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"उम्मीदों के भंडार / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर

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20:03, 8 फ़रवरी 2009 का अवतरण

जिन घरों के बच्चे
अक्सर पानी पी कर
भूख कोधता बताते हैं

जिन घरों के बच्चे
ज़िद नहीं करते
भीतर-ही-भीतर मचलते हैं

जिन घरों के बच्चे
बापू की दुर्लभ मुस्कान
माँ की हँसी से
मेलों-खिलौनों की तरह बहलते हैं

रेत के नहीं बनाते घर
हर बरसात के बाद
दरकी दीवारों के लिए
मिट्टी को चिकना बनाते हैं
पाँव के तले
हू-ब-हू महसूस करते हैं धरती

जिन घरों के बच्चे
बचपन के बीचो6 बीच
बचपनहीन होते हैं
वे घर उम्मीदों के भण्डार हैं
उन घरों के बच्चे
बेहतर दुनिया के
विश्वस्त आधार हैं