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"अपवाद / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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जब सब वाह वाह कर रहे हों | जब सब वाह वाह कर रहे हों | ||
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जब पूरे मुल्क में एक ही नाम का जाप हो | जब पूरे मुल्क में एक ही नाम का जाप हो | ||
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तब मैं उठूंगा और कहूंगा-- | तब मैं उठूंगा और कहूंगा-- | ||
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और सब तो ठीक, पर उस इन्सान में | और सब तो ठीक, पर उस इन्सान में | ||
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एक ख़राबी भी थी, | एक ख़राबी भी थी, | ||
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वो यह कि लोग जब खाने बैठते | वो यह कि लोग जब खाने बैठते | ||
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वह नाक में उंगली कोंच लेता । | वह नाक में उंगली कोंच लेता । | ||
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जब सब थू थू कर रहे हों | जब सब थू थू कर रहे हों | ||
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जब मौत के बाद भी फाँसी की मांग हो | जब मौत के बाद भी फाँसी की मांग हो | ||
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तब मैं उठूंगा और कहूंगा-- | तब मैं उठूंगा और कहूंगा-- | ||
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ख़ुदा के बन्दों, उस हैवान में एक | ख़ुदा के बन्दों, उस हैवान में एक | ||
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अच्छाई भी थी, | अच्छाई भी थी, | ||
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वो यह कि जब लोग एक साथ सोए | वो यह कि जब लोग एक साथ सोए | ||
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उसने कभी अकेले मसहरी नहीं बाँधी । | उसने कभी अकेले मसहरी नहीं बाँधी । | ||
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12:19, 5 फ़रवरी 2009 का अवतरण
जब सब वाह वाह कर रहे हों
जब पूरे मुल्क में एक ही नाम का जाप हो
तब मैं उठूंगा और कहूंगा--
और सब तो ठीक, पर उस इन्सान में
एक ख़राबी भी थी,
वो यह कि लोग जब खाने बैठते
वह नाक में उंगली कोंच लेता ।
जब सब थू थू कर रहे हों
जब मौत के बाद भी फाँसी की मांग हो
तब मैं उठूंगा और कहूंगा--
ख़ुदा के बन्दों, उस हैवान में एक
अच्छाई भी थी,
वो यह कि जब लोग एक साथ सोए
उसने कभी अकेले मसहरी नहीं बाँधी ।