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"बुलबुल, चमन में किसकी हैं ये बदशराबियाँ / सौदा" के अवतरणों में अंतर
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टूटी पड़ी हैं गुंचों की सारी गुलाबियाँ | टूटी पड़ी हैं गुंचों की सारी गुलाबियाँ | ||
− | तुझ रुख़ पे | + | तुझ रुख़ पे ता1 निसार करें मेहरो-माह2 को |
− | + | लबरेज़3 सीमो-ज़र4 से हैं दोनों रकाबियाँ | |
− | सैयाद, कह तो किनने कबूतर को | + | सैयाद, कह तो किनने कबूतर को दाम5 में |
− | सिखलाइयाँ हैं दिल की मिरे | + | सिखलाइयाँ हैं दिल की मिरे इज़्तराबियाँ6 |
ज़ाहिद, हमारे कहने से जो तू पिए शराब | ज़ाहिद, हमारे कहने से जो तू पिए शराब | ||
मिसरी की दें मँगा के तुझे हम गुलाबियाँ | मिसरी की दें मँगा के तुझे हम गुलाबियाँ | ||
− | फ़रहादो- | + | फ़रहादो-क़ैस7 वूँ8 गये, 'सौदा' का है ये हाल |
− | क्या-क्या किया हैं इश्क़ ने | + | क्या-क्या किया हैं इश्क़ ने ख़ानाख़राबियाँ9 |
'''शब्दार्थ: | '''शब्दार्थ: | ||
1. ताकि 2. सूरज-चाँद 3. भरी हुई 4. चाँदी और सोना 5. जाल 6. बेचैनियाँ 7. फ़रहाद और मजनूँ 8. उधर, उस तरह 9. इश्क़ ने क्या-क्या घर बरबाद किए हैं | 1. ताकि 2. सूरज-चाँद 3. भरी हुई 4. चाँदी और सोना 5. जाल 6. बेचैनियाँ 7. फ़रहाद और मजनूँ 8. उधर, उस तरह 9. इश्क़ ने क्या-क्या घर बरबाद किए हैं | ||
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10:42, 8 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
बुलबुल, चमन में किसकी हैं ये बदशराबियाँ
टूटी पड़ी हैं गुंचों की सारी गुलाबियाँ
तुझ रुख़ पे ता1 निसार करें मेहरो-माह2 को
लबरेज़3 सीमो-ज़र4 से हैं दोनों रकाबियाँ
सैयाद, कह तो किनने कबूतर को दाम5 में
सिखलाइयाँ हैं दिल की मिरे इज़्तराबियाँ6
ज़ाहिद, हमारे कहने से जो तू पिए शराब
मिसरी की दें मँगा के तुझे हम गुलाबियाँ
फ़रहादो-क़ैस7 वूँ8 गये, 'सौदा' का है ये हाल
क्या-क्या किया हैं इश्क़ ने ख़ानाख़राबियाँ9
शब्दार्थ:
1. ताकि 2. सूरज-चाँद 3. भरी हुई 4. चाँदी और सोना 5. जाल 6. बेचैनियाँ 7. फ़रहाद और मजनूँ 8. उधर, उस तरह 9. इश्क़ ने क्या-क्या घर बरबाद किए हैं