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"अभिरामा निद्रा की गोदी में सोये तुम कर बन्द नयन / प्रेम नारायण 'पंकिल'" के अवतरणों में अंतर

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23:06, 31 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

अभिरामा निद्रा की गोदी में सोये तुम कर बन्द नयन।
मैं मुग्ध झुका पलकें सहलाती थी प्रिय तेरे मृदुल चरण।
चूमती बरौंनी चारू चरण थी सजग चुये दृग-नीर नहीं।
प्रियतम सुख से सोयें उनको दे जगा हमारी पीर नहीं ।
था झूल रहा मेरे वक्षस्थल पर कचनार-हार-अनुपम।
मधु-मृदुल-स्वप्न-रति-स्पन्दन से थे सिहर जग गये तुम प्रियतम!
उस अलसाये दृग की भूखी बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥78॥