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"शहर बसता जा रहा है / केशव" के अवतरणों में अंतर
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शहर बसता जा रहा है | शहर बसता जा रहा है |
20:32, 3 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
इस बार
फिर बर्फ़ गिरी है
पिछले साल से कम
और कई सालों से
और-और कम
शहर बसता जा रहा है
पेड़ों की जगह
खड़े
दिखाई देते हैं लोग
जो पेड़ों की तरह
नहीं बुला सकते बर्फ़ को
अपने पास
शहर बढ़ता जा रहा है
उजाड़ की तरफ
फैलाये हाथ
जंगल की पीठ पर
भागते नज़र आते हैं लोग
कहीं-कहीं
बचे-खुचे पेड़ों की
पुकार को करते अनसुना
धुन्ध की जगह
धुएँ में लिपटा है जंगल
इस अंधड़ में
अपनी पहचान की टिमटिमाती लौ को
ढाँपे हथेलियों से
शहर चढ़ता जा रहा है
नंगे पहाड़ पर
घात लगाये बैठे
ज्वालामुखी की ओर