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माँ / दिविक रमेश

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|रचनाकार=दिविक रमेश
|संग्रह=खुली आँखों में आकाश / दिविक रमेश
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रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे
माँदूध बिलोने से पहले
रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे दूध बिलौने से पहले माँ चक्की पीसती, और मैं घूमेड़े में आराम से सोता .
- तारीफ़ों में बँधीं माँ जिसे मैंने कभी सोते नहीं देखा .चक्की पीसती,
आज जवान होने पर एक प्रश्न घुमड़ आया है -और मैं
पिसती चक्की थी या माँ घूमेड़े में
आराम से सोता ।  ::::-तारीफ़ों में बंधीं  ::::माँ . ::::जिसे मैंने कभी ::::सोते  ::::नहीं देखा ।  आज जवान होने पर एक प्रश्न घुमड़ आया है--  ::::पिसती ::::चक्की थी ::::या माँ?