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"सूरज थकने के संग-१ / सरोज परमार" के अवतरणों में अंतर

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एक सूरज के थकने के संग
 
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कितना कुछ थक गया.
 
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थक गई चिड़ियाँ
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थक  गईं लड़कियाँ
 
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जुगाली पड़ी गैया.
 
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उसकी सोच नहीं थकी
 
उसकी सोच नहीं थकी
 
टँग गई हैं उसकी आँखे
 
टँग गई हैं उसकी आँखे
विग्ज़्त और आगत के छोरों पर
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विगत
टंगी रहेंगी.
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और आगत के छोरों पर
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टँगी रहेंगी.
 
पौ फटने तक.
 
पौ फटने तक.
  
 
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18:09, 29 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

एक सूरज के थकने के संग
कितना कुछ थक गया.
थक गईं चिड़ियाँ
थक गईं लड़कियाँ
जुगाली पड़ी गैया.

थम गई चहल-पहल
थम गई हलचल
चूल्हे की गुन-गुन में
पत्नी है गुमसुम
दूरदर्शन के नाटक में रमा
थका-माँदा गाँव
ताज़ा दम होने की कोशिश में.

बस माँ नहीं थकी
उसकी सोच नहीं थकी
टँग गई हैं उसकी आँखे
विगत
 और आगत के छोरों पर
टँगी रहेंगी.
पौ फटने तक.