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"सूरज थकने के संग-२ / सरोज परमार" के अवतरणों में अंतर
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18:04, 29 जनवरी 2009 का अवतरण
एक सूरज के थकने के संग
जात उठी ऊँघती हात
चक रही है ढीली खाट
चाय के गिलासों से दिन भर का सन्नाटा भेदते
लड़के -बूढ़े.
दिन भर की ख़बरों को खँगालते
चन्द अधेड़
राजनीति के चटखारे लेते
दो-चाह गिरगिट
लाचार अशिक्षित
जागा है आधी रात तक
हाट मेरे गाँव का
सूरज थकने के बाद.