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"सुधि करो प्राण पूछा तुमने "क्यों मौन खड़ी ब्रजबाला हो? / प्रेम नारायण 'पंकिल'" के अवतरणों में अंतर

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19:23, 24 जनवरी 2009 का अवतरण

 

सुधि करो प्राण पूछा तुमने "क्यों मौन खड़ी ब्रजबाला हो?
स्मित मधुर हास्य की मृदुल रश्मि से करती व्योम उजाला हो ।
तुम वारी-वीचि की सरसिज कलिका सी लेती अँगडाई हो ।
हो मरालिनी मानस सर की ऋतुराज सदृश गदराई हो।
क्यों मौन आँसुओं की भाषा सी दिए अधर पर ताला हो?
प्रिय मदिर नयन बंधूकअधर की ढरकाती मधुशाला हो।"
बस अपलक तुम्हें रही तकती बावरिया बरसाने वाली
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥१२॥