भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"थे नाप रहे नभ ओर-छोर चढ़ धारधार पर धाराधर / प्रेम नारायण 'पंकिल'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल' |संग्रह= }} Category:कविता <poem> थे न...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:45, 24 जनवरी 2009 का अवतरण
थे नाप रहे नभ ओर-छोर चढ़ धारधार पर धाराधर ।
दामिनी दमक जाती क्षण-क्षण श्यामलीघटाओं से सत्वर ।
कल-कल छल-छल जलरव मुखरित था यमुना-पुलिन मनोहारी ।
तन से अठखेली कर बरबस खींचता प्रभंजन था सारी ।
परिरंभण में बांधे विटपों को थीं वल्लरी बिना बाधा।
अंचल पसार कर लगी बिलखने आ जा राधा के कांधा।
व्रजचंद्र! पधारो बिलख रही बावरिया बरसाने वाली।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली ॥ २॥