भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कथन / केशव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:58, 7 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
तुम कहती हो
छूना नहीं मुझे
छूने से हम
थोड़ा पराये हो जाते हैं
मैं कहता हूँ
स्पर्श तो ब्रह्म है
आज तक हम गुज़रते रहे
इसमें से होकर
अब इसे
हमसे होकर गुज़रने दो
मन से होकर गुज़रेगा
जब-जब
देह से थोड़ा-थोड़ा कर
ऊपर उठेंगे हम।