥ |
− | <br>नगर नारि नर रूप निधाना। सुघर सुधरम सुसील | + | <br>नगर नारि नर रूप निधाना। सुघर सुधरम सुसील सुजाना॥ |
− | <br>तिन्हहि देखि सब सुर सुरनारीं। भए नखत जनु बिधु | + | <br>तिन्हहि देखि सब सुर सुरनारीं। भए नखत जनु बिधु उजिआरीं॥ |
− | <br>बिधिहि भयह आचरजु बिसेषी। निज करनी कछु कतहुँ न | + | <br>बिधिहि भयह आचरजु बिसेषी। निज करनी कछु कतहुँ न देखी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सिवँ समुझाए देव सब जनि आचरज भुलाहु। |
− | <br>हृदयँ बिचारहु धीर धरि सिय रघुबीर | + | <br>हृदयँ बिचारहु धीर धरि सिय रघुबीर बिआहु॥३१४॥ |
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− | <br>जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं। सकल अमंगल मूल | + | <br>जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं। सकल अमंगल मूल नसाहीं॥ |
− | <br>करतल होहिं पदारथ चारी। तेइ सिय रामु कहेउ | + | <br>करतल होहिं पदारथ चारी। तेइ सिय रामु कहेउ कामारी॥ |
− | <br>एहि बिधि संभु सुरन्ह समुझावा। पुनि आगें बर बसह | + | <br>एहि बिधि संभु सुरन्ह समुझावा। पुनि आगें बर बसह चलावा॥ |
− | <br>देवन्ह देखे दसरथु जाता। महामोद मन पुलकित | + | <br>देवन्ह देखे दसरथु जाता। महामोद मन पुलकित गाता॥ |
− | <br>साधु समाज संग महिदेवा। जनु तनु धरें करहिं सुख | + | <br>साधु समाज संग महिदेवा। जनु तनु धरें करहिं सुख सेवा॥ |
− | <br>सोहत साथ सुभग सुत चारी। जनु अपबरग सकल | + | <br>सोहत साथ सुभग सुत चारी। जनु अपबरग सकल तनुधारी॥ |
− | <br>मरकत कनक बरन बर जोरी। देखि सुरन्ह भै प्रीति न | + | <br>मरकत कनक बरन बर जोरी। देखि सुरन्ह भै प्रीति न थोरी॥ |
− | <br>पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे। नृपहि सराहि सुमन तिन्ह | + | <br>पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे। नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि। |
− | <br>पुलक गात लोचन सजल उमा समेत | + | <br>पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि॥३१५॥ |
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− | <br>केकि कंठ दुति स्यामल अंगा। तड़ित बिनिंदक बसन | + | <br>केकि कंठ दुति स्यामल अंगा। तड़ित बिनिंदक बसन सुरंगा॥ |
− | <br>ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए। मंगल सब सब भाँति | + | <br>ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए। मंगल सब सब भाँति सुहाए॥ |
− | <br>सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन। नयन नवल राजीव | + | <br>सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन। नयन नवल राजीव लजावन॥ |
− | <br>सकल अलौकिक सुंदरताई। कहि न जाइ मनहीं मन | + | <br>सकल अलौकिक सुंदरताई। कहि न जाइ मनहीं मन भाई॥ |
− | <br>बंधु मनोहर सोहहिं संगा। जात नचावत चपल | + | <br>बंधु मनोहर सोहहिं संगा। जात नचावत चपल तुरंगा॥ |
− | <br>राजकुअँर बर बाजि देखावहिं। बंस प्रसंसक बिरिद | + | <br>राजकुअँर बर बाजि देखावहिं। बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं॥ |
− | <br>जेहि तुरंग पर रामु बिराजे। गति बिलोकि खगनायकु | + | <br>जेहि तुरंग पर रामु बिराजे। गति बिलोकि खगनायकु लाजे॥ |
− | <br>कहि न जाइ सब भाँति सुहावा। बाजि बेषु जनु काम | + | <br>कहि न जाइ सब भाँति सुहावा। बाजि बेषु जनु काम बनावा॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-जनु बाजि बेषु बनाइ मनसिजु राम हित अति सोहई। |
− | <br>आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन | + | <br>आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई॥ |
<br>जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे। | <br>जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे। | ||
− | <br>किंकिनि ललाम लगामु ललित बिलोकि सुर नर मुनि | + | <br>किंकिनि ललाम लगामु ललित बिलोकि सुर नर मुनि ठगे॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-प्रभु मनसहिं लयलीन मनु चलत बाजि छबि पाव। |
− | <br>भूषित उड़गन तड़ित घनु जनु बर बरहि | + | <br>भूषित उड़गन तड़ित घनु जनु बर बरहि नचाव॥३१६॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>जेहिं बर बाजि रामु असवारा। तेहि सारदउ न बरनै | + | <br>जेहिं बर बाजि रामु असवारा। तेहि सारदउ न बरनै पारा॥ |
− | <br>संकरु राम रूप अनुरागे। नयन पंचदस अति प्रिय | + | <br>संकरु राम रूप अनुरागे। नयन पंचदस अति प्रिय लागे॥ |
− | <br>हरि हित सहित रामु जब जोहे। रमा समेत रमापति | + | <br>हरि हित सहित रामु जब जोहे। रमा समेत रमापति मोहे॥ |
− | <br>निरखि राम छबि बिधि हरषाने। आठइ नयन जानि | + | <br>निरखि राम छबि बिधि हरषाने। आठइ नयन जानि पछिताने॥ |
− | <br>सुर सेनप उर बहुत उछाहू। बिधि ते डेवढ़ लोचन | + | <br>सुर सेनप उर बहुत उछाहू। बिधि ते डेवढ़ लोचन लाहू॥ |
− | <br>रामहि चितव सुरेस सुजाना। गौतम श्रापु परम हित | + | <br>रामहि चितव सुरेस सुजाना। गौतम श्रापु परम हित माना॥ |
− | <br>देव सकल सुरपतिहि सिहाहीं। आजु पुरंदर सम कोउ | + | <br>देव सकल सुरपतिहि सिहाहीं। आजु पुरंदर सम कोउ नाहीं॥ |
− | <br>मुदित देवगन रामहि देखी। नृपसमाज दुहुँ हरषु | + | <br>मुदित देवगन रामहि देखी। नृपसमाज दुहुँ हरषु बिसेषी॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-अति हरषु राजसमाज दुहु दिसि दुंदुभीं बाजहिं घनी। |
− | <br>बरषहिं सुमन सुर हरषि कहि जय जयति जय | + | <br>बरषहिं सुमन सुर हरषि कहि जय जयति जय रघुकुलमनी॥ |
<br>एहि भाँति जानि बरात आवत बाजने बहु बाजहीं। | <br>एहि भाँति जानि बरात आवत बाजने बहु बाजहीं। | ||
− | <br>रानि सुआसिनि बोलि परिछनि हेतु मंगल | + | <br>रानि सुआसिनि बोलि परिछनि हेतु मंगल साजहीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सजि आरती अनेक बिधि मंगल सकल सँवारि। |
− | <br>चलीं मुदित परिछनि करन गजगामिनि बर | + | <br>चलीं मुदित परिछनि करन गजगामिनि बर नारि॥३१७॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>बिधुबदनीं सब सब मृगलोचनि। सब निज तन छबि रति मदु | + | <br>बिधुबदनीं सब सब मृगलोचनि। सब निज तन छबि रति मदु मोचनि॥ |
− | <br>पहिरें बरन बरन बर चीरा। सकल बिभूषन सजें | + | <br>पहिरें बरन बरन बर चीरा। सकल बिभूषन सजें सरीरा॥ |
− | <br>सकल सुमंगल अंग बनाएँ। करहिं गान कलकंठि | + | <br>सकल सुमंगल अंग बनाएँ। करहिं गान कलकंठि लजाएँ॥ |
− | <br>कंकन किंकिनि नूपुर बाजहिं। चालि बिलोकि काम गज | + | <br>कंकन किंकिनि नूपुर बाजहिं। चालि बिलोकि काम गज लाजहिं॥ |
− | <br>बाजहिं बाजने बिबिध प्रकारा। नभ अरु नगर | + | <br>बाजहिं बाजने बिबिध प्रकारा। नभ अरु नगर सुमंगलचारा॥ |
− | <br>सची सारदा रमा भवानी। जे सुरतिय सुचि सहज | + | <br>सची सारदा रमा भवानी। जे सुरतिय सुचि सहज सयानी॥ |
− | <br>कपट नारि बर बेष बनाई। मिलीं सकल रनिवासहिं | + | <br>कपट नारि बर बेष बनाई। मिलीं सकल रनिवासहिं जाई॥ |
− | <br>करहिं गान कल मंगल बानीं। हरष बिबस सब काहुँ न | + | <br>करहिं गान कल मंगल बानीं। हरष बिबस सब काहुँ न जानी॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-को जान केहि आनंद बस सब ब्रह्मु बर परिछन चली। |
− | <br>कल गान मधुर निसान बरषहिं सुमन सुर सोभा | + | <br>कल गान मधुर निसान बरषहिं सुमन सुर सोभा भली॥ |
− | <br>आनंदकंदु बिलोकि दूलहु सकल हियँ हरषित | + | <br>आनंदकंदु बिलोकि दूलहु सकल हियँ हरषित भई॥ |
− | <br>अंभोज अंबक अंबु उमगि सुअंग पुलकावलि | + | <br>अंभोज अंबक अंबु उमगि सुअंग पुलकावलि छई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-जो सुख भा सिय मातु मन देखि राम बर बेषु। |
− | <br>सो न सकहिं कहि कलप सत सहस सारदा | + | <br>सो न सकहिं कहि कलप सत सहस सारदा सेषु॥३१८॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
<br> | <br> | ||
− | <br>नयन नीरु हटि मंगल जानी। परिछनि करहिं मुदित मन | + | <br>नयन नीरु हटि मंगल जानी। परिछनि करहिं मुदित मन रानी॥ |
− | <br>बेद बिहित अरु कुल आचारू। कीन्ह भली बिधि सब | + | <br>बेद बिहित अरु कुल आचारू। कीन्ह भली बिधि सब ब्यवहारू॥ |
− | <br>पंच सबद धुनि मंगल गाना। पट पाँवड़े परहिं बिधि | + | <br>पंच सबद धुनि मंगल गाना। पट पाँवड़े परहिं बिधि नाना॥ |
− | <br>करि आरती अरघु तिन्ह दीन्हा। राम गमनु मंडप तब | + | <br>करि आरती अरघु तिन्ह दीन्हा। राम गमनु मंडप तब कीन्हा॥ |
− | <br>दसरथु सहित समाज बिराजे। बिभव बिलोकि लोकपति | + | <br>दसरथु सहित समाज बिराजे। बिभव बिलोकि लोकपति लाजे॥ |
− | <br>समयँ समयँ सुर बरषहिं फूला। सांति पढ़हिं महिसुर | + | <br>समयँ समयँ सुर बरषहिं फूला। सांति पढ़हिं महिसुर अनुकूला॥ |
− | <br>नभ अरु नगर कोलाहल होई। आपनि पर कछु सुनइ न | + | <br>नभ अरु नगर कोलाहल होई। आपनि पर कछु सुनइ न कोई॥ |
− | <br>एहि बिधि रामु मंडपहिं आए। अरघु देइ आसन | + | <br>एहि बिधि रामु मंडपहिं आए। अरघु देइ आसन बैठाए॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-बैठारि आसन आरती करि निरखि बरु सुखु पावहीं॥ |
− | <br>मनि बसन भूषन भूरि वारहिं नारि मंगल | + | <br>मनि बसन भूषन भूरि वारहिं नारि मंगल गावहीं॥ |
<br>ब्रह्मादि सुरबर बिप्र बेष बनाइ कौतुक देखहीं। | <br>ब्रह्मादि सुरबर बिप्र बेष बनाइ कौतुक देखहीं। | ||
− | <br>अवलोकि रघुकुल कमल रबि छबि सुफल जीवन | + | <br>अवलोकि रघुकुल कमल रबि छबि सुफल जीवन लेखहीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-नाऊ बारी भाट नट राम निछावरि पाइ। |
− | <br>मुदित असीसहिं नाइ सिर हरषु न हृदयँ | + | <br>मुदित असीसहिं नाइ सिर हरषु न हृदयँ समाइ॥३१९॥ |
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− | <br>मिले जनकु दसरथु अति प्रीतीं। करि बैदिक लौकिक सब | + | <br>मिले जनकु दसरथु अति प्रीतीं। करि बैदिक लौकिक सब रीतीं॥ |
− | <br>मिलत महा दोउ राज बिराजे। उपमा खोजि खोजि कबि | + | <br>मिलत महा दोउ राज बिराजे। उपमा खोजि खोजि कबि लाजे॥ |
− | <br>लही न कतहुँ हारि हियँ मानी। इन्ह सम एइ उपमा उर | + | <br>लही न कतहुँ हारि हियँ मानी। इन्ह सम एइ उपमा उर आनी॥ |
− | <br>सामध देखि देव अनुरागे। सुमन बरषि जसु गावन | + | <br>सामध देखि देव अनुरागे। सुमन बरषि जसु गावन लागे॥ |
− | <br>जगु बिरंचि उपजावा जब तें। देखे सुने ब्याह बहु तब | + | <br>जगु बिरंचि उपजावा जब तें। देखे सुने ब्याह बहु तब तें॥ |
− | <br>सकल भाँति सम साजु समाजू। सम समधी देखे हम | + | <br>सकल भाँति सम साजु समाजू। सम समधी देखे हम आजू॥ |
− | <br>देव गिरा सुनि सुंदर साँची। प्रीति अलौकिक दुहु दिसि | + | <br>देव गिरा सुनि सुंदर साँची। प्रीति अलौकिक दुहु दिसि माची॥ |
− | <br>देत पाँवड़े अरघु सुहाए। सादर जनकु मंडपहिं | + | <br>देत पाँवड़े अरघु सुहाए। सादर जनकु मंडपहिं ल्याए॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-मंडपु बिलोकि बिचीत्र रचनाँ रुचिरताँ मुनि मन हरे॥ |
− | <br>निज पानि जनक सुजान सब कहुँ आनि सिंघासन | + | <br>निज पानि जनक सुजान सब कहुँ आनि सिंघासन धरे॥ |
<br>कुल इष्ट सरिस बसिष्ट पूजे बिनय करि आसिष लही। | <br>कुल इष्ट सरिस बसिष्ट पूजे बिनय करि आसिष लही। | ||
− | <br>कौसिकहि पूजत परम प्रीति कि रीति तौ न परै | + | <br>कौसिकहि पूजत परम प्रीति कि रीति तौ न परै कही॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बामदेव आदिक रिषय पूजे मुदित महीस। |
− | <br>दिए दिब्य आसन सबहि सब सन लही | + | <br>दिए दिब्य आसन सबहि सब सन लही असीस॥३२०॥ |
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− | <br>बहुरि कीन्ह कोसलपति पूजा। जानि ईस सम भाउ न | + | <br>बहुरि कीन्ह कोसलपति पूजा। जानि ईस सम भाउ न दूजा॥ |
− | <br>कीन्ह जोरि कर बिनय बड़ाई। कहि निज भाग्य बिभव | + | <br>कीन्ह जोरि कर बिनय बड़ाई। कहि निज भाग्य बिभव बहुताई॥ |
− | <br>पूजे भूपति सकल बराती। समधि सम सादर सब | + | <br>पूजे भूपति सकल बराती। समधि सम सादर सब भाँती॥ |
− | <br>आसन उचित दिए सब काहू। कहौं काह मूख एक | + | <br>आसन उचित दिए सब काहू। कहौं काह मूख एक उछाहू॥ |
− | <br>सकल बरात जनक सनमानी। दान मान बिनती बर | + | <br>सकल बरात जनक सनमानी। दान मान बिनती बर बानी॥ |
− | <br>बिधि हरि हरु दिसिपति दिनराऊ। जे जानहिं रघुबीर | + | <br>बिधि हरि हरु दिसिपति दिनराऊ। जे जानहिं रघुबीर प्रभाऊ॥ |
− | <br>कपट बिप्र बर बेष बनाएँ। कौतुक देखहिं अति सचु | + | <br>कपट बिप्र बर बेष बनाएँ। कौतुक देखहिं अति सचु पाएँ॥ |
− | <br>पूजे जनक देव सम जानें। दिए सुआसन बिनु | + | <br>पूजे जनक देव सम जानें। दिए सुआसन बिनु पहिचानें॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-पहिचान को केहि जान सबहिं अपान सुधि भोरी भई। |
− | <br>आनंद कंदु बिलोकि दूलहु उभय दिसि आनँद | + | <br>आनंद कंदु बिलोकि दूलहु उभय दिसि आनँद मई॥ |
<br>सुर लखे राम सुजान पूजे मानसिक आसन दए। | <br>सुर लखे राम सुजान पूजे मानसिक आसन दए। | ||
− | <br>अवलोकि सीलु सुभाउ प्रभु को बिबुध मन प्रमुदित | + | <br>अवलोकि सीलु सुभाउ प्रभु को बिबुध मन प्रमुदित भए॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-रामचंद्र मुख चंद्र छबि लोचन चारु चकोर। |
− | <br>करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न | + | <br>करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न थोर॥३२१॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए। सादर सतानंदु सुनि | + | <br>समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए। सादर सतानंदु सुनि आए॥ |
− | <br>बेगि कुअँरि अब आनहु जाई। चले मुदित मुनि आयसु | + | <br>बेगि कुअँरि अब आनहु जाई। चले मुदित मुनि आयसु पाई॥ |
− | <br>रानी सुनि उपरोहित बानी। प्रमुदित सखिन्ह समेत | + | <br>रानी सुनि उपरोहित बानी। प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी॥ |
− | <br>बिप्र बधू कुलबृद्ध बोलाईं। करि कुल रीति सुमंगल | + | <br>बिप्र बधू कुलबृद्ध बोलाईं। करि कुल रीति सुमंगल गाईं॥ |
− | <br>नारि बेष जे सुर बर बामा। सकल सुभायँ सुंदरी | + | <br>नारि बेष जे सुर बर बामा। सकल सुभायँ सुंदरी स्यामा॥ |
− | <br>तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारीं। बिनु पहिचानि प्रानहु ते | + | <br>तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारीं। बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं॥ |
− | <br>बार बार सनमानहिं रानी। उमा रमा सारद सम | + | <br>बार बार सनमानहिं रानी। उमा रमा सारद सम जानी॥ |
− | <br>सीय सँवारि समाजु बनाई। मुदित मंडपहिं चलीं | + | <br>सीय सँवारि समाजु बनाई। मुदित मंडपहिं चलीं लवाई॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमंगल भामिनीं। |
− | <br>नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर | + | <br>नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर गामिनीं॥ |
<br>कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं। | <br>कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं। | ||
− | <br>मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गती बर | + | <br>मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गती बर बाजहीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सोहति बनिता बृंद महुँ सहज सुहावनि सीय। |
− | <br>छबि ललना गन मध्य जनु सुषमा तिय | + | <br>छबि ललना गन मध्य जनु सुषमा तिय कमनीय॥३२२॥ |
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− | <br>सिय सुंदरता बरनि न जाई। लघु मति बहुत | + | <br>सिय सुंदरता बरनि न जाई। लघु मति बहुत मनोहरताई॥ |
− | <br>आवत दीखि बरातिन्ह | + | <br>आवत दीखि बरातिन्ह सीता॥रूप रासि सब भाँति पुनीता॥ |
− | <br>सबहि मनहिं मन किए प्रनामा। देखि राम भए | + | <br>सबहि मनहिं मन किए प्रनामा। देखि राम भए पूरनकामा॥ |
− | <br>हरषे दसरथ सुतन्ह समेता। कहि न जाइ उर आनँदु | + | <br>हरषे दसरथ सुतन्ह समेता। कहि न जाइ उर आनँदु जेता॥ |
− | <br>सुर प्रनामु करि बरसहिं फूला। मुनि असीस धुनि मंगल | + | <br>सुर प्रनामु करि बरसहिं फूला। मुनि असीस धुनि मंगल मूला॥ |
− | <br>गान निसान कोलाहलु भारी। प्रेम प्रमोद मगन नर | + | <br>गान निसान कोलाहलु भारी। प्रेम प्रमोद मगन नर नारी॥ |
− | <br>एहि बिधि सीय मंडपहिं आई। प्रमुदित सांति पढ़हिं | + | <br>एहि बिधि सीय मंडपहिं आई। प्रमुदित सांति पढ़हिं मुनिराई॥ |
− | <br>तेहि अवसर कर बिधि ब्यवहारू। दुहुँ कुलगुर सब कीन्ह | + | <br>तेहि अवसर कर बिधि ब्यवहारू। दुहुँ कुलगुर सब कीन्ह अचारू॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-आचारु करि गुर गौरि गनपति मुदित बिप्र पुजावहीं। |
− | <br>सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु | + | <br>सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु पावहीं॥ |
<br>मधुपर्क मंगल द्रब्य जो जेहि समय मुनि मन महुँ चहैं। | <br>मधुपर्क मंगल द्रब्य जो जेहि समय मुनि मन महुँ चहैं। | ||
− | <br>भरे कनक कोपर कलस सो सब लिएहिं परिचारक | + | <br>भरे कनक कोपर कलस सो सब लिएहिं परिचारक रहैं॥१॥ |
<br> | <br> | ||
<br>कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर कियो। | <br>कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर कियो। | ||
<br> | <br> | ||
− | <br>एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासनु | + | <br>एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासनु दियो॥ |
<br> | <br> | ||
− | <br>सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेम काहु न लखि | + | <br>सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेम काहु न लखि परै॥ |
<br> | <br> | ||
− | <br>मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें | + | <br>मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें करै॥२॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-होम समय तनु धरि अनलु अति सुख आहुति लेहिं। |
− | <br>बिप्र बेष धरि बेद सब कहि बिबाह बिधि | + | <br>बिप्र बेष धरि बेद सब कहि बिबाह बिधि देहिं॥३२३॥ |
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− | <br>जनक पाटमहिषी जग जानी। सीय मातु किमि जाइ | + | <br>जनक पाटमहिषी जग जानी। सीय मातु किमि जाइ बखानी॥ |
− | <br>सुजसु सुकृत सुख सुदंरताई। सब समेटि बिधि रची | + | <br>सुजसु सुकृत सुख सुदंरताई। सब समेटि बिधि रची बनाई॥ |
− | <br>समउ जानि मुनिबरन्ह बोलाई। सुनत सुआसिनि सादर | + | <br>समउ जानि मुनिबरन्ह बोलाई। सुनत सुआसिनि सादर ल्याई॥ |
− | <br>जनक बाम दिसि सोह सुनयना। हिमगिरि संग बनि जनु | + | <br>जनक बाम दिसि सोह सुनयना। हिमगिरि संग बनि जनु मयना॥ |
− | <br>कनक कलस मनि कोपर रूरे। सुचि सुंगध मंगल जल | + | <br>कनक कलस मनि कोपर रूरे। सुचि सुंगध मंगल जल पूरे॥ |
− | <br>निज कर मुदित रायँ अरु रानी। धरे राम के आगें | + | <br>निज कर मुदित रायँ अरु रानी। धरे राम के आगें आनी॥ |
− | <br>पढ़हिं बेद मुनि मंगल बानी। गगन सुमन झरि अवसरु | + | <br>पढ़हिं बेद मुनि मंगल बानी। गगन सुमन झरि अवसरु जानी॥ |
− | <br>बरु बिलोकि दंपति अनुरागे। पाय पुनीत पखारन | + | <br>बरु बिलोकि दंपति अनुरागे। पाय पुनीत पखारन लागे॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-लागे पखारन पाय पंकज प्रेम तन पुलकावली। |
− | <br>नभ नगर गान निसान जय धुनि उमगि जनु चहुँ दिसि | + | <br>नभ नगर गान निसान जय धुनि उमगि जनु चहुँ दिसि चली॥ |
<br>जे पद सरोज मनोज अरि उर सर सदैव बिराजहीं। | <br>जे पद सरोज मनोज अरि उर सर सदैव बिराजहीं। | ||
− | <br>जे सकृत सुमिरत बिमलता मन सकल कलि मल | + | <br>जे सकृत सुमिरत बिमलता मन सकल कलि मल भाजहीं॥१॥ |
<br>जे परसि मुनिबनिता लही गति रही जो पातकमई। | <br>जे परसि मुनिबनिता लही गति रही जो पातकमई। | ||
− | <br>मकरंदु जिन्ह को संभु सिर सुचिता अवधि सुर | + | <br>मकरंदु जिन्ह को संभु सिर सुचिता अवधि सुर बरनई॥ |
<br>करि मधुप मन मुनि जोगिजन जे सेइ अभिमत गति लहैं। | <br>करि मधुप मन मुनि जोगिजन जे सेइ अभिमत गति लहैं। | ||
− | <br>ते पद पखारत भाग्यभाजनु जनकु जय जय सब | + | <br>ते पद पखारत भाग्यभाजनु जनकु जय जय सब कहै॥२॥ |
<br>बर कुअँरि करतल जोरि साखोचारु दोउ कुलगुर करैं। | <br>बर कुअँरि करतल जोरि साखोचारु दोउ कुलगुर करैं। | ||
− | <br>भयो पानिगहनु बिलोकि बिधि सुर मनुज मुनि आँनद | + | <br>भयो पानिगहनु बिलोकि बिधि सुर मनुज मुनि आँनद भरैं॥ |
<br>सुखमूल दूलहु देखि दंपति पुलक तन हुलस्यो हियो। | <br>सुखमूल दूलहु देखि दंपति पुलक तन हुलस्यो हियो। | ||
− | <br>करि लोक बेद बिधानु कन्यादानु नृपभूषन | + | <br>करि लोक बेद बिधानु कन्यादानु नृपभूषन कियो॥३॥ |
<br>हिमवंत जिमि गिरिजा महेसहि हरिहि श्री सागर दई। | <br>हिमवंत जिमि गिरिजा महेसहि हरिहि श्री सागर दई। | ||
− | <br>तिमि जनक रामहि सिय समरपी बिस्व कल कीरति | + | <br>तिमि जनक रामहि सिय समरपी बिस्व कल कीरति नई॥ |
<br>क्यों करै बिनय बिदेहु कियो बिदेहु मूरति सावँरी। | <br>क्यों करै बिनय बिदेहु कियो बिदेहु मूरति सावँरी। | ||
− | <br>करि होम बिधिवत गाँठि जोरी होन लागी | + | <br>करि होम बिधिवत गाँठि जोरी होन लागी भावँरी॥४॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-जय धुनि बंदी बेद धुनि मंगल गान निसान। |
− | <br>सुनि हरषहिं बरषहिं बिबुध सुरतरु सुमन | + | <br>सुनि हरषहिं बरषहिं बिबुध सुरतरु सुमन सुजान॥३२४॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>कुअँरु कुअँरि कल भावँरि | + | <br>कुअँरु कुअँरि कल भावँरि देहीं॥नयन लाभु सब सादर लेहीं॥ |
− | <br>जाइ न बरनि मनोहर जोरी। जो उपमा कछु कहौं सो | + | <br>जाइ न बरनि मनोहर जोरी। जो उपमा कछु कहौं सो थोरी॥ |
<br>राम सीय सुंदर प्रतिछाहीं। जगमगात मनि खंभन माहीं । | <br>राम सीय सुंदर प्रतिछाहीं। जगमगात मनि खंभन माहीं । | ||
− | <br>मनहुँ मदन रति धरि बहु रूपा। देखत राम बिआहु | + | <br>मनहुँ मदन रति धरि बहु रूपा। देखत राम बिआहु अनूपा॥ |
− | <br>दरस लालसा सकुच न थोरी। प्रगटत दुरत बहोरि | + | <br>दरस लालसा सकुच न थोरी। प्रगटत दुरत बहोरि बहोरी॥ |
− | <br>भए मगन सब देखनिहारे। जनक समान अपान | + | <br>भए मगन सब देखनिहारे। जनक समान अपान बिसारे॥ |
− | <br>प्रमुदित मुनिन्ह भावँरी फेरी। नेगसहित सब रीति | + | <br>प्रमुदित मुनिन्ह भावँरी फेरी। नेगसहित सब रीति निबेरीं॥ |
− | <br>राम सीय सिर सेंदुर देहीं। सोभा कहि न जाति बिधि | + | <br>राम सीय सिर सेंदुर देहीं। सोभा कहि न जाति बिधि केहीं॥ |
− | <br>अरुन पराग जलजु भरि नीकें। ससिहि भूष अहि लोभ अमी | + | <br>अरुन पराग जलजु भरि नीकें। ससिहि भूष अहि लोभ अमी कें॥ |
− | <br>बहुरि बसिष्ठ दीन्ह अनुसासन। बरु दुलहिनि बैठे एक | + | <br>बहुरि बसिष्ठ दीन्ह अनुसासन। बरु दुलहिनि बैठे एक आसन॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-बैठे बरासन रामु जानकि मुदित मन दसरथु भए। |
− | <br>तनु पुलक पुनि पुनि देखि अपनें सुकृत सुरतरु फल | + | <br>तनु पुलक पुनि पुनि देखि अपनें सुकृत सुरतरु फल नए॥ |
<br>भरि भुवन रहा उछाहु राम बिबाहु भा सबहीं कहा। | <br>भरि भुवन रहा उछाहु राम बिबाहु भा सबहीं कहा। | ||
− | <br>केहि भाँति बरनि सिरात रसना एक यहु मंगलु | + | <br>केहि भाँति बरनि सिरात रसना एक यहु मंगलु महा॥१॥ |
<br>तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। | <br>तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै। | ||
− | <br>माँडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि | + | <br>माँडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि के॥ |
<br>कुसकेतु कन्या प्रथम जो गुन सील सुख सोभामई। | <br>कुसकेतु कन्या प्रथम जो गुन सील सुख सोभामई। | ||
− | <br>सब रीति प्रीति समेत करि सो ब्याहि नृप भरतहि | + | <br>सब रीति प्रीति समेत करि सो ब्याहि नृप भरतहि दई॥२॥ |
<br>जानकी लघु भगिनी सकल सुंदरि सिरोमनि जानि कै। | <br>जानकी लघु भगिनी सकल सुंदरि सिरोमनि जानि कै। | ||
− | <br>सो तनय दीन्ही ब्याहि लखनहि सकल बिधि सनमानि | + | <br>सो तनय दीन्ही ब्याहि लखनहि सकल बिधि सनमानि कै॥ |
<br>जेहि नामु श्रुतकीरति सुलोचनि सुमुखि सब गुन आगरी। | <br>जेहि नामु श्रुतकीरति सुलोचनि सुमुखि सब गुन आगरी। | ||
− | <br>सो दई रिपुसूदनहि भूपति रूप सील | + | <br>सो दई रिपुसूदनहि भूपति रूप सील उजागरी॥३॥ |
<br>अनुरुप बर दुलहिनि परस्पर लखि सकुच हियँ हरषहीं। | <br>अनुरुप बर दुलहिनि परस्पर लखि सकुच हियँ हरषहीं। | ||
− | <br>सब मुदित सुंदरता सराहहिं सुमन सुर गन | + | <br>सब मुदित सुंदरता सराहहिं सुमन सुर गन बरषहीं॥ |
<br>सुंदरी सुंदर बरन्ह सह सब एक मंडप राजहीं। | <br>सुंदरी सुंदर बरन्ह सह सब एक मंडप राजहीं। | ||
− | <br>जनु जीव उर चारिउ अवस्था बिमुन सहित | + | <br>जनु जीव उर चारिउ अवस्था बिमुन सहित बिराजहीं॥४॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-मुदित अवधपति सकल सुत बधुन्ह समेत निहारि। |
− | <br>जनु पार महिपाल मनि क्रियन्ह सहित फल | + | <br>जनु पार महिपाल मनि क्रियन्ह सहित फल चारि॥३२५॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>जसि रघुबीर ब्याह बिधि बरनी। सकल कुअँर ब्याहे तेहिं | + | <br>जसि रघुबीर ब्याह बिधि बरनी। सकल कुअँर ब्याहे तेहिं करनी॥ |
− | <br>कहि न जाइ कछु दाइज भूरी। रहा कनक मनि मंडपु | + | <br>कहि न जाइ कछु दाइज भूरी। रहा कनक मनि मंडपु पूरी॥ |
− | <br>कंबल बसन बिचित्र पटोरे। भाँति भाँति बहु मोल न | + | <br>कंबल बसन बिचित्र पटोरे। भाँति भाँति बहु मोल न थोरे॥ |
− | <br>गज रथ तुरग दास अरु दासी। धेनु अलंकृत कामदुहा | + | <br>गज रथ तुरग दास अरु दासी। धेनु अलंकृत कामदुहा सी॥ |
− | <br>बस्तु अनेक करिअ किमि लेखा। कहि न जाइ जानहिं जिन्ह | + | <br>बस्तु अनेक करिअ किमि लेखा। कहि न जाइ जानहिं जिन्ह देखा॥ |
− | <br>लोकपाल अवलोकि सिहाने। लीन्ह अवधपति सबु सुखु | + | <br>लोकपाल अवलोकि सिहाने। लीन्ह अवधपति सबु सुखु माने॥ |
− | <br>दीन्ह जाचकन्हि जो जेहि भावा। उबरा सो जनवासेहिं | + | <br>दीन्ह जाचकन्हि जो जेहि भावा। उबरा सो जनवासेहिं आवा॥ |
− | <br>तब कर जोरि जनकु मृदु बानी। बोले सब बरात | + | <br>तब कर जोरि जनकु मृदु बानी। बोले सब बरात सनमानी॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-सनमानि सकल बरात आदर दान बिनय बड़ाइ कै। |
− | <br>प्रमुदित महा मुनि बृंद बंदे पूजि प्रेम लड़ाइ | + | <br>प्रमुदित महा मुनि बृंद बंदे पूजि प्रेम लड़ाइ कै॥ |
<br>सिरु नाइ देव मनाइ सब सन कहत कर संपुट किएँ। | <br>सिरु नाइ देव मनाइ सब सन कहत कर संपुट किएँ। | ||
− | <br>सुर साधु चाहत भाउ सिंधु कि तोष जल अंजलि | + | <br>सुर साधु चाहत भाउ सिंधु कि तोष जल अंजलि दिएँ॥१॥ |
<br>कर जोरि जनकु बहोरि बंधु समेत कोसलराय सों। | <br>कर जोरि जनकु बहोरि बंधु समेत कोसलराय सों। | ||
− | <br>बोले मनोहर बयन सानि सनेह सील सुभाय | + | <br>बोले मनोहर बयन सानि सनेह सील सुभाय सों॥ |
<br>संबंध राजन रावरें हम बड़े अब सब बिधि भए। | <br>संबंध राजन रावरें हम बड़े अब सब बिधि भए। | ||
− | <br>एहि राज साज समेत सेवक जानिबे बिनु गथ | + | <br>एहि राज साज समेत सेवक जानिबे बिनु गथ लए॥२॥ |
<br>ए दारिका परिचारिका करि पालिबीं करुना नई। | <br>ए दारिका परिचारिका करि पालिबीं करुना नई। | ||
− | <br>अपराधु छमिबो बोलि पठए बहुत हौं ढीट्यो | + | <br>अपराधु छमिबो बोलि पठए बहुत हौं ढीट्यो कई॥ |
<br>पुनि भानुकुलभूषन सकल सनमान निधि समधी किए। | <br>पुनि भानुकुलभूषन सकल सनमान निधि समधी किए। | ||
− | <br>कहि जाति नहिं बिनती परस्पर प्रेम परिपूरन | + | <br>कहि जाति नहिं बिनती परस्पर प्रेम परिपूरन हिए॥३॥ |
<br>बृंदारका गन सुमन बरिसहिं राउ जनवासेहि चले। | <br>बृंदारका गन सुमन बरिसहिं राउ जनवासेहि चले। | ||
− | <br>दुंदुभी जय धुनि बेद धुनि नभ नगर कौतूहल | + | <br>दुंदुभी जय धुनि बेद धुनि नभ नगर कौतूहल भले॥ |
<br>तब सखीं मंगल गान करत मुनीस आयसु पाइ कै। | <br>तब सखीं मंगल गान करत मुनीस आयसु पाइ कै। | ||
− | <br>दूलह दुलहिनिन्ह सहित सुंदरि चलीं कोहबर ल्याइ | + | <br>दूलह दुलहिनिन्ह सहित सुंदरि चलीं कोहबर ल्याइ कै॥४॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-पुनि पुनि रामहि चितव सिय सकुचति मनु सकुचै न। |
− | <br>हरत मनोहर मीन छबि प्रेम पिआसे | + | <br>हरत मनोहर मीन छबि प्रेम पिआसे नैन॥३२६॥ |
<br>मासपारायण, ग्यारहवाँ विश्राम | <br>मासपारायण, ग्यारहवाँ विश्राम | ||
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>स्याम सरीरु सुभायँ सुहावन। सोभा कोटि मनोज | + | <br>स्याम सरीरु सुभायँ सुहावन। सोभा कोटि मनोज लजावन॥ |
− | <br>जावक जुत पद कमल सुहाए। मुनि मन मधुप रहत जिन्ह | + | <br>जावक जुत पद कमल सुहाए। मुनि मन मधुप रहत जिन्ह छाए॥ |
− | <br>पीत पुनीत मनोहर धोती। हरति बाल रबि दामिनि | + | <br>पीत पुनीत मनोहर धोती। हरति बाल रबि दामिनि जोती॥ |
− | <br>कल किंकिनि कटि सूत्र मनोहर। बाहु बिसाल बिभूषन | + | <br>कल किंकिनि कटि सूत्र मनोहर। बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर॥ |
− | <br>पीत जनेउ महाछबि देई। कर मुद्रिका चोरि चितु | + | <br>पीत जनेउ महाछबि देई। कर मुद्रिका चोरि चितु लेई॥ |
− | <br>सोहत ब्याह साज सब साजे। उर आयत उरभूषन | + | <br>सोहत ब्याह साज सब साजे। उर आयत उरभूषन राजे॥ |
− | <br>पिअर उपरना काखासोती। दुहुँ आँचरन्हि लगे मनि | + | <br>पिअर उपरना काखासोती। दुहुँ आँचरन्हि लगे मनि मोती॥ |
− | <br>नयन कमल कल कुंडल काना। बदनु सकल सौंदर्ज | + | <br>नयन कमल कल कुंडल काना। बदनु सकल सौंदर्ज निधाना॥ |
− | <br>सुंदर भृकुटि मनोहर नासा। भाल तिलकु रुचिरता | + | <br>सुंदर भृकुटि मनोहर नासा। भाल तिलकु रुचिरता निवासा॥ |
− | <br>सोहत मौरु मनोहर माथे। मंगलमय मुकुता मनि | + | <br>सोहत मौरु मनोहर माथे। मंगलमय मुकुता मनि गाथे॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-गाथे महामनि मौर मंजुल अंग सब चित चोरहीं। |
− | <br>पुर नारि सुर सुंदरीं बरहि बिलोकि सब तिन | + | <br>पुर नारि सुर सुंदरीं बरहि बिलोकि सब तिन तोरहीं॥ |
<br>मनि बसन भूषन वारि आरति करहिं मंगल गावहिं। | <br>मनि बसन भूषन वारि आरति करहिं मंगल गावहिं। | ||
− | <br>सुर सुमन बरिसहिं सूत मागध बंदि सुजसु | + | <br>सुर सुमन बरिसहिं सूत मागध बंदि सुजसु सुनावहीं॥१॥ |
<br>कोहबरहिं आने कुँअर कुँअरि सुआसिनिन्ह सुख पाइ कै। | <br>कोहबरहिं आने कुँअर कुँअरि सुआसिनिन्ह सुख पाइ कै। | ||
− | <br>अति प्रीति लौकिक रीति लागीं करन मंगल गाइ | + | <br>अति प्रीति लौकिक रीति लागीं करन मंगल गाइ कै॥ |
<br>लहकौरि गौरि सिखाव रामहि सीय सन सारद कहैं। | <br>लहकौरि गौरि सिखाव रामहि सीय सन सारद कहैं। | ||
− | <br>रनिवासु हास बिलास रस बस जन्म को फलु सब | + | <br>रनिवासु हास बिलास रस बस जन्म को फलु सब लहैं॥२॥ |
<br>निज पानि मनि महुँ देखिअति मूरति सुरूपनिधान की। | <br>निज पानि मनि महुँ देखिअति मूरति सुरूपनिधान की। | ||
− | <br>चालति न भुजबल्ली बिलोकनि बिरह भय बस | + | <br>चालति न भुजबल्ली बिलोकनि बिरह भय बस जानकी॥ |
<br>कौतुक बिनोद प्रमोदु प्रेमु न जाइ कहि जानहिं अलीं। | <br>कौतुक बिनोद प्रमोदु प्रेमु न जाइ कहि जानहिं अलीं। | ||
− | <br>बर कुअँरि सुंदर सकल सखीं लवाइ जनवासेहि | + | <br>बर कुअँरि सुंदर सकल सखीं लवाइ जनवासेहि चलीं॥३॥ |
<br>तेहि समय सुनिअ असीस जहँ तहँ नगर नभ आनँदु महा। | <br>तेहि समय सुनिअ असीस जहँ तहँ नगर नभ आनँदु महा। | ||
− | <br>चिरु जिअहुँ जोरीं चारु चारयो मुदित मन सबहीं | + | <br>चिरु जिअहुँ जोरीं चारु चारयो मुदित मन सबहीं कहा॥ |
<br>जोगीन्द्र सिद्ध मुनीस देव बिलोकि प्रभु दुंदुभि हनी। | <br>जोगीन्द्र सिद्ध मुनीस देव बिलोकि प्रभु दुंदुभि हनी। | ||
− | <br>चले हरषि बरषि प्रसून निज निज लोक जय जय जय | + | <br>चले हरषि बरषि प्रसून निज निज लोक जय जय जय भनी॥४॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सहित बधूटिन्ह कुअँर सब तब आए पितु पास। |
− | <br>सोभा मंगल मोद भरि उमगेउ जनु | + | <br>सोभा मंगल मोद भरि उमगेउ जनु जनवास॥३२७॥ |
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− | <br>पुनि जेवनार भई बहु भाँती। पठए जनक बोलाइ | + | <br>पुनि जेवनार भई बहु भाँती। पठए जनक बोलाइ बराती॥ |
− | <br>परत पाँवड़े बसन अनूपा। सुतन्ह समेत गवन कियो | + | <br>परत पाँवड़े बसन अनूपा। सुतन्ह समेत गवन कियो भूपा॥ |
− | <br>सादर सबके पाय पखारे। जथाजोगु पीढ़न्ह | + | <br>सादर सबके पाय पखारे। जथाजोगु पीढ़न्ह बैठारे॥ |
− | <br>धोए जनक अवधपति चरना। सीलु सनेहु जाइ नहिं | + | <br>धोए जनक अवधपति चरना। सीलु सनेहु जाइ नहिं बरना॥ |
− | <br>बहुरि राम पद पंकज धोए। जे हर हृदय कमल महुँ | + | <br>बहुरि राम पद पंकज धोए। जे हर हृदय कमल महुँ गोए॥ |
− | <br>तीनिउ भाई राम सम जानी। धोए चरन जनक निज | + | <br>तीनिउ भाई राम सम जानी। धोए चरन जनक निज पानी॥ |
− | <br>आसन उचित सबहि नृप दीन्हे। बोलि सूपकारी सब | + | <br>आसन उचित सबहि नृप दीन्हे। बोलि सूपकारी सब लीन्हे॥ |
− | <br>सादर लगे परन पनवारे। कनक कील मनि पान | + | <br>सादर लगे परन पनवारे। कनक कील मनि पान सँवारे॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सूपोदन सुरभी सरपि सुंदर स्वादु पुनीत। |
− | <br>छन महुँ सब कें परुसि गे चतुर सुआर | + | <br>छन महुँ सब कें परुसि गे चतुर सुआर बिनीत॥३२८॥ |
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− | <br>पंच कवल करि जेवन लअगे। गारि गान सुनि अति | + | <br>पंच कवल करि जेवन लअगे। गारि गान सुनि अति अनुरागे॥ |
− | <br>भाँति अनेक परे पकवाने। सुधा सरिस नहिं जाहिं | + | <br>भाँति अनेक परे पकवाने। सुधा सरिस नहिं जाहिं बखाने॥ |
− | <br>परुसन लगे सुआर सुजाना। बिंजन बिबिध नाम को | + | <br>परुसन लगे सुआर सुजाना। बिंजन बिबिध नाम को जाना॥ |
− | <br>चारि भाँति भोजन बिधि गाई। एक एक बिधि बरनि न | + | <br>चारि भाँति भोजन बिधि गाई। एक एक बिधि बरनि न जाई॥ |
− | <br>छरस रुचिर बिंजन बहु जाती। एक एक रस अगनित | + | <br>छरस रुचिर बिंजन बहु जाती। एक एक रस अगनित भाँती॥ |
− | <br>जेवँत देहिं मधुर धुनि गारी। लै लै नाम पुरुष अरु | + | <br>जेवँत देहिं मधुर धुनि गारी। लै लै नाम पुरुष अरु नारी॥ |
− | <br>समय सुहावनि गारि बिराजा। हँसत राउ सुनि सहित | + | <br>समय सुहावनि गारि बिराजा। हँसत राउ सुनि सहित समाजा॥ |
− | <br>एहि बिधि सबहीं भौजनु कीन्हा। आदर सहित आचमनु | + | <br>एहि बिधि सबहीं भौजनु कीन्हा। आदर सहित आचमनु दीन्हा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-देइ पान पूजे जनक दसरथु सहित समाज। |
− | <br>जनवासेहि गवने मुदित सकल भूप | + | <br>जनवासेहि गवने मुदित सकल भूप सिरताज॥३२९॥ |
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− | <br>नित नूतन मंगल पुर माहीं। निमिष सरिस दिन जामिनि | + | <br>नित नूतन मंगल पुर माहीं। निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं॥ |
− | <br>बड़े भोर भूपतिमनि जागे। जाचक गुन गन गावन | + | <br>बड़े भोर भूपतिमनि जागे। जाचक गुन गन गावन लागे॥ |
− | <br>देखि कुअँर बर बधुन्ह समेता। किमि कहि जात मोदु मन | + | <br>देखि कुअँर बर बधुन्ह समेता। किमि कहि जात मोदु मन जेता॥ |
− | <br>प्रातक्रिया करि गे गुरु पाहीं। महाप्रमोदु प्रेमु मन | + | <br>प्रातक्रिया करि गे गुरु पाहीं। महाप्रमोदु प्रेमु मन माहीं॥ |
− | <br>करि प्रनाम पूजा कर जोरी। बोले गिरा अमिअँ जनु | + | <br>करि प्रनाम पूजा कर जोरी। बोले गिरा अमिअँ जनु बोरी॥ |
− | <br>तुम्हरी कृपाँ सुनहु मुनिराजा। भयउँ आजु मैं | + | <br>तुम्हरी कृपाँ सुनहु मुनिराजा। भयउँ आजु मैं पूरनकाजा॥ |
− | <br>अब सब बिप्र बोलाइ गोसाईं। देहु धेनु सब भाँति | + | <br>अब सब बिप्र बोलाइ गोसाईं। देहु धेनु सब भाँति बनाई॥ |
− | <br>सुनि गुर करि महिपाल बड़ाई। पुनि पठए मुनि बृंद | + | <br>सुनि गुर करि महिपाल बड़ाई। पुनि पठए मुनि बृंद बोलाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बामदेउ अरु देवरिषि बालमीकि जाबालि। |
− | <br>आए मुनिबर निकर तब कौसिकादि | + | <br>आए मुनिबर निकर तब कौसिकादि तपसालि॥३३०॥ |
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− | <br>दंड प्रनाम सबहि नृप कीन्हे। पूजि सप्रेम बरासन | + | <br>दंड प्रनाम सबहि नृप कीन्हे। पूजि सप्रेम बरासन दीन्हे॥ |
− | <br>चारि लच्छ बर धेनु मगाई। कामसुरभि सम सील | + | <br>चारि लच्छ बर धेनु मगाई। कामसुरभि सम सील सुहाई॥ |
− | <br>सब बिधि सकल अलंकृत कीन्हीं। मुदित महिप महिदेवन्ह | + | <br>सब बिधि सकल अलंकृत कीन्हीं। मुदित महिप महिदेवन्ह दीन्हीं॥ |
− | <br>करत बिनय बहु बिधि नरनाहू। लहेउँ आजु जग जीवन | + | <br>करत बिनय बहु बिधि नरनाहू। लहेउँ आजु जग जीवन लाहू॥ |
− | <br>पाइ असीस महीसु अनंदा। लिए बोलि पुनि जाचक | + | <br>पाइ असीस महीसु अनंदा। लिए बोलि पुनि जाचक बृंदा॥ |
− | <br>कनक बसन मनि हय गय स्यंदन। दिए बूझि रुचि | + | <br>कनक बसन मनि हय गय स्यंदन। दिए बूझि रुचि रबिकुलनंदन॥ |
− | <br>चले पढ़त गावत गुन गाथा। जय जय जय दिनकर कुल | + | <br>चले पढ़त गावत गुन गाथा। जय जय जय दिनकर कुल नाथा॥ |
− | <br>एहि बिधि राम बिआह उछाहू। सकइ न बरनि सहस मुख | + | <br>एहि बिधि राम बिआह उछाहू। सकइ न बरनि सहस मुख जाहू॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बार बार कौसिक चरन सीसु नाइ कह राउ। |
− | <br>यह सबु सुखु मुनिराज तव कृपा कटाच्छ | + | <br>यह सबु सुखु मुनिराज तव कृपा कटाच्छ पसाउ॥३३१॥ |
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− | <br>जनक सनेहु सीलु करतूती। नृपु सब भाँति सराह | + | <br>जनक सनेहु सीलु करतूती। नृपु सब भाँति सराह बिभूती॥ |
− | <br>दिन उठि बिदा अवधपति मागा। राखहिं जनकु सहित | + | <br>दिन उठि बिदा अवधपति मागा। राखहिं जनकु सहित अनुरागा॥ |
− | <br>नित नूतन आदरु अधिकाई। दिन प्रति सहस भाँति | + | <br>नित नूतन आदरु अधिकाई। दिन प्रति सहस भाँति पहुनाई॥ |
− | <br>नित नव नगर अनंद उछाहू। दसरथ गवनु सोहाइ न | + | <br>नित नव नगर अनंद उछाहू। दसरथ गवनु सोहाइ न काहू॥ |
− | <br>बहुत दिवस बीते एहि भाँती। जनु सनेह रजु बँधे | + | <br>बहुत दिवस बीते एहि भाँती। जनु सनेह रजु बँधे बराती॥ |
− | <br>कौसिक सतानंद तब जाई। कहा बिदेह नृपहि | + | <br>कौसिक सतानंद तब जाई। कहा बिदेह नृपहि समुझाई॥ |
− | <br>अब दसरथ कहँ आयसु देहू। जद्यपि छाड़ि न सकहु | + | <br>अब दसरथ कहँ आयसु देहू। जद्यपि छाड़ि न सकहु सनेहू॥ |
− | <br>भलेहिं नाथ कहि सचिव बोलाए। कहि जय जीव सीस तिन्ह | + | <br>भलेहिं नाथ कहि सचिव बोलाए। कहि जय जीव सीस तिन्ह नाए॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-अवधनाथु चाहत चलन भीतर करहु जनाउ। |
− | <br>भए प्रेमबस सचिव सुनि बिप्र सभासद | + | <br>भए प्रेमबस सचिव सुनि बिप्र सभासद राउ॥३३२॥ |
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− | <br>पुरबासी सुनि चलिहि बराता। बूझत बिकल परस्पर | + | <br>पुरबासी सुनि चलिहि बराता। बूझत बिकल परस्पर बाता॥ |
− | <br>सत्य गवनु सुनि सब बिलखाने। मनहुँ साँझ सरसिज | + | <br>सत्य गवनु सुनि सब बिलखाने। मनहुँ साँझ सरसिज सकुचाने॥ |
− | <br>जहँ जहँ आवत बसे बराती। तहँ तहँ सिद्ध चला बहु | + | <br>जहँ जहँ आवत बसे बराती। तहँ तहँ सिद्ध चला बहु भाँती॥ |
− | <br>बिबिध भाँति मेवा पकवाना। भोजन साजु न जाइ | + | <br>बिबिध भाँति मेवा पकवाना। भोजन साजु न जाइ बखाना॥ |
− | <br>भरि भरि बसहँ अपार कहारा। पठई जनक अनेक | + | <br>भरि भरि बसहँ अपार कहारा। पठई जनक अनेक सुसारा॥ |
− | <br>तुरग लाख रथ सहस पचीसा। सकल सँवारे नख अरु | + | <br>तुरग लाख रथ सहस पचीसा। सकल सँवारे नख अरु सीसा॥ |
− | <br>मत्त सहस दस सिंधुर साजे। जिन्हहि देखि दिसिकुंजर | + | <br>मत्त सहस दस सिंधुर साजे। जिन्हहि देखि दिसिकुंजर लाजे॥ |
− | <br>कनक बसन मनि भरि भरि जाना। महिषीं धेनु बस्तु बिधि | + | <br>कनक बसन मनि भरि भरि जाना। महिषीं धेनु बस्तु बिधि नाना॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-दाइज अमित न सकिअ कहि दीन्ह बिदेहँ बहोरि। |
− | <br>जो अवलोकत लोकपति लोक संपदा | + | <br>जो अवलोकत लोकपति लोक संपदा थोरि॥३३३॥ |
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− | <br>सबु समाजु एहि भाँति बनाई। जनक अवधपुर दीन्ह | + | <br>सबु समाजु एहि भाँति बनाई। जनक अवधपुर दीन्ह पठाई॥ |
− | <br>चलिहि बरात सुनत सब रानीं। बिकल मीनगन जनु लघु | + | <br>चलिहि बरात सुनत सब रानीं। बिकल मीनगन जनु लघु पानीं॥ |
− | <br>पुनि पुनि सीय गोद करि लेहीं। देइ असीस सिखावनु | + | <br>पुनि पुनि सीय गोद करि लेहीं। देइ असीस सिखावनु देहीं॥ |
− | <br>होएहु संतत पियहि पिआरी। चिरु अहिबात असीस | + | <br>होएहु संतत पियहि पिआरी। चिरु अहिबात असीस हमारी॥ |
− | <br>सासु ससुर गुर सेवा करेहू। पति रुख लखि आयसु | + | <br>सासु ससुर गुर सेवा करेहू। पति रुख लखि आयसु अनुसरेहू॥ |
− | <br>अति सनेह बस सखीं सयानी। नारि धरम सिखवहिं मृदु | + | <br>अति सनेह बस सखीं सयानी। नारि धरम सिखवहिं मृदु बानी॥ |
− | <br>सादर सकल कुअँरि समुझाई। रानिन्ह बार बार उर | + | <br>सादर सकल कुअँरि समुझाई। रानिन्ह बार बार उर लाई॥ |
− | <br>बहुरि बहुरि भेटहिं महतारीं। कहहिं बिरंचि रचीं कत | + | <br>बहुरि बहुरि भेटहिं महतारीं। कहहिं बिरंचि रचीं कत नारीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-तेहि अवसर भाइन्ह सहित रामु भानु कुल केतु। |
− | <br>चले जनक मंदिर मुदित बिदा करावन | + | <br>चले जनक मंदिर मुदित बिदा करावन हेतु॥३३४॥ |
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− | <br>चारिअ भाइ सुभायँ सुहाए। नगर नारि नर देखन | + | <br>चारिअ भाइ सुभायँ सुहाए। नगर नारि नर देखन धाए॥ |
− | <br>कोउ कह चलन चहत हहिं आजू। कीन्ह बिदेह बिदा कर | + | <br>कोउ कह चलन चहत हहिं आजू। कीन्ह बिदेह बिदा कर साजू॥ |
− | <br>लेहु नयन भरि रूप निहारी। प्रिय पाहुने भूप सुत | + | <br>लेहु नयन भरि रूप निहारी। प्रिय पाहुने भूप सुत चारी॥ |
− | <br>को जानै केहि सुकृत सयानी। नयन अतिथि कीन्हे बिधि | + | <br>को जानै केहि सुकृत सयानी। नयन अतिथि कीन्हे बिधि आनी॥ |
− | <br>मरनसीलु जिमि पाव पिऊषा। सुरतरु लहै जनम कर | + | <br>मरनसीलु जिमि पाव पिऊषा। सुरतरु लहै जनम कर भूखा॥ |
− | <br>पाव नारकी हरिपदु जैसें। इन्ह कर दरसनु हम कहँ | + | <br>पाव नारकी हरिपदु जैसें। इन्ह कर दरसनु हम कहँ तैसे॥ |
− | <br>निरखि राम सोभा उर धरहू। निज मन फनि मूरति मनि | + | <br>निरखि राम सोभा उर धरहू। निज मन फनि मूरति मनि करहू॥ |
− | <br>एहि बिधि सबहि नयन फलु देता। गए कुअँर सब राज | + | <br>एहि बिधि सबहि नयन फलु देता। गए कुअँर सब राज निकेता॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-रूप सिंधु सब बंधु लखि हरषि उठा रनिवासु। |
− | <br>करहि निछावरि आरती महा मुदित मन | + | <br>करहि निछावरि आरती महा मुदित मन सासु॥३३५॥ |
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− | <br>देखि राम छबि अति अनुरागीं। प्रेमबिबस पुनि पुनि पद | + | <br>देखि राम छबि अति अनुरागीं। प्रेमबिबस पुनि पुनि पद लागीं॥ |
− | <br>रही न लाज प्रीति उर छाई। सहज सनेहु बरनि किमि | + | <br>रही न लाज प्रीति उर छाई। सहज सनेहु बरनि किमि जाई॥ |
− | <br>भाइन्ह सहित उबटि अन्हवाए। छरस असन अति हेतु | + | <br>भाइन्ह सहित उबटि अन्हवाए। छरस असन अति हेतु जेवाँए॥ |
− | <br>बोले रामु सुअवसरु जानी। सील सनेह सकुचमय | + | <br>बोले रामु सुअवसरु जानी। सील सनेह सकुचमय बानी॥ |
− | <br>राउ अवधपुर चहत सिधाए। बिदा होन हम इहाँ | + | <br>राउ अवधपुर चहत सिधाए। बिदा होन हम इहाँ पठाए॥ |
− | <br>मातु मुदित मन आयसु देहू। बालक जानि करब नित | + | <br>मातु मुदित मन आयसु देहू। बालक जानि करब नित नेहू॥ |
− | <br>सुनत बचन बिलखेउ रनिवासू। बोलि न सकहिं प्रेमबस | + | <br>सुनत बचन बिलखेउ रनिवासू। बोलि न सकहिं प्रेमबस सासू॥ |
− | <br>हृदयँ लगाइ कुअँरि सब लीन्ही। पतिन्ह सौंपि बिनती अति | + | <br>हृदयँ लगाइ कुअँरि सब लीन्ही। पतिन्ह सौंपि बिनती अति कीन्ही॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-करि बिनय सिय रामहि समरपी जोरि कर पुनि पुनि कहै। |
− | <br>बलि जाँउ तात सुजान तुम्ह कहुँ बिदित गति सब की | + | <br>बलि जाँउ तात सुजान तुम्ह कहुँ बिदित गति सब की अहै॥ |
<br>परिवार पुरजन मोहि राजहि प्रानप्रिय सिय जानिबी। | <br>परिवार पुरजन मोहि राजहि प्रानप्रिय सिय जानिबी। | ||
− | <br>तुलसीस सीलु सनेहु लखि निज किंकरी करि | + | <br>तुलसीस सीलु सनेहु लखि निज किंकरी करि मानिबी॥ |
− | <br> | + | <br>सो०-तुम्ह परिपूरन काम जान सिरोमनि भावप्रिय। |
− | <br>जन गुन गाहक राम दोष दलन | + | <br>जन गुन गाहक राम दोष दलन करुनायतन॥३३६॥ |
− | <br>अस कहि रही चरन गहि रानी। प्रेम पंक जनु गिरा | + | <br>अस कहि रही चरन गहि रानी। प्रेम पंक जनु गिरा समानी॥ |
− | <br>सुनि सनेहसानी बर बानी। बहुबिधि राम सासु | + | <br>सुनि सनेहसानी बर बानी। बहुबिधि राम सासु सनमानी॥ |
− | <br>राम बिदा मागत कर जोरी। कीन्ह प्रनामु बहोरि | + | <br>राम बिदा मागत कर जोरी। कीन्ह प्रनामु बहोरि बहोरी॥ |
− | <br>पाइ असीस बहुरि सिरु नाई। भाइन्ह सहित चले | + | <br>पाइ असीस बहुरि सिरु नाई। भाइन्ह सहित चले रघुराई॥ |
− | <br>मंजु मधुर मूरति उर आनी। भई सनेह सिथिल सब | + | <br>मंजु मधुर मूरति उर आनी। भई सनेह सिथिल सब रानी॥ |
− | <br>पुनि धीरजु धरि कुअँरि हँकारी। बार बार भेटहिं | + | <br>पुनि धीरजु धरि कुअँरि हँकारी। बार बार भेटहिं महतारीं॥ |
− | <br>पहुँचावहिं फिरि मिलहिं बहोरी। बढ़ी परस्पर प्रीति न | + | <br>पहुँचावहिं फिरि मिलहिं बहोरी। बढ़ी परस्पर प्रीति न थोरी॥ |
− | <br>पुनि पुनि मिलत सखिन्ह बिलगाई। बाल बच्छ जिमि धेनु | + | <br>पुनि पुनि मिलत सखिन्ह बिलगाई। बाल बच्छ जिमि धेनु लवाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-प्रेमबिबस नर नारि सब सखिन्ह सहित रनिवासु। |
− | <br>मानहुँ कीन्ह बिदेहपुर करुनाँ बिरहँ | + | <br>मानहुँ कीन्ह बिदेहपुर करुनाँ बिरहँ निवासु॥३३७॥ |
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− | <br>सुक सारिका जानकी ज्याए। कनक पिंजरन्हि राखि | + | <br>सुक सारिका जानकी ज्याए। कनक पिंजरन्हि राखि पढ़ाए॥ |
− | <br>ब्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही। सुनि धीरजु परिहरइ न | + | <br>ब्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही। सुनि धीरजु परिहरइ न केही॥ |
− | <br>भए बिकल खग मृग एहि भाँति। मनुज दसा कैसें कहि | + | <br>भए बिकल खग मृग एहि भाँति। मनुज दसा कैसें कहि जाती॥ |
− | <br>बंधु समेत जनकु तब आए। प्रेम उमगि लोचन जल | + | <br>बंधु समेत जनकु तब आए। प्रेम उमगि लोचन जल छाए॥ |
− | <br>सीय बिलोकि धीरता भागी। रहे कहावत परम | + | <br>सीय बिलोकि धीरता भागी। रहे कहावत परम बिरागी॥ |
− | <br>लीन्हि राँय उर लाइ जानकी। मिटी महामरजाद ग्यान | + | <br>लीन्हि राँय उर लाइ जानकी। मिटी महामरजाद ग्यान की॥ |
− | <br>समुझावत सब सचिव सयाने। कीन्ह बिचारु न अवसर | + | <br>समुझावत सब सचिव सयाने। कीन्ह बिचारु न अवसर जाने॥ |
− | <br>बारहिं बार सुता उर लाई। सजि सुंदर पालकीं | + | <br>बारहिं बार सुता उर लाई। सजि सुंदर पालकीं मगाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-प्रेमबिबस परिवारु सबु जानि सुलगन नरेस। |
− | <br>कुँअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि | + | <br>कुँअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस॥३३८॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>बहुबिधि भूप सुता समुझाई। नारिधरमु कुलरीति | + | <br>बहुबिधि भूप सुता समुझाई। नारिधरमु कुलरीति सिखाई॥ |
− | <br>दासीं दास दिए बहुतेरे। सुचि सेवक जे प्रिय सिय | + | <br>दासीं दास दिए बहुतेरे। सुचि सेवक जे प्रिय सिय केरे॥ |
− | <br>सीय चलत ब्याकुल पुरबासी। होहिं सगुन सुभ मंगल | + | <br>सीय चलत ब्याकुल पुरबासी। होहिं सगुन सुभ मंगल रासी॥ |
− | <br>भूसुर सचिव समेत समाजा। संग चले पहुँचावन | + | <br>भूसुर सचिव समेत समाजा। संग चले पहुँचावन राजा॥ |
− | <br>समय बिलोकि बाजने बाजे। रथ गज बाजि बरातिन्ह | + | <br>समय बिलोकि बाजने बाजे। रथ गज बाजि बरातिन्ह साजे॥ |
− | <br>दसरथ बिप्र बोलि सब लीन्हे। दान मान परिपूरन | + | <br>दसरथ बिप्र बोलि सब लीन्हे। दान मान परिपूरन कीन्हे॥ |
− | <br>चरन सरोज धूरि धरि सीसा। मुदित महीपति पाइ | + | <br>चरन सरोज धूरि धरि सीसा। मुदित महीपति पाइ असीसा॥ |
− | <br>सुमिरि गजाननु कीन्ह पयाना। मंगलमूल सगुन भए | + | <br>सुमिरि गजाननु कीन्ह पयाना। मंगलमूल सगुन भए नाना॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सुर प्रसून बरषहि हरषि करहिं अपछरा गान। |
− | <br>चले अवधपति अवधपुर मुदित बजाइ | + | <br>चले अवधपति अवधपुर मुदित बजाइ निसान॥३३९॥ |
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− | <br>नृप करि बिनय महाजन फेरे। सादर सकल मागने | + | <br>नृप करि बिनय महाजन फेरे। सादर सकल मागने टेरे॥ |
− | <br>भूषन बसन बाजि गज दीन्हे। प्रेम पोषि ठाढ़े सब | + | <br>भूषन बसन बाजि गज दीन्हे। प्रेम पोषि ठाढ़े सब कीन्हे॥ |
− | <br>बार बार बिरिदावलि भाषी। फिरे सकल रामहि उर | + | <br>बार बार बिरिदावलि भाषी। फिरे सकल रामहि उर राखी॥ |
− | <br>बहुरि बहुरि कोसलपति कहहीं। जनकु प्रेमबस फिरै न | + | <br>बहुरि बहुरि कोसलपति कहहीं। जनकु प्रेमबस फिरै न चहहीं॥ |
− | <br>पुनि कह भूपति बचन सुहाए। फिरिअ महीस दूरि बड़ि | + | <br>पुनि कह भूपति बचन सुहाए। फिरिअ महीस दूरि बड़ि आए॥ |
− | <br>राउ बहोरि उतरि भए ठाढ़े। प्रेम प्रबाह बिलोचन | + | <br>राउ बहोरि उतरि भए ठाढ़े। प्रेम प्रबाह बिलोचन बाढ़े॥ |
− | <br>तब बिदेह बोले कर जोरी। बचन सनेह सुधाँ जनु | + | <br>तब बिदेह बोले कर जोरी। बचन सनेह सुधाँ जनु बोरी॥ |
− | <br>करौ कवन बिधि बिनय बनाई। महाराज मोहि दीन्हि | + | <br>करौ कवन बिधि बिनय बनाई। महाराज मोहि दीन्हि बड़ाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-कोसलपति समधी सजन सनमाने सब भाँति। |
− | <br>मिलनि परसपर बिनय अति प्रीति न हृदयँ | + | <br>मिलनि परसपर बिनय अति प्रीति न हृदयँ समाति॥३४०॥ |
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− | <br>मुनि मंडलिहि जनक सिरु नावा। आसिरबादु सबहि सन | + | <br>मुनि मंडलिहि जनक सिरु नावा। आसिरबादु सबहि सन पावा॥ |
− | <br>सादर पुनि भेंटे जामाता। रूप सील गुन निधि सब | + | <br>सादर पुनि भेंटे जामाता। रूप सील गुन निधि सब भ्राता॥ |
− | <br>जोरि पंकरुह पानि सुहाए। बोले बचन प्रेम जनु | + | <br>जोरि पंकरुह पानि सुहाए। बोले बचन प्रेम जनु जाए॥ |
− | <br>राम करौ केहि भाँति प्रसंसा। मुनि महेस मन मानस | + | <br>राम करौ केहि भाँति प्रसंसा। मुनि महेस मन मानस हंसा॥ |
− | <br>करहिं जोग जोगी जेहि लागी। कोहु मोहु ममता मदु | + | <br>करहिं जोग जोगी जेहि लागी। कोहु मोहु ममता मदु त्यागी॥ |
− | <br>ब्यापकु ब्रह्मु अलखु अबिनासी। चिदानंदु निरगुन | + | <br>ब्यापकु ब्रह्मु अलखु अबिनासी। चिदानंदु निरगुन गुनरासी॥ |
− | <br>मन समेत जेहि जान न बानी। तरकि न सकहिं सकल | + | <br>मन समेत जेहि जान न बानी। तरकि न सकहिं सकल अनुमानी॥ |
− | <br>महिमा निगमु नेति कहि कहई। जो तिहुँ काल एकरस | + | <br>महिमा निगमु नेति कहि कहई। जो तिहुँ काल एकरस रहई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-नयन बिषय मो कहुँ भयउ सो समस्त सुख मूल। |
− | <br>सबइ लाभु जग जीव कहँ भएँ ईसु | + | <br>सबइ लाभु जग जीव कहँ भएँ ईसु अनुकुल॥३४१॥ |
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− | <br>सबहि भाँति मोहि दीन्हि बड़ाई। निज जन जानि लीन्ह | + | <br>सबहि भाँति मोहि दीन्हि बड़ाई। निज जन जानि लीन्ह अपनाई॥ |
− | <br>होहिं सहस दस सारद सेषा। करहिं कलप कोटिक भरि | + | <br>होहिं सहस दस सारद सेषा। करहिं कलप कोटिक भरि लेखा॥ |
− | <br>मोर भाग्य राउर गुन गाथा। कहि न सिराहिं सुनहु | + | <br>मोर भाग्य राउर गुन गाथा। कहि न सिराहिं सुनहु रघुनाथा॥ |
− | <br>मै कछु कहउँ एक बल मोरें। तुम्ह रीझहु सनेह सुठि | + | <br>मै कछु कहउँ एक बल मोरें। तुम्ह रीझहु सनेह सुठि थोरें॥ |
− | <br>बार बार मागउँ कर जोरें। मनु परिहरै चरन जनि | + | <br>बार बार मागउँ कर जोरें। मनु परिहरै चरन जनि भोरें॥ |
− | <br>सुनि बर बचन प्रेम जनु पोषे। पूरनकाम रामु | + | <br>सुनि बर बचन प्रेम जनु पोषे। पूरनकाम रामु परितोषे॥ |
− | <br>करि बर बिनय ससुर सनमाने। पितु कौसिक बसिष्ठ सम | + | <br>करि बर बिनय ससुर सनमाने। पितु कौसिक बसिष्ठ सम जाने॥ |
− | <br>बिनती बहुरि भरत सन कीन्ही। मिलि सप्रेमु पुनि आसिष | + | <br>बिनती बहुरि भरत सन कीन्ही। मिलि सप्रेमु पुनि आसिष दीन्ही॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-मिले लखन रिपुसूदनहि दीन्हि असीस महीस। |
− | <br>भए परस्पर प्रेमबस फिरि फिरि नावहिं | + | <br>भए परस्पर प्रेमबस फिरि फिरि नावहिं सीस॥३४२॥ |
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− | <br>बार बार करि बिनय बड़ाई। रघुपति चले संग सब | + | <br>बार बार करि बिनय बड़ाई। रघुपति चले संग सब भाई॥ |
− | <br>जनक गहे कौसिक पद जाई। चरन रेनु सिर नयनन्ह | + | <br>जनक गहे कौसिक पद जाई। चरन रेनु सिर नयनन्ह लाई॥ |
− | <br>सुनु मुनीस बर दरसन तोरें। अगमु न कछु प्रतीति मन | + | <br>सुनु मुनीस बर दरसन तोरें। अगमु न कछु प्रतीति मन मोरें॥ |
− | <br>जो सुखु सुजसु लोकपति चहहीं। करत मनोरथ सकुचत | + | <br>जो सुखु सुजसु लोकपति चहहीं। करत मनोरथ सकुचत अहहीं॥ |
− | <br>सो सुखु सुजसु सुलभ मोहि स्वामी। सब सिधि तव दरसन | + | <br>सो सुखु सुजसु सुलभ मोहि स्वामी। सब सिधि तव दरसन अनुगामी॥ |
− | <br>कीन्हि बिनय पुनि पुनि सिरु नाई। फिरे महीसु आसिषा | + | <br>कीन्हि बिनय पुनि पुनि सिरु नाई। फिरे महीसु आसिषा पाई॥ |
− | <br>चली बरात निसान बजाई। मुदित छोट बड़ सब | + | <br>चली बरात निसान बजाई। मुदित छोट बड़ सब समुदाई॥ |
− | <br>रामहि निरखि ग्राम नर नारी। पाइ नयन फलु होहिं | + | <br>रामहि निरखि ग्राम नर नारी। पाइ नयन फलु होहिं सुखारी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत। |
− | <br>अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ | + | <br>अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत॥३४३॥û |
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− | <br>हने निसान पनव बर बाजे। भेरि संख धुनि हय गय | + | <br>हने निसान पनव बर बाजे। भेरि संख धुनि हय गय गाजे॥ |
− | <br>झाँझि बिरव डिंडमीं सुहाई। सरस राग बाजहिं | + | <br>झाँझि बिरव डिंडमीं सुहाई। सरस राग बाजहिं सहनाई॥ |
− | <br>पुर जन आवत अकनि बराता। मुदित सकल पुलकावलि | + | <br>पुर जन आवत अकनि बराता। मुदित सकल पुलकावलि गाता॥ |
− | <br>निज निज सुंदर सदन सँवारे। हाट बाट चौहट पुर | + | <br>निज निज सुंदर सदन सँवारे। हाट बाट चौहट पुर द्वारे॥ |
− | <br>गलीं सकल अरगजाँ सिंचाई। जहँ तहँ चौकें चारु | + | <br>गलीं सकल अरगजाँ सिंचाई। जहँ तहँ चौकें चारु पुराई॥ |
− | <br>बना बजारु न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक | + | <br>बना बजारु न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक बिताना॥ |
− | <br>सफल पूगफल कदलि रसाला। रोपे बकुल कदंब | + | <br>सफल पूगफल कदलि रसाला। रोपे बकुल कदंब तमाला॥ |
− | <br>लगे सुभग तरु परसत धरनी। मनिमय आलबाल कल | + | <br>लगे सुभग तरु परसत धरनी। मनिमय आलबाल कल करनी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बिबिध भाँति मंगल कलस गृह गृह रचे सँवारि। |
− | <br>सुर ब्रह्मादि सिहाहिं सब रघुबर पुरी | + | <br>सुर ब्रह्मादि सिहाहिं सब रघुबर पुरी निहारि॥३४४॥ |
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− | <br>भूप भवन तेहि अवसर सोहा। रचना देखि मदन मनु | + | <br>भूप भवन तेहि अवसर सोहा। रचना देखि मदन मनु मोहा॥ |
− | <br>मंगल सगुन मनोहरताई। रिधि सिधि सुख संपदा | + | <br>मंगल सगुन मनोहरताई। रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई॥ |
− | <br>जनु उछाह सब सहज सुहाए। तनु धरि धरि दसरथ दसरथ गृहँ | + | <br>जनु उछाह सब सहज सुहाए। तनु धरि धरि दसरथ दसरथ गृहँ छाए॥ |
− | <br>देखन हेतु राम बैदेही। कहहु लालसा होहि न | + | <br>देखन हेतु राम बैदेही। कहहु लालसा होहि न केही॥ |
− | <br>जुथ जूथ मिलि चलीं सुआसिनि। निज छबि निदरहिं मदन | + | <br>जुथ जूथ मिलि चलीं सुआसिनि। निज छबि निदरहिं मदन बिलासनि॥ |
− | <br>सकल सुमंगल सजें आरती। गावहिं जनु बहु बेष | + | <br>सकल सुमंगल सजें आरती। गावहिं जनु बहु बेष भारती॥ |
− | <br>भूपति भवन कोलाहलु होई। जाइ न बरनि समउ सुखु | + | <br>भूपति भवन कोलाहलु होई। जाइ न बरनि समउ सुखु सोई॥ |
− | <br>कौसल्यादि राम महतारीं। प्रेम बिबस तन दसा | + | <br>कौसल्यादि राम महतारीं। प्रेम बिबस तन दसा बिसारीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-दिए दान बिप्रन्ह बिपुल पूजि गनेस पुरारी। |
− | <br>प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ | + | <br>प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि॥३४५॥ |
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− | <br>मोद प्रमोद बिबस सब माता। चलहिं न चरन सिथिल भए | + | <br>मोद प्रमोद बिबस सब माता। चलहिं न चरन सिथिल भए गाता॥ |
− | <br>राम दरस हित अति अनुरागीं। परिछनि साजु सजन सब | + | <br>राम दरस हित अति अनुरागीं। परिछनि साजु सजन सब लागीं॥ |
− | <br>बिबिध बिधान बाजने बाजे। मंगल मुदित सुमित्राँ | + | <br>बिबिध बिधान बाजने बाजे। मंगल मुदित सुमित्राँ साजे॥ |
− | <br>हरद दूब दधि पल्लव फूला। पान पूगफल मंगल | + | <br>हरद दूब दधि पल्लव फूला। पान पूगफल मंगल मूला॥ |
− | <br>अच्छत अंकुर लोचन लाजा। मंजुल मंजरि तुलसि | + | <br>अच्छत अंकुर लोचन लाजा। मंजुल मंजरि तुलसि बिराजा॥ |
− | <br>छुहे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड़ | + | <br>छुहे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड़ बनाए॥ |
− | <br>सगुन सुंगध न जाहिं बखानी। मंगल सकल सजहिं सब | + | <br>सगुन सुंगध न जाहिं बखानी। मंगल सकल सजहिं सब रानी॥ |
− | <br>रचीं आरतीं बहुत बिधाना। मुदित करहिं कल मंगल | + | <br>रचीं आरतीं बहुत बिधाना। मुदित करहिं कल मंगल गाना॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-कनक थार भरि मंगलन्हि कमल करन्हि लिएँ मात। |
− | <br>चलीं मुदित परिछनि करन पुलक पल्लवित | + | <br>चलीं मुदित परिछनि करन पुलक पल्लवित गात॥३४६॥ |
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− | <br>धूप धूम नभु मेचक भयऊ। सावन घन घमंडु जनु | + | <br>धूप धूम नभु मेचक भयऊ। सावन घन घमंडु जनु ठयऊ॥ |
− | <br>सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं। मनहुँ बलाक अवलि मनु | + | <br>सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं। मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं॥ |
− | <br>मंजुल मनिमय बंदनिवारे। मनहुँ पाकरिपु चाप | + | <br>मंजुल मनिमय बंदनिवारे। मनहुँ पाकरिपु चाप सँवारे॥ |
− | <br>प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि। चारु चपल जनु दमकहिं | + | <br>प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि। चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि॥ |
− | <br>दुंदुभि धुनि घन गरजनि घोरा। जाचक चातक दादुर | + | <br>दुंदुभि धुनि घन गरजनि घोरा। जाचक चातक दादुर मोरा॥ |
− | <br>सुर सुगन्ध सुचि बरषहिं बारी। सुखी सकल ससि पुर नर | + | <br>सुर सुगन्ध सुचि बरषहिं बारी। सुखी सकल ससि पुर नर नारी॥ |
− | <br>समउ जानी गुर आयसु दीन्हा। पुर प्रबेसु रघुकुलमनि | + | <br>समउ जानी गुर आयसु दीन्हा। पुर प्रबेसु रघुकुलमनि कीन्हा॥ |
− | <br>सुमिरि संभु गिरजा गनराजा। मुदित महीपति सहित | + | <br>सुमिरि संभु गिरजा गनराजा। मुदित महीपति सहित समाजा॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-होहिं सगुन बरषहिं सुमन सुर दुंदुभीं बजाइ। |
− | <br>बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल | + | <br>बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल गाइ॥३४७॥ |
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− | <br>मागध सूत बंदि नट नागर। गावहिं जसु तिहु लोक | + | <br>मागध सूत बंदि नट नागर। गावहिं जसु तिहु लोक उजागर॥ |
− | <br>जय धुनि बिमल बेद बर बानी। दस दिसि सुनिअ सुमंगल | + | <br>जय धुनि बिमल बेद बर बानी। दस दिसि सुनिअ सुमंगल सानी॥ |
− | <br>बिपुल बाजने बाजन लागे। नभ सुर नगर लोग | + | <br>बिपुल बाजने बाजन लागे। नभ सुर नगर लोग अनुरागे॥ |
− | <br>बने बराती बरनि न जाहीं। महा मुदित मन सुख न | + | <br>बने बराती बरनि न जाहीं। महा मुदित मन सुख न समाहीं॥ |
− | <br>पुरबासिन्ह तब राय जोहारे। देखत रामहि भए | + | <br>पुरबासिन्ह तब राय जोहारे। देखत रामहि भए सुखारे॥ |
− | <br>करहिं निछावरि मनिगन चीरा। बारि बिलोचन पुलक | + | <br>करहिं निछावरि मनिगन चीरा। बारि बिलोचन पुलक सरीरा॥ |
− | <br>आरति करहिं मुदित पुर नारी। हरषहिं निरखि कुँअर बर | + | <br>आरति करहिं मुदित पुर नारी। हरषहिं निरखि कुँअर बर चारी॥ |
− | <br>सिबिका सुभग ओहार उघारी। देखि दुलहिनिन्ह होहिं | + | <br>सिबिका सुभग ओहार उघारी। देखि दुलहिनिन्ह होहिं सुखारी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-एहि बिधि सबही देत सुखु आए राजदुआर। |
− | <br>मुदित मातु परुछनि करहिं बधुन्ह समेत | + | <br>मुदित मातु परुछनि करहिं बधुन्ह समेत कुमार॥३४८॥ |
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− | <br>करहिं आरती बारहिं बारा। प्रेमु प्रमोदु कहै को | + | <br>करहिं आरती बारहिं बारा। प्रेमु प्रमोदु कहै को पारा॥ |
− | <br>भूषन मनि पट नाना | + | <br>भूषन मनि पट नाना जाती॥करही निछावरि अगनित भाँती॥ |
− | <br>बधुन्ह समेत देखि सुत चारी। परमानंद मगन | + | <br>बधुन्ह समेत देखि सुत चारी। परमानंद मगन महतारी॥ |
− | <br>पुनि पुनि सीय राम छबि | + | <br>पुनि पुनि सीय राम छबि देखी॥मुदित सफल जग जीवन लेखी॥ |
− | <br>सखीं सीय मुख पुनि पुनि चाही। गान करहिं निज सुकृत | + | <br>सखीं सीय मुख पुनि पुनि चाही। गान करहिं निज सुकृत सराही॥ |
− | <br>बरषहिं सुमन छनहिं छन देवा। नाचहिं गावहिं लावहिं | + | <br>बरषहिं सुमन छनहिं छन देवा। नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा॥ |
− | <br>देखि मनोहर चारिउ जोरीं। सारद उपमा सकल | + | <br>देखि मनोहर चारिउ जोरीं। सारद उपमा सकल ढँढोरीं॥ |
− | <br>देत न बनहिं निपट लघु लागी। एकटक रहीं रूप | + | <br>देत न बनहिं निपट लघु लागी। एकटक रहीं रूप अनुरागीं॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-निगम नीति कुल रीति करि अरघ पाँवड़े देत। |
− | <br>बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ | + | <br>बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत॥३४९॥ |
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− | <br>चारि सिंघासन सहज सुहाए। जनु मनोज निज हाथ | + | <br>चारि सिंघासन सहज सुहाए। जनु मनोज निज हाथ बनाए॥ |
− | <br>तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे। सादर पाय पुनित | + | <br>तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे। सादर पाय पुनित पखारे॥ |
− | <br>धूप दीप नैबेद बेद बिधि। पूजे बर दुलहिनि | + | <br>धूप दीप नैबेद बेद बिधि। पूजे बर दुलहिनि मंगलनिधि॥ |
− | <br>बारहिं बार आरती करहीं। ब्यजन चारु चामर सिर | + | <br>बारहिं बार आरती करहीं। ब्यजन चारु चामर सिर ढरहीं॥ |
− | <br>बस्तु अनेक निछावर होहीं। भरीं प्रमोद मातु सब | + | <br>बस्तु अनेक निछावर होहीं। भरीं प्रमोद मातु सब सोहीं॥ |
− | <br>पावा परम तत्व जनु जोगीं। अमृत लहेउ जनु संतत | + | <br>पावा परम तत्व जनु जोगीं। अमृत लहेउ जनु संतत रोगीं॥ |
− | <br>जनम रंक जनु पारस पावा। अंधहि लोचन लाभु | + | <br>जनम रंक जनु पारस पावा। अंधहि लोचन लाभु सुहावा॥ |
− | <br>मूक बदन जनु सारद छाई। मानहुँ समर सूर जय | + | <br>मूक बदन जनु सारद छाई। मानहुँ समर सूर जय पाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनंदु॥ |
− | <br>भाइन्ह सहित बिआहि घर आए | + | <br>भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु॥३५०(क)॥ |
<br>लोक रीत जननी करहिं बर दुलहिनि सकुचाहिं। | <br>लोक रीत जननी करहिं बर दुलहिनि सकुचाहिं। | ||
− | <br>मोदु बिनोदु बिलोकि बड़ रामु मनहिं | + | <br>मोदु बिनोदु बिलोकि बड़ रामु मनहिं मुसकाहिं॥३५०(ख)॥ |
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− | <br>देव पितर पूजे बिधि नीकी। पूजीं सकल बासना जी | + | <br>देव पितर पूजे बिधि नीकी। पूजीं सकल बासना जी की॥ |
− | <br>सबहिं बंदि मागहिं बरदाना। भाइन्ह सहित राम | + | <br>सबहिं बंदि मागहिं बरदाना। भाइन्ह सहित राम कल्याना॥ |
− | <br>अंतरहित सुर आसिष देहीं। मुदित मातु अंचल भरि | + | <br>अंतरहित सुर आसिष देहीं। मुदित मातु अंचल भरि लेंहीं॥ |
− | <br>भूपति बोलि बराती लीन्हे। जान बसन मनि भूषन | + | <br>भूपति बोलि बराती लीन्हे। जान बसन मनि भूषन दीन्हे॥ |
− | <br>आयसु पाइ राखि उर रामहि। मुदित गए सब निज निज | + | <br>आयसु पाइ राखि उर रामहि। मुदित गए सब निज निज धामहि॥ |
− | <br>पुर नर नारि सकल पहिराए। घर घर बाजन लगे | + | <br>पुर नर नारि सकल पहिराए। घर घर बाजन लगे बधाए॥ |
− | <br>जाचक जन जाचहि जोइ जोई। प्रमुदित राउ देहिं सोइ | + | <br>जाचक जन जाचहि जोइ जोई। प्रमुदित राउ देहिं सोइ सोई॥ |
− | <br>सेवक सकल बजनिआ नाना। पूरन किए दान | + | <br>सेवक सकल बजनिआ नाना। पूरन किए दान सनमाना॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-देंहिं असीस जोहारि सब गावहिं गुन गन गाथ। |
− | <br>तब गुर भूसुर सहित गृहँ गवनु कीन्ह | + | <br>तब गुर भूसुर सहित गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ॥३५१॥ |
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− | <br>जो बसिष्ठ अनुसासन दीन्ही। लोक बेद बिधि सादर | + | <br>जो बसिष्ठ अनुसासन दीन्ही। लोक बेद बिधि सादर कीन्ही॥ |
− | <br>भूसुर भीर देखि सब रानी। सादर उठीं भाग्य बड़ | + | <br>भूसुर भीर देखि सब रानी। सादर उठीं भाग्य बड़ जानी॥ |
− | <br>पाय पखारि सकल अन्हवाए। पूजि भली बिधि भूप | + | <br>पाय पखारि सकल अन्हवाए। पूजि भली बिधि भूप जेवाँए॥ |
− | <br>आदर दान प्रेम परिपोषे। देत असीस चले मन | + | <br>आदर दान प्रेम परिपोषे। देत असीस चले मन तोषे॥ |
− | <br>बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा। नाथ मोहि सम धन्य न | + | <br>बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा। नाथ मोहि सम धन्य न दूजा॥ |
− | <br>कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी। रानिन्ह सहित लीन्हि पग | + | <br>कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी। रानिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी॥ |
− | <br>भीतर भवन दीन्ह बर बासु। मन जोगवत रह नृप | + | <br>भीतर भवन दीन्ह बर बासु। मन जोगवत रह नृप रनिवासू॥ |
− | <br>पूजे गुर पद कमल बहोरी। कीन्हि बिनय उर प्रीति न | + | <br>पूजे गुर पद कमल बहोरी। कीन्हि बिनय उर प्रीति न थोरी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-बधुन्ह समेत कुमार सब रानिन्ह सहित महीसु। |
− | <br>पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस | + | <br>पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस मुनीसु॥३५२॥ |
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− | <br>बिनय कीन्हि उर अति अनुरागें। सुत संपदा राखि सब | + | <br>बिनय कीन्हि उर अति अनुरागें। सुत संपदा राखि सब आगें॥ |
− | <br>नेगु मागि मुनिनायक लीन्हा। आसिरबादु बहुत बिधि | + | <br>नेगु मागि मुनिनायक लीन्हा। आसिरबादु बहुत बिधि दीन्हा॥ |
− | <br>उर धरि रामहि सीय समेता। हरषि कीन्ह गुर गवनु | + | <br>उर धरि रामहि सीय समेता। हरषि कीन्ह गुर गवनु निकेता॥ |
− | <br>बिप्रबधू सब भूप बोलाई। चैल चारु भूषन | + | <br>बिप्रबधू सब भूप बोलाई। चैल चारु भूषन पहिराई॥ |
− | <br>बहुरि बोलाइ सुआसिनि लीन्हीं। रुचि बिचारि पहिरावनि | + | <br>बहुरि बोलाइ सुआसिनि लीन्हीं। रुचि बिचारि पहिरावनि दीन्हीं॥ |
− | <br>नेगी नेग जोग सब लेहीं। रुचि अनुरुप भूपमनि | + | <br>नेगी नेग जोग सब लेहीं। रुचि अनुरुप भूपमनि देहीं॥ |
− | <br>प्रिय पाहुने पूज्य जे जाने। भूपति भली भाँति | + | <br>प्रिय पाहुने पूज्य जे जाने। भूपति भली भाँति सनमाने॥ |
− | <br>देव देखि रघुबीर बिबाहू। बरषि प्रसून प्रसंसि | + | <br>देव देखि रघुबीर बिबाहू। बरषि प्रसून प्रसंसि उछाहू॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-चले निसान बजाइ सुर निज निज पुर सुख पाइ। |
− | <br>कहत परसपर राम जसु प्रेम न हृदयँ | + | <br>कहत परसपर राम जसु प्रेम न हृदयँ समाइ॥३५३॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>सब बिधि सबहि समदि नरनाहू। रहा हृदयँ भरि पूरि | + | <br>सब बिधि सबहि समदि नरनाहू। रहा हृदयँ भरि पूरि उछाहू॥ |
− | <br>जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे। सहित बहूटिन्ह कुअँर | + | <br>जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे। सहित बहूटिन्ह कुअँर निहारे॥ |
− | <br>लिए गोद करि मोद समेता। को कहि सकइ भयउ सुखु | + | <br>लिए गोद करि मोद समेता। को कहि सकइ भयउ सुखु जेता॥ |
− | <br>बधू सप्रेम गोद बैठारीं। बार बार हियँ हरषि | + | <br>बधू सप्रेम गोद बैठारीं। बार बार हियँ हरषि दुलारीं॥ |
− | <br>देखि समाजु मुदित रनिवासू। सब कें उर अनंद कियो | + | <br>देखि समाजु मुदित रनिवासू। सब कें उर अनंद कियो बासू॥ |
− | <br>कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू। सुनि हरषु होत सब | + | <br>कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू। सुनि हरषु होत सब काहू॥ |
− | <br>जनक राज गुन सीलु बड़ाई। प्रीति रीति संपदा | + | <br>जनक राज गुन सीलु बड़ाई। प्रीति रीति संपदा सुहाई॥ |
− | <br>बहुबिधि भूप भाट जिमि बरनी। रानीं सब प्रमुदित सुनि | + | <br>बहुबिधि भूप भाट जिमि बरनी। रानीं सब प्रमुदित सुनि करनी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-सुतन्ह समेत नहाइ नृप बोलि बिप्र गुर ग्याति। |
− | <br>भोजन कीन्ह अनेक बिधि घरी पंच गइ | + | <br>भोजन कीन्ह अनेक बिधि घरी पंच गइ राति॥३५४॥ |
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− | <br>मंगलगान करहिं बर भामिनि। भै सुखमूल मनोहर | + | <br>मंगलगान करहिं बर भामिनि। भै सुखमूल मनोहर जामिनि॥ |
− | <br>अँचइ पान सब काहूँ पाए। स्त्रग सुगंध भूषित छबि | + | <br>अँचइ पान सब काहूँ पाए। स्त्रग सुगंध भूषित छबि छाए॥ |
− | <br>रामहि देखि रजायसु पाई। निज निज भवन चले सिर | + | <br>रामहि देखि रजायसु पाई। निज निज भवन चले सिर नाई॥ |
− | <br>प्रेम प्रमोद बिनोदु बढ़ाई। समउ समाजु | + | <br>प्रेम प्रमोद बिनोदु बढ़ाई। समउ समाजु मनोहरताई॥ |
− | <br>कहि न सकहि सत सारद सेसू। बेद बिरंचि महेस | + | <br>कहि न सकहि सत सारद सेसू। बेद बिरंचि महेस गनेसू॥ |
− | <br>सो मै कहौं कवन बिधि बरनी। भूमिनागु सिर धरइ कि | + | <br>सो मै कहौं कवन बिधि बरनी। भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी॥ |
− | <br>नृप सब भाँति सबहि सनमानी। कहि मृदु बचन बोलाई | + | <br>नृप सब भाँति सबहि सनमानी। कहि मृदु बचन बोलाई रानी॥ |
− | <br>बधू लरिकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की | + | <br>बधू लरिकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की नाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-लरिका श्रमित उनीद बस सयन करावहु जाइ। |
− | <br>अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु | + | <br>अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ॥३५५॥ |
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− | <br>भूप बचन सुनि सहज सुहाए। जरित कनक मनि पलँग | + | <br>भूप बचन सुनि सहज सुहाए। जरित कनक मनि पलँग डसाए॥ |
− | <br>सुभग सुरभि पय फेन समाना। कोमल कलित सुपेतीं | + | <br>सुभग सुरभि पय फेन समाना। कोमल कलित सुपेतीं नाना॥ |
− | <br>उपबरहन बर बरनि न जाहीं। स्त्रग सुगंध मनिमंदिर | + | <br>उपबरहन बर बरनि न जाहीं। स्त्रग सुगंध मनिमंदिर माहीं॥ |
− | <br>रतनदीप सुठि चारु चँदोवा। कहत न बनइ जान जेहिं | + | <br>रतनदीप सुठि चारु चँदोवा। कहत न बनइ जान जेहिं जोवा॥ |
− | <br>सेज रुचिर रचि रामु उठाए। प्रेम समेत पलँग | + | <br>सेज रुचिर रचि रामु उठाए। प्रेम समेत पलँग पौढ़ाए॥ |
− | <br>अग्या पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही। निज निज सेज सयन तिन्ह | + | <br>अग्या पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही। निज निज सेज सयन तिन्ह कीन्ही॥ |
− | <br>देखि स्याम मृदु मंजुल गाता। कहहिं सप्रेम बचन सब | + | <br>देखि स्याम मृदु मंजुल गाता। कहहिं सप्रेम बचन सब माता॥ |
− | <br>मारग जात भयावनि भारी। केहि बिधि तात ताड़का | + | <br>मारग जात भयावनि भारी। केहि बिधि तात ताड़का मारी॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-घोर निसाचर बिकट भट समर गनहिं नहिं काहु॥ |
− | <br>मारे सहित सहाय किमि खल मारीच | + | <br>मारे सहित सहाय किमि खल मारीच सुबाहु॥३५६॥ |
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− | <br>मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी। ईस अनेक करवरें | + | <br>मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी। ईस अनेक करवरें टारी॥ |
− | <br>मख रखवारी करि दुहुँ भाई। गुरु प्रसाद सब बिद्या | + | <br>मख रखवारी करि दुहुँ भाई। गुरु प्रसाद सब बिद्या पाई॥ |
− | <br>मुनितय तरी लगत पग धूरी। कीरति रही भुवन भरि | + | <br>मुनितय तरी लगत पग धूरी। कीरति रही भुवन भरि पूरी॥ |
− | <br>कमठ पीठि पबि कूट कठोरा। नृप समाज महुँ सिव धनु | + | <br>कमठ पीठि पबि कूट कठोरा। नृप समाज महुँ सिव धनु तोरा॥ |
− | <br>बिस्व बिजय जसु जानकि पाई। आए भवन ब्याहि सब | + | <br>बिस्व बिजय जसु जानकि पाई। आए भवन ब्याहि सब भाई॥ |
− | <br>सकल अमानुष करम तुम्हारे। केवल कौसिक कृपाँ | + | <br>सकल अमानुष करम तुम्हारे। केवल कौसिक कृपाँ सुधारे॥ |
− | <br>आजु सुफल जग जनमु हमारा। देखि तात बिधुबदन | + | <br>आजु सुफल जग जनमु हमारा। देखि तात बिधुबदन तुम्हारा॥ |
− | <br>जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें। ते बिरंचि जनि पारहिं | + | <br>जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें। ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-राम प्रतोषीं मातु सब कहि बिनीत बर बैन। |
− | <br>सुमिरि संभु गुर बिप्र पद किए नीदबस | + | <br>सुमिरि संभु गुर बिप्र पद किए नीदबस नैन॥३५७॥ |
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− | <br>नीदउँ बदन सोह सुठि लोना। मनहुँ साँझ सरसीरुह | + | <br>नीदउँ बदन सोह सुठि लोना। मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना॥ |
− | <br>घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मंगल | + | <br>घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मंगल गारीं॥ |
− | <br>पुरी बिराजति राजति रजनी। रानीं कहहिं बिलोकहु | + | <br>पुरी बिराजति राजति रजनी। रानीं कहहिं बिलोकहु सजनी॥ |
− | <br>सुंदर बधुन्ह सासु लै सोई। फनिकन्ह जनु सिरमनि उर | + | <br>सुंदर बधुन्ह सासु लै सोई। फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोई॥ |
− | <br>प्रात पुनीत काल प्रभु जागे। अरुनचूड़ बर बोलन | + | <br>प्रात पुनीत काल प्रभु जागे। अरुनचूड़ बर बोलन लागे॥ |
− | <br>बंदि मागधन्हि गुनगन गाए। पुरजन द्वार जोहारन | + | <br>बंदि मागधन्हि गुनगन गाए। पुरजन द्वार जोहारन आए॥ |
− | <br>बंदि बिप्र सुर गुर पितु माता। पाइ असीस मुदित सब | + | <br>बंदि बिप्र सुर गुर पितु माता। पाइ असीस मुदित सब भ्राता॥ |
− | <br>जननिन्ह सादर बदन निहारे। भूपति संग द्वार पगु | + | <br>जननिन्ह सादर बदन निहारे। भूपति संग द्वार पगु धारे॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-कीन्ह सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ। |
− | <br>प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ | + | <br>प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ॥३५८॥ |
<br>नवान्हपारायण,तीसरा विश्राम | <br>नवान्हपारायण,तीसरा विश्राम | ||
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>भूप बिलोकि लिए उर लाई। बैठै हरषि रजायसु | + | <br>भूप बिलोकि लिए उर लाई। बैठै हरषि रजायसु पाई॥ |
− | <br>देखि रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवधि | + | <br>देखि रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवधि अनुमानी॥ |
− | <br>पुनि बसिष्टु मुनि कौसिक आए। सुभग आसनन्हि मुनि | + | <br>पुनि बसिष्टु मुनि कौसिक आए। सुभग आसनन्हि मुनि बैठाए॥ |
− | <br>सुतन्ह समेत पूजि पद लागे। निरखि रामु दोउ गुर | + | <br>सुतन्ह समेत पूजि पद लागे। निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे॥ |
− | <br>कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा। सुनहिं महीसु सहित | + | <br>कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा। सुनहिं महीसु सहित रनिवासा॥ |
− | <br>मुनि मन अगम गाधिसुत करनी। मुदित बसिष्ट बिपुल बिधि | + | <br>मुनि मन अगम गाधिसुत करनी। मुदित बसिष्ट बिपुल बिधि बरनी॥ |
− | <br>बोले बामदेउ सब साँची। कीरति कलित लोक तिहुँ | + | <br>बोले बामदेउ सब साँची। कीरति कलित लोक तिहुँ माची॥ |
− | <br>सुनि आनंदु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधिक | + | <br>सुनि आनंदु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधिक उछाहू॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-मंगल मोद उछाह नित जाहिं दिवस एहि भाँति। |
− | <br>उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक | + | <br>उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति॥३५९॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>सुदिन सोधि कल कंकन छौरे। मंगल मोद बिनोद न | + | <br>सुदिन सोधि कल कंकन छौरे। मंगल मोद बिनोद न थोरे॥ |
− | <br>नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं। अवध जन्म जाचहिं बिधि | + | <br>नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं। अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं॥ |
− | <br>बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं। राम सप्रेम बिनय बस | + | <br>बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं। राम सप्रेम बिनय बस रहहीं॥ |
− | <br>दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ। देखि सराह | + | <br>दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ। देखि सराह महामुनिराऊ॥ |
− | <br>मागत बिदा राउ अनुरागे। सुतन्ह समेत ठाढ़ भे | + | <br>मागत बिदा राउ अनुरागे। सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे॥ |
− | <br>नाथ सकल संपदा तुम्हारी। मैं सेवकु समेत सुत | + | <br>नाथ सकल संपदा तुम्हारी। मैं सेवकु समेत सुत नारी॥ |
− | <br>करब सदा लरिकनः पर छोहू। दरसन देत रहब मुनि | + | <br>करब सदा लरिकनः पर छोहू। दरसन देत रहब मुनि मोहू॥ |
− | <br>अस कहि राउ सहित सुत रानी। परेउ चरन मुख आव न | + | <br>अस कहि राउ सहित सुत रानी। परेउ चरन मुख आव न बानी॥ |
− | <br>दीन्ह असीस बिप्र बहु भाँती। चले न प्रीति रीति कहि | + | <br>दीन्ह असीस बिप्र बहु भाँती। चले न प्रीति रीति कहि जाती॥ |
− | <br>रामु सप्रेम संग सब भाई। आयसु पाइ फिरे | + | <br>रामु सप्रेम संग सब भाई। आयसु पाइ फिरे पहुँचाई॥ |
− | <br> | + | <br>दो०-राम रूपु भूपति भगति ब्याहु उछाहु अनंदु। |
− | <br>जात सराहत मनहिं मन मुदित | + | <br>जात सराहत मनहिं मन मुदित गाधिकुलचंदु॥३६०॥ |
<br>–*–*– | <br>–*–*– | ||
− | <br>बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी। बहुरि गाधिसुत कथा | + | <br>बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी। बहुरि गाधिसुत कथा बखानी॥ |
− | <br>सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ। बरनत आपन पुन्य | + | <br>सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ। बरनत आपन पुन्य प्रभाऊ॥ |
− | <br>बहुरे लोग रजायसु भयऊ। सुतन्ह समेत नृपति गृहँ | + | <br>बहुरे लोग रजायसु भयऊ। सुतन्ह समेत नृपति गृहँ गयऊ॥ |
− | <br>जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा। सुजसु पुनीत लोक तिहुँ | + | <br>जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा। सुजसु पुनीत लोक तिहुँ छावा॥ |
− | <br>आए ब्याहि रामु घर जब तें। बसइ अनंद अवध सब तब | + | <br>आए ब्याहि रामु घर जब तें। बसइ अनंद अवध सब तब तें॥ |
− | <br>प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू। सकहिं न बरनि गिरा | + | <br>प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू। सकहिं न बरनि गिरा अहिनाहू॥ |
− | <br>कबिकुल जीवनु पावन | + | <br>कबिकुल जीवनु पावन जानी॥राम सीय जसु मंगल खानी॥ |
− | <br>तेहि ते मैं कछु कहा बखानी। करन पुनीत हेतु निज | + | <br>तेहि ते मैं कछु कहा बखानी। करन पुनीत हेतु निज बानी॥ |
− | <br> | + | <br>छं०-निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसी कह्यो। |
− | <br>रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें | + | <br>रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो॥ |
<br>उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं। | <br>उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं। | ||
− | <br>बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु | + | <br>बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं॥ |
− | <br> | + | <br>सो०-सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं। |
− | <br>तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम | + | <br>तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु॥३६१॥ |
<br>मासपारायण, बारहवाँ विश्राम | <br>मासपारायण, बारहवाँ विश्राम | ||
<br>इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषबिध्वंसने | <br>इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषबिध्वंसने |
22:54, 23 फ़रवरी 2007 का अवतरण
कवि: तुलसीदास
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चौ०-सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा। नील पीत जलजाभ सरीरा॥
मोरपंख सिर सोहत नीके। गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के॥
भाल तिलक श्रमबिंदु सुहाए। श्रवन सुभग भूषन छबि छाए॥
बिकट भृकुटि कच घूघरवारे। नव सरोज लोचन रतनारे॥
चारु चिबुक नासिका कपोला। हास बिलास लेत मनु मोला॥
मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं। जो बिलोकि बहु काम लजाहीं॥
उर मनि माल कंबु कल गीवा। काम कलभ कर भुज बलसींवा॥
सुमन समेत बाम कर दोना। सावँर कुअँर सखी सुठि लोना॥
दो०-केहरि कटि पट पीत धर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुलभूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान॥२३३॥
चौ०-धरि धीरजु एक आलि सयानी। सीता सन बोली गहि पानी॥
बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू। भूपकिसोर देखि किन लेहू॥
सकुचि सीयँ तब नयन उघारे। सनमुख दोउ रघुसिंघ निहारे॥
नख सिख देखि राम कै सोभा। सुमिरि पिता पनु मनु अति छोभा॥
परबस सखिन्ह लखी जब सीता। भयउ गहरु सब कहहि सभीता॥
पुनि आउब एहि बेरिआँ काली। अस कहि मन बिहसी एक आली॥
गूढ़ गिरा सुनि सिय सकुचानी। भयउ बिलंबु मातु भय मानी॥
धरि बड़ि धीर रामु उर आने। फिरि अपनपउ पितुबस जाने॥
दो०-देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि।
निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि॥२३४॥
चौ०-जानि कठिन सिवचाप बिसूरति। चली राखि उर स्यामल मूरति॥
प्रभु जब जात जानकी जानी। सुख सनेह सोभा गुन खानी॥
परम प्रेममय मृदु मसि कीन्ही। चारु चित भीतीं लिख लीन्ही॥
गई भवानी भवन बहोरी। बंदि चरन बोली कर जोरी॥
जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥
जय गज बदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥
नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना॥
भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि॥
दो०-पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष॥२३५॥
चौ०-सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि पिआरी॥
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥
मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें॥
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं॥
बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी॥
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ॥
सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥
छं०-मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥
सो०-जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे॥२३६॥
हृदयँ सराहत सीय लोनाई। गुर समीप गवने दोउ भाई॥
राम कहा सबु कौसिक पाहीं। सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं॥
सुमन पाइ मुनि पूजा कीन्ही। पुनि असीस दुहु भाइन्ह दीन्ही॥
सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे। रामु लखनु सुनि भए सुखारे॥
करि भोजनु मुनिबर बिग्यानी। लगे कहन कछु कथा पुरानी॥
बिगत दिवसु गुरु आयसु पाई। संध्या करन चले दोउ भाई॥
प्राची दिसि ससि उयउ सुहावा। सिय मुख सरिस देखि सुखु पावा॥
बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं। सीय बदन सम हिमकर नाहीं॥
दो०-जनमु सिंधु पुनि बंधु बिषु दिन मलीन सकलंक।
सिय मुख समता पाव किमि चंदु बापुरो रंक॥२३७॥
चौ०-घटइ बढ़इ बिरहनि दुखदाई। ग्रसइ राहु निज संधिहिं पाई॥
कोक सिकप्रद पंकज द्रोही। अवगुन बहुत चंद्रमा तोही॥
बैदेही मुख पटतर दीन्हे। होइ दोष बड़ अनुचित कीन्हे॥
सिय मुख छबि बिधु ब्याज बखानी। गुरु पहिं चले निसा बड़ि जानी॥
करि मुनि चरन सरोज प्रनामा। आयसु पाइ कीन्ह बिश्रामा॥
बिगत निसा रघुनायक जागे। बंधु बिलोकि कहन अस लागे॥
उदउ अरुन अवलोकहु ताता। पंकज कोक लोक सुखदाता॥
बोले लखनु जोरि जुग पानी। प्रभु प्रभाउ सूचक मृदु बानी॥
दो०-अरुनोदयँ सकुचे कुमुद उडगन जोति मलीन।
जिमि तुम्हार आगमन सुनि भए नृपति बलहीन॥२३८॥
चौ०-नृप सब नखत करहिं उजिआरी। टारि न सकहिं चाप तम भारी॥
कमल कोक मधुकर खग नाना। हरषे सकल निसा अवसाना॥
ऐसेहिं प्रभु सब भगत तुम्हारे। होइहहिं टूटें धनुष सुखारे॥
उयउ भानु बिनु श्रम तम नासा। दुरे नखत जग तेजु प्रकासा॥
रबि निज उदय ब्याज रघुराया। प्रभु प्रतापु सब नृपन्ह दिखाया॥
तव भुज बल महिमा उदघाटी। प्रगटी धनु बिघटन परिपाटी॥
बंधु बचन सुनि प्रभु मुसुकाने। होइ सुचि सहज पुनीत नहाने॥
नित्यक्रिया करि गुरु पहिं आए। चरन सरोज सुभग सिर नाए॥
सतानंदु तब जनक बोलाए। कौसिक मुनि पहिं तुरत पठाए॥
जनक बिनय तिन्ह आइ सुनाई। हरषे बोलि लिए दोउ भाई॥
दो०-सतानंद पद बंदि प्रभु बैठे गुर पहिं जाइ।
चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ॥२३९॥
मासपारायण, आठवाँ विश्राम
नवान्हपारायण, दूसरा विश्राम
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सीय स्वयंबरु देखिअ जाई। ईसु काहि धौं देइ बड़ाई॥
लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई॥
हरषे मुनि सब सुनि बर बानी। दीन्हि असीस सबहिं सुखु मानी॥
पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला। देखन चले धनुषमख साला॥
रंगभूमि आए दोउ भाई। असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई॥
चले सकल गृह काज बिसारी। बाल जुबान जरठ नर नारी॥
देखी जनक भीर भै भारी। सुचि सेवक सब लिए हँकारी॥
तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू। आसन उचित देहू सब काहू॥
दो०-कहि मृदु बचन बिनीत तिन्ह बैठारे नर नारि।
उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि॥२४०॥
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राजकुअँर तेहि अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए॥
गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर सरीरा॥
राज समाज बिराजत रूरे। उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे॥
जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी॥
देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा॥
डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी॥
रहे असुर छल छोनिप बेषा। तिन्ह प्रभु प्रगट कालसम देखा॥
पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई। नरभूषन लोचन सुखदाई॥
दो०-नारि बिलोकहिं हरषि हियँ निज निज रुचि अनुरूप।
जनु सोहत सिंगार धरि मूरति परम अनूप॥२४१॥
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बिदुषन्ह प्रभु बिराटमय दीसा। बहु मुख कर पग लोचन सीसा॥
जनक जाति अवलोकहिं कैसैं। सजन सगे प्रिय लागहिं जैसें॥
सहित बिदेह बिलोकहिं रानी। सिसु सम प्रीति न जाति बखानी॥
जोगिन्ह परम तत्वमय भासा। सांत सुद्ध सम सहज प्रकासा॥
हरिभगतन्ह देखे दोउ भ्राता। इष्टदेव इव सब सुख दाता॥
रामहि चितव भायँ जेहि सीया। सो सनेहु सुखु नहिं कथनीया॥
उर अनुभवति न कहि सक सोऊ। कवन प्रकार कहै कबि कोऊ॥
एहि बिधि रहा जाहि जस भाऊ। तेहिं तस देखेउ कोसलराऊ॥
दो०-राजत राज समाज महुँ कोसलराज किसोर।
सुंदर स्यामल गौर तन बिस्व बिलोचन चोर॥२४२॥
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सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ॥
सरद चंद निंदक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी के॥
चितवत चारु मार मनु हरनी। भावति हृदय जाति नहीं बरनी॥
कल कपोल श्रुति कुंडल लोला। चिबुक अधर सुंदर मृदु बोला॥
कुमुदबंधु कर निंदक हाँसा। भृकुटी बिकट मनोहर नासा॥
भाल बिसाल तिलक झलकाहीं। कच बिलोकि अलि अवलि लजाहीं॥
पीत चौतनीं सिरन्हि सुहाई। कुसुम कलीं बिच बीच बनाईं॥
रेखें रुचिर कंबु कल गीवाँ। जनु त्रिभुवन सुषमा की सीवाँ॥
दो०-कुंजर मनि कंठा कलित उरन्हि तुलसिका माल।
बृषभ कंध केहरि ठवनि बल निधि बाहु बिसाल॥२४३॥
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कटि तूनीर पीत पट बाँधे। कर सर धनुष बाम बर काँधे॥
पीत जग्य उपबीत सुहाए। नख सिख मंजु महाछबि छाए॥
देखि लोग सब भए सुखारे। एकटक लोचन चलत न तारे॥
हरषे जनकु देखि दोउ भाई। मुनि पद कमल गहे तब जाई॥
करि बिनती निज कथा सुनाई। रंग अवनि सब मुनिहि देखाई॥
जहँ जहँ जाहि कुअँर बर दोऊ। तहँ तहँ चकित चितव सबु कोऊ॥
निज निज रुख रामहि सबु देखा। कोउ न जान कछु मरमु बिसेषा॥
भलि रचना मुनि नृप सन कहेऊ। राजाँ मुदित महासुख लहेऊ॥
दो०-सब मंचन्ह ते मंचु एक सुंदर बिसद बिसाल।
मुनि समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे महिपाल॥२४४॥
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प्रभुहि देखि सब नृप हिँयँ हारे। जनु राकेस उदय भएँ तारे॥
असि प्रतीति सब के मन माहीं। राम चाप तोरब सक नाहीं॥
बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला। मेलिहि सीय राम उर माला॥
अस बिचारि गवनहु घर भाई। जसु प्रतापु बलु तेजु गवाँई॥
बिहसे अपर भूप सुनि बानी। जे अबिबेक अंध अभिमानी॥
तोरेहुँ धनुषु ब्याहु अवगाहा। बिनु तोरें को कुअँरि बिआहा॥
एक बार कालउ किन होऊ। सिय हित समर जितब हम सोऊ॥
यह सुनि अवर महिप मुसकाने। धरमसील हरिभगत सयाने॥
सो०-सीय बिआहबि राम गरब दूरि करि नृपन्ह के॥
जीति को सक संग्राम दसरथ के रन बाँकुरे॥२४५॥
ब्यर्थ मरहु जनि गाल बजाई। मन मोदकन्हि कि भूख बुताई॥
सिख हमारि सुनि परम पुनीता। जगदंबा जानहु जियँ सीता॥
जगत पिता रघुपतिहि बिचारी। भरि लोचन छबि लेहु निहारी॥
सुंदर सुखद सकल गुन रासी। ए दोउ बंधु संभु उर बासी॥
सुधा समुद्र समीप बिहाई। मृगजलु निरखि मरहु कत धाई॥
करहु जाइ जा कहुँ जोई भावा। हम तौ आजु जनम फलु पावा॥
अस कहि भले भूप अनुरागे। रूप अनूप बिलोकन लागे॥
देखहिं सुर नभ चढ़े बिमाना। बरषहिं सुमन करहिं कल गाना॥
दो०-जानि सुअवसरु सीय तब पठई जनक बोलाई।
चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं लवाईं॥२४६॥
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सिय सोभा नहिं जाइ बखानी। जगदंबिका रूप गुन खानी॥
उपमा सकल मोहि लघु लागीं। प्राकृत नारि अंग अनुरागीं॥
सिय बरनिअ तेइ उपमा देई। कुकबि कहाइ अजसु को लेई॥
जौ पटतरिअ तीय सम सीया। जग असि जुबति कहाँ कमनीया॥
गिरा मुखर तन अरध भवानी। रति अति दुखित अतनु पति जानी॥
बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही। कहिअ रमासम किमि बैदेही॥
जौ छबि सुधा पयोनिधि होई। परम रूपमय कच्छप सोई॥
सोभा रजु मंदरु सिंगारू। मथै पानि पंकज निज मारू॥
दो०-एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुख मूल।
तदपि सकोच समेत कबि कहहिं सीय समतूल॥२४७॥
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चलिं संग लै सखीं सयानी। गावत गीत मनोहर बानी॥
सोह नवल तनु सुंदर सारी। जगत जननि अतुलित छबि भारी॥
भूषन सकल सुदेस सुहाए। अंग अंग रचि सखिन्ह बनाए॥
रंगभूमि जब सिय पगु धारी। देखि रूप मोहे नर नारी॥
हरषि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई। बरषि प्रसून अपछरा गाई॥
पानि सरोज सोह जयमाला। अवचट चितए सकल भुआला॥
सीय चकित चित रामहि चाहा। भए मोहबस सब नरनाहा॥
मुनि समीप देखे दोउ भाई। लगे ललकि लोचन निधि पाई॥
दो०-गुरजन लाज समाजु बड़ देखि सीय सकुचानि॥
लागि बिलोकन सखिन्ह तन रघुबीरहि उर आनि॥२४८॥
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राम रूपु अरु सिय छबि देखें। नर नारिन्ह परिहरीं निमेषें॥
सोचहिं सकल कहत सकुचाहीं। बिधि सन बिनय करहिं मन माहीं॥
हरु बिधि बेगि जनक जड़ताई। मति हमारि असि देहि सुहाई॥
बिनु बिचार पनु तजि नरनाहु। सीय राम कर करै बिबाहू॥
जग भल कहहि भाव सब काहू। हठ कीन्हे अंतहुँ उर दाहू॥
एहिं लालसाँ मगन सब लोगू। बरु साँवरो जानकी जोगू॥
तब बंदीजन जनक बौलाए। बिरिदावली कहत चलि आए॥
कह नृप जाइ कहहु पन मोरा। चले भाट हियँ हरषु न थोरा॥
दो०-बोले बंदी बचन बर सुनहु सकल महिपाल।
पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल॥२४९॥
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नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू। गरुअ कठोर बिदित सब काहू॥
रावनु बानु महाभट भारे। देखि सरासन गवँहिं सिधारे॥
सोइ पुरारि कोदंडु कठोरा। राज समाज आजु जोइ तोरा॥
त्रिभुवन जय समेत बैदेही॥बिनहिं बिचार बरइ हठि तेही॥
सुनि पन सकल भूप अभिलाषे। भटमानी अतिसय मन माखे॥
परिकर बाँधि उठे अकुलाई। चले इष्टदेवन्ह सिर नाई॥
तमकि ताकि तकि सिवधनु धरहीं। उठइ न कोटि भाँति बलु करहीं॥
जिन्ह के कछु बिचारु मन माहीं। चाप समीप महीप न जाहीं॥
दो०-तमकि धरहिं धनु मूढ़ नृप उठइ न चलहिं लजाइ।
मनहुँ पाइ भट बाहुबलु अधिकु अधिकु गरुआइ॥२५०॥
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भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरइ न टारा॥
डगइ न संभु सरासन कैसें। कामी बचन सती मनु जैसें॥
सब नृप भए जोगु उपहासी। जैसें बिनु बिराग संन्यासी॥
कीरति बिजय बीरता भारी। चले चाप कर बरबस हारी॥
श्रीहत भए हारि हियँ राजा। बैठे निज निज जाइ समाजा॥
नृपन्ह बिलोकि जनकु अकुलाने। बोले बचन रोष जनु साने॥
दीप दीप के भूपति नाना। आए सुनि हम जो पनु ठाना॥
देव दनुज धरि मनुज सरीरा। बिपुल बीर आए रनधीरा॥
दो०-कुअँरि मनोहर बिजय बड़ि कीरति अति कमनीय।
पावनिहार बिरंचि जनु रचेउ न धनु दमनीय॥२५१॥
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कहहु काहि यहु लाभु न भावा। काहुँ न संकर चाप चढ़ावा॥
रहउ चढ़ाउब तोरब भाई। तिलु भरि भूमि न सके छड़ाई॥
अब जनि कोउ माखै भट मानी। बीर बिहीन मही मैं जानी॥
तजहु आस निज निज गृह जाहू। लिखा न बिधि बैदेहि बिबाहू॥
सुकृत जाइ जौं पनु परिहरऊँ। कुअँरि कुआरि रहउ का करऊँ॥
जो जनतेउँ बिनु भट भुबि भाई। तौ पनु करि होतेउँ न हँसाई॥
जनक बचन सुनि सब नर नारी। देखि जानकिहि भए दुखारी॥
माखे लखनु कुटिल भइँ भौंहें। रदपट फरकत नयन रिसौंहें॥
दो०-कहि न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान।
नाइ राम पद कमल सिरु बोले गिरा प्रमान॥२५२॥
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रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहिं समाज अस कहइ न कोई॥
कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुल मनि जानी॥
सुनहु भानुकुल पंकज भानू। कहउँ सुभाउ न कछु अभिमानू॥
जौ तुम्हारि अनुसासन पावौं। कंदुक इव ब्रह्मांड उठावौं॥
काचे घट जिमि डारौं फोरी। सकउँ मेरु मूलक जिमि तोरी॥
तव प्रताप महिमा भगवाना। को बापुरो पिनाक पुराना॥
नाथ जानि अस आयसु होऊ। कौतुकु करौं बिलोकिअ सोऊ॥
कमल नाल जिमि चाफ चढ़ावौं। जोजन सत प्रमान लै धावौं॥
दो०-तोरौं छत्रक दंड जिमि तव प्रताप बल नाथ।
जौं न करौं प्रभु पद सपथ कर न धरौं धनु भाथ॥२५३॥
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लखन सकोप बचन जे बोले। डगमगानि महि दिग्गज डोले॥
सकल लोक सब भूप डेराने। सिय हियँ हरषु जनकु सकुचाने॥
गुर रघुपति सब मुनि मन माहीं। मुदित भए पुनि पुनि पुलकाहीं॥
सयनहिं रघुपति लखनु नेवारे। प्रेम समेत निकट बैठारे॥
बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी॥
उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा॥
सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा। हरषु बिषादु न कछु उर आवा॥
ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएँ। ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ॥
दो०-उदित उदयगिरि मंच पर रघुबर बालपतंग।
बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग॥२५४॥
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नृपन्ह केरि आसा निसि नासी। बचन नखत अवली न प्रकासी॥
मानी महिप कुमुद सकुचाने। कपटी भूप उलूक लुकाने॥
भए बिसोक कोक मुनि देवा। बरिसहिं सुमन जनावहिं सेवा॥
गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्ह सन आयसु मागा॥
सहजहिं चले सकल जग स्वामी। मत्त मंजु बर कुंजर गामी॥
चलत राम सब पुर नर नारी। पुलक पूरि तन भए सुखारी॥
बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे। जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे॥
तौ सिवधनु मृनाल की नाईं। तोरहुँ राम गनेस गोसाईं॥
दो०-रामहि प्रेम समेत लखि सखिन्ह समीप बोलाइ।
सीता मातु सनेह बस बचन कहइ बिलखाइ॥२५५॥
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सखि सब कौतुक देखनिहारे। जेठ कहावत हितू हमारे॥
कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं। ए बालक असि हठ भलि नाहीं॥
रावन बान छुआ नहिं चापा। हारे सकल भूप करि दापा॥
सो धनु राजकुअँर कर देहीं। बाल मराल कि मंदर लेहीं॥
भूप सयानप सकल सिरानी। सखि बिधि गति कछु जाति न जानी॥
बोली चतुर सखी मृदु बानी। तेजवंत लघु गनिअ न रानी॥
कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा। सोषेउ सुजसु सकल संसारा॥
रबि मंडल देखत लघु लागा। उदयँ तासु तिभुवन तम भागा॥
दो०-मंत्र परम लघु जासु बस बिधि हरि हर सुर सर्ब।
महामत्त गजराज कहुँ बस कर अंकुस खर्ब॥२५६॥
–*–*–
काम कुसुम धनु सायक लीन्हे। सकल भुवन अपने बस कीन्हे॥
देबि तजिअ संसउ अस जानी। भंजब धनुष रामु सुनु रानी॥
सखी बचन सुनि भै परतीती। मिटा बिषादु बढ़ी अति प्रीती॥
तब रामहि बिलोकि बैदेही। सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही॥
मनहीं मन मनाव अकुलानी। होहु प्रसन्न महेस भवानी॥
करहु सफल आपनि सेवकाई। करि हितु हरहु चाप गरुआई॥
गननायक बरदायक देवा। आजु लगें कीन्हिउँ तुअ सेवा॥
बार बार बिनती सुनि मोरी। करहु चाप गुरुता अति थोरी॥
दो०-देखि देखि रघुबीर तन सुर मनाव धरि धीर॥
भरे बिलोचन प्रेम जल पुलकावली सरीर॥२५७॥
–*–*–
नीकें निरखि नयन भरि सोभा। पितु पनु सुमिरि बहुरि मनु छोभा॥
अहह तात दारुनि हठ ठानी। समुझत नहिं कछु लाभु न हानी॥
सचिव सभय सिख देइ न कोई। बुध समाज बड़ अनुचित होई॥
कहँ धनु कुलिसहु चाहि कठोरा। कहँ स्यामल मृदुगात किसोरा॥
बिधि केहि भाँति धरौं उर धीरा। सिरस सुमन कन बेधिअ हीरा॥
सकल सभा कै मति भै भोरी। अब मोहि संभुचाप गति तोरी॥
निज जड़ता लोगन्ह पर डारी। होहि हरुअ रघुपतिहि निहारी॥
अति परिताप सीय मन माही। लव निमेष जुग सब सय जाहीं॥
दो०-प्रभुहि चितइ पुनि चितव महि राजत लोचन लोल।
खेलत मनसिज मीन जुग जनु बिधु मंडल डोल॥२५८॥
–*–*–
गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी। प्रगट न लाज निसा अवलोकी॥
लोचन जलु रह लोचन कोना। जैसे परम कृपन कर सोना॥
सकुची ब्याकुलता बड़ि जानी। धरि धीरजु प्रतीति उर आनी॥
तन मन बचन मोर पनु साचा। रघुपति पद सरोज चितु राचा॥
तौ भगवानु सकल उर बासी। करिहिं मोहि रघुबर कै दासी॥
जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संहेहू॥
प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना। कृपानिधान राम सबु जाना॥
सियहि बिलोकि तकेउ धनु कैसे। चितव गरुरु लघु ब्यालहि जैसे॥
दो०-लखन लखेउ रघुबंसमनि ताकेउ हर कोदंडु।
पुलकि गात बोले बचन चरन चापि ब्रह्मांडु॥२५९॥
–*–*–
दिसकुंजरहु कमठ अहि कोला। धरहु धरनि धरि धीर न डोला॥
रामु चहहिं संकर धनु तोरा। होहु सजग सुनि आयसु मोरा॥
चाप सपीप रामु जब आए। नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए॥
सब कर संसउ अरु अग्यानू। मंद महीपन्ह कर अभिमानू॥
भृगुपति केरि गरब गरुआई। सुर मुनिबरन्ह केरि कदराई॥
सिय कर सोचु जनक पछितावा। रानिन्ह कर दारुन दुख दावा॥
संभुचाप बड बोहितु पाई। चढे जाइ सब संगु बनाई॥
राम बाहुबल सिंधु अपारू। चहत पारु नहि कोउ कड़हारू॥
दो०-राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि।
चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि॥२६०॥
–*–*–
देखी बिपुल बिकल बैदेही। निमिष बिहात कलप सम तेही॥
तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा। मुएँ करइ का सुधा तड़ागा॥
का बरषा सब कृषी सुखानें। समय चुकें पुनि का पछितानें॥
अस जियँ जानि जानकी देखी। प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी॥
गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा। अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा॥
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ॥
लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा॥
छं०-भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले॥
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारही॥
सो०-संकर चापु जहाजु सागरु रघुबर बाहुबलु।
बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो प्रथमहिं मोह बस॥२६१॥
प्रभु दोउ चापखंड महि डारे। देखि लोग सब भए सुखारे॥
कोसिकरुप पयोनिधि पावन। प्रेम बारि अवगाहु सुहावन॥
रामरूप राकेसु निहारी। बढ़त बीचि पुलकावलि भारी॥
बाजे नभ गहगहे निसाना। देवबधू नाचहिं करि गाना॥
ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा। प्रभुहि प्रसंसहि देहिं असीसा॥
बरिसहिं सुमन रंग बहु माला। गावहिं किंनर गीत रसाला॥
रही भुवन भरि जय जय बानी। धनुषभंग धुनि जात न जानी॥
मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी। भंजेउ राम संभुधनु भारी॥
दो०-बंदी मागध सूतगन बिरुद बदहिं मतिधीर।
करहिं निछावरि लोग सब हय गय धन मनि चीर॥२६२॥
–*–*–
झाँझि मृदंग संख सहनाई। भेरि ढोल दुंदुभी सुहाई॥
बाजहिं बहु बाजने सुहाए। जहँ तहँ जुबतिन्ह मंगल गाए॥
सखिन्ह सहित हरषी अति रानी। सूखत धान परा जनु पानी॥
जनक लहेउ सुखु सोचु बिहाई। पैरत थकें थाह जनु पाई॥
श्रीहत भए भूप धनु टूटे। जैसें दिवस दीप छबि छूटे॥
सीय सुखहि बरनिअ केहि भाँती। जनु चातकी पाइ जलु स्वाती॥
रामहि लखनु बिलोकत कैसें। ससिहि चकोर किसोरकु जैसें॥
सतानंद तब आयसु दीन्हा। सीताँ गमनु राम पहिं कीन्हा॥
दो०-संग सखीं सुदंर चतुर गावहिं मंगलचार।
गवनी बाल मराल गति सुषमा अंग अपार॥२६३॥
–*–*–
सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे। छबिगन मध्य महाछबि जैसें॥
कर सरोज जयमाल सुहाई। बिस्व बिजय सोभा जेहिं छाई॥
तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू॥
जाइ समीप राम छबि देखी। रहि जनु कुँअरि चित्र अवरेखी॥
चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई॥
सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न जाई॥
सोहत जनु जुग जलज सनाला। ससिहि सभीत देत जयमाला॥
गावहिं छबि अवलोकि सहेली। सियँ जयमाल राम उर मेली॥
सो०-रघुबर उर जयमाल देखि देव बरिसहिं सुमन।
सकुचे सकल भुआल जनु बिलोकि रबि कुमुदगन॥२६४॥
पुर अरु ब्योम बाजने बाजे। खल भए मलिन साधु सब राजे॥
सुर किंनर नर नाग मुनीसा। जय जय जय कहि देहिं असीसा॥
नाचहिं गावहिं बिबुध बधूटीं। बार बार कुसुमांजलि छूटीं॥
जहँ तहँ बिप्र बेदधुनि करहीं। बंदी बिरदावलि उच्चरहीं॥
महि पाताल नाक जसु ब्यापा। राम बरी सिय भंजेउ चापा॥
करहिं आरती पुर नर नारी। देहिं निछावरि बित्त बिसारी॥
सोहति सीय राम कै जौरी। छबि सिंगारु मनहुँ एक ठोरी॥
सखीं कहहिं प्रभुपद गहु सीता। करति न चरन परस अति भीता॥
दो०-गौतम तिय गति सुरति करि नहिं परसति पग पानि।
मन बिहसे रघुबंसमनि प्रीति अलौकिक जानि॥२६५॥
–*–*–
तब सिय देखि भूप अभिलाषे। कूर कपूत मूढ़ मन माखे॥
उठि उठि पहिरि सनाह अभागे। जहँ तहँ गाल बजावन लागे॥
लेहु छड़ाइ सीय कह कोऊ। धरि बाँधहु नृप बालक दोऊ॥
तोरें धनुषु चाड़ नहिं सरई। जीवत हमहि कुअँरि को बरई॥
जौं बिदेहु कछु करै सहाई। जीतहु समर सहित दोउ भाई॥
साधु भूप बोले सुनि बानी। राजसमाजहि लाज लजानी॥
बलु प्रतापु बीरता बड़ाई। नाक पिनाकहि संग सिधाई॥
सोइ सूरता कि अब कहुँ पाई। असि बुधि तौ बिधि मुहँ मसि लाई॥
दो०-देखहु रामहि नयन भरि तजि इरिषा मदु कोहु।
लखन रोषु पावकु प्रबल जानि सलभ जनि होहु॥२६६॥
–*–*–
बैनतेय बलि जिमि चह कागू। जिमि ससु चहै नाग अरि भागू॥
जिमि चह कुसल अकारन कोही। सब संपदा चहै सिवद्रोही॥
लोभी लोलुप कल कीरति चहई। अकलंकता कि कामी लहई॥
हरि पद बिमुख परम गति चाहा। तस तुम्हार लालचु नरनाहा॥
कोलाहलु सुनि सीय सकानी। सखीं लवाइ गईं जहँ रानी॥
रामु सुभायँ चले गुरु पाहीं। सिय सनेहु बरनत मन माहीं॥
रानिन्ह सहित सोचबस सीया। अब धौं बिधिहि काह करनीया॥
भूप बचन सुनि इत उत तकहीं। लखनु राम डर बोलि न सकहीं॥
दो०-अरुन नयन भृकुटी कुटिल चितवत नृपन्ह सकोप।
मनहुँ मत्त गजगन निरखि सिंघकिसोरहि चोप॥२६७॥
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खरभरु देखि बिकल पुर नारीं। सब मिलि देहिं महीपन्ह गारीं॥
तेहिं अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयसु भृगुकुल कमल पतंगा॥
देखि महीप सकल सकुचाने। बाज झपट जनु लवा लुकाने॥
गौरि सरीर भूति भल भ्राजा। भाल बिसाल त्रिपुंड बिराजा॥
सीस जटा ससिबदनु सुहावा। रिसबस कछुक अरुन होइ आवा॥
भृकुटी कुटिल नयन रिस राते। सहजहुँ चितवत मनहुँ रिसाते॥
बृषभ कंध उर बाहु बिसाला। चारु जनेउ माल मृगछाला॥
कटि मुनि बसन तून दुइ बाँधें। धनु सर कर कुठारु कल काँधें॥
दो०-सांत बेषु करनी कठिन बरनि न जाइ सरुप।
धरि मुनितनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप॥२६८॥
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देखत भृगुपति बेषु कराला। उठे सकल भय बिकल भुआला॥
पितु समेत कहि कहि निज नामा। लगे करन सब दंड प्रनामा॥
जेहि सुभायँ चितवहिं हितु जानी। सो जानइ जनु आइ खुटानी॥
जनक बहोरि आइ सिरु नावा। सीय बोलाइ प्रनामु करावा॥
आसिष दीन्हि सखीं हरषानीं। निज समाज लै गई सयानीं॥
बिस्वामित्रु मिले पुनि आई। पद सरोज मेले दोउ भाई॥
रामु लखनु दसरथ के ढोटा। दीन्हि असीस देखि भल जोटा॥
रामहि चितइ रहे थकि लोचन। रूप अपार मार मद मोचन॥
दो०-बहुरि बिलोकि बिदेह सन कहहु काह अति भीर॥
पूछत जानि अजान जिमि ब्यापेउ कोपु सरीर॥२६९॥
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समाचार कहि जनक सुनाए। जेहि कारन महीप सब आए॥
सुनत बचन फिरि अनत निहारे। देखे चापखंड महि डारे॥
अति रिस बोले बचन कठोरा। कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा॥
बेगि देखाउ मूढ़ न त आजू। उलटउँ महि जहँ लहि तव राजू॥
अति डरु उतरु देत नृपु नाहीं। कुटिल भूप हरषे मन माहीं॥
सुर मुनि नाग नगर नर नारी॥सोचहिं सकल त्रास उर भारी॥
मन पछिताति सीय महतारी। बिधि अब सँवरी बात बिगारी॥
भृगुपति कर सुभाउ सुनि सीता। अरध निमेष कलप सम बीता॥
दो०-सभय बिलोके लोग सब जानि जानकी भीरु।
हृदयँ न हरषु बिषादु कछु बोले श्रीरघुबीरु॥२७०॥
मासपारायण, नवाँ विश्राम
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नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
आयसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई॥
सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा॥
सुनि मुनि बचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अपमाने॥
बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं॥
एहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥
दो०-रे नृप बालक कालबस बोलत तोहि न सँमार॥
धनुही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार॥२७१॥
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लखन कहा हँसि हमरें जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥
का छति लाभु जून धनु तौरें। देखा राम नयन के भोरें॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू ।
बोले चितइ परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्व बिदित छत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
दो०-मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥२७२॥
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बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महा भटमानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरें कुल इन्ह पर न सुराई॥
बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहूँ पा परिअ तुम्हारें॥
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥
दो०-जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गभीर॥२७३॥
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कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु। कुटिल कालबस निज कुल घालकु॥
भानु बंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू॥
काल कवलु होइहि छन माहीं। कहउँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥
तुम्ह हटकउ जौं चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥
लखन कहेउ मुनि सुजस तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥
अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥
नहिं संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा॥
दो०-सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु॥२७४॥
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तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा॥
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब यहु मरनिहार भा साँचा॥
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगें अपराधी गुरुद्रोही॥
उतर देत छोड़उँ बिनु मारें। केवल कौसिक सील तुम्हारें॥
न त एहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें॥
दो०-गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि मुनिहि हरिअरइ सूझ।
अयमय खाँड न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ॥२७५॥
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कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥
माता पितहि उरिन भए नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जीकें॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गए ब्याज बड़ बाढ़ा॥
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली॥
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखावहु मोही। बिप्र बिचारि बचउँ नृपद्रोही॥
मिले न कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के बाढ़े॥
अनुचित कहि सब लोग पुकारे। रघुपति सयनहिं लखनु नेवारे॥
दो०-लखन उतर आहुति सरिस भृगुबर कोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥२७६॥
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नाथ करहु बालक पर छोहू। सूध दूधमुख करिअ न कोहू॥
जौं पै प्रभु प्रभाउ कछु जाना। तौ कि बराबरि करत अयाना॥
जौं लरिका कछु अचगरि करहीं। गुर पितु मातु मोद मन भरहीं॥
करिअ कृपा सिसु सेवक जानी। तुम्ह सम सील धीर मुनि ग्यानी॥
राम बचन सुनि कछुक जुड़ाने। कहि कछु लखनु बहुरि मुसकाने॥
हँसत देखि नख सिख रिस ब्यापी। राम तोर भ्राता बड़ पापी॥
गौर सरीर स्याम मन माहीं। कालकूटमुख पयमुख नाहीं॥
सहज टेढ़ अनुहरइ न तोही। नीचु मीचु सम देख न मौहीं॥
दो०-लखन कहेउ हँसि सुनहु मुनि क्रोधु पाप कर मूल।
जेहि बस जन अनुचित करहिं चरहिं बिस्व प्रतिकूल॥२७७॥
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मैं तुम्हार अनुचर मुनिराया। परिहरि कोपु करिअ अब दाया॥
टूट चाप नहिं जुरहि रिसाने। बैठिअ होइहिं पाय पिराने॥
जौ अति प्रिय तौ करिअ उपाई। जोरिअ कोउ बड़ गुनी बोलाई॥
बोलत लखनहिं जनकु डेराहीं। मष्ट करहु अनुचित भल नाहीं॥
थर थर कापहिं पुर नर नारी। छोट कुमार खोट बड़ भारी॥
भृगुपति सुनि सुनि निरभय बानी। रिस तन जरइ होइ बल हानी॥
बोले रामहि देइ निहोरा। बचउँ बिचारि बंधु लघु तोरा॥
मनु मलीन तनु सुंदर कैसें। बिष रस भरा कनक घटु जैसैं॥
दो०- सुनि लछिमन बिहसे बहुरि नयन तरेरे राम।
गुर समीप गवने सकुचि परिहरि बानी बाम॥२७८॥
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अति बिनीत मृदु सीतल बानी। बोले रामु जोरि जुग पानी॥
सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना। बालक बचनु करिअ नहिं काना॥
बररै बालक एकु सुभाऊ। इन्हहि न संत बिदूषहिं काऊ॥
तेहिं नाहीं कछु काज बिगारा। अपराधी में नाथ तुम्हारा॥
कृपा कोपु बधु बँधब गोसाईं। मो पर करिअ दास की नाई॥
कहिअ बेगि जेहि बिधि रिस जाई। मुनिनायक सोइ करौं उपाई॥
कह मुनि राम जाइ रिस कैसें। अजहुँ अनुज तव चितव अनैसें॥
एहि के कंठ कुठारु न दीन्हा। तौ मैं काह कोपु करि कीन्हा॥
दो०-गर्भ स्त्रवहिं अवनिप रवनि सुनि कुठार गति घोर।
परसु अछत देखउँ जिअत बैरी भूपकिसोर॥२७९॥
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बहइ न हाथु दहइ रिस छाती। भा कुठारु कुंठित नृपघाती॥
भयउ बाम बिधि फिरेउ सुभाऊ। मोरे हृदयँ कृपा कसि काऊ॥
आजु दया दुखु दुसह सहावा। सुनि सौमित्र बिहसि सिरु नावा॥
बाउ कृपा मूरति अनुकूला। बोलत बचन झरत जनु फूला॥
जौं पै कृपाँ जरिहिं मुनि गाता। क्रोध भएँ तनु राख बिधाता॥
देखु जनक हठि बालक एहू। कीन्ह चहत जड़ जमपुर गेहू॥
बेगि करहु किन आँखिन्ह ओटा। देखत छोट खोट नृप ढोटा॥
बिहसे लखनु कहा मन माहीं। मूदें आँखि कतहुँ कोउ नाहीं॥
दो०-परसुरामु तब राम प्रति बोले उर अति क्रोधु।
संभु सरासनु तोरि सठ करसि हमार प्रबोधु॥२८०॥
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बंधु कहइ कटु संमत तोरें। तू छल बिनय करसि कर जोरें॥
करु परितोषु मोर संग्रामा। नाहिं त छाड़ कहाउब रामा॥
छलु तजि करहि समरु सिवद्रोही। बंधु सहित न त मारउँ तोही॥
भृगुपति बकहिं कुठार उठाएँ। मन मुसकाहिं रामु सिर नाएँ॥
गुनह लखन कर हम पर रोषू। कतहुँ सुधाइहु ते बड़ दोषू॥
टेढ़ जानि सब बंदइ काहू। बक्र चंद्रमहि ग्रसइ न राहू॥
राम कहेउ रिस तजिअ मुनीसा। कर कुठारु आगें यह सीसा॥
जेंहिं रिस जाइ करिअ सोइ स्वामी। मोहि जानि आपन अनुगामी॥
दो०-प्रभुहि सेवकहि समरु कस तजहु बिप्रबर रोसु।
बेषु बिलोकें कहेसि कछु बालकहू नहिं दोसु॥२८१॥
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देखि कुठार बान धनु धारी। भै लरिकहि रिस बीरु बिचारी॥
नामु जान पै तुम्हहि न चीन्हा। बंस सुभायँ उतरु तेंहिं दीन्हा॥
जौं तुम्ह औतेहु मुनि की नाईं। पद रज सिर सिसु धरत गोसाईं॥
छमहु चूक अनजानत केरी। चहिअ बिप्र उर कृपा घनेरी॥
हमहि तुम्हहि सरिबरि कसि नाथा॥कहहु न कहाँ चरन कहँ माथा॥
राम मात्र लघु नाम हमारा। परसु सहित बड़ नाम तोहारा॥
देव एकु गुनु धनुष हमारें। नव गुन परम पुनीत तुम्हारें॥
सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे। छमहु बिप्र अपराध हमारे॥
दो०-बार बार मुनि बिप्रबर कहा राम सन राम।
बोले भृगुपति सरुष हसि तहूँ बंधु सम बाम॥२८२॥
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निपटहिं द्विज करि जानहि मोही। मैं जस बिप्र सुनावउँ तोही॥
चाप स्त्रुवा सर आहुति जानू। कोप मोर अति घोर कृसानु॥
समिधि सेन चतुरंग सुहाई। महा महीप भए पसु आई॥
मै एहि परसु काटि बलि दीन्हे। समर जग्य जप कोटिन्ह कीन्हे॥
मोर प्रभाउ बिदित नहिं तोरें। बोलसि निदरि बिप्र के भोरें॥
भंजेउ चापु दापु बड़ बाढ़ा। अहमिति मनहुँ जीति जगु ठाढ़ा॥
राम कहा मुनि कहहु बिचारी। रिस अति बड़ि लघु चूक हमारी॥
छुअतहिं टूट पिनाक पुराना। मैं कहि हेतु करौं अभिमाना॥
दो०-जौं हम निदरहिं बिप्र बदि सत्य सुनहु भृगुनाथ।
तौ अस को जग सुभटु जेहि भय बस नावहिं माथ॥२८३॥
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देव दनुज भूपति भट नाना। समबल अधिक होउ बलवाना॥
जौं रन हमहि पचारै कोऊ। लरहिं सुखेन कालु किन होऊ॥
छत्रिय तनु धरि समर सकाना। कुल कलंकु तेहिं पावँर आना॥
कहउँ सुभाउ न कुलहि प्रसंसी। कालहु डरहिं न रन रघुबंसी॥
बिप्रबंस कै असि प्रभुताई। अभय होइ जो तुम्हहि डेराई॥
सुनु मृदु गूढ़ बचन रघुपति के। उघरे पटल परसुधर मति के॥
राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु मिटै मोर संदेहू॥
देत चापु आपुहिं चलि गयऊ। परसुराम मन बिसमय भयऊ॥
दो०-जाना राम प्रभाउ तब पुलक प्रफुल्लित गात।
जोरि पानि बोले बचन ह्दयँ न प्रेमु अमात॥२८४॥
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जय रघुबंस बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृसानु॥
जय सुर बिप्र धेनु हितकारी। जय मद मोह कोह भ्रम हारी॥
बिनय सील करुना गुन सागर। जयति बचन रचना अति नागर॥
सेवक सुखद सुभग सब अंगा। जय सरीर छबि कोटि अनंगा॥
करौं काह मुख एक प्रसंसा। जय महेस मन मानस हंसा॥
अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमामंदिर दोउ भ्राता॥
कहि जय जय जय रघुकुलकेतू। भृगुपति गए बनहि तप हेतू॥
अपभयँ कुटिल महीप डेराने। जहँ तहँ कायर गवँहिं पराने॥
दो०-देवन्ह दीन्हीं दुंदुभीं प्रभु पर बरषहिं फूल।
हरषे पुर नर नारि सब मिटी मोहमय सूल॥२८५॥
–*–*–
अति गहगहे बाजने बाजे। सबहिं मनोहर मंगल साजे॥
जूथ जूथ मिलि सुमुख सुनयनीं। करहिं गान कल कोकिलबयनी॥
सुखु बिदेह कर बरनि न जाई। जन्मदरिद्र मनहुँ निधि पाई॥
गत त्रास भइ सीय सुखारी। जनु बिधु उदयँ चकोरकुमारी॥
जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा। प्रभु प्रसाद धनु भंजेउ रामा॥
मोहि कृतकृत्य कीन्ह दुहुँ भाईं। अब जो उचित सो कहिअ गोसाई॥
कह मुनि सुनु नरनाथ प्रबीना। रहा बिबाहु चाप आधीना॥
टूटतहीं धनु भयउ बिबाहू। सुर नर नाग बिदित सब काहु॥
दो०-तदपि जाइ तुम्ह करहु अब जथा बंस ब्यवहारु।
बूझि बिप्र कुलबृद्ध गुर बेद बिदित आचारु॥२८६॥
–*–*–
दूत अवधपुर पठवहु जाई। आनहिं नृप दसरथहि बोलाई॥
मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला। पठए दूत बोलि तेहि काला॥
बहुरि महाजन सकल बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिर नाए॥
हाट बाट मंदिर सुरबासा। नगरु सँवारहु चारिहुँ पासा॥
हरषि चले निज निज गृह आए। पुनि परिचारक बोलि पठाए॥
रचहु बिचित्र बितान बनाई। सिर धरि बचन चले सचु पाई॥
पठए बोलि गुनी तिन्ह नाना। जे बितान बिधि कुसल सुजाना॥
बिधिहि बंदि तिन्ह कीन्ह अरंभा। बिरचे कनक कदलि के खंभा॥
दो०-हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल।
रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरंचि कर भूल॥२८७॥
–*–*–
बेनि हरित मनिमय सब कीन्हे। सरल सपरब परहिं नहिं चीन्हे॥
कनक कलित अहिबेल बनाई। लखि नहि परइ सपरन सुहाई॥
तेहि के रचि पचि बंध बनाए। बिच बिच मुकता दाम सुहाए॥
मानिक मरकत कुलिस पिरोजा। चीरि कोरि पचि रचे सरोजा॥
किए भृंग बहुरंग बिहंगा। गुंजहिं कूजहिं पवन प्रसंगा॥
सुर प्रतिमा खंभन गढ़ी काढ़ी। मंगल द्रब्य लिएँ सब ठाढ़ी॥
चौंकें भाँति अनेक पुराईं। सिंधुर मनिमय सहज सुहाई॥
दो०-सौरभ पल्लव सुभग सुठि किए नीलमनि कोरि॥
हेम बौर मरकत घवरि लसत पाटमय डोरि॥२८८॥
–*–*–
रचे रुचिर बर बंदनिबारे। मनहुँ मनोभवँ फंद सँवारे॥
मंगल कलस अनेक बनाए। ध्वज पताक पट चमर सुहाए॥
दीप मनोहर मनिमय नाना। जाइ न बरनि बिचित्र बिताना॥
जेहिं मंडप दुलहिनि बैदेही। सो बरनै असि मति कबि केही॥
दूलहु रामु रूप गुन सागर। सो बितानु तिहुँ लोक उजागर॥
जनक भवन कै सौभा जैसी। गृह गृह प्रति पुर देखिअ तैसी॥
जेहिं तेरहुति तेहि समय निहारी। तेहि लघु लगहिं भुवन दस चारी॥
जो संपदा नीच गृह सोहा। सो बिलोकि सुरनायक मोहा॥
दो०-बसइ नगर जेहि लच्छ करि कपट नारि बर बेषु॥
तेहि पुर कै सोभा कहत सकुचहिं सारद सेषु॥२८९॥
–*–*–
पहुँचे दूत राम पुर पावन। हरषे नगर बिलोकि सुहावन॥
भूप द्वार तिन्ह खबरि जनाई। दसरथ नृप सुनि लिए बोलाई॥
करि प्रनामु तिन्ह पाती दीन्ही। मुदित महीप आपु उठि लीन्ही॥
बारि बिलोचन बाचत पाँती। पुलक गात आई भरि छाती॥
रामु लखनु उर कर बर चीठी। रहि गए कहत न खाटी मीठी॥
पुनि धरि धीर पत्रिका बाँची। हरषी सभा बात सुनि साँची॥
खेलत रहे तहाँ सुधि पाई। आए भरतु सहित हित भाई॥
पूछत अति सनेहँ सकुचाई। तात कहाँ तें पाती आई॥
दो०-कुसल प्रानप्रिय बंधु दोउ अहहिं कहहु केहिं देस।
सुनि सनेह साने बचन बाची बहुरि नरेस॥२९०॥
–*–*–
सुनि पाती पुलके दोउ भ्राता। अधिक सनेहु समात न गाता॥
प्रीति पुनीत भरत कै देखी। सकल सभाँ सुखु लहेउ बिसेषी॥
तब नृप दूत निकट बैठारे। मधुर मनोहर बचन उचारे॥
भैया कहहु कुसल दोउ बारे। तुम्ह नीकें निज नयन निहारे॥
स्यामल गौर धरें धनु भाथा। बय किसोर कौसिक मुनि साथा॥
पहिचानहु तुम्ह कहहु सुभाऊ। प्रेम बिबस पुनि पुनि कह राऊ॥
जा दिन तें मुनि गए लवाई। तब तें आजु साँचि सुधि पाई॥
कहहु बिदेह कवन बिधि जाने। सुनि प्रिय बचन दूत मुसकाने॥
दो०-सुनहु महीपति मुकुट मनि तुम्ह सम धन्य न कोउ।
रामु लखनु जिन्ह के तनय बिस्व बिभूषन दोउ॥२९१॥
–*–*–
पूछन जोगु न तनय तुम्हारे। पुरुषसिंघ तिहु पुर उजिआरे॥
जिन्ह के जस प्रताप कें आगे। ससि मलीन रबि सीतल लागे॥
तिन्ह कहँ कहिअ नाथ किमि चीन्हे। देखिअ रबि कि दीप कर लीन्हे॥
सीय स्वयंबर भूप अनेका। समिटे सुभट एक तें एका॥
संभु सरासनु काहुँ न टारा। हारे सकल बीर बरिआरा॥
तीनि लोक महँ जे भटमानी। सभ कै सकति संभु धनु भानी॥
सकइ उठाइ सरासुर मेरू। सोउ हियँ हारि गयउ करि फेरू॥
जेहि कौतुक सिवसैलु उठावा। सोउ तेहि सभाँ पराभउ पावा॥
दो०-तहाँ राम रघुबंस मनि सुनिअ महा महिपाल।
भंजेउ चाप प्रयास बिनु जिमि गज पंकज नाल॥२९२॥
–*–*–
सुनि सरोष भृगुनायकु आए। बहुत भाँति तिन्ह आँखि देखाए॥
देखि राम बलु निज धनु दीन्हा। करि बहु बिनय गवनु बन कीन्हा॥
राजन रामु अतुलबल जैसें। तेज निधान लखनु पुनि तैसें॥
कंपहि भूप बिलोकत जाकें। जिमि गज हरि किसोर के ताकें॥
देव देखि तव बालक दोऊ। अब न आँखि तर आवत कोऊ॥
दूत बचन रचना प्रिय लागी। प्रेम प्रताप बीर रस पागी॥
सभा समेत राउ अनुरागे। दूतन्ह देन निछावरि लागे॥
कहि अनीति ते मूदहिं काना। धरमु बिचारि सबहिं सुख माना॥
दो०-तब उठि भूप बसिष्ठ कहुँ दीन्हि पत्रिका जाइ।
कथा सुनाई गुरहि सब सादर दूत बोलाइ॥२९३॥
–*–*–
सुनि बोले गुर अति सुखु पाई। पुन्य पुरुष कहुँ महि सुख छाई॥
जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नाहीं॥
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ॥
तुम्ह गुर बिप्र धेनु सुर सेबी। तसि पुनीत कौसल्या देबी॥
सुकृती तुम्ह समान जग माहीं। भयउ न है कोउ होनेउ नाहीं॥
तुम्ह ते अधिक पुन्य बड़ काकें। राजन राम सरिस सुत जाकें॥
बीर बिनीत धरम ब्रत धारी। गुन सागर बर बालक चारी॥
तुम्ह कहुँ सर्ब काल कल्याना। सजहु बरात बजाइ निसाना॥
दो०-चलहु बेगि सुनि गुर बचन भलेहिं नाथ सिरु नाइ।
भूपति गवने भवन तब दूतन्ह बासु देवाइ॥२९४॥
–*–*–
राजा सबु रनिवास बोलाई। जनक पत्रिका बाचि सुनाई॥
सुनि संदेसु सकल हरषानीं। अपर कथा सब भूप बखानीं॥
प्रेम प्रफुल्लित राजहिं रानी। मनहुँ सिखिनि सुनि बारिद बनी॥
मुदित असीस देहिं गुरु नारीं। अति आनंद मगन महतारीं॥
लेहिं परस्पर अति प्रिय पाती। हृदयँ लगाइ जुड़ावहिं छाती॥
राम लखन कै कीरति करनी। बारहिं बार भूपबर बरनी॥
मुनि प्रसादु कहि द्वार सिधाए। रानिन्ह तब महिदेव बोलाए॥
दिए दान आनंद समेता। चले बिप्रबर आसिष देता॥
सो०-जाचक लिए हँकारि दीन्हि निछावरि कोटि बिधि।
चिरु जीवहुँ सुत चारि चक्रबर्ति दसरत्थ के॥२९५॥
कहत चले पहिरें पट नाना। हरषि हने गहगहे निसाना॥
समाचार सब लोगन्ह पाए। लागे घर घर होने बधाए॥
भुवन चारि दस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू॥
सुनि सुभ कथा लोग अनुरागे। मग गृह गलीं सँवारन लागे॥
जद्यपि अवध सदैव सुहावनि। राम पुरी मंगलमय पावनि॥
तदपि प्रीति कै प्रीति सुहाई। मंगल रचना रची बनाई॥
ध्वज पताक पट चामर चारु। छावा परम बिचित्र बजारू॥
कनक कलस तोरन मनि जाला। हरद दूब दधि अच्छत माला॥
दो०-मंगलमय निज निज भवन लोगन्ह रचे बनाइ।
बीथीं सीचीं चतुरसम चौकें चारु पुराइ॥२९६॥
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जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि। सजि नव सप्त सकल दुति दामिनि॥
बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि। निज सरुप रति मानु बिमोचनि॥
गावहिं मंगल मंजुल बानीं। सुनिकल रव कलकंठि लजानीं॥
भूप भवन किमि जाइ बखाना। बिस्व बिमोहन रचेउ बिताना॥
मंगल द्रब्य मनोहर नाना। राजत बाजत बिपुल निसाना॥
कतहुँ बिरिद बंदी उच्चरहीं। कतहुँ बेद धुनि भूसुर करहीं॥
गावहिं सुंदरि मंगल गीता। लै लै नामु रामु अरु सीता॥
बहुत उछाहु भवनु अति थोरा। मानहुँ उमगि चला चहु ओरा॥
दो०-सोभा दसरथ भवन कइ को कबि बरनै पार।
जहाँ सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह अवतार॥२९७॥
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भूप भरत पुनि लिए बोलाई। हय गय स्यंदन साजहु जाई॥
चलहु बेगि रघुबीर बराता। सुनत पुलक पूरे दोउ भ्राता॥
भरत सकल साहनी बोलाए। आयसु दीन्ह मुदित उठि धाए॥
रचि रुचि जीन तुरग तिन्ह साजे। बरन बरन बर बाजि बिराजे॥
सुभग सकल सुठि चंचल करनी। अय इव जरत धरत पग धरनी॥
नाना जाति न जाहिं बखाने। निदरि पवनु जनु चहत उड़ाने॥
तिन्ह सब छयल भए असवारा। भरत सरिस बय राजकुमारा॥
सब सुंदर सब भूषनधारी। कर सर चाप तून कटि भारी॥
दो०- छरे छबीले छयल सब सूर सुजान नबीन।
जुग पदचर असवार प्रति जे असिकला प्रबीन॥२९८॥
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बाँधे बिरद बीर रन गाढ़े। निकसि भए पुर बाहेर ठाढ़े॥
फेरहिं चतुर तुरग गति नाना। हरषहिं सुनि सुनि पवन निसाना॥
रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाए। ध्वज पताक मनि भूषन लाए॥
चवँर चारु किंकिन धुनि करही। भानु जान सोभा अपहरहीं॥
सावँकरन अगनित हय होते। ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते॥
सुंदर सकल अलंकृत सोहे। जिन्हहि बिलोकत मुनि मन मोहे॥
जे जल चलहिं थलहि की नाई। टाप न बूड़ बेग अधिकाई॥
अस्त्र सस्त्र सबु साजु बनाई। रथी सारथिन्ह लिए बोलाई॥
दो०-चढ़ि चढ़ि रथ बाहेर नगर लागी जुरन बरात।
होत सगुन सुन्दर सबहि जो जेहि कारज जात॥२९९॥
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कलित करिबरन्हि परीं अँबारीं। कहि न जाहिं जेहि भाँति सँवारीं॥
चले मत्तगज घंट बिराजी। मनहुँ सुभग सावन घन राजी॥
बाहन अपर अनेक बिधाना। सिबिका सुभग सुखासन जाना॥
तिन्ह चढ़ि चले बिप्रबर बृन्दा। जनु तनु धरें सकल श्रुति छंदा॥
मागध सूत बंदि गुनगायक। चले जान चढ़ि जो जेहि लायक॥
बेसर ऊँट बृषभ बहु जाती। चले बस्तु भरि अगनित भाँती॥
कोटिन्ह काँवरि चले कहारा। बिबिध बस्तु को बरनै पारा॥
चले सकल सेवक समुदाई। निज निज साजु समाजु बनाई॥
दो०-सब कें उर निर्भर हरषु पूरित पुलक सरीर।
कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनू दोउ बीर॥३००॥
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गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा॥
निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना॥
महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान पबारें॥
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिँएँ आरती मंगल थारी॥
गावहिं गीत मनोहर नाना। अति आनंदु न जाइ बखाना॥
तब सुमंत्र दुइ स्पंदन साजी। जोते रबि हय निंदक बाजी॥
दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने। नहिं सारद पहिं जाहिं बखाने॥
राज समाजु एक रथ साजा। दूसर तेज पुंज अति भ्राजा॥
दो०-तेहिं रथ रुचिर बसिष्ठ कहुँ हरषि चढ़ाइ नरेसु।
आपु चढ़ेउ स्पंदन सुमिरि हर गुर गौरि गनेसु॥३०१॥
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सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें। सुर गुर संग पुरंदर जैसें॥
करि कुल रीति बेद बिधि राऊ। देखि सबहि सब भाँति बनाऊ॥
सुमिरि रामु गुर आयसु पाई। चले महीपति संख बजाई॥
हरषे बिबुध बिलोकि बराता। बरषहिं सुमन सुमंगल दाता॥
भयउ कोलाहल हय गय गाजे। ब्योम बरात बाजने बाजे॥
सुर नर नारि सुमंगल गाई। सरस राग बाजहिं सहनाई॥
घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं। सरव करहिं पाइक फहराहीं॥
करहिं बिदूषक कौतुक नाना। हास कुसल कल गान सुजाना ।
दो०-तुरग नचावहिं कुँअर बर अकनि मृदंग निसान॥
नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान॥३०२॥
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बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुंदर सुभदाता॥
चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मंगल कहि देई॥
दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूँ पावा॥
सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सवाल आव बर नारी॥
लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा। सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा॥
मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मंगल गन जनु दीन्हि देखाई॥
छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी॥
सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना॥
दो०-मंगलमय कल्यानमय अभिमत फल दातार।
जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक बार॥३०३॥
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मंगल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें॥
राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता॥
सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे॥
एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने निसाना॥
आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए सेतू॥
बीच बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस संपदा छाए॥
असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन भाए॥
नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मंदिर भूले॥
दो०-आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान।
सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान॥३०४॥
मासपारायण,दसवाँ विश्राम
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कनक कलस भरि कोपर थारा। भाजन ललित अनेक प्रकारा॥
भरे सुधासम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं बखाने॥
फल अनेक बर बस्तु सुहाईं। हरषि भेंट हित भूप पठाईं॥
भूषन बसन महामनि नाना। खग मृग हय गय बहुबिधि जाना॥
मंगल सगुन सुगंध सुहाए। बहुत भाँति महिपाल पठाए॥
दधि चिउरा उपहार अपारा। भरि भरि काँवरि चले कहारा॥
अगवानन्ह जब दीखि बराता।उर आनंदु पुलक भर गाता॥
देखि बनाव सहित अगवाना। मुदित बरातिन्ह हने निसाना॥
दो०-हरषि परसपर मिलन हित कछुक चले बगमेल।
जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल॥३०५॥
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बरषि सुमन सुर सुंदरि गावहिं। मुदित देव दुंदुभीं बजावहिं॥
बस्तु सकल राखीं नृप आगें। बिनय कीन्ह तिन्ह अति अनुरागें॥
प्रेम समेत रायँ सबु लीन्हा। भै बकसीस जाचकन्हि दीन्हा॥
करि पूजा मान्यता बड़ाई। जनवासे कहुँ चले लवाई॥
बसन बिचित्र पाँवड़े परहीं। देखि धनहु धन मदु परिहरहीं॥
अति सुंदर दीन्हेउ जनवासा। जहँ सब कहुँ सब भाँति सुपासा॥
जानी सियँ बरात पुर आई। कछु निज महिमा प्रगटि जनाई॥
हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाई। भूप पहुनई करन पठाई॥
दो०-सिधि सब सिय आयसु अकनि गईं जहाँ जनवास।
लिएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग बिलास॥३०६॥
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निज निज बास बिलोकि बराती। सुर सुख सकल सुलभ सब भाँती॥
बिभव भेद कछु कोउ न जाना। सकल जनक कर करहिं बखाना॥
सिय महिमा रघुनायक जानी। हरषे हृदयँ हेतु पहिचानी॥
पितु आगमनु सुनत दोउ भाई। हृदयँ न अति आनंदु अमाई॥
सकुचन्ह कहि न सकत गुरु पाहीं। पितु दरसन लालचु मन माहीं॥
बिस्वामित्र बिनय बड़ि देखी। उपजा उर संतोषु बिसेषी॥
हरषि बंधु दोउ हृदयँ लगाए। पुलक अंग अंबक जल छाए॥
चले जहाँ दसरथु जनवासे। मनहुँ सरोबर तकेउ पिआसे॥
दो०- भूप बिलोके जबहिं मुनि आवत सुतन्ह समेत।
उठे हरषि सुखसिंधु महुँ चले थाह सी लेत॥३०७॥
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मुनिहि दंडवत कीन्ह महीसा। बार बार पद रज धरि सीसा॥
कौसिक राउ लिये उर लाई। कहि असीस पूछी कुसलाई॥
पुनि दंडवत करत दोउ भाई। देखि नृपति उर सुखु न समाई॥
सुत हियँ लाइ दुसह दुख मेटे। मृतक सरीर प्रान जनु भेंटे॥
पुनि बसिष्ठ पद सिर तिन्ह नाए। प्रेम मुदित मुनिबर उर लाए॥
बिप्र बृंद बंदे दुहुँ भाईं। मन भावती असीसें पाईं॥
भरत सहानुज कीन्ह प्रनामा। लिए उठाइ लाइ उर रामा॥
हरषे लखन देखि दोउ भ्राता। मिले प्रेम परिपूरित गाता॥
दो०-पुरजन परिजन जातिजन जाचक मंत्री मीत।
मिले जथाबिधि सबहि प्रभु परम कृपाल बिनीत॥३०८॥
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रामहि देखि बरात जुड़ानी। प्रीति कि रीति न जाति बखानी॥
नृप समीप सोहहिं सुत चारी। जनु धन धरमादिक तनुधारी॥
सुतन्ह समेत दसरथहि देखी। मुदित नगर नर नारि बिसेषी॥
सुमन बरिसि सुर हनहिं निसाना। नाकनटीं नाचहिं करि गाना॥
सतानंद अरु बिप्र सचिव गन। मागध सूत बिदुष बंदीजन॥
सहित बरात राउ सनमाना। आयसु मागि फिरे अगवाना॥
प्रथम बरात लगन तें आई। तातें पुर प्रमोदु अधिकाई॥
ब्रह्मानंदु लोग सब लहहीं। बढ़हुँ दिवस निसि बिधि सन कहहीं॥
दो०-रामु सीय सोभा अवधि सुकृत अवधि दोउ राज।
जहँ जहँ पुरजन कहहिं अस मिलि नर नारि समाज॥।३०९॥
–*–*–
जनक सुकृत मूरति बैदेही। दसरथ सुकृत रामु धरें देही॥
इन्ह सम काँहु न सिव अवराधे। काहिँ न इन्ह समान फल लाधे॥
इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं। है नहिं कतहूँ होनेउ नाहीं॥
हम सब सकल सुकृत कै रासी। भए जग जनमि जनकपुर बासी॥
जिन्ह जानकी राम छबि देखी। को सुकृती हम सरिस बिसेषी॥
पुनि देखब रघुबीर बिआहू। लेब भली बिधि लोचन लाहू॥
कहहिं परसपर कोकिलबयनीं। एहि बिआहँ बड़ लाभु सुनयनीं॥
बड़ें भाग बिधि बात बनाई। नयन अतिथि होइहहिं दोउ भाई॥
दो०-बारहिं बार सनेह बस जनक बोलाउब सीय।
लेन आइहहिं बंधु दोउ कोटि काम कमनीय॥३१०॥
–*–*–
बिबिध भाँति होइहि पहुनाई। प्रिय न काहि अस सासुर माई॥
तब तब राम लखनहि निहारी। होइहहिं सब पुर लोग सुखारी॥
सखि जस राम लखनकर जोटा। तैसेइ भूप संग दुइ ढोटा॥
स्याम गौर सब अंग सुहाए। ते सब कहहिं देखि जे आए॥
कहा एक मैं आजु निहारे। जनु बिरंचि निज हाथ सँवारे॥
भरतु रामही की अनुहारी। सहसा लखि न सकहिं नर नारी॥
लखनु सत्रुसूदनु एकरूपा। नख सिख ते सब अंग अनूपा॥
मन भावहिं मुख बरनि न जाहीं। उपमा कहुँ त्रिभुवन कोउ नाहीं॥
छं०-उपमा न कोउ कह दास तुलसी कतहुँ कबि कोबिद कहैं।
बल बिनय बिद्या सील सोभा सिंधु इन्ह से एइ अहैं॥
पुर नारि सकल पसारि अंचल बिधिहि बचन सुनावहीं॥
ब्याहिअहुँ चारिउ भाइ एहिं पुर हम सुमंगल गावहीं॥
सो०-कहहिं परस्पर नारि बारि बिलोचन पुलक तन।
सखि सबु करब पुरारि पुन्य पयोनिधि भूप दोउ॥३११॥
एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं। आनँद उमगि उमगि उर भरहीं॥
जे नृप सीय स्वयंबर आए। देखि बंधु सब तिन्ह सुख पाए॥
कहत राम जसु बिसद बिसाला। निज निज भवन गए महिपाला॥
गए बीति कुछ दिन एहि भाँती। प्रमुदित पुरजन सकल बराती॥
मंगल मूल लगन दिनु आवा। हिम रितु अगहनु मासु सुहावा॥
ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू। लगन सोधि बिधि कीन्ह बिचारू॥
पठै दीन्हि नारद सन सोई। गनी जनक के गनकन्ह जोई॥
सुनी सकल लोगन्ह यह बाता। कहहिं जोतिषी आहिं बिधाता॥
दो०-धेनुधूरि बेला बिमल सकल सुमंगल मूल।
बिप्रन्ह कहेउ बिदेह सन जानि सगुन अनुकुल॥३१२॥
–*–*–
उपरोहितहि कहेउ नरनाहा। अब बिलंब कर कारनु काहा॥
सतानंद तब सचिव बोलाए। मंगल सकल साजि सब ल्याए॥
संख निसान पनव बहु बाजे। मंगल कलस सगुन सुभ साजे॥
सुभग सुआसिनि गावहिं गीता। करहिं बेद धुनि बिप्र पुनीता॥
लेन चले सादर एहि भाँती। गए जहाँ जनवास बराती॥
कोसलपति कर देखि समाजू। अति लघु लाग तिन्हहि सुरराजू॥
भयउ समउ अब धारिअ पाऊ। यह सुनि परा निसानहिं घाऊ॥
गुरहि पूछि करि कुल बिधि राजा। चले संग मुनि साधु समाजा॥
दो०-भाग्य बिभव अवधेस कर देखि देव ब्रह्मादि।
लगे सराहन सहस मुख जानि जनम निज बादि॥३१३॥
–*–*–
सुरन्ह सुमंगल अवसरु जाना। बरषहिं सुमन बजाइ निसाना॥
सिव ब्रह्मादिक बिबुध बरूथा। चढ़े बिमानन्हि नाना जूथा॥
प्रेम पुलक तन हृदयँ उछाहू। चले बिलोकन राम बिआहू॥
देखि जनकपुरु सुर अनुरागे। निज निज लोक सबहिं लघु लागे॥
चितवहिं चकित बिचित्र बिताना। रचना सकल अलौकिक नाना॥
नगर नारि नर रूप निधाना। सुघर सुधरम सुसील सुजाना॥
तिन्हहि देखि सब सुर सुरनारीं। भए नखत जनु बिधु उजिआरीं॥
बिधिहि भयह आचरजु बिसेषी। निज करनी कछु कतहुँ न देखी॥
दो०-सिवँ समुझाए देव सब जनि आचरज भुलाहु।
हृदयँ बिचारहु धीर धरि सिय रघुबीर बिआहु॥३१४॥
–*–*–
जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं। सकल अमंगल मूल नसाहीं॥
करतल होहिं पदारथ चारी। तेइ सिय रामु कहेउ कामारी॥
एहि बिधि संभु सुरन्ह समुझावा। पुनि आगें बर बसह चलावा॥
देवन्ह देखे दसरथु जाता। महामोद मन पुलकित गाता॥
साधु समाज संग महिदेवा। जनु तनु धरें करहिं सुख सेवा॥
सोहत साथ सुभग सुत चारी। जनु अपबरग सकल तनुधारी॥
मरकत कनक बरन बर जोरी। देखि सुरन्ह भै प्रीति न थोरी॥
पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे। नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे॥
दो०-राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि॥३१५॥
–*–*–
केकि कंठ दुति स्यामल अंगा। तड़ित बिनिंदक बसन सुरंगा॥
ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए। मंगल सब सब भाँति सुहाए॥
सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन। नयन नवल राजीव लजावन॥
सकल अलौकिक सुंदरताई। कहि न जाइ मनहीं मन भाई॥
बंधु मनोहर सोहहिं संगा। जात नचावत चपल तुरंगा॥
राजकुअँर बर बाजि देखावहिं। बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं॥
जेहि तुरंग पर रामु बिराजे। गति बिलोकि खगनायकु लाजे॥
कहि न जाइ सब भाँति सुहावा। बाजि बेषु जनु काम बनावा॥
छं०-जनु बाजि बेषु बनाइ मनसिजु राम हित अति सोहई।
आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई॥
जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे।
किंकिनि ललाम लगामु ललित बिलोकि सुर नर मुनि ठगे॥
दो०-प्रभु मनसहिं लयलीन मनु चलत बाजि छबि पाव।
भूषित उड़गन तड़ित घनु जनु बर बरहि नचाव॥३१६॥
–*–*–
जेहिं बर बाजि रामु असवारा। तेहि सारदउ न बरनै पारा॥
संकरु राम रूप अनुरागे। नयन पंचदस अति प्रिय लागे॥
हरि हित सहित रामु जब जोहे। रमा समेत रमापति मोहे॥
निरखि राम छबि बिधि हरषाने। आठइ नयन जानि पछिताने॥
सुर सेनप उर बहुत उछाहू। बिधि ते डेवढ़ लोचन लाहू॥
रामहि चितव सुरेस सुजाना। गौतम श्रापु परम हित माना॥
देव सकल सुरपतिहि सिहाहीं। आजु पुरंदर सम कोउ नाहीं॥
मुदित देवगन रामहि देखी। नृपसमाज दुहुँ हरषु बिसेषी॥
छं०-अति हरषु राजसमाज दुहु दिसि दुंदुभीं बाजहिं घनी।
बरषहिं सुमन सुर हरषि कहि जय जयति जय रघुकुलमनी॥
एहि भाँति जानि बरात आवत बाजने बहु बाजहीं।
रानि सुआसिनि बोलि परिछनि हेतु मंगल साजहीं॥
दो०-सजि आरती अनेक बिधि मंगल सकल सँवारि।
चलीं मुदित परिछनि करन गजगामिनि बर नारि॥३१७॥
–*–*–
बिधुबदनीं सब सब मृगलोचनि। सब निज तन छबि रति मदु मोचनि॥
पहिरें बरन बरन बर चीरा। सकल बिभूषन सजें सरीरा॥
सकल सुमंगल अंग बनाएँ। करहिं गान कलकंठि लजाएँ॥
कंकन किंकिनि नूपुर बाजहिं। चालि बिलोकि काम गज लाजहिं॥
बाजहिं बाजने बिबिध प्रकारा। नभ अरु नगर सुमंगलचारा॥
सची सारदा रमा भवानी। जे सुरतिय सुचि सहज सयानी॥
कपट नारि बर बेष बनाई। मिलीं सकल रनिवासहिं जाई॥
करहिं गान कल मंगल बानीं। हरष बिबस सब काहुँ न जानी॥
छं०-को जान केहि आनंद बस सब ब्रह्मु बर परिछन चली।
कल गान मधुर निसान बरषहिं सुमन सुर सोभा भली॥
आनंदकंदु बिलोकि दूलहु सकल हियँ हरषित भई॥
अंभोज अंबक अंबु उमगि सुअंग पुलकावलि छई॥
दो०-जो सुख भा सिय मातु मन देखि राम बर बेषु।
सो न सकहिं कहि कलप सत सहस सारदा सेषु॥३१८॥
–*–*–
नयन नीरु हटि मंगल जानी। परिछनि करहिं मुदित मन रानी॥
बेद बिहित अरु कुल आचारू। कीन्ह भली बिधि सब ब्यवहारू॥
पंच सबद धुनि मंगल गाना। पट पाँवड़े परहिं बिधि नाना॥
करि आरती अरघु तिन्ह दीन्हा। राम गमनु मंडप तब कीन्हा॥
दसरथु सहित समाज बिराजे। बिभव बिलोकि लोकपति लाजे॥
समयँ समयँ सुर बरषहिं फूला। सांति पढ़हिं महिसुर अनुकूला॥
नभ अरु नगर कोलाहल होई। आपनि पर कछु सुनइ न कोई॥
एहि बिधि रामु मंडपहिं आए। अरघु देइ आसन बैठाए॥
छं०-बैठारि आसन आरती करि निरखि बरु सुखु पावहीं॥
मनि बसन भूषन भूरि वारहिं नारि मंगल गावहीं॥
ब्रह्मादि सुरबर बिप्र बेष बनाइ कौतुक देखहीं।
अवलोकि रघुकुल कमल रबि छबि सुफल जीवन लेखहीं॥
दो०-नाऊ बारी भाट नट राम निछावरि पाइ।
मुदित असीसहिं नाइ सिर हरषु न हृदयँ समाइ॥३१९॥
–*–*–
मिले जनकु दसरथु अति प्रीतीं। करि बैदिक लौकिक सब रीतीं॥
मिलत महा दोउ राज बिराजे। उपमा खोजि खोजि कबि लाजे॥
लही न कतहुँ हारि हियँ मानी। इन्ह सम एइ उपमा उर आनी॥
सामध देखि देव अनुरागे। सुमन बरषि जसु गावन लागे॥
जगु बिरंचि उपजावा जब तें। देखे सुने ब्याह बहु तब तें॥
सकल भाँति सम साजु समाजू। सम समधी देखे हम आजू॥
देव गिरा सुनि सुंदर साँची। प्रीति अलौकिक दुहु दिसि माची॥
देत पाँवड़े अरघु सुहाए। सादर जनकु मंडपहिं ल्याए॥
छं०-मंडपु बिलोकि बिचीत्र रचनाँ रुचिरताँ मुनि मन हरे॥
निज पानि जनक सुजान सब कहुँ आनि सिंघासन धरे॥
कुल इष्ट सरिस बसिष्ट पूजे बिनय करि आसिष लही।
कौसिकहि पूजत परम प्रीति कि रीति तौ न परै कही॥
दो०-बामदेव आदिक रिषय पूजे मुदित महीस।
दिए दिब्य आसन सबहि सब सन लही असीस॥३२०॥
–*–*–
बहुरि कीन्ह कोसलपति पूजा। जानि ईस सम भाउ न दूजा॥
कीन्ह जोरि कर बिनय बड़ाई। कहि निज भाग्य बिभव बहुताई॥
पूजे भूपति सकल बराती। समधि सम सादर सब भाँती॥
आसन उचित दिए सब काहू। कहौं काह मूख एक उछाहू॥
सकल बरात जनक सनमानी। दान मान बिनती बर बानी॥
बिधि हरि हरु दिसिपति दिनराऊ। जे जानहिं रघुबीर प्रभाऊ॥
कपट बिप्र बर बेष बनाएँ। कौतुक देखहिं अति सचु पाएँ॥
पूजे जनक देव सम जानें। दिए सुआसन बिनु पहिचानें॥
छं०-पहिचान को केहि जान सबहिं अपान सुधि भोरी भई।
आनंद कंदु बिलोकि दूलहु उभय दिसि आनँद मई॥
सुर लखे राम सुजान पूजे मानसिक आसन दए।
अवलोकि सीलु सुभाउ प्रभु को बिबुध मन प्रमुदित भए॥
दो०-रामचंद्र मुख चंद्र छबि लोचन चारु चकोर।
करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न थोर॥३२१॥
–*–*–
समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए। सादर सतानंदु सुनि आए॥
बेगि कुअँरि अब आनहु जाई। चले मुदित मुनि आयसु पाई॥
रानी सुनि उपरोहित बानी। प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी॥
बिप्र बधू कुलबृद्ध बोलाईं। करि कुल रीति सुमंगल गाईं॥
नारि बेष जे सुर बर बामा। सकल सुभायँ सुंदरी स्यामा॥
तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारीं। बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं॥
बार बार सनमानहिं रानी। उमा रमा सारद सम जानी॥
सीय सँवारि समाजु बनाई। मुदित मंडपहिं चलीं लवाई॥
छं०-चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमंगल भामिनीं।
नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर गामिनीं॥
कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं।
मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गती बर बाजहीं॥
दो०-सोहति बनिता बृंद महुँ सहज सुहावनि सीय।
छबि ललना गन मध्य जनु सुषमा तिय कमनीय॥३२२॥
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सिय सुंदरता बरनि न जाई। लघु मति बहुत मनोहरताई॥
आवत दीखि बरातिन्ह सीता॥रूप रासि सब भाँति पुनीता॥
सबहि मनहिं मन किए प्रनामा। देखि राम भए पूरनकामा॥
हरषे दसरथ सुतन्ह समेता। कहि न जाइ उर आनँदु जेता॥
सुर प्रनामु करि बरसहिं फूला। मुनि असीस धुनि मंगल मूला॥
गान निसान कोलाहलु भारी। प्रेम प्रमोद मगन नर नारी॥
एहि बिधि सीय मंडपहिं आई। प्रमुदित सांति पढ़हिं मुनिराई॥
तेहि अवसर कर बिधि ब्यवहारू। दुहुँ कुलगुर सब कीन्ह अचारू॥
छं०-आचारु करि गुर गौरि गनपति मुदित बिप्र पुजावहीं।
सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु पावहीं॥
मधुपर्क मंगल द्रब्य जो जेहि समय मुनि मन महुँ चहैं।
भरे कनक कोपर कलस सो सब लिएहिं परिचारक रहैं॥१॥
कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर कियो।
एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासनु दियो॥
सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेम काहु न लखि परै॥
मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें करै॥२॥
दो०-होम समय तनु धरि अनलु अति सुख आहुति लेहिं।
बिप्र बेष धरि बेद सब कहि बिबाह बिधि देहिं॥३२३॥
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जनक पाटमहिषी जग जानी। सीय मातु किमि जाइ बखानी॥
सुजसु सुकृत सुख सुदंरताई। सब समेटि बिधि रची बनाई॥
समउ जानि मुनिबरन्ह बोलाई। सुनत सुआसिनि सादर ल्याई॥
जनक बाम दिसि सोह सुनयना। हिमगिरि संग बनि जनु मयना॥
कनक कलस मनि कोपर रूरे। सुचि सुंगध मंगल जल पूरे॥
निज कर मुदित रायँ अरु रानी। धरे राम के आगें आनी॥
पढ़हिं बेद मुनि मंगल बानी। गगन सुमन झरि अवसरु जानी॥
बरु बिलोकि दंपति अनुरागे। पाय पुनीत पखारन लागे॥
छं०-लागे पखारन पाय पंकज प्रेम तन पुलकावली।
नभ नगर गान निसान जय धुनि उमगि जनु चहुँ दिसि चली॥
जे पद सरोज मनोज अरि उर सर सदैव बिराजहीं।
जे सकृत सुमिरत बिमलता मन सकल कलि मल भाजहीं॥१॥
जे परसि मुनिबनिता लही गति रही जो पातकमई।
मकरंदु जिन्ह को संभु सिर सुचिता अवधि सुर बरनई॥
करि मधुप मन मुनि जोगिजन जे सेइ अभिमत गति लहैं।
ते पद पखारत भाग्यभाजनु जनकु जय जय सब कहै॥२॥
बर कुअँरि करतल जोरि साखोचारु दोउ कुलगुर करैं।
भयो पानिगहनु बिलोकि बिधि सुर मनुज मुनि आँनद भरैं॥
सुखमूल दूलहु देखि दंपति पुलक तन हुलस्यो हियो।
करि लोक बेद बिधानु कन्यादानु नृपभूषन कियो॥३॥
हिमवंत जिमि गिरिजा महेसहि हरिहि श्री सागर दई।
तिमि जनक रामहि सिय समरपी बिस्व कल कीरति नई॥
क्यों करै बिनय बिदेहु कियो बिदेहु मूरति सावँरी।
करि होम बिधिवत गाँठि जोरी होन लागी भावँरी॥४॥
दो०-जय धुनि बंदी बेद धुनि मंगल गान निसान।
सुनि हरषहिं बरषहिं बिबुध सुरतरु सुमन सुजान॥३२४॥
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कुअँरु कुअँरि कल भावँरि देहीं॥नयन लाभु सब सादर लेहीं॥
जाइ न बरनि मनोहर जोरी। जो उपमा कछु कहौं सो थोरी॥
राम सीय सुंदर प्रतिछाहीं। जगमगात मनि खंभन माहीं ।
मनहुँ मदन रति धरि बहु रूपा। देखत राम बिआहु अनूपा॥
दरस लालसा सकुच न थोरी। प्रगटत दुरत बहोरि बहोरी॥
भए मगन सब देखनिहारे। जनक समान अपान बिसारे॥
प्रमुदित मुनिन्ह भावँरी फेरी। नेगसहित सब रीति निबेरीं॥
राम सीय सिर सेंदुर देहीं। सोभा कहि न जाति बिधि केहीं॥
अरुन पराग जलजु भरि नीकें। ससिहि भूष अहि लोभ अमी कें॥
बहुरि बसिष्ठ दीन्ह अनुसासन। बरु दुलहिनि बैठे एक आसन॥
छं०-बैठे बरासन रामु जानकि मुदित मन दसरथु भए।
तनु पुलक पुनि पुनि देखि अपनें सुकृत सुरतरु फल नए॥
भरि भुवन रहा उछाहु राम बिबाहु भा सबहीं कहा।
केहि भाँति बरनि सिरात रसना एक यहु मंगलु महा॥१॥
तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै।
माँडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि के॥
कुसकेतु कन्या प्रथम जो गुन सील सुख सोभामई।
सब रीति प्रीति समेत करि सो ब्याहि नृप भरतहि दई॥२॥
जानकी लघु भगिनी सकल सुंदरि सिरोमनि जानि कै।
सो तनय दीन्ही ब्याहि लखनहि सकल बिधि सनमानि कै॥
जेहि नामु श्रुतकीरति सुलोचनि सुमुखि सब गुन आगरी।
सो दई रिपुसूदनहि भूपति रूप सील उजागरी॥३॥
अनुरुप बर दुलहिनि परस्पर लखि सकुच हियँ हरषहीं।
सब मुदित सुंदरता सराहहिं सुमन सुर गन बरषहीं॥
सुंदरी सुंदर बरन्ह सह सब एक मंडप राजहीं।
जनु जीव उर चारिउ अवस्था बिमुन सहित बिराजहीं॥४॥
दो०-मुदित अवधपति सकल सुत बधुन्ह समेत निहारि।
जनु पार महिपाल मनि क्रियन्ह सहित फल चारि॥३२५॥
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जसि रघुबीर ब्याह बिधि बरनी। सकल कुअँर ब्याहे तेहिं करनी॥
कहि न जाइ कछु दाइज भूरी। रहा कनक मनि मंडपु पूरी॥
कंबल बसन बिचित्र पटोरे। भाँति भाँति बहु मोल न थोरे॥
गज रथ तुरग दास अरु दासी। धेनु अलंकृत कामदुहा सी॥
बस्तु अनेक करिअ किमि लेखा। कहि न जाइ जानहिं जिन्ह देखा॥
लोकपाल अवलोकि सिहाने। लीन्ह अवधपति सबु सुखु माने॥
दीन्ह जाचकन्हि जो जेहि भावा। उबरा सो जनवासेहिं आवा॥
तब कर जोरि जनकु मृदु बानी। बोले सब बरात सनमानी॥
छं०-सनमानि सकल बरात आदर दान बिनय बड़ाइ कै।
प्रमुदित महा मुनि बृंद बंदे पूजि प्रेम लड़ाइ कै॥
सिरु नाइ देव मनाइ सब सन कहत कर संपुट किएँ।
सुर साधु चाहत भाउ सिंधु कि तोष जल अंजलि दिएँ॥१॥
कर जोरि जनकु बहोरि बंधु समेत कोसलराय सों।
बोले मनोहर बयन सानि सनेह सील सुभाय सों॥
संबंध राजन रावरें हम बड़े अब सब बिधि भए।
एहि राज साज समेत सेवक जानिबे बिनु गथ लए॥२॥
ए दारिका परिचारिका करि पालिबीं करुना नई।
अपराधु छमिबो बोलि पठए बहुत हौं ढीट्यो कई॥
पुनि भानुकुलभूषन सकल सनमान निधि समधी किए।
कहि जाति नहिं बिनती परस्पर प्रेम परिपूरन हिए॥३॥
बृंदारका गन सुमन बरिसहिं राउ जनवासेहि चले।
दुंदुभी जय धुनि बेद धुनि नभ नगर कौतूहल भले॥
तब सखीं मंगल गान करत मुनीस आयसु पाइ कै।
दूलह दुलहिनिन्ह सहित सुंदरि चलीं कोहबर ल्याइ कै॥४॥
दो०-पुनि पुनि रामहि चितव सिय सकुचति मनु सकुचै न।
हरत मनोहर मीन छबि प्रेम पिआसे नैन॥३२६॥
मासपारायण, ग्यारहवाँ विश्राम
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स्याम सरीरु सुभायँ सुहावन। सोभा कोटि मनोज लजावन॥
जावक जुत पद कमल सुहाए। मुनि मन मधुप रहत जिन्ह छाए॥
पीत पुनीत मनोहर धोती। हरति बाल रबि दामिनि जोती॥
कल किंकिनि कटि सूत्र मनोहर। बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर॥
पीत जनेउ महाछबि देई। कर मुद्रिका चोरि चितु लेई॥
सोहत ब्याह साज सब साजे। उर आयत उरभूषन राजे॥
पिअर उपरना काखासोती। दुहुँ आँचरन्हि लगे मनि मोती॥
नयन कमल कल कुंडल काना। बदनु सकल सौंदर्ज निधाना॥
सुंदर भृकुटि मनोहर नासा। भाल तिलकु रुचिरता निवासा॥
सोहत मौरु मनोहर माथे। मंगलमय मुकुता मनि गाथे॥
छं०-गाथे महामनि मौर मंजुल अंग सब चित चोरहीं।
पुर नारि सुर सुंदरीं बरहि बिलोकि सब तिन तोरहीं॥
मनि बसन भूषन वारि आरति करहिं मंगल गावहिं।
सुर सुमन बरिसहिं सूत मागध बंदि सुजसु सुनावहीं॥१॥
कोहबरहिं आने कुँअर कुँअरि सुआसिनिन्ह सुख पाइ कै।
अति प्रीति लौकिक रीति लागीं करन मंगल गाइ कै॥
लहकौरि गौरि सिखाव रामहि सीय सन सारद कहैं।
रनिवासु हास बिलास रस बस जन्म को फलु सब लहैं॥२॥
निज पानि मनि महुँ देखिअति मूरति सुरूपनिधान की।
चालति न भुजबल्ली बिलोकनि बिरह भय बस जानकी॥
कौतुक बिनोद प्रमोदु प्रेमु न जाइ कहि जानहिं अलीं।
बर कुअँरि सुंदर सकल सखीं लवाइ जनवासेहि चलीं॥३॥
तेहि समय सुनिअ असीस जहँ तहँ नगर नभ आनँदु महा।
चिरु जिअहुँ जोरीं चारु चारयो मुदित मन सबहीं कहा॥
जोगीन्द्र सिद्ध मुनीस देव बिलोकि प्रभु दुंदुभि हनी।
चले हरषि बरषि प्रसून निज निज लोक जय जय जय भनी॥४॥
दो०-सहित बधूटिन्ह कुअँर सब तब आए पितु पास।
सोभा मंगल मोद भरि उमगेउ जनु जनवास॥३२७॥
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पुनि जेवनार भई बहु भाँती। पठए जनक बोलाइ बराती॥
परत पाँवड़े बसन अनूपा। सुतन्ह समेत गवन कियो भूपा॥
सादर सबके पाय पखारे। जथाजोगु पीढ़न्ह बैठारे॥
धोए जनक अवधपति चरना। सीलु सनेहु जाइ नहिं बरना॥
बहुरि राम पद पंकज धोए। जे हर हृदय कमल महुँ गोए॥
तीनिउ भाई राम सम जानी। धोए चरन जनक निज पानी॥
आसन उचित सबहि नृप दीन्हे। बोलि सूपकारी सब लीन्हे॥
सादर लगे परन पनवारे। कनक कील मनि पान सँवारे॥
दो०-सूपोदन सुरभी सरपि सुंदर स्वादु पुनीत।
छन महुँ सब कें परुसि गे चतुर सुआर बिनीत॥३२८॥
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पंच कवल करि जेवन लअगे। गारि गान सुनि अति अनुरागे॥
भाँति अनेक परे पकवाने। सुधा सरिस नहिं जाहिं बखाने॥
परुसन लगे सुआर सुजाना। बिंजन बिबिध नाम को जाना॥
चारि भाँति भोजन बिधि गाई। एक एक बिधि बरनि न जाई॥
छरस रुचिर बिंजन बहु जाती। एक एक रस अगनित भाँती॥
जेवँत देहिं मधुर धुनि गारी। लै लै नाम पुरुष अरु नारी॥
समय सुहावनि गारि बिराजा। हँसत राउ सुनि सहित समाजा॥
एहि बिधि सबहीं भौजनु कीन्हा। आदर सहित आचमनु दीन्हा॥
दो०-देइ पान पूजे जनक दसरथु सहित समाज।
जनवासेहि गवने मुदित सकल भूप सिरताज॥३२९॥
–*–*–
नित नूतन मंगल पुर माहीं। निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं॥
बड़े भोर भूपतिमनि जागे। जाचक गुन गन गावन लागे॥
देखि कुअँर बर बधुन्ह समेता। किमि कहि जात मोदु मन जेता॥
प्रातक्रिया करि गे गुरु पाहीं। महाप्रमोदु प्रेमु मन माहीं॥
करि प्रनाम पूजा कर जोरी। बोले गिरा अमिअँ जनु बोरी॥
तुम्हरी कृपाँ सुनहु मुनिराजा। भयउँ आजु मैं पूरनकाजा॥
अब सब बिप्र बोलाइ गोसाईं। देहु धेनु सब भाँति बनाई॥
सुनि गुर करि महिपाल बड़ाई। पुनि पठए मुनि बृंद बोलाई॥
दो०-बामदेउ अरु देवरिषि बालमीकि जाबालि।
आए मुनिबर निकर तब कौसिकादि तपसालि॥३३०॥
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दंड प्रनाम सबहि नृप कीन्हे। पूजि सप्रेम बरासन दीन्हे॥
चारि लच्छ बर धेनु मगाई। कामसुरभि सम सील सुहाई॥
सब बिधि सकल अलंकृत कीन्हीं। मुदित महिप महिदेवन्ह दीन्हीं॥
करत बिनय बहु बिधि नरनाहू। लहेउँ आजु जग जीवन लाहू॥
पाइ असीस महीसु अनंदा। लिए बोलि पुनि जाचक बृंदा॥
कनक बसन मनि हय गय स्यंदन। दिए बूझि रुचि रबिकुलनंदन॥
चले पढ़त गावत गुन गाथा। जय जय जय दिनकर कुल नाथा॥
एहि बिधि राम बिआह उछाहू। सकइ न बरनि सहस मुख जाहू॥
दो०-बार बार कौसिक चरन सीसु नाइ कह राउ।
यह सबु सुखु मुनिराज तव कृपा कटाच्छ पसाउ॥३३१॥
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जनक सनेहु सीलु करतूती। नृपु सब भाँति सराह बिभूती॥
दिन उठि बिदा अवधपति मागा। राखहिं जनकु सहित अनुरागा॥
नित नूतन आदरु अधिकाई। दिन प्रति सहस भाँति पहुनाई॥
नित नव नगर अनंद उछाहू। दसरथ गवनु सोहाइ न काहू॥
बहुत दिवस बीते एहि भाँती। जनु सनेह रजु बँधे बराती॥
कौसिक सतानंद तब जाई। कहा बिदेह नृपहि समुझाई॥
अब दसरथ कहँ आयसु देहू। जद्यपि छाड़ि न सकहु सनेहू॥
भलेहिं नाथ कहि सचिव बोलाए। कहि जय जीव सीस तिन्ह नाए॥
दो०-अवधनाथु चाहत चलन भीतर करहु जनाउ।
भए प्रेमबस सचिव सुनि बिप्र सभासद राउ॥३३२॥
–*–*–
पुरबासी सुनि चलिहि बराता। बूझत बिकल परस्पर बाता॥
सत्य गवनु सुनि सब बिलखाने। मनहुँ साँझ सरसिज सकुचाने॥
जहँ जहँ आवत बसे बराती। तहँ तहँ सिद्ध चला बहु भाँती॥
बिबिध भाँति मेवा पकवाना। भोजन साजु न जाइ बखाना॥
भरि भरि बसहँ अपार कहारा। पठई जनक अनेक सुसारा॥
तुरग लाख रथ सहस पचीसा। सकल सँवारे नख अरु सीसा॥
मत्त सहस दस सिंधुर साजे। जिन्हहि देखि दिसिकुंजर लाजे॥
कनक बसन मनि भरि भरि जाना। महिषीं धेनु बस्तु बिधि नाना॥
दो०-दाइज अमित न सकिअ कहि दीन्ह बिदेहँ बहोरि।
जो अवलोकत लोकपति लोक संपदा थोरि॥३३३॥
–*–*–
सबु समाजु एहि भाँति बनाई। जनक अवधपुर दीन्ह पठाई॥
चलिहि बरात सुनत सब रानीं। बिकल मीनगन जनु लघु पानीं॥
पुनि पुनि सीय गोद करि लेहीं। देइ असीस सिखावनु देहीं॥
होएहु संतत पियहि पिआरी। चिरु अहिबात असीस हमारी॥
सासु ससुर गुर सेवा करेहू। पति रुख लखि आयसु अनुसरेहू॥
अति सनेह बस सखीं सयानी। नारि धरम सिखवहिं मृदु बानी॥
सादर सकल कुअँरि समुझाई। रानिन्ह बार बार उर लाई॥
बहुरि बहुरि भेटहिं महतारीं। कहहिं बिरंचि रचीं कत नारीं॥
दो०-तेहि अवसर भाइन्ह सहित रामु भानु कुल केतु।
चले जनक मंदिर मुदित बिदा करावन हेतु॥३३४॥
–*–*–
चारिअ भाइ सुभायँ सुहाए। नगर नारि नर देखन धाए॥
कोउ कह चलन चहत हहिं आजू। कीन्ह बिदेह बिदा कर साजू॥
लेहु नयन भरि रूप निहारी। प्रिय पाहुने भूप सुत चारी॥
को जानै केहि सुकृत सयानी। नयन अतिथि कीन्हे बिधि आनी॥
मरनसीलु जिमि पाव पिऊषा। सुरतरु लहै जनम कर भूखा॥
पाव नारकी हरिपदु जैसें। इन्ह कर दरसनु हम कहँ तैसे॥
निरखि राम सोभा उर धरहू। निज मन फनि मूरति मनि करहू॥
एहि बिधि सबहि नयन फलु देता। गए कुअँर सब राज निकेता॥
दो०-रूप सिंधु सब बंधु लखि हरषि उठा रनिवासु।
करहि निछावरि आरती महा मुदित मन सासु॥३३५॥
–*–*–
देखि राम छबि अति अनुरागीं। प्रेमबिबस पुनि पुनि पद लागीं॥
रही न लाज प्रीति उर छाई। सहज सनेहु बरनि किमि जाई॥
भाइन्ह सहित उबटि अन्हवाए। छरस असन अति हेतु जेवाँए॥
बोले रामु सुअवसरु जानी। सील सनेह सकुचमय बानी॥
राउ अवधपुर चहत सिधाए। बिदा होन हम इहाँ पठाए॥
मातु मुदित मन आयसु देहू। बालक जानि करब नित नेहू॥
सुनत बचन बिलखेउ रनिवासू। बोलि न सकहिं प्रेमबस सासू॥
हृदयँ लगाइ कुअँरि सब लीन्ही। पतिन्ह सौंपि बिनती अति कीन्ही॥
छं०-करि बिनय सिय रामहि समरपी जोरि कर पुनि पुनि कहै।
बलि जाँउ तात सुजान तुम्ह कहुँ बिदित गति सब की अहै॥
परिवार पुरजन मोहि राजहि प्रानप्रिय सिय जानिबी।
तुलसीस सीलु सनेहु लखि निज किंकरी करि मानिबी॥
सो०-तुम्ह परिपूरन काम जान सिरोमनि भावप्रिय।
जन गुन गाहक राम दोष दलन करुनायतन॥३३६॥
अस कहि रही चरन गहि रानी। प्रेम पंक जनु गिरा समानी॥
सुनि सनेहसानी बर बानी। बहुबिधि राम सासु सनमानी॥
राम बिदा मागत कर जोरी। कीन्ह प्रनामु बहोरि बहोरी॥
पाइ असीस बहुरि सिरु नाई। भाइन्ह सहित चले रघुराई॥
मंजु मधुर मूरति उर आनी। भई सनेह सिथिल सब रानी॥
पुनि धीरजु धरि कुअँरि हँकारी। बार बार भेटहिं महतारीं॥
पहुँचावहिं फिरि मिलहिं बहोरी। बढ़ी परस्पर प्रीति न थोरी॥
पुनि पुनि मिलत सखिन्ह बिलगाई। बाल बच्छ जिमि धेनु लवाई॥
दो०-प्रेमबिबस नर नारि सब सखिन्ह सहित रनिवासु।
मानहुँ कीन्ह बिदेहपुर करुनाँ बिरहँ निवासु॥३३७॥
–*–*–
सुक सारिका जानकी ज्याए। कनक पिंजरन्हि राखि पढ़ाए॥
ब्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही। सुनि धीरजु परिहरइ न केही॥
भए बिकल खग मृग एहि भाँति। मनुज दसा कैसें कहि जाती॥
बंधु समेत जनकु तब आए। प्रेम उमगि लोचन जल छाए॥
सीय बिलोकि धीरता भागी। रहे कहावत परम बिरागी॥
लीन्हि राँय उर लाइ जानकी। मिटी महामरजाद ग्यान की॥
समुझावत सब सचिव सयाने। कीन्ह बिचारु न अवसर जाने॥
बारहिं बार सुता उर लाई। सजि सुंदर पालकीं मगाई॥
दो०-प्रेमबिबस परिवारु सबु जानि सुलगन नरेस।
कुँअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस॥३३८॥
–*–*–
बहुबिधि भूप सुता समुझाई। नारिधरमु कुलरीति सिखाई॥
दासीं दास दिए बहुतेरे। सुचि सेवक जे प्रिय सिय केरे॥
सीय चलत ब्याकुल पुरबासी। होहिं सगुन सुभ मंगल रासी॥
भूसुर सचिव समेत समाजा। संग चले पहुँचावन राजा॥
समय बिलोकि बाजने बाजे। रथ गज बाजि बरातिन्ह साजे॥
दसरथ बिप्र बोलि सब लीन्हे। दान मान परिपूरन कीन्हे॥
चरन सरोज धूरि धरि सीसा। मुदित महीपति पाइ असीसा॥
सुमिरि गजाननु कीन्ह पयाना। मंगलमूल सगुन भए नाना॥
दो०-सुर प्रसून बरषहि हरषि करहिं अपछरा गान।
चले अवधपति अवधपुर मुदित बजाइ निसान॥३३९॥
–*–*–
नृप करि बिनय महाजन फेरे। सादर सकल मागने टेरे॥
भूषन बसन बाजि गज दीन्हे। प्रेम पोषि ठाढ़े सब कीन्हे॥
बार बार बिरिदावलि भाषी। फिरे सकल रामहि उर राखी॥
बहुरि बहुरि कोसलपति कहहीं। जनकु प्रेमबस फिरै न चहहीं॥
पुनि कह भूपति बचन सुहाए। फिरिअ महीस दूरि बड़ि आए॥
राउ बहोरि उतरि भए ठाढ़े। प्रेम प्रबाह बिलोचन बाढ़े॥
तब बिदेह बोले कर जोरी। बचन सनेह सुधाँ जनु बोरी॥
करौ कवन बिधि बिनय बनाई। महाराज मोहि दीन्हि बड़ाई॥
दो०-कोसलपति समधी सजन सनमाने सब भाँति।
मिलनि परसपर बिनय अति प्रीति न हृदयँ समाति॥३४०॥
–*–*–
मुनि मंडलिहि जनक सिरु नावा। आसिरबादु सबहि सन पावा॥
सादर पुनि भेंटे जामाता। रूप सील गुन निधि सब भ्राता॥
जोरि पंकरुह पानि सुहाए। बोले बचन प्रेम जनु जाए॥
राम करौ केहि भाँति प्रसंसा। मुनि महेस मन मानस हंसा॥
करहिं जोग जोगी जेहि लागी। कोहु मोहु ममता मदु त्यागी॥
ब्यापकु ब्रह्मु अलखु अबिनासी। चिदानंदु निरगुन गुनरासी॥
मन समेत जेहि जान न बानी। तरकि न सकहिं सकल अनुमानी॥
महिमा निगमु नेति कहि कहई। जो तिहुँ काल एकरस रहई॥
दो०-नयन बिषय मो कहुँ भयउ सो समस्त सुख मूल।
सबइ लाभु जग जीव कहँ भएँ ईसु अनुकुल॥३४१॥
–*–*–
सबहि भाँति मोहि दीन्हि बड़ाई। निज जन जानि लीन्ह अपनाई॥
होहिं सहस दस सारद सेषा। करहिं कलप कोटिक भरि लेखा॥
मोर भाग्य राउर गुन गाथा। कहि न सिराहिं सुनहु रघुनाथा॥
मै कछु कहउँ एक बल मोरें। तुम्ह रीझहु सनेह सुठि थोरें॥
बार बार मागउँ कर जोरें। मनु परिहरै चरन जनि भोरें॥
सुनि बर बचन प्रेम जनु पोषे। पूरनकाम रामु परितोषे॥
करि बर बिनय ससुर सनमाने। पितु कौसिक बसिष्ठ सम जाने॥
बिनती बहुरि भरत सन कीन्ही। मिलि सप्रेमु पुनि आसिष दीन्ही॥
दो०-मिले लखन रिपुसूदनहि दीन्हि असीस महीस।
भए परस्पर प्रेमबस फिरि फिरि नावहिं सीस॥३४२॥
–*–*–
बार बार करि बिनय बड़ाई। रघुपति चले संग सब भाई॥
जनक गहे कौसिक पद जाई। चरन रेनु सिर नयनन्ह लाई॥
सुनु मुनीस बर दरसन तोरें। अगमु न कछु प्रतीति मन मोरें॥
जो सुखु सुजसु लोकपति चहहीं। करत मनोरथ सकुचत अहहीं॥
सो सुखु सुजसु सुलभ मोहि स्वामी। सब सिधि तव दरसन अनुगामी॥
कीन्हि बिनय पुनि पुनि सिरु नाई। फिरे महीसु आसिषा पाई॥
चली बरात निसान बजाई। मुदित छोट बड़ सब समुदाई॥
रामहि निरखि ग्राम नर नारी। पाइ नयन फलु होहिं सुखारी॥
दो०-बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत।
अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत॥३४३॥û
–*–*–
हने निसान पनव बर बाजे। भेरि संख धुनि हय गय गाजे॥
झाँझि बिरव डिंडमीं सुहाई। सरस राग बाजहिं सहनाई॥
पुर जन आवत अकनि बराता। मुदित सकल पुलकावलि गाता॥
निज निज सुंदर सदन सँवारे। हाट बाट चौहट पुर द्वारे॥
गलीं सकल अरगजाँ सिंचाई। जहँ तहँ चौकें चारु पुराई॥
बना बजारु न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक बिताना॥
सफल पूगफल कदलि रसाला। रोपे बकुल कदंब तमाला॥
लगे सुभग तरु परसत धरनी। मनिमय आलबाल कल करनी॥
दो०-बिबिध भाँति मंगल कलस गृह गृह रचे सँवारि।
सुर ब्रह्मादि सिहाहिं सब रघुबर पुरी निहारि॥३४४॥
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भूप भवन तेहि अवसर सोहा। रचना देखि मदन मनु मोहा॥
मंगल सगुन मनोहरताई। रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई॥
जनु उछाह सब सहज सुहाए। तनु धरि धरि दसरथ दसरथ गृहँ छाए॥
देखन हेतु राम बैदेही। कहहु लालसा होहि न केही॥
जुथ जूथ मिलि चलीं सुआसिनि। निज छबि निदरहिं मदन बिलासनि॥
सकल सुमंगल सजें आरती। गावहिं जनु बहु बेष भारती॥
भूपति भवन कोलाहलु होई। जाइ न बरनि समउ सुखु सोई॥
कौसल्यादि राम महतारीं। प्रेम बिबस तन दसा बिसारीं॥
दो०-दिए दान बिप्रन्ह बिपुल पूजि गनेस पुरारी।
प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि॥३४५॥
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मोद प्रमोद बिबस सब माता। चलहिं न चरन सिथिल भए गाता॥
राम दरस हित अति अनुरागीं। परिछनि साजु सजन सब लागीं॥
बिबिध बिधान बाजने बाजे। मंगल मुदित सुमित्राँ साजे॥
हरद दूब दधि पल्लव फूला। पान पूगफल मंगल मूला॥
अच्छत अंकुर लोचन लाजा। मंजुल मंजरि तुलसि बिराजा॥
छुहे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड़ बनाए॥
सगुन सुंगध न जाहिं बखानी। मंगल सकल सजहिं सब रानी॥
रचीं आरतीं बहुत बिधाना। मुदित करहिं कल मंगल गाना॥
दो०-कनक थार भरि मंगलन्हि कमल करन्हि लिएँ मात।
चलीं मुदित परिछनि करन पुलक पल्लवित गात॥३४६॥
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धूप धूम नभु मेचक भयऊ। सावन घन घमंडु जनु ठयऊ॥
सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं। मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं॥
मंजुल मनिमय बंदनिवारे। मनहुँ पाकरिपु चाप सँवारे॥
प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि। चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि॥
दुंदुभि धुनि घन गरजनि घोरा। जाचक चातक दादुर मोरा॥
सुर सुगन्ध सुचि बरषहिं बारी। सुखी सकल ससि पुर नर नारी॥
समउ जानी गुर आयसु दीन्हा। पुर प्रबेसु रघुकुलमनि कीन्हा॥
सुमिरि संभु गिरजा गनराजा। मुदित महीपति सहित समाजा॥
दो०-होहिं सगुन बरषहिं सुमन सुर दुंदुभीं बजाइ।
बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल गाइ॥३४७॥
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मागध सूत बंदि नट नागर। गावहिं जसु तिहु लोक उजागर॥
जय धुनि बिमल बेद बर बानी। दस दिसि सुनिअ सुमंगल सानी॥
बिपुल बाजने बाजन लागे। नभ सुर नगर लोग अनुरागे॥
बने बराती बरनि न जाहीं। महा मुदित मन सुख न समाहीं॥
पुरबासिन्ह तब राय जोहारे। देखत रामहि भए सुखारे॥
करहिं निछावरि मनिगन चीरा। बारि बिलोचन पुलक सरीरा॥
आरति करहिं मुदित पुर नारी। हरषहिं निरखि कुँअर बर चारी॥
सिबिका सुभग ओहार उघारी। देखि दुलहिनिन्ह होहिं सुखारी॥
दो०-एहि बिधि सबही देत सुखु आए राजदुआर।
मुदित मातु परुछनि करहिं बधुन्ह समेत कुमार॥३४८॥
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करहिं आरती बारहिं बारा। प्रेमु प्रमोदु कहै को पारा॥
भूषन मनि पट नाना जाती॥करही निछावरि अगनित भाँती॥
बधुन्ह समेत देखि सुत चारी। परमानंद मगन महतारी॥
पुनि पुनि सीय राम छबि देखी॥मुदित सफल जग जीवन लेखी॥
सखीं सीय मुख पुनि पुनि चाही। गान करहिं निज सुकृत सराही॥
बरषहिं सुमन छनहिं छन देवा। नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा॥
देखि मनोहर चारिउ जोरीं। सारद उपमा सकल ढँढोरीं॥
देत न बनहिं निपट लघु लागी। एकटक रहीं रूप अनुरागीं॥
दो०-निगम नीति कुल रीति करि अरघ पाँवड़े देत।
बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत॥३४९॥
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चारि सिंघासन सहज सुहाए। जनु मनोज निज हाथ बनाए॥
तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे। सादर पाय पुनित पखारे॥
धूप दीप नैबेद बेद बिधि। पूजे बर दुलहिनि मंगलनिधि॥
बारहिं बार आरती करहीं। ब्यजन चारु चामर सिर ढरहीं॥
बस्तु अनेक निछावर होहीं। भरीं प्रमोद मातु सब सोहीं॥
पावा परम तत्व जनु जोगीं। अमृत लहेउ जनु संतत रोगीं॥
जनम रंक जनु पारस पावा। अंधहि लोचन लाभु सुहावा॥
मूक बदन जनु सारद छाई। मानहुँ समर सूर जय पाई॥
दो०-एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनंदु॥
भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु॥३५०(क)॥
लोक रीत जननी करहिं बर दुलहिनि सकुचाहिं।
मोदु बिनोदु बिलोकि बड़ रामु मनहिं मुसकाहिं॥३५०(ख)॥
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देव पितर पूजे बिधि नीकी। पूजीं सकल बासना जी की॥
सबहिं बंदि मागहिं बरदाना। भाइन्ह सहित राम कल्याना॥
अंतरहित सुर आसिष देहीं। मुदित मातु अंचल भरि लेंहीं॥
भूपति बोलि बराती लीन्हे। जान बसन मनि भूषन दीन्हे॥
आयसु पाइ राखि उर रामहि। मुदित गए सब निज निज धामहि॥
पुर नर नारि सकल पहिराए। घर घर बाजन लगे बधाए॥
जाचक जन जाचहि जोइ जोई। प्रमुदित राउ देहिं सोइ सोई॥
सेवक सकल बजनिआ नाना। पूरन किए दान सनमाना॥
दो०-देंहिं असीस जोहारि सब गावहिं गुन गन गाथ।
तब गुर भूसुर सहित गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ॥३५१॥
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जो बसिष्ठ अनुसासन दीन्ही। लोक बेद बिधि सादर कीन्ही॥
भूसुर भीर देखि सब रानी। सादर उठीं भाग्य बड़ जानी॥
पाय पखारि सकल अन्हवाए। पूजि भली बिधि भूप जेवाँए॥
आदर दान प्रेम परिपोषे। देत असीस चले मन तोषे॥
बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा। नाथ मोहि सम धन्य न दूजा॥
कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी। रानिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी॥
भीतर भवन दीन्ह बर बासु। मन जोगवत रह नृप रनिवासू॥
पूजे गुर पद कमल बहोरी। कीन्हि बिनय उर प्रीति न थोरी॥
दो०-बधुन्ह समेत कुमार सब रानिन्ह सहित महीसु।
पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस मुनीसु॥३५२॥
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बिनय कीन्हि उर अति अनुरागें। सुत संपदा राखि सब आगें॥
नेगु मागि मुनिनायक लीन्हा। आसिरबादु बहुत बिधि दीन्हा॥
उर धरि रामहि सीय समेता। हरषि कीन्ह गुर गवनु निकेता॥
बिप्रबधू सब भूप बोलाई। चैल चारु भूषन पहिराई॥
बहुरि बोलाइ सुआसिनि लीन्हीं। रुचि बिचारि पहिरावनि दीन्हीं॥
नेगी नेग जोग सब लेहीं। रुचि अनुरुप भूपमनि देहीं॥
प्रिय पाहुने पूज्य जे जाने। भूपति भली भाँति सनमाने॥
देव देखि रघुबीर बिबाहू। बरषि प्रसून प्रसंसि उछाहू॥
दो०-चले निसान बजाइ सुर निज निज पुर सुख पाइ।
कहत परसपर राम जसु प्रेम न हृदयँ समाइ॥३५३॥
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सब बिधि सबहि समदि नरनाहू। रहा हृदयँ भरि पूरि उछाहू॥
जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे। सहित बहूटिन्ह कुअँर निहारे॥
लिए गोद करि मोद समेता। को कहि सकइ भयउ सुखु जेता॥
बधू सप्रेम गोद बैठारीं। बार बार हियँ हरषि दुलारीं॥
देखि समाजु मुदित रनिवासू। सब कें उर अनंद कियो बासू॥
कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू। सुनि हरषु होत सब काहू॥
जनक राज गुन सीलु बड़ाई। प्रीति रीति संपदा सुहाई॥
बहुबिधि भूप भाट जिमि बरनी। रानीं सब प्रमुदित सुनि करनी॥
दो०-सुतन्ह समेत नहाइ नृप बोलि बिप्र गुर ग्याति।
भोजन कीन्ह अनेक बिधि घरी पंच गइ राति॥३५४॥
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मंगलगान करहिं बर भामिनि। भै सुखमूल मनोहर जामिनि॥
अँचइ पान सब काहूँ पाए। स्त्रग सुगंध भूषित छबि छाए॥
रामहि देखि रजायसु पाई। निज निज भवन चले सिर नाई॥
प्रेम प्रमोद बिनोदु बढ़ाई। समउ समाजु मनोहरताई॥
कहि न सकहि सत सारद सेसू। बेद बिरंचि महेस गनेसू॥
सो मै कहौं कवन बिधि बरनी। भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी॥
नृप सब भाँति सबहि सनमानी। कहि मृदु बचन बोलाई रानी॥
बधू लरिकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की नाई॥
दो०-लरिका श्रमित उनीद बस सयन करावहु जाइ।
अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ॥३५५॥
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भूप बचन सुनि सहज सुहाए। जरित कनक मनि पलँग डसाए॥
सुभग सुरभि पय फेन समाना। कोमल कलित सुपेतीं नाना॥
उपबरहन बर बरनि न जाहीं। स्त्रग सुगंध मनिमंदिर माहीं॥
रतनदीप सुठि चारु चँदोवा। कहत न बनइ जान जेहिं जोवा॥
सेज रुचिर रचि रामु उठाए। प्रेम समेत पलँग पौढ़ाए॥
अग्या पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही। निज निज सेज सयन तिन्ह कीन्ही॥
देखि स्याम मृदु मंजुल गाता। कहहिं सप्रेम बचन सब माता॥
मारग जात भयावनि भारी। केहि बिधि तात ताड़का मारी॥
दो०-घोर निसाचर बिकट भट समर गनहिं नहिं काहु॥
मारे सहित सहाय किमि खल मारीच सुबाहु॥३५६॥
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मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी। ईस अनेक करवरें टारी॥
मख रखवारी करि दुहुँ भाई। गुरु प्रसाद सब बिद्या पाई॥
मुनितय तरी लगत पग धूरी। कीरति रही भुवन भरि पूरी॥
कमठ पीठि पबि कूट कठोरा। नृप समाज महुँ सिव धनु तोरा॥
बिस्व बिजय जसु जानकि पाई। आए भवन ब्याहि सब भाई॥
सकल अमानुष करम तुम्हारे। केवल कौसिक कृपाँ सुधारे॥
आजु सुफल जग जनमु हमारा। देखि तात बिधुबदन तुम्हारा॥
जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें। ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें॥
दो०-राम प्रतोषीं मातु सब कहि बिनीत बर बैन।
सुमिरि संभु गुर बिप्र पद किए नीदबस नैन॥३५७॥
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नीदउँ बदन सोह सुठि लोना। मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना॥
घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मंगल गारीं॥
पुरी बिराजति राजति रजनी। रानीं कहहिं बिलोकहु सजनी॥
सुंदर बधुन्ह सासु लै सोई। फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोई॥
प्रात पुनीत काल प्रभु जागे। अरुनचूड़ बर बोलन लागे॥
बंदि मागधन्हि गुनगन गाए। पुरजन द्वार जोहारन आए॥
बंदि बिप्र सुर गुर पितु माता। पाइ असीस मुदित सब भ्राता॥
जननिन्ह सादर बदन निहारे। भूपति संग द्वार पगु धारे॥
दो०-कीन्ह सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ।
प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ॥३५८॥
नवान्हपारायण,तीसरा विश्राम
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भूप बिलोकि लिए उर लाई। बैठै हरषि रजायसु पाई॥
देखि रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवधि अनुमानी॥
पुनि बसिष्टु मुनि कौसिक आए। सुभग आसनन्हि मुनि बैठाए॥
सुतन्ह समेत पूजि पद लागे। निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे॥
कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा। सुनहिं महीसु सहित रनिवासा॥
मुनि मन अगम गाधिसुत करनी। मुदित बसिष्ट बिपुल बिधि बरनी॥
बोले बामदेउ सब साँची। कीरति कलित लोक तिहुँ माची॥
सुनि आनंदु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधिक उछाहू॥
दो०-मंगल मोद उछाह नित जाहिं दिवस एहि भाँति।
उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति॥३५९॥
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सुदिन सोधि कल कंकन छौरे। मंगल मोद बिनोद न थोरे॥
नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं। अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं॥
बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं। राम सप्रेम बिनय बस रहहीं॥
दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ। देखि सराह महामुनिराऊ॥
मागत बिदा राउ अनुरागे। सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे॥
नाथ सकल संपदा तुम्हारी। मैं सेवकु समेत सुत नारी॥
करब सदा लरिकनः पर छोहू। दरसन देत रहब मुनि मोहू॥
अस कहि राउ सहित सुत रानी। परेउ चरन मुख आव न बानी॥
दीन्ह असीस बिप्र बहु भाँती। चले न प्रीति रीति कहि जाती॥
रामु सप्रेम संग सब भाई। आयसु पाइ फिरे पहुँचाई॥
दो०-राम रूपु भूपति भगति ब्याहु उछाहु अनंदु।
जात सराहत मनहिं मन मुदित गाधिकुलचंदु॥३६०॥
–*–*–
बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी। बहुरि गाधिसुत कथा बखानी॥
सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ। बरनत आपन पुन्य प्रभाऊ॥
बहुरे लोग रजायसु भयऊ। सुतन्ह समेत नृपति गृहँ गयऊ॥
जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा। सुजसु पुनीत लोक तिहुँ छावा॥
आए ब्याहि रामु घर जब तें। बसइ अनंद अवध सब तब तें॥
प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू। सकहिं न बरनि गिरा अहिनाहू॥
कबिकुल जीवनु पावन जानी॥राम सीय जसु मंगल खानी॥
तेहि ते मैं कछु कहा बखानी। करन पुनीत हेतु निज बानी॥
छं०-निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसी कह्यो।
रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो॥
उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं।
बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं॥
सो०-सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु॥३६१॥
मासपारायण, बारहवाँ विश्राम
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषबिध्वंसने
प्रथमः सोपानः समाप्तः।
(बालकाण्ड समाप्त)