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"वृक्ष / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर

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जीवन एक वृक्ष है
सृजन का वृक्ष
है यह एक
वास्तुबोधी चित्र
कार्यरत
निखिल सिद्धान्तों में बिम्बित
सादृश्य ढला
ईश्वरीय ऊर्जा को
आसमानी ऊंचाई से
नीचे की दुनिया तक
प्रसारित करता
और फिर अपनी तमाम
सगुनात्मकता के साथ
पुनः अपने उदगम बिन्दु तक लौट जाता
हो जाता उसी में विलीन
वृक्ष-में निहित ब्रह्माण्ड
अस्ति-नस्ति में सम्पुटित
कार्य-कारण का भौतिक चक्र
सापेक्ष है मंडराता
दो ध्रुवों के बीच
सगुना और निरगुन
असीम का आगम और निर्गम द्वार
सृजन के समानान्तर
सबसे बिल्कुल अलग
यही है हाँ यही।
सम्पूर्ण विराट यथार्थ
और सब है माया
एक असमाप्य मरूमरीचिका
उसके लिये जो रखता है
चरमसाध्य आँख
चक्राकार ब्रह्माण्डीय नाटक सा
नाटक के अन्दर खुलता हुआ
लगातार एक और नाटक
अतिगुह अनुगूँज से
गतिमय भौतिकी में बदलता
पर,असीम है सृष्टि से परोक्ष
सत्व है जिसका चुम्बकशील
ब्रह्माण्ड के गर्भ में
हर आवाज के पीछे
निश्शब्द चुप्पी की तरह
परछाईयां नहीं कर पातीं
रौशनी के बिना। स्वयं को प्रकट
गतिशील है निखिल
परमाणु तरंगों के
महाक्षीर में।
स्पर्श से दूर अदृश्य में लौटता
जो है महज होने भर का भ्रम
मिट्टी की सघनता। है एक दुर्गम पहेली
शून्य का अस्थायी छदम रूप
एक अतंरंग सत्य
और आदमी क्या है
जिसे हम कहते हैं पृथ्वी
और जिन्दगी का यह दरख़्त
वह पीपल भी है
बरगद
और अश्वत्थ भी