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"सूरज थकने के संग-२ / सरोज परमार" के अवतरणों में अंतर

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एक सूरज के थकने के संग
 
एक सूरज के थकने के संग
जाग
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जाग उठी ऊँघती हाट
उठी ऊँघती हाट
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चहक रही है ढीली खाट
 
चहक रही है ढीली खाट
 
चाय के गिलासों से
 
चाय के गिलासों से
 
दिन भर का सन्नाटा भेदते
 
दिन भर का सन्नाटा भेदते
लड़के -बूढ़े.
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लड़के-बूढ़े.
 
दिन भर की ख़बरों  को खँगालते
 
दिन भर की ख़बरों  को खँगालते
 
चन्द अधेड़
 
चन्द अधेड़
 
राजनीति के चटखारे लेते
 
राजनीति के चटखारे लेते
 
दो-चार
 
दो-चार
गिरगिट
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गिरगिट
 
लाचार अशिक्षित
 
लाचार अशिक्षित
 
जागा है आधी रात तक
 
जागा है आधी रात तक

18:12, 29 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

 

एक सूरज के थकने के संग
जाग उठी ऊँघती हाट
चहक रही है ढीली खाट
चाय के गिलासों से
दिन भर का सन्नाटा भेदते
लड़के-बूढ़े.
दिन भर की ख़बरों को खँगालते
चन्द अधेड़
राजनीति के चटखारे लेते
दो-चार
गिरगिट
लाचार अशिक्षित
जागा है आधी रात तक
हाट मेरे गाँव का
सूरज थकने के बाद.