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"मखमली वसन से ढँक दूँगी प्राणेश! सदन का वातायन / प्रेम नारायण 'पंकिल'" के अवतरणों में अंतर
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20:02, 2 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
मखमली वसन से ढँक दूँगी प्राणेश! सदन का वातायन।
उडुगण की दृष्टि बचा कस दूँगी कठिन कपाटों पर बन्धन।
मैं बहुत सभय हूँ प्राणेश्वर! वर्धित हो गया हृदय-स्पन्दन।
भय है रजनी-स्मृति ले पंखों पर उड़े न “पंकिल” चपल पवन।
पगली के तन पर कम से कम वे बन स्मृति-चिह्न रहें छाये।
आये न हाय प्राणेश सखी री! प्रियतम नहीं -नहीं आये।
क्या जाने पीड़ा की क्रीड़ा बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥142॥