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त्रिलोचन

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बंधक हैं,बँधुए कहलाते हैं।धरती है<br>
निर्मम,पेट पले कैसे।इस उस मुखड़े<br>
की सुननी पड़ जाती है,धौंसौं के धक्के में<br>
कौन जिए।जिन साँसों में आया करती है<br>
भाषा,किस को चिन्ता है उसके दुखड़ों की।
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