भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुझको भी तरकीब सिखा / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
 
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
  
जब कोइ तागा टुट गया या खत्म हुआ
+
जब कोई तागा टूट गया या खत्म हुआ
  
 
फिर से बांध के
 
फिर से बांध के
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
तेरे इस ताने में लेकिन
 
तेरे इस ताने में लेकिन
  
इक भी गांठ गिराह बुन्तर की
+
इक भी गांठ गिरह बुन्तर की
  
 
देख नहीं सकता कोई
 
देख नहीं सकता कोई

19:26, 16 अगस्त 2006 का अवतरण

लेखक: गुलज़ार

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते

जब कोई तागा टूट गया या खत्म हुआ

फिर से बांध के

और सिरा कोई जोड़ के उसमे

आगे बुनने लगते हो

तेरे इस ताने में लेकिन

इक भी गांठ गिरह बुन्तर की

देख नहीं सकता कोई

मैनें तो ईक बार बुना था एक ही रिश्ता

लेकिन उसकी सारी गिराहे

साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे