"देखना जज़्बे मोहब्बत का असर आज की रात / मजाज़ लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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फूट निकला दरो दीवार से सैलाब निशात<br> | फूट निकला दरो दीवार से सैलाब निशात<br> |
07:56, 25 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
देखना जज़्बे मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात
और क्या चाहिय अब ये दिले मजरूह तुझे
उसने देखा तो बन्दाज़े दीगर आज की रात
फूल क्या खार भी है आज गुलिस्ता बकिनार
संग्राज़ है निगाहों में गुहार आज की रात
महवे गुल्गासत है ये कौन मेरे दोष बदोश
कहकहा बन गयी हर राहगुज़र आज की रात
फूट निकला दरो दीवार से सैलाब निशात
अल्ला अल्लाह मेरा कैफ नज़र आज की रात
सब्नामिस्ताने तजल्ली का फशु क्या कहिय
चाँद ने फेक दीया रख्ते सफ़र आज की रात
नूर ही नूर है किस सिम्त उठाऊं आँखें
हुस्न ही हुस्न है ता हद-ए-नज़र आज की रात
कस्र्ते गेती में उमड़ आया है तुफाने हयात
मौत लरजा पशे परदे दर आज की रात
अल्ला अल्लाह वो पेशानीय सीमी का जमाल
रह गयी जम के सितारों की नज़र आज की रात
आरिजे गर्म पे वो रेंज शफक की लहरे
वो मेरी निगाहों का असर आज की रात
नगमा-ओ-मै का ये तूफ़ान-ए-तरब क्या कहना
मेरा घर बन गया ख़ैयाम का घर आज की रात
नर्गिस-ए-नाज़ में वो नींद का हल्क़ा सा ख़ुमार
वो मेरे नग़मा-ए-शीरीं का असर आज की रात
मेरी हर सांस पे वह उनकी तव्जाहा क्या खूब
मेरी बात पे वह जुम्बिशे सर आज की रात
वह तबस्सुम ही तबस्सुम का ज़माले पैहम
वह महब्बत ही महब्बत की नज़र आज की रात
उफ़ वह वाराफतगीये शौक में एक वहमें लतीफ़
कपकपाते हुए होंठो पे नज़र आज की रात
अपनी रिफत पे जो नाजा है तो नाजा ही रहे
कह दो अंजुम से की देखे न इधर आज की रात
उनके अलताफ का इतना ही फशु काफी है
कम है पहले से बहुत दर्दे जिगर आज की रात