"मुनादी / केशव" के अवतरणों में अंतर
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00:58, 25 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
पहली बार
बस्ती में
सुनाई दे रही है डुगडुगी
जारी हो रहा है फरमान
बस्ती में
चहलकदमी करने
आ रहा है हुक्मरान
आज तक तो नहीँ था
इस बस्ती का
देश के नख़्शे पर नामोनिशान
है बस्ती वाले हैरान
हुक्मरानो सुनो घर छपरों की
लिपाई पुताई कर लो
न हो कुछ तो
झौंपडा गिरवी रखकर ही। झौंपड़ा भर लो
ताकि हुक्मरान को
बस्ती खुशहाल नज़र आए
और उसकी भाषण कला गरीबी जैसे नाचीज़ शब्द को
तितली के पंख़ो से
मढ़ने में ही न चूक जाए
रंग लो अपनी
नंगी
कृषकाय देह को
सर पर पहन को
सरकंडों का ताज
ताकि अपने स्वागत में
बस्ती की तैयारी देख
हुक्मरान
बच्चो की तरह खुश होकर तालियाँ बजाएँ
बस्ती के बाशिंदों
सुन रहें हैँ आप
पहली बार
बस्ती के भाग जागे हैं
हुक्मरान के चरण-कमल
आज तक जहाँ-जहाँ पड़े हैं
दुख-दलिद्र वहाँ के
सर पर पाँव रखकर भागे हैं
बस्ती-बस्ती कूँआँ खूदने में
मेंड-मेंड पौधे रोपने में
हमारे हुक्मरान सबसे आगे है हरियाली के छत्र तले भी
सूखते देश को बचाना है
अपने रास्ते में आने वाले जंगल काटकर
उन्हें बस्ती-बस्ती
यह पैग़ाम पहूंचाना है
सुनो
सुनो
इस बस्ती का हर लूला-लँगड़ा
अब अपने पैरों पर खड़ा होगा
विकलाँग वर्ष में
देश इसी तरह
विश्व की आँखों में
सीना फुलाकर खड़ा होगा
उँगलियों पर नाचने की कला में
सिद्धहस्त
यह हुक्मरान
बस्ती को ज़रूर
एक नृत्यशाला में बदल जाएगा
जिससे यहाँ के बाशिंदों को
अपना भविष्य
और भी चमचमाता नज़र आएगा
सुनो
सुनो
हुक्मरान को
दंगल देखने का भी बेहद शौक है
वह हर रोज़
कहीं-न-कहीं दंगल करवाता है
और अपनी ऐच्छिक निधि से
बस्ती- बस्ती अखाड़े खुदवाता है
खेल प्रिय
हमारे यह हुक्मरान
अगर हो गए मेहरबान
तो आपकी बस्ती भी
बन जाएगी अखाड़ा
आप सिर्फ देखेंगे
किसने किसको पछाड़ा
सुनो
सुनो
तुम्हारी बस्ती से होकर बहने वाली
एक मात्र नदी
अब नहीं सूखेगी
तुम्हारी ज़मीन भी अब
पानी में नहीं डूबेगी
बाँध कोई ऐसा
हुक्मरान दे जाएगा
जो जीने भले ही न दे तुमको
पर मौत से
आँख-मिचौनी का खेल
ज़रूर सिखा जाएगा
इसी तरह हुक्मरान
बस्ती के द्वार-द्वार रुकेगा
अभी तो वह
साँकल-साँकल खटखटा सकेगा
इस तरह
‘कम से कम
हुक्मरान के दर्शन तो तुम पा सकोगे
वरना राजधानी
और अपनी बस्ती की दूरी
कलैंडर से निकलती
हुक्मरान की
मुस्कान के गज़ से
कैसे माप सकोगे
सुनो सुनो
बस्ती में.......