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"सूरज थकने के संग-१ / सरोज परमार" के अवतरणों में अंतर
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18:03, 29 जनवरी 2009 का अवतरण
एक सूरज के थकने के संग
कितना कुछ थक गया.
थक गई चिड़ियाँ
थक गईं लड़कियाँ
जुगाली पड़ी गैया.
थम गई चहल-पहल
थम गई हलचल
चूल्हे की गुन-गुन में
पत्नी है गुमसुम
दूरदर्शन के नाटक में रमा
थका-माँदा गाँव
ताज़ा दम होने की कोशिश में.
बस माँ नहीं थकी
उसकी सोच नहीं थकी
टँग गई हैं उसकी आँखे
विग्ज़्त और आगत के छोरों पर
टंगी रहेंगी.
पौ फटने तक.