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"सुधि करो प्राण कहते थे तुम क्यों बात-बात में हंसती हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'" के अवतरणों में अंतर
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− | + | धंस डूब मरे हा ! जाय कहाँ बावरिया बरसाने वाली - | |
− | क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के | + | क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली॥ ३१॥ |
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20:26, 24 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
सुधि करो प्राण कहते थे तुम क्यों बात-बात में हंसती हो ।
किस कलुषित कंचन को मेरे निज हास्य-निकष पर कसती हो ।
तुम होड़ लगा प्रिया उपवन की सुरभित कलियाँ चुन लेते थे।
सखियों से होती मदन-रहस-बातें चुपके सुन लेते थे ।
सहलाते थे मृदु करतल से रख उर पर मेरे मृदुल चरण ।
प्रिय-पाणि-पार्श्व से झुका स्कंध रख देते आनन पर आनन ।
धंस डूब मरे हा ! जाय कहाँ बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली॥ ३१॥