"एक अंतर्कथा / भाग 2 / गजानन माधव मुक्तिबोध" के अवतरणों में अंतर
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+ | टोकरी-विवर के भीतर से। | ||
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+ | मैं साश्रुनयन, रोमांचित तन; प्रकाशमय मन। | ||
+ | उपभाएँ उद्धाटित-वक्षा मृदु स्नेहमुखी | ||
+ | एक-टक देखतीं मुझको – | ||
+ | प्रियतर मुसकातीं... | ||
+ | मूल्यांकन करते एक-दूसरे का | ||
+ | हम एक-दूसरे को सँवारते जाते हैं | ||
+ | वे जगत्-समीक्षा करते-से | ||
+ | मेरे प्रतीक रूपक सपने फैलाते हैं | ||
+ | आगामी के। | ||
+ | दरवाज़े दुनिया के सारे खुल जाते हैं | ||
+ | प्यार के साँवले किस्सों की उदास गलियाँ | ||
+ | गंभीर करूण मुस्कराहट में | ||
+ | अपना उर का सब भेद खोलती हैं। | ||
+ | अनजाने हाथ मित्रता के | ||
+ | मेरे हाथों में पहुँच मित्रता भरते हैं | ||
+ | मैं अपनों से घिर उठता हूँ | ||
+ | मैं विचरण करता-सा हूँ एक फ़ैंटेसी में | ||
+ | यह निश्चित है कि फ़ैंटेसी कल वास्तव होगी। | ||
+ | मेरा तो सिर फिर जाता है | ||
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+ | रवि-किरण-बिंदु आँखों में स्थिर हो जाता है। | ||
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07:01, 31 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
आगे-आगे माँ
पीछे मैं;
उसकी दृढ़ पीठ ज़रा सी झुक
चुन लेती डंठल पल भर रुक
वह जीर्ण-नील-वस्त्रा
है अस्थि-दृढ़ा
गतिमती व्यक्तिमत्ता
कर रहा अध्ययन मैं उसकी मज़बूती का
उसके जीवन से लगे हुए
वर्षा-गर्मी-सर्दी और क्षुधा-तृषा के वर्षों से
मैं पूछ रहा –
टोकरी-विवर में पक्षी-स्वर
कलरव क्यों है
माँ कहती –
'सूखी टहनी की अग्नि क्षमता
ही गाती है पक्षी स्वर में
वह बंद आग है खुलने को।'
मैं पाता हूँ
कोमल कोयल अतिशय प्राचीन
व अति नवीन
स्वर में पुकारती है मुझको
टोकरी-विवर के भीतर से।
पथ पर ही मेरे पैर थिरक उठते
कोमल लय में।
मैं साश्रुनयन, रोमांचित तन; प्रकाशमय मन।
उपभाएँ उद्धाटित-वक्षा मृदु स्नेहमुखी
एक-टक देखतीं मुझको –
प्रियतर मुसकातीं...
मूल्यांकन करते एक-दूसरे का
हम एक-दूसरे को सँवारते जाते हैं
वे जगत्-समीक्षा करते-से
मेरे प्रतीक रूपक सपने फैलाते हैं
आगामी के।
दरवाज़े दुनिया के सारे खुल जाते हैं
प्यार के साँवले किस्सों की उदास गलियाँ
गंभीर करूण मुस्कराहट में
अपना उर का सब भेद खोलती हैं।
अनजाने हाथ मित्रता के
मेरे हाथों में पहुँच मित्रता भरते हैं
मैं अपनों से घिर उठता हूँ
मैं विचरण करता-सा हूँ एक फ़ैंटेसी में
यह निश्चित है कि फ़ैंटेसी कल वास्तव होगी।
मेरा तो सिर फिर जाता है
औ' मस्तक में
ब्रह्मांड दीप्ति-सी घिर उठती
रवि-किरण-बिंदु आँखों में स्थिर हो जाता है।