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"अलख निरंजन / रेखा" के अवतरणों में अंतर
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02:58, 8 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
द्वार पर
किसी औघड़ की अलख जैसी
गूंजती है
जंगल में रेल की पुकार
क्षण-भर सिहर उठे
पत्तों की तरह
काँप उठता है
कढ़ाही में गृहस्थन का कलछुल
फिर आँख झपकते
जग के कोलाहल में
खो जाती है
औघड़ की वैरागी अलख
सुरंग में खो गई
रेल की तरह