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गीतावली / तुलसीदास

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KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=तुलसीदास}}<poem> '''बालकाण्ड '''राग आसावरी''' 
आजु सुदिन सुभ घरी सुहाई |
रूप-सील-गुन-धाम राम नृप-भवन प्रगट भए आई ||
अबिरल अमल अनुप भगति दृढ़ तुलसिदास तब पाई ||
'''राग जैतश्री''' 
सहेली सुनु सोहिलो रे |
सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो सब जग आज |
भूपति-सदन सोहिलो सुनि बाजैं गहगहे निसान |
जहँ-तहँ सजहिं कलस धुज चामर तोरन केतु बितान ||
{गीता.[बाल] 003.05} सीञ्चि सुगन्ध रचैं चौकें गृह-आँगन गली-बजार |{गीता.[बाल] 003.05} दल फल फूल दूब दधि रोचन, घर-घर मङ्गलचार ||{गीता.[बाल] 003.06} सुनि सानन्द उठे दसस्यन्दन सकल समाज समेत |{गीता.[बाल] 003.06} लिये बोलि गुर-सचिव-भूमिसुर, प्रमुदित चले निकेत ||{गीता.[बाल] 003.07} जातकरम करि, पूजि पितर-सुर, दिये महिदेवन दान |{गीता.[बाल] 003.07} तेहि औसर सुत तीनि प्रगट भए मङ्गल, मुद, कल्यान ||{गीता.[बाल] 003.08} आनँद महँ आनन्द अवध, आनन्द बधावन होइ |{गीता.[बाल] 003.08} उपमा कहौं चारि फलकी, मोहिं भलो न कहै कबि कोइ ||{गीता.[बाल] 003.09} सजि आरती बिचित्र थारकर जूथ-जूथ बरनारि |{गीता.[बाल] 003.09} गावत चलीं बधावन लै लै निज-निज कुल अनुहारि ||{गीता.[बाल] 003.10} असही दुसही मरहु मनहि मन, बैरिन बढ़हु बिषाद |{गीता.[बाल] 003.10} नृपसुत चारि चारु चिरजीवहु सङ्कर-गौरि-प्रसाद ||{गीता.[बाल] 003.11} लै लै ढोव प्रजा प्रमुदित चले भाँति-भाँति भरि भार |{गीता.[बाल] 003.11} करहिं गान करि आन रायकी, नाचहिं राजदुवार ||{गीता.[बाल] 003.12} गज, रथ, बाजि, बाहिनी, बाहन सबनि सँवारे साज|{गीता.[बाल] 003.12} जनु रतिपति ऋतुपति कोसलपुर बिहरत सहित समाज ||{गीता.[बाल] 003.13} घण्टा-घण्टि, पखाउज-आउज, झाँझ, बेनु डफ-तार |{गीता.[बाल] 003.13} नूपुर धुनि, मञ्जीर मनोहर, कर कङ्कन-झनकार ||{गीता.[बाल] 003.14} नृत्य करहिं नट-नटी, नारि-नर अपने-अपने रङ्ग |{गीता.[बाल] 003.14} मनहुँ मदन-रति बिबिध बेष धरि नटत सुदेस सुढङ्ग ||{गीता.[बाल] 003.15} उघटहिं छन्द-प्रबन्ध, गीत-पद, राग-तान-बन्धान |{गीता.[बाल] 003.15} सुनि किन्नर गन्धरब सराहत, बिथके हैं, बिबुध-बिमान ||{गीता.[बाल] 003.16} कुङ्कुम-अगर-अरगजा छिरकहिं, भरहिं गुलाल-अबीर |{गीता.[बाल] 003.16} नभ प्रसून झरि, पुरी कोलाहल, भै मन भावति भीर ||{गीता.[बाल] 003.17} बड़ी बयस बिधि भयो दाहिनो सुर-गुर-आसिरबाद |{गीता.[बाल] 003.17} दसरथ-सुकृत-सुधासागर सब उमगे हैं तजि मरजाद ||{गीता.[बाल] 003.18} बाह्मण बेद, बन्दि बिरदावलि, जय-धुनि, मङ्गल-गान |{गीता.[बाल] 003.18} निकसत पैठत लोग परसपर बोलत लगि लगि कान ||{गीता.[बाल] 003.19} बारहिं मुकुता-रतन राजमहिषि पुर-सुमुखि समान |{गीता.[बाल] 003.19} बगरे नगर निछावरि मनिगन जनु जुवारि-जव-धान ||{गीता.[बाल] 003.20} कीन्हि बेदबिधि लोकरीति नृप, मन्दिर परम हुलास |{गीता.[बाल] 003.20} कौसल्या, कैकयी, सुमित्रा, रहस-बिबस रनिवास ||{गीता.[बाल] 003.21} रानिन दिए बसन-मनि-भूषन, राजा सहन-भँडार |{गीता.[बाल] 003.21} मागध-सूत-भाट-नट-जाचक जहँ तहँ करहिं कबार ||{गीता.[बाल] 003.22} बिप्रबधू सनमानि सुआसिनि, जन-पुरजन पहिराइ |{गीता.[बाल] 003.22} सनमाने अवनीस, असीसत ईस-रमेस मनाइ ||{गीता.[बाल] 003.23} अष्टसिद्धि, नवनिद्धि, भूति सब भूपति भवन कमाहिं |{गीता.[बाल] 003.23} समौ-समाज राज दसरथको लोकप सकल सिहाहिं ||{गीता.[बाल] 003.24} को कहि सकै अवधबासिनको प्रेम-प्रमोद-उछाह |{गीता.[बाल] 003.24} सारद सेस-गनेस-गिरीसहिं अगम निगम अवगाह ||{गीता.[बाल] 003.25} सिव-बिरञ्चि-मुनि-सिद्ध प्रसंसत, बड़े भूप के भाग |{गीता.[बाल] 003.25} तुलसिदास प्रभु सोहिलो गावत उमगि-उमगि अनुराग ||{गीता.[बाल] 004. '''राग} बिलावल'''{गीता.[बाल] 004.01} आजु महामङ्गल कोसलपुर सुनि नृपके सुत चारि भए |{गीता.[बाल] 004.01} सदन-सदन सोहिलो सोहावनो, नभ अरु नगर-निसान हए ||{गीता.[बाल] 004.02} सजि-सजि जान अमर-किन्नर-मुनि जानि समय-सम गान ठए |{गीता.[बाल] 004.02} नाचहिं नभ अपसरा मुदित मन, पुनि-पुनि बरषहिं सुमन-चए ||{गीता.[बाल] 004.03} अति सुख बेगि बोलि गुरु भूसुर भूपति भीतर भवन गए |{गीता.[बाल] 004.03} जातकरम करि कनक, बसन, मनि भूषित सुरभि-समूह दए ||{गीता.[बाल] 004.04} दल-फल-फूल, दूब-दधि-रोचन, जुबतिन्ह भरि-भरि थार लए |{गीता.[बाल] 004.04} गावत चलीं भीर भै बीथिन्ह, बन्दिन्ह बाँकुरे बिरद बए ||{गीता.[बाल] 004.05} कनक-कलस, चामर-पताक-धुज, जहँ तहँ बन्दनवार नए |{गीता.[बाल] 004.05} भरहिं अबीर, अरगजा छिरकहिं, सकल लोक एक रङ्ग रए ||{गीता.[बाल] 004.06} उमगि चल्यौ आनन्द लोक तिहुँ, देत सबनि मन्दिर रितए |{गीता.[बाल] 004.06} तुलसिदास पुनि भरेइ देखियत, रामकृपा चितवनि चितए ||{गीता.[बाल] 005.राग} '''जैतश्री'''{गीता.[बाल] 005.01} गावैं बिबुध बिमल बर बानी |{गीता.[बाल] 005.01} भुवन-कोटि-कल्यान-कन्द जो, जायो पूत कौसिला रानी ||{गीता.[बाल] 005.02} मास, पाख, तिति, बार, नखत, ग्रह, जोग, लगन सुभ ठानी |{गीता.[बाल] 005.02} जल-थल-गगन प्रसन्न साधु-मन, दस दिसि हिय हुलसानी ||{गीता.[बाल] 005.03} बरषत सुमन, बधाव नगर-नभ, हरष न जात बखानी |{गीता.[बाल] 005.03} ज्यों हुलास रनिवास नरेसहि, त्यों जनपद रजधानी ||{गीता.[बाल] 005.04} अमर, नाग, मुनि, मनुज सपरिजन बिगतबिषाद-गलानी |{गीता.[बाल] 005.04} मिलेहि माँझ रावन रजनीचर लङ्क सङ्क अकुलानी ||{गीता.[बाल] 005.05} देव-पितर, गुरु-बिप्र पूजि नृप दिये दान रुचि जानी |{गीता.[बाल] 005.05} मुनि-बनिता, पुरनारि, सुआसिनि सहस भाँति सनमानी ||{गीता.[बाल] 005.06} पाइ अघाइ असीसत निकसत जाचक-जन भए दानी |{गीता.[बाल] 005.06} "यों प्रसन्न कैकयी सुमित्रहि होउ महेस-भवानी ||{गीता.[बाल] 005.07} दिन दूसरे भूप-भामिनि दोउ भईं सुमङ्गल-खानी |{गीता.[बाल] 005.07} भयो सोहिलो सोहिले मो जनु सृष्टि सोहिले-सानी ||{गीता.[बाल] 005.08} गावत-नाचत, मो मन भावत, सुख सों अवध अधिकानी |{गीता.[बाल] 005.08} देत-लेत, पहिरत-पहिरावत प्रजा प्रमोद-अघानी ||{गीता.[बाल] 005.09} गान-निसान-कुलाहल-कौतुक देखत दुनी सिहानी |{गीता.[बाल] 005.09} हरि बिरञ्चि-हर-पुर सोभा कुलि कोसलपुरी लोभानी ||{गीता.[बाल] 005.10} आनँद-अवनि, राजरानी सब माँगहु कोखि जुड़ानी |{गीता.[बाल] 005.10} आसिष दै दै सराहहिं सादर उमा-रमा-ब्रह्मानी ||{गीता.[बाल] 005.11} बिभव-बिलास-बाढ़ि दसरथकी देखि न जिनहिं सोहानी |{गीता.[बाल] 005.11} कीरति, कुसल, भूति, जय, ऋधि-सिधि तिन्हपर सबै कोहानी ||{गीता.[बाल] 005.12} छठी-बारहौं लोक-बेद-बिधि करि सुबिधान बिधानी |{गीता.[बाल] 005.12} राम-लषन-रिपुदवन-भरत धरे नाम ललित गुर ग्यानी ||{गीता.[बाल] 005.13} सुकृत-सुमन तिल-मोद बासि बिधि जतन-जन्त्र भरि घानी |{गीता.[बाल] 005.13} सुख-सनेह सब दिये दसरथहि खरि खलेल थिर-थानी ||{गीता.[बाल] 005.14} अनुदिन उदय-उछाह, उमग जग, घर-घर अवध कहानी |{गीता.[बाल] 005.14} तुलसी राम-जनम-जस गावत सो समाज उर आनी ||{गीता.[बाल] 006. '''राग} केदारा'''{गीता.[बाल] 006.01} घर-घर अवध बधावने मङ्गल-साज-समाज |{गीता.[बाल] 006.01} सगुन सोहावने मुदित-मन कर सब निज-निज काज ||{गीता.[बाल] 006.01} निज काज सजत सँवारि पुर-नर-नारि रचना अनगनी |{गीता.[बाल] 006.01} गृह, अजिर, अटनि, बजार, बीथिन्ह चारु चौकैं बिधि घनी ||{गीता.[बाल] 006.01} चामर, पताक, बितान, तोरन, कलस, दीपावलि बनी |{गीता.[बाल] 006.01} सुख-सुकृत-सोभामय पुरी बिधि सुमति जननी जनु जनी ||{गीता.[बाल] 006.02} चैत चतुरदसि चाँदनी, अमल उदित निसिराज |{गीता.[बाल] 006.02} उडुगन अवलि प्रकासहीं, उमगत आनँद आज ||{गीता.[बाल] 006.02} आनन्द उमगत आजु, बिबुध बिमान बिपुल बनाइकै |{गीता.[बाल] 006.02} गावत, बजावत, नटत, हरषत, सुमन बरषत आइकै ||{गीता.[बाल] 006.02} नर निरखि नभ, सुर पेखि पुरछबि परसपर सचु पाइकै |{गीता.[बाल] 006.02} रघुराज-साज सराहि लोचन-लाहु लेत अघाइकै ||{गीता.[बाल] 006.03} जागिय राम छठी सजनि रजनी रुचिर निहारि |{गीता.[बाल] 006.03} मङ्गल-मोद-मढ़ी मुरति नृपके बालक चारि ||{गीता.[बाल] 006.03} मूरति मनोहर चारि बिरचि बिरञ्चि परमारथमई |{गीता.[बाल] 006.03} अनुरुप भूपति जानि पूजन-जोग बिधि सङ्कर दई ||{गीता.[बाल] 006.03} तिन्हकी छठी मञ्जुलमठी, जग सरस जिन्हकी सरसई |{गीता.[बाल] 006.03} किए नीन्द-भामिनि जागरन, अभिरामिनी जामिनि भई ||{गीता.[बाल] 006.04} सेवक सजग भए समय-साधन सचिव सुजान |{गीता.[बाल] 006.04} मुनिबर सिखये लौकिकौ बैदिक बिबिध बिधान ||{गीता.[बाल] 006.04} बैदिक बिधान अनेक लौकिक आचरत सुनि जानिकै |{गीता.[बाल] 006.04} बलिदान-पूजा मूलिकामनि साधि राखी आनिकै ||{गीता.[बाल] 006.04} जे देव-देवी सेइयत हित लागि चित सनमानिकै |{गीता.[बाल] 006.04} ते जन्त्र-मन्त्र सिखाइ राखत सबनिसों पहिचानिकै ||{गीता.[बाल] 006.05} सकल सुआसिनि, गुरजन, पुरजन, पाहुन लोग |{गीता.[बाल] 006.05} बिबुध-बिलासिनि, सुर-मुनि, जाचक, जो जेहि जोग ||{गीता.[बाल] 006.05} जेहि जोग जे तेहि भाँति ते पहिराइ परिपूरन किये |{गीता.[बाल] 006.05} जय कहत, देत असीस, तुलसीदास ज्यों हुलसत हिये ||{गीता.[बाल] 006.05} ज्यों आजु कालिहु परहुँ जागन होहिङ्गे, नेवते दिये |{गीता.[बाल] 006.05} ते धन्य पुन्य-पयोधि जे तेहि समै सुख-जीवन जिये ||{गीता.[बाल] 006.06} भूपति-भाग बली सुर-बर नाग सराहि सिहाहिं |{गीता.[बाल] 006.06} तिय-बरबेष अली रमा सिधि अनिमादि कमाहिं ||{गीता.[बाल] 006.06} अनिमादि, सारद, सैलनन्दिनि बाल लालहि पालहीं |{गीता.[बाल] 006.06} भरि जनम जे पाए न, ते परितोष उमा-रमा लहीं ||{गीता.[बाल] 006.06} निज लोक बिसरे लोकपति, घरकी न चरचा चालहीं |{गीता.[बाल] 006.06} तुलसी तपत तिहु ताप जग, जनु प्रभुछठी-छाया लहीं ||{गीता.[बाल] 007.01} '''नामकरण'''{गीता.[बाल] 007. '''राग} जैतश्री '''{गीता.[बाल] 007.01} बाजत अवध गहागहे अनन्द-बधाए |{गीता.[बाल] 007.01} नामकरन रघुबरनिके नृप सुदिन सोधाए ||{गीता.[बाल] 007.02} पाय रजायसु रायको ऋषिराज बोलाए |{गीता.[बाल] 007.02} सिष्य-सचिव-सेवक-सखा सादर सिर नाए ||{गीता.[बाल] 007.03} साधु सुमति समरथ सबै सानन्द सिखाए |{गीता.[बाल] 007.03} जल, दल, फल, मनि-मूलिका, कुलि काज लिखाए ||{गीता.[बाल] 007.04} गनप-गौरि-हर पूजिकै गोवृन्द दुहाए |{गीता.[बाल] 007.04} घर-घर मुद मङ्गल महा गुन-गान सुहाए ||{गीता.[बाल] 007.05} तुरत मुदित जहँ तहँ चले मनके भए भाए |{गीता.[बाल] 007.05} सुरपति-सासनु घन मनो मारुत मिलि धाए ||{गीता.[बाल] 007.06} गृह, आँगन, चौहट, गली, बाजार बनाए |{गीता.[बाल] 007.06} कलस, चँवर, तोरन, धुजा, सुबितान तनाए ||{गीता.[बाल] 007.07} चित्र चारु चौकैं रचीं, लिखि नाम जनाए |{गीता.[बाल] 007.07} भरि-भरि सरवर-बापिका अरगजा सनाए ||{गीता.[बाल] 007.08} नर-नारिन्ह पल चारिमें सब साज सजाए |{गीता.[बाल] 007.08} दसरथ-पुर छबि आपनी सुरनगर लजाए ||{गीता.[बाल] 007.09} बिबुध बिमान बनाइकै आनन्दित आए |{गीता.[बाल] 007.09} हरषि सुमन बरसन लगे, गए धन जनु पाए ||{गीता.[बाल] 007.10} बरे बिप्र चहुँ बेदके, रबिकुल-गुर ग्यानी |{गीता.[बाल] 007.10} आपु बसिष्ठ अथरबणी, महिमा जग जानी ||{गीता.[बाल] 007.11} लोक-रीति बिधि बेदकी करि कह्यो सुबानी-{गीता.[बाल] 007.11} "सिसु-समेत बेगि बोलिए कौसल्या रानी ||{गीता.[बाल] 007.12} सुनत सुआसिनि लै चलीं गावत बड़भागीं |{गीता.[बाल] 007.12} उमा-रमा, सारद-सची लखि सुनि अनुरागीं ||{गीता.[बाल] 007.13} निज-निज रुचि बेष बिरचिकै हिलि-मिलि सङ्ग लागीं |{गीता.[बाल] 007.13} तेहि अवसर तिहु लोककी सुदसा जनु जागीं ||{गीता.[बाल] 007.14} चारु चौक बैठत भई भूप-भामिनी सोहैं |{गीता.[बाल] 007.14} गोद मोद-मूरति, लिए, सुकृती जन जोहैं ||{गीता.[बाल] 007.15} सुख-सुखमा, कौतुक कला देखि-सुनि मुनि मोहैं |{गीता.[बाल] 007.15} सो समाज कहैं बरनिकै, ऐसे कबि को हैं ? ||{गीता.[बाल] 007.16} लगे पढ़न रच्छा-ऋचा ऋषिराज बिराजे |{गीता.[बाल] 007.16} गगन सुमन-झरि, जय-जय, बहु बाजन बाजे ||{गीता.[बाल] 007.17} भए अमङ्गल लङ्कमें, सङ्क-सङ्कट गाजे |{गीता.[बाल] 007.17} भुवन चारिदसके बड़े दुख-दारिद भाजे ||{गीता.[बाल] 007.18} बाल बिलोकि अथरबणी हँसि हरहि जनायो |{गीता.[बाल] 007.18} सुभको सुभ, मोद मोदको, राम नाम सुनायो ||{गीता.[बाल] 007.19} आलबाल कल कौसिला, दल बरन सोहायो |{गीता.[बाल] 007.19} कन्द सकल आनन्दको जनु अंकुर आयो ||{गीता.[बाल] 007.20} जोहि, जानि, जपि जोरिकै करपुट सिर राखे |{गीता.[बाल] 007.20} "जय जय जय करुनानिधे! सादर सुर भाषे ||{गीता.[बाल] 007.21} "सत्यसन्ध ! साँचे सदा जे आखर आषे |{गीता.[बाल] 007.21} प्रनतपाल ! पाए सही, जे फल अभिलाषे ||{गीता.[बाल] 007.22} भूमिदेव देव देखिकै नरदेव सुखारी |{गीता.[बाल] 007.22} बोलि सचिव सेवक सखा पटधारि भँडारी ||{गीता.[बाल] 007.23} देहु जाहि जोइ चाहिए सनमानि सँभारी |{गीता.[बाल] 007.23} लगे देन हिय हरषिकै हेरि-हेरि हँकारी ||{गीता.[बाल] 007.24} राम-निछावरि लेनको हठि होत भिखारी |{गीता.[बाल] 007.24} बहुरि देत तेहि देखिए मानहुँ धनधारी ||{गीता.[बाल] 007.25} भरत लषन रिपुदवनहूँ धरे नाम बिचारी |{गीता.[बाल] 007.25} फलदायक फल चारिके दसरथ-सुत चारी ||{गीता.[बाल] 007.26} भए भूप बालकनिके नाम निरुपम नीके |{गीता.[बाल] 007.26} सबै सोच-सङ्कट मिटे तबतें पुर-तीके ||{गीता.[बाल] 007.27} सुफल मनोरथ बिधि किए सब बिधि सबहीके |{गीता.[बाल] 007.27} अब होइहै गाए सुने सबके तुलसीके ||{गीता.[बाल] 008.01} '''दुलार'''{गीता.[बाल] 008. '''राग} बिलावल'''{गीता.[बाल] 008.01} सुभग सेज सोभित कौसिल्या रुचिर राम-सिसु गोद लिये |
{गीता.[बाल] 008.01} बार-बार बिधुबदन बिलोकति लोचन चारु चकोर किये ||
{गीता.[बाल] 008.02} कबहुँ पौढ़ि पयपान करावति, कबहूँ राखति लाइ हिये |
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