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जा सुखकी लालसा लटू सिव, सुक-सनकादि उदासी |
तुलसी तेहि सुखसिन्धु कौसिला मगन, पै प्रेम-पियासी ||
पगनि कब चलिहौ चारौ भैया ?
प्रेम-पुलकि, उर लाइ सुवन सब, कहति सुमित्रा मैया ||
सुन्दर तनु सिसु-बसन-बिभुषन नखसिख निरखि निकैया |